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Sunday, 22 December, 2024
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‘तानाशाह’ CM जिसे अपनी ‘आलोचना पसंद नहीं’- बिहार विधानसभा का हंगामा नीतीश के बारे में क्या बताता है

बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने पुलिस को अधिक ताकत देने वाला विवादित कानून पास किया है, विपक्ष ने आरोप लगाया है कि इसके पर विरोध उन्होंने उन पर हमला कराया.

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पटना: बिहार के मुख्यमंत्री के तौर पर अपने छठे कार्यकाल में नीतीश कुमार एक नए ही अवतार में नजर आने लगे हैं—जिसमें वे अपने मंत्रियों तक से संपर्क में न रहने वाले, आलोचनाओं के प्रति कम सहनशील और आम सहमति बनाने से परहेज करते लगते हैं.

यह बात खासकर मंगलवार को खुलकर सामने आई जब बिहार विधानसभा से एक दर्जन से अधिक विपक्षी विधायकों को बाहर निकालने के लिए पुलिस को बुलाया गया.

सबसे चिंताजनक तस्वीर ये सामने आई कि राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के कम से कम चार विधायकों को पुलिस ने घसीटकर बाहर निकाला और एक अन्य विधायक पर तो इतनी बुरी तरह हमला किया गया कि उन्हें अस्पताल ले जाने की नौबत आ गई.

ये सभी विवादास्पद बिहार विशेष सशस्त्र पुलिस विधेयक, 2021 का विरोध कर रहे थे, जो केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआईएसएफ) की तर्ज पर बिहार सैन्य पुलिस की 18 बटालियन को एक विशेष सशस्त्र बल में तब्दील करने की कोशिश का हिस्सा है. यह विधेयक इस बल को किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार करने या किसी वारंट के बिना परिसर में छापेमारी करने का अधिकार देता है.

यहां एक बात साफ करना जरूरी है कि 111 सदस्यीय मजबूत विपक्ष ने खुद भी कोई बहुत अच्छा उदाहरण पेश नहीं किया था. विपक्ष ने स्पीकर विजय कुमार सिन्हा को उनके कार्यालय में बंधक बना लिया था, ताकि वह कार्यवाही शुरू करने के लिए सदन के अंदर न जा सकें. अध्यक्ष की कुर्सी पर पूरी तरह कब्जा कर लिया गया था और माइक्रोफोन हटा दिए गए थे.

हालांकि, विपक्ष का कहना है कि मुख्यमंत्री ने अपनी तरफ से गतिरोध तोड़ने की कोई कोशिश नहीं की और इसके बजाय विधायी व्यवस्था को पटरी से उतारने में जुटे रहे.

राजद के वरिष्ठ नेता शिवानंद तिवारी ने कहा, ‘सबसे आसान तरीका यह था कि बिल को प्रवर समिति को भेज दिया जाए. बिल तत्काल पारित कराने की कोई जरूरत नहीं थी लेकिन नीतीश कुमार उसे उसी दिन पास कराने के लिए व्यग्र नजर आ रहे थे.’

कांग्रेस विधायक अजीत शर्मा ने बताया कि इस पर टकराव सुबह से शुरू हो गया था लेकिन सरकार ने स्थिति बिगड़ने न देने का कोई प्रयास नहीं किया. उन्होंने कहा, ‘हालात नियंत्रण से बाहर होने के लिए सीधे तौर पर सरकार जिम्मेदार है.’

यहां तक कि नीतीश के मंत्री भी इस बात को मानते हैं बिल पेश किए जाने के संबंध में पहले से किसी जानकारी का अभाव था. एक कैबिनेट मंत्री ने दिप्रिंट को बताया, ‘बिल कैबिनेट की बैठक में आखिरी समय में पेश किया गया था और उस पर कोई चर्चा भी नहीं हुई थी.’

पूर्व की तुलना में बदली व्यवस्था का हाल यह था कि मीडिया को विधानसभा सत्र के दौरान मुख्यमंत्री कार्यालय के पास फटकने की अनुमति नहीं है.


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मुख्यमंत्री ने अपनी तरफ से बिल का बचाव किया. उन्होंने विधानसभा में कहा, ‘ऐसा बल गठित करने में कोई नई बात नहीं है. उन्होंने बिल का अध्ययन नहीं किया है.’ साथ ही जोड़ा कि राज्य में बोधगया मंदिर, हवाई अड्डों और ऐसे ही अन्य स्थानों की सुरक्षा के लिए इस तरह के बल की आवश्यकता है.

विपक्ष ने सत्र का बहिष्कार किया

सदन में हाथापाई के एक दिन बाद बुधवार को विपक्ष ने विधानसभा सत्र के बहिष्कार की घोषणा कर दी.

राजद नेता तेजस्वी यादव ने पटना में मीडिया से कहा, ‘अगर सरकार पुलिस की मदद से विधानसभा चलाना चाहती है तो हम इसमें हिस्सा नहीं लेंगे.’

हालांकि, सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) मंगलवार की घटना को लेकर बचाव की मुद्रा में है.

जदयू के वरिष्ठ मंत्री बिजेंद्र प्रसाद यादव ने दिप्रिंट को बताया, ‘विधानसभा में मेरे 31 वर्षों के अनुभव में मैंने ऐसा दृश्य कभी नहीं देखा. पुलिस को बुलाने का फैसला स्पीकर का था क्योंकि विपक्ष उन्हें बंधक बना रहा था. विपक्ष ने स्पीकर की कुर्सी पर कब्जा जमा लिया था, उनका माइक तोड़ दिया और गालियां दे रहा था. अध्यक्ष के पास विकल्प ही क्या था?’

भाजपा विधायक संजय सरोगी ने कहा, ‘विपक्ष गुंडों की तरह व्यवहार कर रहा था, विधायकों की तरह नहीं.’

हालांकि, राजद के शिवानंद तिवारी ने कहा कि यह मुद्दों पर मुख्यमंत्री के रुख को दर्शाता है. नीतीश को करीब से जानने वाले तिवारी ने आरोप लगाया कि विरोधियों की आलोचना से अधीर हो जाना और विपक्ष को दबाना मुख्यमंत्री की पुरानी आदत है.

तिवारी ने कहा, ‘इस बार जो बदलाव आया है वो ये कि भाजपा और राजद की तुलना में उनकी राजनीतिक ताकत घटी है. ऐसे में उनका रवैया और भी तानाशाहीपूर्ण हो गया है और वह आलोचना बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हैं.

विशेषज्ञों का कहना है कि मुख्यमंत्री के ऐसे रुख से राज्य को नुकसान होगा.

पटना विश्वविद्यालय में प्रोफेसर रहे प्रो. एन.के. चौधरी का कहना है, ‘संसदीय लोकतंत्र के लिए आम सहमति एक प्रमुख शब्द है. सभी संसदीय निकायों में मतभेद होते हैं. यह सत्ताधारी पार्टी की जिम्मेदारी होती है कि सर्वसम्मति के लिए कदम उठाए. ऐसा नहीं हो रहा है. यह लोकतंत्र के लिए एक खतरनाक संकेत है.’

ए.एन. सिन्हा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल स्टडीज के प्रो. डी.एन. दिवाकर ने कहा, ‘यह एक तरह से लोकतांत्रिक परंपराओं पर संकट का संकेत है. 1970 के जेपी आंदोलन से उभरा एक व्यक्ति ही ऐसा रुख अपना रहा है जिसकी वह खुद ही आलोचना करता था.’

विवादास्पद कानूनों की बाढ़

पिछले कुछ समय नीतीश कुमार सरकार एक के बाद एक विवादास्पद कानून ला रही है.

फरवरी में डीजीपी एस.के. सिंघल ने एक सर्कुलर जारी करके चेतावनी दी थी कि विरोध प्रदर्शन के दौरान ‘आपराधिक कृत्यों’ में शामिल पाए गए लोग सरकारी नौकरी या बैंक ऋण के पात्र नहीं रहेंगे. इस पर विपक्ष ने नीतीश कुमार को बिहार का किम जोंग उन करार देना शुरू कर दिया था.

इससे पहले, जनवरी में राज्य पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा ने एक सर्कुलर जारी करके चेतावनी थी कि मंत्रियों, विधायकों, सांसदों और अधिकारियों के खिलाफ ‘अपमानजनक और झूठे पोस्ट’ लगाने वालों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी. विपक्ष ने तब मुख्यमंत्री की तुलना हिटलर से की थी.

उसी महीने में सरकार ने भी एक सर्कुलर जारी किया था जिसमें 50 साल से अधिक उम्र के ऐसे सरकारी अधिकारियों को जबरन रिटायर करने की चेतावनी दी गई थी, ‘जिनका प्रदर्शन अपेक्षा के अनुरूप नहीं था.’ विभिन्न सेवा संघों ने इसके खिलाफ हड़ताल पर जाने की धमकी दी थी.

(अरुण प्रशांत द्वारा संपादित)

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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