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Thursday, 21 November, 2024
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असम के मुस्लिमों को कांग्रेस-AIDUF गठबंधन के कारण वोट न बंटने और भाजपा के हारने की उम्मीद

असम में भाजपा के उदय के साथ मुसलमानों में भय और असुरक्षा की भावना बढ़ी है और ऐसा खासकर सत्ताधारी पार्टी की तरफ से सीएए और एनआरसी को एक-दूसरे से जोड़े जाने के कारण भी हुआ है.

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धुबरी: ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ) को 2005 में इसके गठन के समय से ही तमाम लोगों की तरफ से ‘मियांओं’ (असम में बंगाली मूल के मुसलमानों के संदर्भ में) और असम विरोधियों की पार्टी करार दिया जाता रहा है. असम के राजनीतिक परिदृश्य में यह हमेशा ‘अन्य’ की श्रेणी में रही और यहां तक कि कांग्रेस ने भी इसे ‘सांप्रदायिक’ पार्टी कह डाला.

बहरहाल, असम का यह विधानसभा चुनाव एक तरह से ऐतिहासिक है. ‘महाजोत’—कांग्रेस, एआईयूडीएफ और लेफ्ट का गठबंधन—का बनना इत्र कारोबारी बदरुद्दीन अजमल की पार्टी का राजनीतिक वनवास खत्म होने और उसके पारंपरिक और मुख्यधारा के खेमे में शामिल होने को दर्शाता है. अजमल की पार्टी राज्य की 126 विधानसभा सीटों में से 21 पर चुनाव लड़ रही है.

हालांकि, इस गठबंधन का मुख्य उद्देश्य अल्पसंख्यक वोटों का विभाजन रोकना—जो असम के कुल मतदाताओं में करीब 35 फीसदी है—जमीनी तौर पर कितना सफल होता है, यह तो वक्त ही बताएगा. किसी भी नए गठबंधन की तरह, यहां भी यह सवाल मौजूं है कि क्या वोट ट्रांसफर होगा. इस मामले में यह देखना सबसे महत्वपूर्ण है कि क्या यह गठबंधन असमिया भाषी और बंगाली भाषी मुस्लिम दोनों को स्वीकार होगा.

असम में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के उत्थान के बाद से यहां के मुसलमानों, खासकर मूल निवासियों में, के बीच असुरक्षा की भावना काफी बढ़ गई है—यह ऐसी भावना है जिसका कांग्रेस या असोम गण परिषद (एजीपी) के समय उनको कोई भान तक नहीं था. महाजोत भी असुरक्षा की यह भावना और मुस्लिम मतदाताओं की भाजपा को सत्ता से बाहर करने की इच्छा को भुनाने की पूरी कोशिश में है.


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‘एयूआईडीएफ-कांग्रेस को वोट देंगे’

जमीन स्तर पर देखें तो मुस्लिम मतदाताओं को लगता है कि गठबंधन अल्पसंख्यक वोट को एकजुट रखने में मदद करेगा, खासकर उन सीटों पर जहां इसका वर्चस्व है, और यह भाजपा-एजीपी गठबंधन पर भारी पड़ेगा.

दिप्रिंट के साथ बातचीत के दौरान अधिकांश मतदाताओं ने कहा कि उन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि पहले कांग्रेस को वोट देते रहे हैं या फिर एआईयूडीएफ को, वे तो उसी प्रत्याशी का समर्थन करेंगे जिसे गठबंधन के तहत मैदान में खड़ा किया गया है.

बिलासीपारा के जाकिर हुसैन ने कहा, ‘मैं पहले कांग्रेस को वोट देता था, लेकिन अब यहां एआईयूडीएफ का उम्मीदवार है. लेकिन इससे कोई फर्क नहीं पड़ता, मैं अब एआईयूडीएफ का समर्थन करूंगा. मुस्लिम वोट एकजुट रखना और उसे बंटने से रोकना बहुत जरूरी है.’

यह भावना यहां पर काफी तेजी से बढ़ती नजर आती है.

धुबरी जिले के बख्तार अली कहते हैं, ‘कांग्रेस और एआईयूडीएफ इस बार एक साथ हैं, इसलिए यहां एआईयूडीएफ ने उम्मीदवार उतारा है. पहले मैंने कांग्रेस का समर्थन किया था लेकिन इस बार यह गठबंधन में है तो मैं एआईयूडीएफ के प्रत्याशी का समर्थन करूंगा. यह गठबंधन होना एक अच्छी बात है. इससे पहले हमारी सीट पर मुस्लिम वोट कांग्रेस और एआईयूडीएफ के बीच बंट जाता था और भाजपा जीत जाती थी. लेकिन इस बार हमें उम्मीद है कि वोट नहीं बंटेगा.’

नागांव के सामगुरी निवासी अब्दुल इस्लाम का कहना है कि वे अब एआईयूडीएफ और कांग्रेस को एक ही मानते हैं क्योंकि वे साथ चुनाव लड़ रहे हैं, और साझा प्रत्याशी उतारा है.

एक तरह से माना जा रहा कि जमीनी स्तर पर काफी हद तक वोट ट्रांसफर आराम से हो जाएगा क्योंकि पूर्व में कांग्रेस और एआईयूडीएफ वोट बैंक के उसी एक हिस्से को आपस में बांटने के लिए मैदान में होते थे. इसके अलावा, असमिया और बंगाली भाषी मुसलमानों दोनों का वोट ट्रांसफर होने की उम्मीद जताई जा रही है.

हालांकि, हर कोई इतना आश्वस्त नहीं है. दोनों पक्षों में स्पष्ट तौर पर कुछ न कुछ कट्टर समर्थक हैं जो उनकी पार्टी की तरफ से प्रत्याशी न उतारे जाने से खुद को ठगा हुआ महसूस करते हैं.

बिलासीपारा के तसीमुद्दीन कहते हैं, ‘मैं कांग्रेस का निष्ठावान समर्थक रहा हूं लेकिन इस बार यहां पर एआईयूडीएफ का उम्मीदवार है. मैं उस पार्टी को वोट नहीं देना चाहता इसलिए भाजपा का समर्थन भी कर सकता हूं. इस सीट से उसके मौजूदा विधायक ने बहुत काम किया है.’

हालांकि यहां भावनाएं और उम्मीदें व्यापक स्तर पर महाजोत के पक्ष में ही नजर आ रही हैं.

‘भाजपा हमारे साथ भेदभाव करती है’

असम के मुस्लिम मतदाता भी बाकियों की तरह यही सब चाहते हैं—अच्छी सड़कें, बिजली, पानी, रोजगार, शिक्षा और चिकित्सा देखभाल जैसी सुविधाएं मिले और साथ ही सरकार की कल्याणकारी योजनाओं का लाभ मिले.

लेकिन यहां पर बस एक अंतर है.

असम में भाजपा के लगातार मजबूत होने के साथ मुसलिम आबादी के बीच भय और असुरक्षा की भावना और बढ़ी है और ऐसा खासकर सत्ताधारी पार्टी की तरफ से राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) और नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) को एक-दूसरे से जोड़े जाने के कारण भी हुआ है.

राज्य में मंत्री हिमंत बिस्वा सरमा की जिन्ना के संदर्भ में की गई टिप्पणियां और वह दावा याद कीजिए कि यदि सीएए नहीं लाया गया तो राज्य में हिंदू अल्पसंख्यक बन जाएंगे. या फिर हालिया वादा कि सत्ता में लौटे तो राज्य में ‘लव जिहाद’ और ‘लैंड जिहाद’ को खत्म कर देंगे. पार्टी ने अपने घोषणापत्र में इस आश्वासन के साथ असमिया सभ्यता को ‘कट्टरपंथियों और इस्लामी आक्रामकता’ से बचाने की प्रतिबद्धता भी जताई है.

यद्यपि ‘लव जिहाद’ शब्द के बारे में तो काफी कुछ पता है लेकिन ‘भूमि जिहाद’ शब्द एक नई ही अवधारणा है और एक बार फिर इसके निशाने पर अल्पसंख्यक समुदाय ही है.

ऐसे में असम के मुस्लिम मतदाताओं के लिए गठबंधन उम्मीद की एक किरण के तौर पर सामने आया है जिसे वह सत्ताधारी पार्टी की तरफ से सोच-समझकर निशाना बनाए जाने पर रोक लगने का विकल्प मान रहे हैं.

बिलासीपारा के सूरज जमाल सरकार का कहना है, ‘भाजपा सिर्फ हिंदुओं के लिए काम करती है. वे कहते हैं कि उन्हें हमारी जरूरत नहीं है. यदि वे हमें नहीं चाहते, तो हम भी उन्हें नहीं चाहते. क्या हम इंसान नहीं हैं? क्या हमारे साथ इस तरह से बात या व्यवहार किया जाना चाहिए? भाजपा हमारे साथ भेदभाव करती है. हम सरकारी योजनाओं और लाभों से वंचित हैं. भाजपा-एजीपी गठबंधन के हमारे विधायक सांप्रदायिकतावादी हैं और हमारे प्रति दुराभाव रखते हैं.’

बारपेटा के मुहम्मद असलम भी ऐसी ही राय रखते हैं. उन्होंने कहा, ‘राज्य में जबसे भाजपा सत्ता में आई है, हमारे साथ बुरा बर्ताव हो रहा है. हां, उन्होंने सड़कों में सुधार किया है और पुल भी बनाए हैं. लेकिन मुसलमानों के साथ उनका रवैया हमेशा की तरह भेदभावपूर्ण ही है.’

कांग्रेस और भाजपा का तर्क

हालांकि, गठबंधन के बारे में विभिन्न राजनीतिक दलों से जुड़े नेता अपनी-अपनी राजनीति के लिहाज से बात करते हैं.

कांग्रेस नेता और कलियाबोर से सांसद गौरव गोगोई ने दिप्रिंट से कहा, ‘भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष कहां से चुनाव लड़ रहे हैं? वह पिछली बार जीती सीट से चुनाव नहीं लड़ रहे. क्यों? क्योंकि वहां माकपा का प्रत्याशी है और गठबंधन इतना मजबूत है कि भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष डर गए हैं और दूसरी सीट से लड़ने चले गए हैं. यह गठबंधन इतना प्रभावी है. यह एक व्यापक जनाधार वाला और मजबूत गठबंधन है.’

वहीं भाजपा इसे अपनी तरफ से ‘कांग्रेस के धर्मनिरपेक्ष पार्टी’ के सिद्धांत पर निशाना साधने का अच्छा मौका मानती है, और इसे एक सांप्रदायिक पार्टी के तौर पर प्रचारित कर रही है.

असम भाजपा के एक नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, ‘देखिए, यह बहुत आसान है. हमारा उद्देश्य कांग्रेस की धर्मनिरपेक्ष पार्टी की अवधारणा पर सवाल उठाना रहा है, और ज्यादा महत्वपूर्ण बात यह उजागर करना कि कैसे यह नरम हिंदुत्व के साथ खिलवाड़ कर रही है. एक ऐसी पार्टी जो एकदम कट्टर मुस्लिम पार्टी है, और जिसे वास्तव में उन लोगों का समर्थन हासिल है जिन्हें हम घुसपैठिया कहते हैं, के साथ गठबंधन करना हमें कांग्रेस को सांप्रदायिक ताकत करार देने का सही मौका देता है. यह न केवल असम में, बल्कि पूरे भारत में हमारे लिए फायदेमंद साबित होगा.’

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