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Thursday, 21 November, 2024
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सीपीआई (माले), सीपीआई(एम) और सीपीआई बिहार चुनाव में छोड़ रहे हैं छाप, 29 में से 18 सीटों पर आगे

वाम नेताओं का कहना है कि प्रवासी संकट और बेरोज़ागारी जैसे मुद्दों की वजह से, वो बिहार के पिछले चुनावों के मुक़ाबले, इस बार अपनी स्थिति में काफी सुधार कर पाए हैं.

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नई दिल्ली: वाम दलों- सीपीआई (माले), सीपीआई(मार्क्सवादी) और सीपीआई- ने बिहार विधान सभा चुनावों में बहुत अच्छे स्ट्राइक रेट का प्रदर्शन किया है, जो राज्य में वामपंथ के फिर से जीवित होने का संकेत है.

मंगलवार शाम 5 बजे तक, सीपीआई (माले) जिन 19 सीटों पर लड़ रही थी, उनमें से 12 पर आगे चल रही थी, जबकि सीपीआई(एम) 4 में से 3 पर, और सीपीआई 6 सीटों में से 3 पर आगे थीं.

तीनों वाम पार्टियां मिलकर 29 सीटों में से 18 में आगे चल रही हैं, और अगर ये रुझान जीत में बदलते हैं, तो ये आरजेडी की अगुवाई वाले महागठबंधन के सीट शेयर में एक अहम योगदान होगा. सीपीआई और सीपीआई(एम) ने तो पिछले चुनावों में भी, आरजेडी के साथ गठबंधन किया है, लेकिन ये पहली बार है कि सीपीआई (माले) ने, आरजेडी से हाथ मिलाया है.

सीपीआई(एम) महासचिव सीताराम येचुरी ने दिप्रिंट से कहा, ‘वामपंथी आज बहुत स्पष्ट हैं कि बीजेपी को सत्ता से बाहर रखना आवश्यक है, उन्हें दूर रखना है ताकि वो संविधान को तबाह करने की ताक़त हासिल न कर पाएं. यही वजह है कि आरजेडी से हाथ मिलाना ज़रूरी था’.

बिहार के बहुत से इलाक़ों में वाम दलों के काडर का जनाधार है, लेकिन 2015 के विधान सभा चुनावों में सीपीआई(माले), सिर्फ तीन सीटें जीत पाई थी, जबकि वो 98 सीटों पर लड़ी थी. सीपीआई और सीपीआई(एम) तो अपना खाता भी नहीं खोल पाईं थीं. तीनों दल अपना गठबंधन बनाकर वो चुनाव लड़े थे, जो एनडीए और महागठबंधन से अलग था.


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इस चुनाव ने राज्य में वामदलों की हैसियत तेज़ी से बढ़ा दी है, जहां कुछ समय से उनकी अपील, कुछ सीमित इलाक़ों तक सिमटकर रह गई थी.

बेरोज़गारी, प्रवासी संकट प्रभावी मुद्दे रहे

वाम नेताओं का मानना है कि प्रवासी संकट, और बेरोज़ागारी जैसे मुद्दों की वजह से, वो बिहार के पिछले चुनावों के मुक़ाबले, इस बार अपनी स्थिति में काफी सुधार कर पाए हैं.

येचुरी ने कहा, ‘वामदल हमेशा कहते आए हैं, कि आर्थिक न्याय के बिना सामाजिक न्याय हासिल नहीं किया जा सकता. इन्हें आपस में मिलाना होगा, और ये आवश्यक है. और इस बार बेरोज़गारी और प्रवासी संकट प्रमुख मुद्दे थे, इसलिए लोगों ने हमारे स्वप्न को समझ लिया’.

सीपीआई के राष्ट्रीय सचिव डी राजा ने कहा, कि वामपंथी ‘बिहार में हमेशा एक ताक़त रहे हैं’.

राजा ने कहा, ‘लेकिन इस बार हम लोगों के रोज़ी-रोटी के मुद्दों को उठा पाए, और बीजेपी-आरएसएस की ख़तरे को चुनौती दे पाए. लोगों ने हमारी सच्चाई को पहचान लिया’.

राजा ने ये भी कहा कि सीपीआई और सीपीआई(एम) ने, लालू प्रसाद यादव के शासनकाल में पहले भी कई बार आरजेडी से सहयोग किया था. दोनों पार्टियों ने 1990 और 1995 के विधान सभा चुनावों में आरजेडी का समर्थन किया था, जिसके नतीजे में यादव सीएम के पद पर चुने गए थे.

उन्होंने आगे कहा, ‘हम लालू जी के साथ चुनावी समायोजन किया करते थे. इस बार, मैंने स्वयं सुनिश्चित किया कि उनके साथ समायोजन हो जाए, और एक उचित गठबंधन के लिए महागठबंधन के साथ आ जाएं, जिसका मुख्य लक्ष्य बीजेपी को हराना हो’.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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