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Sunday, 16 November, 2025
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धर्मेंद्र प्रधान ने फिर कमाल किया: NDA की बिहार की बड़ी जीत के पीछे शांत मध्यस्थ और रणनीतिकार

अमित शाह के ‘करीबी’ और अक्सर ‘मोदी के सबसे भरोसेमंद सहयोगी’ कहे जाने वाले चुनाव प्रभारी प्रधान एनडीए की बिहार में भारी जीत के असली खिलाड़ी हैं.

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नई दिल्ली: पिछले साल हरियाणा में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की वापसी में अहम भूमिका निभाने के बाद—जब आम लोगों की राय और एग्ज़िट पोल्स ने पार्टी को खारिज कर दिया था, उन्होंने एक बार फिर कमाल कर दिखाया है. इस बार बिहार विधानसभा चुनाव में, जहां एनडीए ने शुक्रवार को ऐतिहासिक जीत दर्ज की. ‘शांत’ और ‘साधारण’ कार्यकर्ता, जो हमेशा लाइमलाइट से दूर रहते हैं, उन्हें 25 सितंबर की देर रात बिहार का जिम्मा दिया गया. बहुत लोगों को लगा कि उनके पास समय कम है, लेकिन धर्मेंद्र प्रधान ने फिर भी डिलीवर किया.

अमित शाह के ‘करीबी’ और अक्सर ‘मोदी के सबसे भरोसेमंद लेफ्टिनेंट’ कहे जाने वाले धर्मेंद्र प्रधान, एनडीए की बिहार में भारी सफलता के पीछे के चेहरे हैं. उन्होंने गृह मंत्री के साथ मिलकर न सिर्फ रणनीति बनाई बल्कि बागी उम्मीदवारों को भी मनाया, जो बिहार में माहौल बिगाड़ सकते थे.

बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, “वक्त कम था. कई सिरे थे जिन्हें जोड़ना था…उन्हें पार्टी की रणनीति को सुचारु तरीके से लागू करने की जिम्मेदारी दी गई थी—चाहे बागियों को मनाना हो, कैंपेन की रणनीति बनानी हो या टिकट बांटने का काम. वे जाने-माने रणनीतिकार हैं जिन्होंने कई चुनावों में परिणाम दिए हैं. वे ओबीसी का चेहरा भी हैं और इससे बिहार में जाति आधारित समर्थन जुटाने में मदद मिली.”

अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से राजनीतिक करियर शुरू करने वाले धर्मेंद्र प्रधान आगे चलकर भारत के सबसे लंबे समय तक पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्री रहे और अब केंद्रीय शिक्षा मंत्री हैं. पार्टी में कई लोगों के लिए वह “उज्ज्वला मैन” हैं क्योंकि उन्होंने प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना (PMUY) जैसी योजनाओं को ग्राउंड पर उतारने में अहम भूमिका निभाई. उनकी रणनीतिक क्षमता और संगठन कौशल ने उन्हें वर्षों से कई राज्यों में चुनाव प्रभारी के तौर पर सफल बनाया है.

बीजेपी प्रवक्ता गुरु प्रकाश पासवान ने कहा, “हालांकि, पार्टी कार्यकर्ताओं की है, लेकिन धर्मेंद्र प्रधान जी 2010 में भी बिहार में एक लकी मैस्कॉट थे. उन्हें बिहार की पूरी समझ है और जिस तरह वे सभी कैडर को मॉनिटर, प्रोत्साहित और ऊर्जा दे रहे थे, वह शानदार था. उनकी बिहार पर मजबूत पकड़ और समझ है. अमित शाह जी की नेतृत्व ने भी कैडर को ऊर्जा दी. इसलिए यह बीजेपी और गठबंधन की सामूहिक जीत है.”

बिहार में एक अन्य वरिष्ठ नेता ने बताया कि समन्वय सबसे बड़ी चुनौती थी और प्रधान ने सबको एक साथ रखने में अहम भूमिका निभाई. सीटों का बंटवारा, उदाहरण के लिए, सामान्य से अधिक समय लगा और प्रधान ने सुनिश्चित किया कि सभी सहमत हों. बिहार बीजेपी के एक नेता ने कहा, “चिराग पासवान की एलजेपी (रामविलास) और जेडी(यू) के बीच मुद्दों को हल करना हो या बागी उम्मीदवारों को रोकना, वह हर दिन बैठक करते थे और सीमित समय में पूरे राज्य में यात्रा कर रहे थे.”

राज्य के बीजेपी कार्यकर्ताओं का कहना है कि प्रधान का नीतीश कुमार से व्यक्तिगत रिश्ता भी अहम रहा, खासकर क्योंकि उनके पिता देबेंद्र प्रधान, बिहार मुख्यमंत्री के क़रीबी मित्र माने जाते थे. एक अन्य नेता ने कहा, “एनडीए में जब भी कोई तनाव या मतभेद होता था, बीजेपी की तरफ से मुख्य संपर्क धर्मेंद्र प्रधान ही होते थे. वे धैर्य से काम करने वाले हैं. सिर्फ प्रभारी होना ही नहीं—वे हमेशा से नीतीश कुमार के करीबी रहे हैं.”

बीजेपी बिहार उपाध्यक्ष सिद्धार्थ शंभू ने कहा, “देखिए उनका बिहार से पुराना संबंध है. बीजेपी और जेडी(यू) नेताओं के साथ उनके सौहार्दपूर्ण संबंधों की वजह से सीट-बंटवारा इतनी आसानी से हो गया. जब कहीं कोई मुद्दा आता था, वह उसे शांतिपूर्वक निपटवा देते थे.”

राज्य में यात्रा करना हो, लगभग हर जिला कवर करना हो, नेताओं से मुलाकातें करनी हों, अभियान की रणनीति बनानी हो या गठबंधन के साथ समन्वय, प्रधान ने बिहार में पार्टी का कामकाज बहुत सुचारु रखा. एक नेता ने कहा, “जब टिकट बंटे, तो कई नेताओं ने नाराज होकर टिकट न मिलने पर बगावत की और निर्दलीय खड़े हो गए. गृह मंत्री अमित शाह के अलावा उन्हें शांत कराने और पार्टी के उम्मीदवारों के लिए काम पर लगाने का काम धर्मेंद्र प्रधान ने किया, क्योंकि उनकी बिहार के नेताओं के साथ अच्छी ट्यूनिंग है.”

एक अन्य नेता ने कहा, “माइक्रो-लेवल की चीज़ें—कौन सा नेता किस सीट पर प्रचार करे—ऐसे फैसले भी वे खुद देखते थे. वे फोन या मुलाकात के जरिए लगातार कार्यकर्ताओं से जुड़े रहते थे. उनके करिश्मे का फायदा पूरे एनडीए को हुआ. उनका कोऑर्डिनेशन लाजवाब था.”

और, बिहार उनकी अकेली बड़ी सफलता नहीं है.

धर्मेंद्र प्रधान की दूसरी सफलताएं

चुनाव प्रभारी के तौर पर, धर्मेंद्र प्रधान को उत्तर प्रदेश (2022), उत्तराखंड (2017), झारखंड (2014) और पश्चिम बंगाल के नंदीग्राम (2021) में सफलता मिली है. वह राज्य जहां वह 2018 में बीजेपी को नहीं जिता पाए, वह था मध्य प्रदेश और एक और राज्य था कर्नाटक (2023).

उन्होंने 2008 में पार्टी को छत्तीसगढ़ में सत्ता बनाए रखने में भी भूमिका निभाई थी.

2022 में, उत्तर प्रदेश के चुनाव प्रभारी के रूप में, धर्मेंद्र प्रधान ने बीजेपी को 403 में से 255 सीटें जिताने में मदद की. उत्तर प्रदेश के एक वरिष्ठ बीजेपी नेता ने कहा, “उन्होंने जातीय समीकरणों को संतुलित करने में अहम भूमिका निभाई और ध्यान सीटें जीतने पर ही रखा. वह रोज पार्टी कार्यकर्ताओं से मीटिंग करते थे और पूरे राज्य में यात्रा करते थे ताकि मुद्दों को और गहराई से समझ सकें.”

ओडिशा के रहने वाले धर्मेंद्र प्रधान ने अपने राज्य में भी बड़ी भूमिका निभाई—केवल बीजेपी की मौजूदगी को मजबूत करने में ही नहीं, बल्कि यह सुनिश्चित करने में भी कि पार्टी 2024 में पहली बार वहां सत्ता में आए. वह ओडिशा के मुख्यमंत्री के लिए स्वाभाविक विकल्प थे, लेकिन बीजेपी लोकसभा चुनाव में संख्या 240 तक गिरने के बाद एक सांसद खोना नहीं चाहती थी. ओडिशा में मोहन चरण मांझी की सरकार के एक साल पूरे होने के बाद, कई लोग राज्य के मामलों में धर्मेंद्र प्रधान के घटते प्रभाव की ओर इशारा कर रहे हैं.

लेकिन बीजेपी के भीतर कई लोग नंदीग्राम की जीत को उनकी राजनीतिक क्षमता की असली परीक्षा मानते हैं. बीजेपी राज्य में सत्ता में नहीं आ पाई, लेकिन धर्मेंद्र प्रधान के संगठन कौशल और लगातार मेहनत ने सुवेंदु अधिकारी को ममता बनर्जी को 1,700 से अधिक वोटों से हराने में मदद की. प्रधान को नंदीग्राम विधानसभा क्षेत्र का चुनाव प्रभारी बनाया गया था.

हरियाणा में, 48 सीटें जीतकर, बीजेपी ने प्रधान की रणनीति के तहत लगातार तीसरी बार सरकार बनाई. एक केंद्रीय नेता ने कहा, “वह बहुत शांत और बेहद कम बोलने वाले नेता हैं. उनकी रणनीति का फोकस जाट और गैर-जाट समीकरण को बदलने और पार्टी कार्यकर्ताओं को एकजुट करने पर था. पार्टी में कई लोग उन्हें मोदी का भरोसेमंद सहयोगी कहते हैं और उन्होंने हमेशा इसे सही साबित किया है.”

उन्होंने आगे कहा, “हरियाणा में, जब किसी को भी जीत को लेकर भरोसा नहीं था, वह पूरी तरह आश्वस्त थे कि पार्टी सत्ता में आएगी. वह रात देर तक पार्टी की रणनीति को लागू करने पर केंद्रित मीटिंग करते थे. वह छोटे-छोटे विवरणों पर भी काम करते थे, जैसे किस नेता को कहां प्रचार करना चाहिए. इससे पता चलता है कि वह अपनी जिम्मेदारी को कितना गंभीरता से लेते थे.”

हालांकि, BJP, धर्मेंद्र प्रधान के चुनाव प्रभारी होने के बावजूद, 2018 में कमल नाथ की अगुवाई वाली कांग्रेस से मध्य प्रदेश में मामूली अंतर से चुनाव हार गई. कांग्रेस 114 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी. नतीजों के बाद, कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी ने मिलकर सरकार बनाई और कमल नाथ मुख्यमंत्री बने.

धर्मेंद्र प्रधान ने अन्य उतार-चढ़ाव भी देखे हैं. कर्नाटक में, उन्होंने दो अलग-अलग वक्त पर बीजेपी के मामलों को संभाला. 2011 से 2013 तक, वह कर्नाटक समेत कई राज्यों के प्रभारी रहे. बाद में, वह 2023 के कर्नाटक विधानसभा चुनावों के लिए चुनाव प्रभारी बने. जब पार्टी चुनाव हारी, तो कई लोगों ने कहा कि बीजेपी ने राज्य के मुद्दों की बजाय राष्ट्रीय मुद्दों पर ज्यादा ध्यान दिया. इस चुनौती को स्वीकार करते हुए, उन्होंने 2024 में बीजेपी को राज्य का चुनाव जिताने में मदद की.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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