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Saturday, 2 November, 2024
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दिल्ली के नतीज़ों से बंगाल भाजपा में खलबली, आगामी विधानसभा चुनाव के लिए प्लान बी पर कर सकती है काम

भाजपा अब दीदी यानी ममता बनर्जी सरकार के कथित कुशासन को मुद्दा बनाते हुए पश्चिम बंगाल में प्लान बी पर काम शुरू करने पर विचार कर रही है.

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कोलकाता: दिल्ली के चुनावी नतीजों ने पश्चिम बंगाल की गद्दी पर काबिज़ होने का सपना देख रही भाजपा को करारा झटका दिया है. अब पार्टी को अपनी रणनीति पर नए सिरे से विचार करना पड़ सकता है.

पार्टी के वरिष्ठ नेता और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने अपनी चुनावी सभाओं में कहा था कि इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन यानी ईवीएम का बटन इतने गुस्से से दबाएं कि उसका करंट शाहीन बाग तक लगे. लेकिन चुनावी नतीजों ने साफ कर दिया कि वह करंट शाहीनबाग तक तो नहीं पहुंचा, लेकिन उसने लगभग डेढ़ हज़ार किलोमीटर दूर पश्चिम बंगाल में भाजपा की धुव्रीकरण की राजनीति को कटघरे में ज़रूर खड़ा कर दिया.

अब पार्टी का प्रदेश नेतृत्व महज ध्रुवीकरण की राजनीति पर भरोसा नहीं कर पा रहा है. भाजपा अब दीदी यानी ममता बनर्जी सरकार के कथित कुशासन को मुद्दा बनाते हुए प्लान बी पर काम शुरू करने पर विचार कर रही है. दूसरी ओर, इस नतीजों ने मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस अध्यक्ष ममता बनर्जी को भाजपा के खिलाफ एक ठोस मुद्दा दे दिया है.

इस बात में कोई दो राय नहीं है कि आने वाले समय में राजनीति के लिहाज से भाजपा के लिए पश्चिम बंगाल सबसे अहम राज्यों में शुमार है. बीते लोकसभा चुनावों में मिली भारी कामयाबी ने पार्टी का मनोबल काफी बढ़ा दिया था. उस कामयाबी की लहर पर सवार होकर पार्टी अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों में तृणमूल कांग्रेस से सत्ता छीनने का सपना देखने लगी थी.


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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर पार्टी अध्यक्ष अमित शाह तक हर बार बंगाल दौरे में ‘अगली बार भाजपा सरकार’ का नारा देते नहीं थक रहे थे. भाजपा दिल्ली की तरह बंगाल में भी नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के मुद्दे पर हिंदू वोटरों को एकजुट कर किला फतह करने की रणनीति पर आगे बढ़ रही थी. लेकिन दिल्ली के वोटरों ने जिस तरह ध्रुवीकरण की राजनीति को खारिज कर दिया है उससे बंगाल के नेताओं को झटका लगा है. इसलिए अब उन्होंने प्लान बी के तहत ममता सरकार के कथित कुशासन को अपना मुख्य मुद्दा बनाने पर गंभीरता से विचार शुरू कर दिया है.

भाजपा नेतृत्व बंगाल में नेशनल रजिस्टर आफ सिटीजंस (एनआरसी) और नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के खिलाफ ममता की कड़ी मोर्चाबंदी की काट भी नहीं तलाश सका है. अब मार्च में अमित शाह के बंगाल दौरे के दौरान पार्टी की नई रणनीति को अंतिम रूप दिए जाने की संभावना है.

अगले साल के विधानसभा चुनावों से पहले इस साल अप्रैल-मई में कोलकाता नगर निगम समेत सौ से ज्यादा स्थानीय निकायों के चुनाव होने हैं. इनमें से खासकर कोलकाता नगर निगम को मिनी विधानसभा चुनाव कहा जाता है. भाजपा नेतृत्व ने बंगाल को अपनी नाक और साख का सवाल बनाते हुए यहां अपनी पूरी ताकत झोंक दी है.

प्रदेश भाजपा के एक नेता ने नाम न बताने की शर्त पर कहा कि राष्ट्रीय मुद्दों पर दिल्ली का चुनाव लड़ने की रणनीति गलत साबित हो गई है. उनका कहना है कि ‘पाकिस्तान, आतंकवाद, हिंदुत्व और देशभक्ति या देशद्रोह जैसे मुद्दे बंगाल में बेअसर ही साबित होंगे. ऐसे में बंगाल के मामले में चुनावी रणनीति पर नए सिरे से विचार करना ज़रूरी है.’

दूसरी ओर, दिल्ली के नतीजों ने ममता को भाजपा के खिलाफ एक ठोस हथियार दे दिया है. ममता कहती हैं, ‘भाजपा अब धीरे-धीरे राज्यविहीन पार्टी बनती जा रही है. अब बंगाल उसके ताबूत में आखिरी कील ठोकेगा. वर्ष 2021 के विधानसभा चुनावों में हम उसका अंतिम संस्कार कर देंगे.’

तृणमूल कांग्रेस के महासचिव पार्थ चटर्जी कहते हैं, ‘भाजपा की पराजय का सिलसिला जारी है. अब उसका समय पूरा हो रहा है. बंगाल के लोग भी उसे अगले साल सबक सिखा देंगे.’

हालांकि भाजपा यह मानने के लिए तैयार नहीं है कि दिल्ली के नतीजे बंगाल के वोटरों को प्रभावित करेंगे. पार्टी के राष्ट्रीय सचिव राहुल सिन्हा दावा करते हैं, ‘दिल्ली और बंगाल की ज़मीनी हालत में जमीन-आसमान का अंतर है और मुद्दे भी अलग हैं. एक राज्य के नतीजे का दूसरे राज्य पर कोई असर नहीं होता. इसलिए दिल्ली के नतीजों का बंगाल पर कोई असर नहीं होगा.’ सिन्हा कहते हैं कि अगर ऐसा होता को बंगाल में 34 साल तक राज करने वाली सीपीएम बिहार और झारखंड में भी सत्ता पर काबिज हो जाती.


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लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों को भाजपा का दावा खोखला महसूस हो रहा है. एक विश्लेषक विश्वनाथ दासगुप्ता कहते हैं, ‘भाजपा चाहे जो भी दावे करे, दिल्ली के नतीजों ने उसकी मुश्किलें तो बढ़ा ही दी हैं. पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के मैदान में उतरने के बावजूद वह दहाई का आंकड़ा नहीं छू सकी. ऐसे में बंगाल की राह उसके लिए मुश्किल हो गई है.’

दासगुप्ता कहते हैं, ‘अब तक ममता के खिलाफ भाजपा की ध्रुवीकरण की रणनीति खास कारगर नहीं रही है. इसकी वजह वोटरों पर ममता की पकड़ मजबूत होना है. मौजूदा हालात में भाजपा के लिए अपनी रणनीति में बदलाव ज़रूरी हो गया है.’

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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