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बुधवार, 25 जून, 2025
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आपातकाल की 50वीं वर्षगांठ पर ‘काला दिवस’ मनाने के फैसले से हरियाणा गुरुद्वारा पैनल में दरार उभरी

एचएसजीएमसी के अध्यक्ष जगदीश सिंह झिंडा ने इस फैसले का बचाव करते हुए इसे प्रतिरोध के सिख मूल्यों के प्रति श्रद्धांजलि बताया, लेकिन अकाल पंथक मोर्चा के सदस्यों ने इस पर नाराज़गी जताई.

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नई दिल्ली: नवगठित हरियाणा सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एचएसजीएमसी) 25 जून को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा लगाए गए 1975 के आपातकाल की 50वीं वर्षगांठ को 26 जून को ‘काला दिवस’ के रूप में मनाने के फैसले पर आंतरिक कलह से जूझ रही है.

इस साल की शुरुआत में 19 जनवरी को एचएसजीएमसी चुनाव और उसके बाद 13 मई को 49 सदस्यों के शपथ ग्रहण के साथ ही समिति का गठन पूरा हो गया था.

अब, नवनिर्वाचित एचएसजीएमसी अध्यक्ष जगदीश सिंह झिंडा की अगुआई में ‘ब्लैक डे’ के फैसले ने समिति के भीतर तीखी बहस को जन्म दे दिया है, जिससे गहरी गुटबाजी उजागर हुई है और हरियाणा सिख गुरुद्वारा प्रबंधन अधिनियम, 2014 के तहत शासन के सिद्धांतों के पालन पर सवाल उठ रहे हैं.

एक प्रमुख सिख नेता जगदीश सिंह झिंडा ने “ब्लैक डे” मनाने के फैसले का बचाव करते हुए तर्क दिया है कि यह आपातकाल के दौरान “लोकतंत्र की हत्या” की एक ज़रूरी याद दिलाता है, जब केंद्र ने विपक्षी नेताओं को कैद कर लिया था और नागरिक स्वतंत्रता को सीमित कर दिया था.

उन्होंने आपातकाल के ऐतिहासिक महत्व पर भी जोर देते हुए कहा, “लोकतंत्र की हत्या के दिन को याद रखना ज़रूरी है.”

आपातकाल के दौरान पीड़ित लोगों को सम्मानित करने के लिए एचएसजीएमसी ने पूर्व सांसदों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, आपातकाल के दौरान जेल गए अन्य लोगों और उनके परिवारों को सम्मानित करने की योजना बनाई है, अगर वह मर चुके हैं. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी, हरियाणा के पूर्व सीएम मनोहर लाल खट्टर और वर्तमान सीएम नायब सिंह सैनी उन हाई-प्रोफाइल राजनीतिक हस्तियों में शामिल हैं जिन्हें समिति ने आमंत्रित किया है.

एचएसजीएमसी ने 24 जून को कुरुक्षेत्र के ऐतिहासिक गुरुद्वारा पातशाही छेवीं में अखंड पाठ साहिब का आयोजन भी किया है. इसके अलावा हरियाणा के सभी गुरुद्वारों में इसी तरह के कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे.

25 जून को आपातकाल की 50वीं वर्षगांठ पर होने वाली एचएसजीएमसी की आम बैठक के लिए 26 जून की तारीख चुनी गई है.


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उत्पीड़न के खिलाफ सिख प्रतिरोध को श्रद्धांजलि

झिंडा ने इस कार्यक्रम को उत्पीड़न के खिलाफ सिख प्रतिरोध के मूल्यों को श्रद्धांजलि के रूप में पेश किया है, इस पहल को सही ठहराने के लिए उन्होंने गुरु हरगोबिंद साहिब और गुरु नानक देव जी के उपदेशों का हवाला दिया है.

झिंडा ने मंगलवार को दिप्रिंट से कहा, “इस कार्यक्रम का विरोध करने वालों को यह बताना चाहिए कि हम गुरु गोबिंद सिंह के साहिबजादों (बेटों) का शहीदी दिवस क्यों मनाते हैं, जिन्हें औरंगजेब ने अपनी गद्दी बचाने के लिए शहीद कर दिया था. यह अन्याय के खिलाफ खड़े होने के बारे में है.”

गुरु हरगोबिंद साहिब को उद्धृत करते हुए, झिंडा ने कहा, “राज बिना नहीं धर्म चलता है. यह कार्यक्रम गुरु नानक देव जी के “सरबत दा भला” के अनुरूप है क्योंकि आपातकाल सभी के कल्याण के सिद्धांत के खिलाफ था.”

भाजपा का दबाव: अकाल पंथक मोर्चा

यह फैसला लिया गया है. हालांकि, इस फैसले का एचएसजीएमसी के एक महत्वपूर्ण गुट ने कड़ा विरोध किया है, खास तौर पर बलदेव सिंह कैमपुरी और प्रकाश सिंह साहूवाला के नेतृत्व वाले अकाल पंथक मोर्चा से जुड़े सदस्यों ने. सिरसा से समिति के सदस्य साहूवाला ने खुलासा किया कि अकाल पंथक मोर्चा से जुड़े 49 एचएसजीएमसी सदस्यों में से 20 ने 26 जून के कार्यक्रम का बहिष्कार करने की कसम खाई है.

उन्होंने कहा, “वह (झिंडा) हरियाणा की भाजपा सरकार के दबाव में यह कार्यक्रम आयोजित कर रहे हैं. उन्होंने सदस्यों से अपने फैसले की मंजूरी नहीं ली है और एकतरफा अपने कार्यक्रम की घोषणा कर दी है. हमारे 20 सदस्यों में से कोई भी इस कार्यक्रम में शामिल नहीं होने जा रहा है.”

अकाल पंथक मोर्चा के एक वरिष्ठ सदस्य ने नाम न बताने की शर्त पर आरोप लगाया कि इस कार्यक्रम ने हरियाणा सिख गुरुद्वारा प्रबंधन अधिनियम, 2014 का उल्लंघन किया है, जो राजनीतिक उद्देश्यों के लिए समिति के धन का उपयोग करने पर रोक लगाता है.

सदस्य ने कहा, “किसी भी समिति की बैठक में इस आयोजन के लिए कोई प्रस्ताव पारित नहीं किया गया. यह झिंडा का एकतरफा फैसला है.”

उन्होंने आगे कहा कि अगर यह आयोजन होता है तो उनके गुट ने 26 जून के बाद न्यायमूर्ति दर्शन सिंह (सेवानिवृत्त) की अध्यक्षता वाले हरियाणा सिख गुरुद्वारा न्यायिक आयोग के माध्यम से कानूनी मदद लेने की योजना बनाई है.

जवाबी कार्रवाई में झिंडा ने अपने विरोधियों को विपक्ष के साथ मिलकर काम करने वाला करार दिया है और उन्हें “कांग्रेस के पिछलग्गू” कहा है. उन्होंने उन पर एचएसजीएमसी की स्वायत्तता और सिख सिद्धांतों को कमजोर करने का आरोप लगाया है.

झिंडा ने दिप्रिंट से कहा, “जो लोग इस आयोजन का विरोध कर रहे हैं, वह कांग्रेस के निर्देशों पर काम कर रहे हैं.”

इस आरोप-प्रत्यारोप ने एचएसजीएमसी के भीतर दरार को और गहरा कर दिया है.

सत्ता संघर्ष की अभिव्यक्ति

एचएसजीएमसी के गठन के बाद से ही आंतरिक संघर्ष, जो सत्ता संघर्ष की अभिव्यक्ति है और भी तीव्र हो गया है.

एचएसजीएमसी में 49 सदस्य हैं: 40 निर्वाचित सदस्य (जनवरी 2025 में चुने गए) और नौ सह-चुने हुए (मनोनीत) सदस्य, जिन्हें एचएसजीएमसी अधिनियम, 2014 के अनुसार नियुक्त किया गया है.

इस चुनाव में सिख समुदाय द्वारा सीधे चुने गए 40 सदस्य थे: 22 निर्दलीय, जिनमें से नौ झिंडा के पंथक दल से थे; छह शिरोमणि अकाली दल (एसएडी) समर्थित हरियाणा सिख पंथक दल से थे; और तीन दीदार सिंह नलवी की सिख समाज संस्था से थे.

इसके बाद, कुछ निर्दलीय अकाल पंथक मोर्चा के साथ जुड़ गए और उन्होंने छह सिख पंथक दल के सदस्यों के साथ मिलकर 20 सदस्यों के साथ बहुमत का दावा किया.

विवादास्पद व्यक्ति बलजीत सिंह दादूवाल सहित नौ सह-चुने गए सदस्यों के नामांकन ने संतुलन को झिंडा के पक्ष में झुका दिया, जिन्हें अब 29 सदस्यों का समर्थन हासिल है, जिनमें राज्य सरकार द्वारा सह-चुने गए नौ सदस्य भी शामिल हैं, जो राज्य भाजपा सरकार के प्रति निष्ठा रखते हैं.

एचएसजीएमसी संविधान हरियाणा के सिख समुदाय द्वारा अपने गुरुद्वारों पर स्वायत्तता के लिए दशकों से चले आ रहे संघर्ष का परिणाम है. 2014 से पहले के वर्षों में, पंजाब के अमृतसर में शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति ने हरियाणा में गुरुद्वारों का प्रबंधन किया था.

2000 के दशक की शुरुआत में एक अलग निकाय की मांग ने जोर पकड़ा, जिसमें जगदीश सिंह झिंडा और दीदार सिंह नलवी जैसे लोगों ने आंदोलन का नेतृत्व किया, उनका तर्क था कि हरियाणा के सिख समुदाय को स्थानीय, धार्मिक और प्रशासनिक ज़रूरतों को पूरा करने के लिए स्वतंत्र नियंत्रण की आवश्यकता है. आंदोलन को शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति (एसजीपीसी) और पंजाब स्थित सिख संगठनों से काफी प्रतिरोध का सामना करना पड़ा, दोनों ने एक अलग निकाय को अपने अधिकार के लिए चुनौती के रूप में देखा.

2014 में तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपिंदर सिंह हुड्डा के तहत, हरियाणा सरकार ने हरियाणा सिख गुरुद्वारा प्रबंधन अधिनियम लागू किया, जिसमें गुरुद्वारों के प्रबंधन के लिए राज्य में संबद्ध स्वास्थ्य और शैक्षणिक संस्थानों के साथ HSGMC की स्थापना की गई. 2014 से 2020 तक झिंडा के नेतृत्व वाली एक तदर्थ समिति ने औपचारिक चुनाव होने तक संचालन की देखरेख की.

एसजीपीसी ने अधिनियम की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी. हालांकि, सितंबर 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने अधिनियम को बरकरार रखा, जिससे एचएसजीएमसी की औपचारिक स्थापना का मार्ग प्रशस्त हो गया.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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