शिमला: मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार और विपक्षी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) हिमाचल प्रदेश लोकतंत्र प्रहरी सम्मान योजना को लेकर आमने-सामने हैं, जिसे पूर्ववर्ती (बीजेपी के नेतृत्व वाली जयराम ठाकुर) सरकार ने अप्रैल 2021 में पेश किया था.
सुक्खू सरकार ने मितव्ययिता के उपायों का हवाला देते हुए बीती चार मार्च को इस योजना को समाप्त कर दिया.
बता दें कि अब समाप्त हो चुकी इस योजना के तहत, हिमाचल निवासी जिन्हें आंतरिक सुरक्षा अधिनियम (मिसा) 1971, या भारत की रक्षा नियम (1971), दंड प्रक्रिया संहिता (1973) के रखरखाव या आपातकाल (1975) के दौरान राजनीतिक या सामाजिक कारणों से जेल या हिरासत में लिया गया था, को इसके तहत मासिक पेंशन प्रदान की जाती थी.
महाराष्ट्र के बाद इस योजना को शुरू करने वाला हिमाचल प्रदेश दूसरा राज्य था. देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व वाली महाराष्ट्र सरकार ने जनवरी 2018 में इसी तरह की योजना शुरू की थी, जिसे बाद में कांग्रेस एनसीपी-शिवसेना गठबंधन सरकार ने जुलाई 2020 में रद्द कर दिया था. हालांकि, वर्तमान सरकार ने जुलाई 2022 में इसे फिर से बहाल कर दिया है.
सरकार के एक अधिकारी ने बताया कि 15 दिन या उससे कम समय के लिए जेल जाने वालों को 12,000 रुपये का मासिक मानदेय, जबकि 15 दिनों से अधिक समय तक जेल में रहने वालों को 20,000 रुपये का मानदेय दिया जाता था.
मुख्यमंत्री के प्रमुख सलाहकार नरेश चौहान ने बताया कि सरकार खर्चों में कटौती के उपाय कर रही है.
उन्होंने दिप्रिंट को बताया, “कई मंत्री, पूर्व मंत्री, विधायक और भाजपा नेता इसके लाभार्थियों में से थे. यह फैसला किसी का अपमान करने के लिए नहीं, बल्कि जनता के पैसे बचाने के लिए लिया गया है.”
हालांकि, बीजेपी ने कांग्रेस पर मुख्य संसदीय सचिवों (सीपीएस) की नियुक्ति और अपने चहेतों को कैबिनेट रैंक देकर फिजूलखर्ची करने का आरोप लगाया है.
पूर्व कानून मंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता सुरेश भारद्वाज ने दिप्रिंट को बताया, “कांग्रेस सरकार ने सीपीएस, कैबिनेट रैंक धारकों के बिलों को फंड करने के वास्ते लोकतंत्र के लिए लड़ने वालों को सम्मानित करने वाली योजना को निलंबित कर दिया है. ऐसा करके पार्टी आपातकाल की जय-जयकार कर रही है— एक ऐसा कार्य जिसने लोकतंत्र का गला घोंट दिया था.”
इस मामले से विपक्षी दल बेहद नाराज़ नज़र आया, जिसके कारण 29 मार्च को विधानसभा में वाकयुद्ध हुआ, जहां ज्वालामुखी के कांग्रेस विधायक संजय रतन ने इस मुद्दे को चर्चा के लिए उठाया.
यह भी पढ़ें: ‘हिमाचल वाटर सेस विवाद’, मुख्यमंत्री सुक्खू ने अपनी सरकार का किया बचाव, बोले- यह राज्य का अधिकार
विधानसभा में ज़ुबानी जंग
इस मामले पर सबसे तीखी आलोचना इस योजना के लाभार्थियों में से एक पूर्व मुख्यमंत्री और पूर्व केंद्रीय मंत्री शांता कुमार की ओर से हुई, जिन्होंने कहा कि कांग्रेस विधायकों ने उन लोगों का अपमान किया है जिन्होंने “दूसरा स्वतंत्रता संग्राम” लड़ा था.
उन्होंने विधानसभा सत्र के बाद कहा, “इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार द्वारा लगाए गए आपातकाल के खिलाफ लड़ना दूसरा स्वतंत्रता संग्राम था. कई लोगों ने संघर्ष किया और लोकतंत्र की रक्षा के लिए जेल भी गए थे.”
आपातकाल के दौरान 19 महीने जेल में भी रहे कुमार ने मीडिया से कहा, “राज्य विधानसभा में जो कुछ भी हुआ वह आपातकाल के दिनों से भी अधिक दर्दनाक था”.
कुमार के रुख पर पलटवार करते हुए संसदीय कार्य मंत्री हर्षवर्धन सिंह चौहान ने कहा, “यह योजना राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के लोगों मंत्रियों या नेताओं को पेंशन देने के लिए शुरू की गई थी. यह एक आंदोलन नहीं था, लेकिन भाजपा ने इसे एक आंदोलन के रूप में चित्रित किया. मीसा के तहत किसे जेल में डाला गया था? वो आरएसएस के लोग थे. भाजपा सरकार ने अपने लोगों को लाभ पहुंचाने के लिए सरकारी धन का दुरूपयोग किया.”
लोकतंत्र प्रहरी योजना के अन्य लाभार्थी और इसे शुरू करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले सुरेश भारद्वाज ने भी इसकी आलोचना की. उन्होंने “कांग्रेस से माफी मांगने और आपातकाल पर अपना रुख स्पष्ट करने” की मांग की.
भारद्वाज ने दिप्रिंट से कहा, “यह कांग्रेस आलाकमान को खुश करने के प्रयास से ज्यादा कुछ नहीं है. कांग्रेस ने आपातकाल लगाया और अब अत्याचारों का सामना करने वालों का अपमान करके इसका बचाव कर रही है.”
भारद्वाज की तरह शांता कुमार ने भी मांग की कि नई सरकार को माफी मांगनी चाहिए.
उन्होंने कहा, “यह योजना मौद्रिक लाभ या पेंशन नहीं थी, बल्कि लोकतंत्र के लिए लड़ने वालों को सम्मानित करने के लिए थी. हमें किसी पेंशन या सम्मान की ज़रूरत नहीं है, लेकिन इस अन्याय के लिए सरकार को माफी मांगनी चाहिए.”
कांग्रेस विधायक संजय रतन ने कहा कि लोगों को असामाजिक गतिविधियों जैसे विभिन्न कारणों से गिरफ्तार किया गया था. उन्होंने कहा, “जनता के पैसे को इस तरह बर्बाद नहीं किया जाना चाहिए.”
शांता कुमार ने शनिवार को सोशल मीडिया पर एक पोस्ट में कहा, “देश भर में 75,000 से अधिक लोगों को जेल में डाल दिया गया और यह लोकतंत्र की रक्षा के लिए एक धर्मयुद्ध था. न तो कोई विदेशी आक्रमण हुआ था और न ही कुछ बहुत बड़ा हुआ था. तब चुनाव के दौरान भ्रष्ट आचरण अपनाने के लिए पीएम को अदालत ने अयोग्य घोषित कर दिया था और पूरे देश को जेल में तब्दील कर दिया था.”
विधानसभा में विपक्ष के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने कहा कि आपातकाल के दौरान विशेष धाराओं के तहत जेल में बंद या हिरासत में लिए गए लोगों के परिवारों को “सम्मान राशि” देने के लिए योजना शुरू की गई थी.
योजना पर बहस नई नहीं है
20 मार्च, 2021 को जब हिमाचल प्रदेश लोकतंत्र प्रहरी सम्मान विधेयक पर विधानसभा में चर्चा हुई, तब नादौन से कांग्रेस विधायक रहे सुक्खू ने सुझाव दिया था कि जिन लोगों को आपातकाल के दौरान बर्बरता के आरोप में जेल में डाला गया था उन्हें इस योजना के तहत नहीं लाया जाना चाहिए.
सुक्खू ने “लोकतंत्र प्रहरी” शब्द को बदलने का भी सुझाव दिया था क्योंकि इसमें पत्रकार, आरटीआई कार्यकर्ता शामिल हैं. उन्होंने आरोप लगाया था कि भाजपा से जुड़े लोगों को मानदेय दिया जाएगा.
इस पर तत्कालीन मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने जवाब दिया था कि उस समय भाजपा अस्तित्व में नहीं थी और समाज के सभी वर्गों के लोग आपातकाल के खिलाफ जन आंदोलन का हिस्सा थे.
(संपादन : फाल्गुनी शर्मा)
(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
यह भी पढ़ेंः हिमाचल की राजनीति में उभर रहा एक ‘बेटा’? 400 साल बाद शाही वंशज के राज्याभिषेक का गवाह बनेगा कांगड़ा फोर्ट