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Monday, 23 December, 2024
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50 रुपये में डायलिसिस करने वाले CPM प्रत्याशी और कोलकाता में डॉक्टर ने 7 बार दान किया है प्लाज्मा

बंगाल के पूर्व स्पीकर हाशिम अब्दुल हलीम के पुत्र और डॉक्टर फवाद हलीम पिछले साल कोविड लॉकडाउन के दौरान गरीब जरूरतमंदों को डायलिसिस की सुविधाएं प्रदान करने के कारण सुर्खियों में आए थे.

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कोलकाता: डॉ. फवाद हलीम ने एक साल पहले पूरी तरह डायलिसिस पर निर्भर मरीजों को इसकी सुविधा प्रदान करके अपनी अलग पहचान और प्रशंसा हासिल की थी जब देशव्यापी लॉकडाउन के कारण गैर-कोविड मरीजों के लिए स्वास्थ्य सेवाएं मिलना मुश्किल बना हुआ था.

वह इस प्रक्रिया के लिए सिर्फ 50 रुपये का शुल्क लेते थे जबकि आमतौर पर अधिकांश अस्पतालों में इस सुविधा के लिए 1,200 रुपये से लेकर 2,000 रुपये तक खर्च करने पड़ते हैं. उनके मरीज, कोविड-पॉजिटिव और गैर-कोविड, दोनों ही ज्यादातर समाज के आर्थिक रूप से कमजोर तबकों से आते हैं.

‘कम्युनिस्ट डॉक्टर’, जो एक राजनेता भी हैं और पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं, ने दक्षिण कोलकाता में पार्क स्ट्रीट के पास स्थित अपने छोटे-से क्लिनिक में डायलिसिस सेवाओं को अब भी जारी रखा हुआ है.

हालांकि, पिछले सात महीनों के दौरान हलीम ने एक अलग तरह— कई बार प्लाज्मा दान कर कोविड मरीजों की भी मदद की है.

हलीम ने दिप्रिंट से बातचीत में बताया कि उन्हें पिछले साल जुलाई में टेस्ट के दौरान कोविड पॉजिटिव पाया गया और फिर वह दो हफ्ते तक अस्पताल के आईसीयू में जिंदगी की जंग लड़ते रहे. डॉक्टर ने बताया कि अगस्त में पूरी तरह बीमारी से उबरने के बाद उन्होंने सितंबर में पहली बार प्लाज्मा दान किया.

प्लाज्मा मानव रक्त का एक घटक है जिसमें एंटीबॉडीज होती हैं और माना जाता है कि कोविड के इलाज में प्लाज्मा थेरेपी प्रभावी हो सकती है यदि इसका इस्तेमाल बेअसर हो रही एंटीबॉडी को रोकने के लिए किया जाए. 15 दिनों के अंतराल के बाद प्लाज्मा दान किया जा सकता है और दानकर्ता कोविड से उबरने के एक महीने बाद प्लाज्मा देना शुरू कर सकता है.

50 वर्षीय हलीम का दावा है कि पिछले सात महीनों में उन्होंने सात बार प्लाज्मा दान किया है.

उन्हें कोविड का टीका लगना अभी बाकी है— जो कोई भी इसकी खुराक प्राप्त करता है वह टीकाकरण की तारीख से 28 दिनों तक प्लाज्मा दान नहीं कर सकता.

स्वर्गीय हाशिम अब्दुल हलीम के पुत्र, जो कि बंगाल में सबसे लंबे समय तक विधानसभा के स्पीकर रहे हैं, फवाद हलीम बंगाल विधानसभा चुनावों में दक्षिण कोलकाता की बालीगंज सीट के लिए कांग्रेस, माकपा और नई पार्टी इंडियन सेक्युलर फ्रंट के गठबंधन संजुक्त मोर्चा की तरफ से प्रत्याशी है.

हालांकि, हलीम को बड़ी रैलियां करते नहीं देखा गया. उनका अभियान मुख्यत: कोविड के प्रति जागरूकता पैदा करने पर केंद्रित था. डॉक्टर से राजनेता बने फवाद ने दावा किया कि उनकी पार्टी ने छोटी रैलियों का विकल्प चुना और वर्चुअल अभियानों पर ज्यादा ध्यान दिया.


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‘जब तक हेल्थ पैरामीटर साथ देंगे प्लाज्मा दान करना जारी रखूंगा’

हलीम ने दिप्रिंट से कहा, ‘मेरे जीवन के दो पहलू हैं— एक राजनेता के तौर पर और दूसरा एक डॉक्टर के रूप में. लेकिन इसमें एक ऐसी समानता निहित है जो दोनों को जोड़ती है. मैं लोगों की सेवा करने के लिए एक राजनेता बन गया और एक डॉक्टर के तौर पर मैं लोगों के लिए कुछ विशेष काम करने के लिए मेडिकली प्रशिक्षित हूं. जब तक मेरी हेल्थ के पैरामीटर अनुमति देंगे तब तक मैं (प्लाज्मा) दान करना जारी रखूंगा.’

हलीम के मुताबिक, कोई भी व्यक्ति प्लाज्मा दान कर सकता है यदि शरीर में एंटीबॉडी की संख्या एक निश्चित स्तर पर हो और उसके अन्य मेडिकल पैरामीटर ठीकठाक हों. कलकत्ता मेडिकल कॉलेज में अपना प्लाज्मा दान करने वाले डॉक्टर-राजनेता ने कहा, ‘मेरी एंटीबॉडी की गिनती अब तक बहुत अधिक है. और मैं अब भी दान करने की स्थिति में हूं. मैंने हाल ही में शुक्रवार को दान दिया था. मुझे फिर से दान करने के लिए कम से कम 14 दिनों तक इंतजार करना होगा, बशर्ते मेरा हेल्थ पैरामीटर मुझे इसकी अनुमति देता हो.’

उन्होंने आगे बताया कि आदर्श परिस्थितियों में प्लाज्मा को कम से कम एक वर्ष संरक्षित किया जा सकता है और 500 मिलीलीटर प्लाज्मा का एक पैकेट दो से तीन लोगों की जान बचाने के लिए काफी हो सकता है.

कलकत्ता मेडिकल कॉलेज के प्रमुख प्रसून भट्टाचार्य ने कहा, ‘डॉ. फवाद हलीम ने सात बार प्लाज्मा दान किया है, जो बेहद दुर्लभ और सराहनीय है. हाई एंटीबॉडी काउंट वाला कोई भी व्यक्ति प्लाज्मा दान कर सकता है लेकिन सात बार ऐसा करना एक बहुत बड़ी बात है. उनके पास बहुत ज्यादा संख्या में एंटीबॉडी थे, यही वजह है कि हमने उनका प्लाज्मा लिया. उन्होंने कई लोगों की जान बचाई है.’

पूर्व चिकित्सा अधीक्षक और कलकत्ता मेडिकल कॉलेज के वाइस-प्रिंसिपल डॉ. इंद्रनील बिस्वास ने कहा, ‘किसी के लिए भी सात बार प्लाज्मा दान करना मुश्किल हो सकता है. यह संबंधित व्यक्ति के इम्युनोग्लोबुलिन (एंटीबॉडी) पर निर्भर करता है.’

हलीम ने बताया कि वह टीकाकरण कराने तभी जाएंगे जब वह प्लाज्मा दान करने में सक्षम नहीं होंगे. उन्होंने कहा, ‘देश एक दूसरी कोविड लहर से जूझ रहा है. जो लोग 1 मार्च या उसके बाद संक्रमित हुए थे, वे मई में जाकर ही प्लाज्मा दान करने की स्थिति में आ पाएंगे. यह प्रोटोकॉल है. इस बीच, प्लाज्मा दानकर्ताओं की जरूरत बहुत ज्यादा बढ़ गई है. अगर मैं कुछ लोगों का जीवन बचा सकता हूं, तो मुझे इसके लिए दान करना जारी रखने में खुशी होगी.

कोविड संक्रमण तेजी से बढ़ने के बीच उनकी डायलिसिस यूनिट में तैनात डॉक्टरों की तीन सदस्यीय टीम अब सबसे पहले कोविड के मरीजों की स्क्रीनिंग करती है. यदि कोई भी टेस्ट में पॉजिटिव पाया जाता है तो उन्हें कोविड-उपचार सुविधा वाले सरकारी अस्पताल एमआर बांगुर अस्पताल में भर्ती कराया जाता है. संक्रमण का पता लगने के दो हफ्ते बाद उनकी टीम मरीज का डायलिसिस शुरू करती है.

हलीम ने 2019 का लोकसभा चुनाव माकपा की टिकट पर डायमंड हार्बर सीट से लड़ा था. उन्होंने 1 लाख से कम वोटों के साथ तीसरा स्थान हासिल किया था, जबकि यहां से जीतने वाले मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी को लगभग 8 लाख वोट मिले थे.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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