नई दिल्ली: भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) अध्यक्ष जे.पी. नड्डा द्वारा पार्टी सांसद निशिकांत दुबे की सुप्रीम कोर्ट की आलोचना को खारिज करने वाया बयान जारी करने के एक दिन बाद, पार्टी के अन्य नेताओं ने न्यायपालिका पर नए हमले शुरू कर दिए हैं. उन्होंने पश्चिम बंगाल हिंसा, एक जज के घर से नकदी बरामद होने और न्यायिक ‘अधिकारों के अतिक्रमण’ जैसे मुद्दों पर चुप्पी साधने का आरोप लगाया है. हालांकि, नड्डा ने सुप्रीम कोर्ट को निशाना बनाने से परहेज़ करने का आह्वान किया है.
कई भाजपा नेताओं ने दुबे का समर्थन किया है, साथ ही न्यायपालिका के साथ कांग्रेस के पिछले टकरावों पर हमला किया है और तर्क दिया है कि पार्टी को मौजूदा बहस का हिस्सा बनने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है.
बंगाल भाजपा महासचिव अग्निमित्रा पॉल ने कहा, “निशिकांत दुबे ने सही बात कही है. सीजेआई भारत के राष्ट्रपति के फैसले को कैसे पलट सकते हैं? राष्ट्रपति सीजेआई को नियुक्त करते हैं, नीति निर्माता नियम बनाते हैं. अगर देश सीजेआई और सुप्रीम कोर्ट द्वारा चलाया जाता है, तो संसद की कोई ज़रूरत नहीं है.”
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ और निशिकांत दुबे द्वारा वक्फ अधिनियम पर न्यायपालिका की टिप्पणियों के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी के मद्देनज़र, सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति बी.आर. गवई ने एक असंबंधित याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा, “जैसा कि यह है, हम पर संसदीय और कार्यकारी कार्यों का अतिक्रमण करने का आरोप लगाया गया है.”
न्यायपालिका को निशाना बनाने से बचने के भाजपा अध्यक्ष जे.पी. नड्डा के निर्देश के बावजूद, पार्टी नेताओं ने सुप्रीम कोर्ट की आलोचना करना जारी रखा है. कन्नौज के पूर्व सांसद और भाजपा की उत्तर प्रदेश इकाई के महासचिव सुब्रत पाठक, जिन्होंने पहले भी न्यायपालिका की ईमानदारी पर सवाल उठाए हैं, ने मीडिया से कहा, “यह बहुत निराशाजनक है कि सुप्रीम कोर्ट भेदभाव करता हुआ दिखाई दे रहा है. यह धारणा ही संस्था में लोगों के विश्वास को खत्म कर सकती है. सबसे बड़ी चिंता यह है कि एक जज के घर से इतनी बड़ी मात्रा में नकदी मिली और फिर भी कोई जवाब नहीं मिला. ज़ाहिर है, न्यायपालिका और सुप्रीम कोर्ट पर सवाल उठेंगे.”
पाठक पिछले महीने जस्टिस यशवंत वर्मा के सरकारी आवास से बरामद नकदी का ज़िक्र कर रहे थे.
भाजपा नेता निशिकांत दुबे के पीछे खड़े हैं, जो अनुराग ठाकुर की तरह ही हिंदू मुद्दों को आक्रामक तरीके से उठाने और मुसलमानों को निशाना बनाने के लिए पार्टी के भीतर एक पसंदीदा वक्ता के रूप में उभरे हैं. पिछले साल बिहार से चुने गए राज्यसभा सांसद और बार काउंसिल के अध्यक्ष मनन कुमार मिश्रा ने भी सुप्रीम कोर्ट की मंशा पर सवाल उठाए और सुनवाई के लिए मामलों के चयन में पक्षपात का आरोप लगाया.
मिश्रा ने एएनआई से कहा, “मणिपुर मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लिया, लेकिन हम देख रहे हैं कि पश्चिम बंगाल के कई हिस्से जल रहे हैं, लेकिन सुप्रीम कोर्ट की आंखें बंद हैं. पूरा देश सुप्रीम कोर्ट की ओर देख रहा है कि सुप्रीम कोर्ट सरकार को पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति शासन लगाने का निर्देश देगा, लेकिन सुप्रीम कोर्ट चुप है.”
भाजपा के कई नेता दुबे पर हमला करने के लिए कांग्रेस की नैतिक स्थिति पर भी सवाल उठा रहे हैं. उनका तर्क है कि कांग्रेस नेताओं का खुद न्यायपालिका को कमज़ोर करने का इतिहास रहा है.
उदाहरण के लिए दुबे की टिप्पणियों को उनकी “निजी राय” करार देते हुए, असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने एक्स पर एक पोस्ट में कई ऐसे उदाहरणों का हवाला दिया, जहां कांग्रेस के सदस्यों ने अतीत में न्यायाधीशों को कथित तौर पर अपमानित किया है.
न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव, अयोध्या फैसले पर न्यायमूर्ति रंजन गोगोई की आलोचना, न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़ की “अनुचित जांच” आदि का हवाला देते हुए सरमा ने कहा कि ये सभी “कांग्रेस पार्टी के भीतर न्यायपालिका की विश्वसनीयता को चुनौती देने की प्रवृत्ति” को दर्शाते हैं, जब फैसले उनके पॉलिटिकल नैरेटिव के प्रतिकूल होते हैं.
उन्होंने कहा, “इस तरह की चुनिंदा आलोचना न केवल न्यायिक प्रक्रियाओं की पवित्रता को कमज़ोर करती है, बल्कि लोकतांत्रिक विमर्श के लिए एक चिंताजनक मिसाल भी स्थापित करती है.”
The Bharatiya Janata Party (BJP) has consistently upheld the independence and dignity of the judiciary as a cornerstone of India’s democracy.
Recently, Hon’ble BJP President Shri @JPNadda ji reaffirmed this commitment by distancing the party from remarks made by Hon’ble MP Shri… pic.twitter.com/iI2yqPogVB
— Himanta Biswa Sarma (@himantabiswa) April 20, 2025
दुबे ने सरमा की पोस्ट पर हिंदी में दोहे के साथ प्रतिक्रिया दी. “जीवन पीड़ा है, राहत के कोई संकेत नहीं दिख रहे हैं. आह, इस जेल को न सलाखों की ज़रूरत है, न जंजीरों की.”
बीजेपी आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने एक्स पर एक पुराने इंटरव्यू की क्लिप शेयर करते हुए कहा, “इंदिरा गांधी और कांग्रेस को अपना अतीत जानना चाहिए.” वीडियो में, गांधी राजनीतिक और आर्थिक चुनौतियों का आकलन करने की शीर्ष अदालत के न्यायाधीश की क्षमता पर सवाल उठाती सुनाई दे रही हैं. यह क्लिप 1977 की है, जब वह आपातकाल की ज्यादतियों की जांच के लिए गठित शाह आयोग को जवाब दे रही थीं.
बीजेपी नेता द्वारा शेयर किए गए वीडियो में इंदिरा गांधी कहती हैं, “मिस्टर शाह को कैसे पता है कि राजनीतिक दुनिया में क्या हो रहा है? कौन सी ताकतें काम कर रही हैं जो एक विकासशील अर्थव्यवस्था को नष्ट करना चाहती हैं? क्या एक न्यायाधीश यह तय करने में सक्षम है? फिर लोकतंत्र क्यों है? चुनाव क्यों होते हैं? राजनीतिक लोग सत्ता में क्यों हैं?”
निशिकांत दुबे ने भी कांग्रेस शासन के दौरान न्यायपालिका की ईमानदारी पर सवाल उठाकर अपना अभियान जारी रखा है. दो अलग-अलग पोस्ट में दुबे ने कांग्रेस शासन में नियुक्त दो न्यायाधीशों का ज़िक्र किया — कैलाश नाथ वांचू, जो बिना कानून की डिग्री के मुख्य न्यायाधीश बन गए और बहारुल इस्लाम, जिन्होंने न्यायाधीश बनने से पहले कांग्रेस के लिए काम किया था.
इस बीच, पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एस.वाई. कुरैशी ने एक्स पर एक पोस्ट में आयरिश नाटककार जॉर्ज बर्नार्ड शॉ को उद्धृत किया, “मैंने बहुत पहले ही सीख लिया था कि सुअर के साथ कभी कुश्ती नहीं लड़नी चाहिए. आप गंदे हो जाते हैं और इसके अलावा, सुअर को यह पसंद है — जॉर्ज बर्नार्ड शॉ, महान लेखक का एक बहुत ही बुद्धिमानी भरा उद्धरण!”
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
यह भी पढ़ें: ठाकरे बंधुओं राज और उद्धव के आपसी मतभेद भुलाकर ‘मराठी मानुस’ मुद्दे पर एकजुट होने के पांच कारण