नई दिल्ली: दमन और दीव के लोकसभा सांसद ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है और दमन सचिवालय भवन के लिए निधियों के संचालन में वित्तीय अनियमितताओं के आरोपों की जांच के लिए विशेष जांच टीम (SIT) गठन की मांग की है.
लोकसभा सांसद उमेशभाई बाबुभाई पटेल ने सुप्रीम कोर्ट से SIT जांच की निगरानी करने और केंद्र को आरोपों के संबंध में FIR दर्ज करने का निर्देश देने का आग्रह किया. गुरुवार को दायर याचिका में कहा गया कि दमन और दीव प्रशासन के अधिकारियों ने यूनियन टेरीटरी सचिवालय भवन के नवीनीकरण, ध्वस्तीकरण और पुनर्स्थापना में वित्तीय अनियमितताएं की हैं.
याचिका में कहा गया कि अक्टूबर 2020 में दमन सचिवालय के नवीनीकरण के लिए 23.34 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत वाला टेंडर जारी किया गया. इसके बाद सितंबर 2022 में भवन के सामने हिस्से को ध्वस्त करने के लिए लगभग 3.80 लाख का टेंडर जारी किया गया. 2023 में उसी भवन के पुनर्निर्माण और नवीनीकरण के लिए 12.58 करोड़ रुपये का टेंडर जारी किया गया.
याचिकाकर्ता ने सार्वजनिक धन के दुरुपयोग के लिए UT के प्रशासक प्रफुल खोडा पटेल, वित्त सचिव गौरव सिंह राजावत और दमन कलेक्टर सौरभ मिश्रा के खिलाफ भारत लोकपाल में शिकायत दर्ज कराई.
लोकपाल ने उक्त निधियों में वित्तीय अनियमितताओं के आरोपों की प्रारंभिक जांच के लिए केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) को निर्देश दिया.
CBI की रिपोर्ट पेश करने के बाद, लोकपाल ने 21 अगस्त 2025 को शिकायत में नामित सार्वजनिक कर्मचारी के खिलाफ कार्रवाई बंद कर दी, लेकिन माना कि प्रक्रिया में सार्वजनिक खजाने को वित्तीय नुकसान हुआ है.
याचिका में कहा गया, “इस परिस्थिति में भारत सरकार को दमन सचिवालय भवन के नवीनीकरण, ध्वस्तीकरण और पुनर्स्थापना की प्रक्रिया में हुए सार्वजनिक खजाने के वित्तीय नुकसान की तुरंत स्वतंत्र और पारदर्शी जांच करनी चाहिए. 2020 से 2023 तक तीन टेंडर कार्यकारी अभियंता द्वारा जारी किए गए और अंतिम कार्यवाही के अंत में भवन उसी रूप में पुनर्स्थापित हुआ जैसा पहले था, जिससे सार्वजनिक खजाने को वित्तीय नुकसान हुआ.”
याचिका में कहा गया कि सार्वजनिक खजाने को हुए वित्तीय नुकसान से देश के नागरिकों के हित प्रभावित होते हैं और सार्वजनिक धन का दुरुपयोग शासन के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है, क्योंकि दूसरे और तीसरे टेंडर ने सचिवालय भवन में कोई मूल्य नहीं जोड़ा.
याचिका में कहा गया कि प्रशासनिक अधिकारियों की कार्रवाई सार्वजनिक जवाबदेही और सुशासन के मूल सिद्धांतों का उल्लंघन है.
केस में केंद्रीय सरकार, दादरा और नगर हवेली और दमन और दीव, सचिवालय, मोती दमन और केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) पक्ष बनाए गए हैं.
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