मुंबई: मराठा नेता मनोज जारांगे पाटिल द्वारा मराठा आरक्षण देने के लिए महाराष्ट्र सरकार को दी गई समय सीमा समाप्त होने से पांच दिन पहले, मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने मंगलवार को पूरे मराठा समुदाय को आरक्षण देने के सबसे उचित तरीके पर चर्चा करने के लिए फरवरी में विधानसभा का एक विशेष सत्र बुलाने का वादा किया है.
हालांकि, जारांगे पाटिल इस घोषणा से नाखुश हैं और उन्होंने कहा कि यदि राज्य सरकार सरकारी नौकरियों और शिक्षा में पूरे समुदाय को आरक्षण देने के अपने वादे को पूरा नहीं करती है तो उनका आंदोलन पहले की योजना के अनुसार जारी रहेगा.
मंगलवार को महाराष्ट्र विधानसभा में बोलते हुए शिंदे ने मराठों को आरक्षण देने का अपनी सरकार का वादा दोहराया.
शिंदे ने नागपुर में विधानसभा के शीतकालीन सत्र में कहा, “पिछड़ा आयोग एक महीने के भीतर हमें अपनी रिपोर्ट सौंप देगा. फिर हम इस पर विचार करेंगे और फिर मराठा समुदाय को आरक्षण देने के लिए फरवरी में विधानसभा का एक विशेष सत्र बुलाया जाएगा. मैं आश्वासन देता हूं कि मराठों को आरक्षण देते समय किसी भी अन्य समुदाय के साथ कोई अन्याय नहीं किया जाएगा.”
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री ने कोटा मुद्दे पर आत्महत्या से मरने वाले लोगों के बारे में भी चिंता व्यक्त की और इन घटनाओं को “अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण” बताया.
उन्होंने कहा, “किसी को भी इस स्थिति का राजनीतिक लाभ नहीं उठाना चाहिए. लेकिन पिछले कुछ दिनों में अलग-अलग समुदायों के बीच मतभेद खुलकर सामने आ गए हैं. यह महाराष्ट्र की प्रगतिशील छवि के अनुकूल नहीं है. मैं सभी से अपील करता हूं कि बातचीत के जरिए हम समाधान निकालेंगे. लेकिन तब तक सभी को शांति बनाए रखनी चाहिए. एक मुख्यमंत्री के तौर पर और सरकार के लिए सभी जातियां एक समान हैं.”
वह मराठों को ओबीसी प्रमाण पत्र देने के राज्य सरकार के पहले फैसले के खिलाफ राज्य के अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के विरोध प्रदर्शन का जिक्र कर रहे थे.
लेकिन जारांगे पाटिल, जिनके द्वारा अगस्त में अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल ने मराठा विरोध को और तेज कर दिया, अपनी 24 दिसंबर की समय सीमा पर अड़े रहे.
जारांगे पाटिल ने अपने गांव अंतरवाली सारथी से मीडिया को बताया, “सीएम का जवाब सकारात्मक है लेकिन हम फरवरी की नई समय सीमा से सहमत नहीं हैं. हमने आपको 24 दिसंबर की समय सीमा दी थी और हमने जो तय किया था, उसके अनुसार आपको 24 दिसंबर तक हमें आरक्षण (मराठों को कुनबी प्रमाणपत्र) देना चाहिए. या हम अपना विरोध फिर से शुरू करेंगे.”
मराठा राज्य की आबादी का 33 प्रतिशत हिस्सा हैं और नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण के लिए छिटपुट रूप से विरोध प्रदर्शन करते रहे हैं. विरोध प्रदर्शन का ताज़ा दौर अगले साल होने वाले संसदीय और महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों से ठीक पहले आया है और इसने शिंदे सरकार पर काम करने का भारी दबाव डाला है.
मराठा समुदाय के लिए अलग कोटा देने का मामला सुप्रीम कोर्ट में है. शीर्ष अदालत ने 2021 में मराठा समुदाय के लिए महाराष्ट्र सरकार के आरक्षण को असंवैधानिक घोषित कर दिया था. राज्य सरकार ने पहले समीक्षा याचिका और फिर सुधारात्मक याचिका दायर की.
फिलहाल, शिंदे सरकार ने मराठा समुदाय के पात्र सदस्यों को कुनबी जाति प्रमाण पत्र जारी करने का फैसला लिया है, जिससे इन लोगों के लिए ओबीसी के रूप में आरक्षण देने का रास्ता खुल गया. कुनबियों को राज्य में ओबीसी के रूप में सूचीबद्ध किया गया है और वे मराठों को ओबीसी प्रमाण पत्र देने के राज्य सरकार के कदम का विरोध करने वालों में से हैं.
विधानसभा में शिंदे का भाषण न्यायमूर्ति संदीप शिंदे (सेवानिवृत्त) के तहत एक पैनल के एक दिन बाद आया है, जो यह जांच कर रहा है कि मराठों को कुनबी जाति प्रमाण पत्र कैसे दिया जाए, जिसने अपनी 450 पेज की रिपोर्ट सौंपी है.
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‘मराठा युवाओं के लिए छात्रवृत्ति, रोजगार’
सभा में बोलते हुए, शिंदे ने उन विभिन्न लाभों को भी सूचीबद्ध किया जो उनकी सरकार ने मराठों को दिए थे. उन्होंने दावा किया कि राज्य सरकार ने छत्रपति शाहू महाराज अनुसंधान प्रशिक्षण और मानव विकास संस्थान (सारथी) के लिए 300 करोड़ रुपये जारी किए हैं और उनकी सरकार मराठा युवाओं को रोजगार देने की दिशा में काम कर रही है.
उन्होंने सदन को बताया कि इसके अलावा, राज्य सरकार ने विदेशी छात्रवृत्ति के लिए 21 करोड़ रुपये निर्धारित किये हैं.
मराठों को कुनबी प्रमाण पत्र देने के बारे में बोलते हुए, सीएम ने कहा कि यह पूरी तरह से सत्यापन के बाद ही किया जाएगा, इसलिए “फर्जी प्रमाण पत्र नहीं दिए जाएंगे”.
उन्होंने कहा कि उच्चतम न्यायालय के समक्ष एक सुधारात्मक याचिका भी दायर की गई है.
उन्होंने कहा, “यह आशा की किरण है. इसे कानून के दायरे में पारित करने के लिए डेटा संग्रह करना होगा और पिछड़ा आयोग एक महीने के भीतर अपनी रिपोर्ट सौंप देगा.”
(संपादन: ऋषभ राज)
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