नई दिल्ली: गोवा के मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत ने मनोहर पर्रिकर और दिगंबर कामत के रिकॉर्ड को पीछे छोड़ते हुए अपने कार्यकाल के छह साल पूरे कर लिए हैं, लेकिन राज्य की भारतीय जनता पार्टी इकाई कई तरह की परेशानियों से घिर गई है, जिसमें ज़मीन के रूपांतरण और रियल एस्टेट डेवलपर्स को बेचने के आरोप, भ्रष्टाचार और टूरिस्ट की घटती संख्या का मुद्दा भी शामिल है.
राज्य और केंद्र दोनों स्तरों पर सत्ता में होने के कारण, भाजपा को नेताओं और विभिन्न मुद्दों पर बात करने के लिए राष्ट्रीय महासचिव (संगठन) बी.एल. संतोष और महासचिव अरुण सिंह को गोवा भेजना पड़ा.
ताज़ा विवाद विश्वजीत राणे से जुड़ा है, जो सावंत के प्रतिद्वंद्वी हैं और गोवा सरकार में सबसे प्रभावशाली कैबिनेट मंत्रियों में से एक हैं, जिनके पास टाउन एंड कंट्री प्लानिंग और वन विभाग हैं. गुरुवार को गोवा भर के सैकड़ों कार्यकर्ता राज्य की राजधानी पणजी में एकत्रित हुए और राणे को कैबिनेट से बाहर करने की मांग की.
मुख्यमंत्री को संबोधित एक ज्ञापन में, प्रदर्शनकारियों ने आरोप लगाया कि राणे ने निजी बिल्डर लोढ़ा को ज़मीन बेचने के लिए बिक्री के नियमों को बदल दिया और बिचोलिम में इसके प्रोजेक्ट में शामिल हैं, जिससे हितों का टकराव पैदा हो रहा है.
गोवा सरकार ने 2023 में टाउन एंड कंट्री प्लानिंग एक्ट, 1974 में संशोधन करते हुए धारा 17(2) को शामिल किया था, जो संपत्ति मालिकों को 2021 की क्षेत्रीय योजना में अनजाने में हुई त्रुटियों के सुधार के लिए आवेदन करने की अनुमति देता है.
तब से, होटल बिजनेस और बिल्डरों को बिक्री के लिए संरक्षित ज़मीन में परिवर्तित करने के लिए ज़मीन के नियमों के दुरुपयोग के खिलाफ कई विरोध प्रदर्शन हुए हैं. प्रदर्शनकारियों का आरोप है कि 25 लाख वर्ग किलोमीटर ज़मीन का उपयोग बदल दिया गया है और दिल्ली स्थित बुटानी इंफ्रास्ट्रक्चर को ज़मीन इस्तेमाल में बदलाव करके प्राइवेट फॉरेस्ट लैंड दी गई है.
गोवा फाउंडेशन के निदेशक क्लाउड अल्वारेस, जो गुरुवार के विरोध प्रदर्शन का हिस्सा थे, उनके मुताबिक, 2023 और 2025 के बीच 25 लाख वर्ग किलोमीटर तक की पुरानी ज़मीन को परिवर्तित किया गया.
कार्यकर्ताओं का तर्क है कि राणे के पास पद पर बने रहने का कोई आधार नहीं है और उन्हें “गोवा की ज़मीन निजी बिल्डरों और भू-माफियाओं को बेचने” के आरोप में तुरंत इस्तीफा दे देना चाहिए. एक कार्यकर्ता ने मीडिया से कहा, “सिर्फ 18 महीनों में, गोवा सरकार ने खेत की ज़मीन, जंगल के बाग-बगीचों को बस्ती के इलाकों में बदल दिया है.”
इस महीने की शुरुआत में बॉम्बे हाई कोर्ट की गोवा बेंच ने एनजीओ द्वारा इसके खिलाफ जनहित याचिका दायर करने के बाद अधिनियम की धारा 17(2) को रद्द कर दिया.
बेंच ने कथित तौर पर टिप्पणी की, “लगभग सभी रूपांतरण धान के खेतों, नेचुरल कवल, विकास रहित क्षेत्र और बाग-बगीचों से बस्ती के इलाकों में किए गए हैं. इस तरह के प्लॉट-दर-प्लॉट परिवर्तन, एक ज़ोन के भीतर एक और ज़ोन बनाना, सच में इतनी विस्तृत कवायद के बाद तैयार की गई आरपी (क्षेत्रीय योजना) को खराब करने का प्रभाव डालता है.”
इसने आगे कहा कि राज्य के अनुसार, धारा 17 (2) के तहत 353 स्वीकृतियां हुई हैं, जो इस साल 2 जनवरी तक 26.5 लाख वर्गमीटर को प्रभावित करती हैं.
कोर्ट के फैसले के बाद से कांग्रेस और आम आदमी पार्टी जैसे विपक्षी दलों ने राणे के इस्तीफे की मांग करते हुए दबाव बढ़ा दिया है.
दिप्रिंट से बात करते हुए, भाजपा के राज्यसभा सांसद और गोवा इकाई के पूर्व प्रमुख सदानंद तनावड़े ने कहा, “कुछ लोग इस मुद्दे पर विरोध कर रहे हैं और यह लोकतंत्र का हिस्सा है, जहां तक नगर नियोजन अधिनियम के बारे में कोर्ट के फैसले का सवाल है, राज्य सरकार ने अभी तक यह तय नहीं किया है कि इसे हाई कोर्ट में चुनौती दी जाए या नहीं.”
हालांकि, भाजपा के एक नेता ने कहा, “गोवा अपना टूरिज़्म खो रहा है और भ्रष्टाचार की जड़ गोवा की ज़मीन में है. तटीय राज्य की रूपरेखा में तेज़ी से बदलाव के कारण, राज्य में हर बिल्डर को निर्माण करने की अनुमति देना और पुरानी ज़मीन और जंगलों को कंक्रीट के जंगलों में बदलने की अनुमति देना, हर विभाग पैसा कमा रहा है.”
उन्होंने दिप्रिंट से कहा, “बाहरी लोगों को टूरिज़्म बिजनेस चलाने की अनुमति दी गई है और वह गोवा को दूसरे मुंबई या दिल्ली में बदल रहे हैं. लोग समुद्र, जंगल और गोवा के कल्चर का आनंद लेने के लिए गोवा आते हैं. अगर आप इसे मुंबई या दिल्ली में बदल देते हैं, तो लोग वियतनाम और थाईलैंड जाने लगेंगे, जहां चीज़ें और सस्ती हैं और बुनियादी ढांचा भी बेहतर है. गोवा टाउन प्लानिंग एक्ट का उद्देश्य बड़े बिल्डरों को गोवा की ज़मीन पर कब्ज़ा करने और पैसा कमाने की अनुमति देना था. ये गोवा में भ्रष्टाचार के मूल कारण हैं.”
यह भी पढ़ें: अमरावती के लिए अधिक फंड से लेकर ब्याज मुक्त कर्ज़ तक — नायडू और नीतीश की बजट इच्छा सूची में क्या-क्या है
भाजपा नेताओं और मंत्रियों पर भ्रष्टाचार के आरोप
मार्च की शुरुआत में पूर्व मंत्री और वरिष्ठ भाजपा नेता पांडुरंग मडकईकर ने संतोष से मुलाकात कर पार्टी को चौंका दिया था.
उन्होंने मीडिया से कहा, “गोवा में सभी मंत्री पैसे कमा रहे हैं. मुझे एक छोटे से काम के लिए एक मंत्री को 15 लाख से 20 लाख रुपये देने पड़े. यह भ्रष्टाचार नहीं बल्कि लूट है. मैं किसी का नाम नहीं लेना चाहता, लेकिन सही समय पर मैं मंत्री का नाम बताऊंगा. मैं भी मंत्री रह चुका हूं, इसलिए मुझे पता है कि सरकार में कैसे काम होता है. पैसे लेने के बावजूद उन्होंने मेरी फाइल को लटका कर रखा और जब भी मैंने उनसे संपर्क करने की कोशिश की, उन्होंने मुझसे मिलने से इनकार कर दिया.”
तब से तीन-चार मंत्रियों ने मडकईकर को संबंधित मंत्री का नाम बताने की चुनौती दी है और ऐसे आरोप लगाने से पहले उन्हें अपना इतिहास देखने को कहा है.
गोवा के उद्योग मंत्री मौविन गोडिन्हो ने अपनी ही पार्टी के सदस्यों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाने के लिए मडकईकर की आलोचना की. उन्होंने मीडिया से कहा, “उन्हें मंत्री का नाम बताना चाहिए. उन्हें अपने कार्यकाल को नहीं भूलना चाहिए. अगर वे मंत्री का नाम नहीं बता रहे हैं, तो उन्हें इस तरह के बयान नहीं देने चाहिए.”
समाज कल्याण मंत्री सुभाष फल देसाई ने कहा, “मैं किसी काम के लिए पैसे नहीं लेता और उन्हें मंत्री का नाम बताना चाहिए.”
राणे ने आरोपों को निराधार बताया और कहा कि अगर मडकईकर के पास सबूत हैं, तो उन्हें इसे सार्वजनिक करना चाहिए और मंत्री के खिलाफ शिकायत दर्ज करनी चाहिए.
दिप्रिंट से बात करते हुए, पूर्व राज्यसभा सांसद विनय तेंदुलकर ने कहा, “वे (मडकईकर) हताशा में ये आरोप लगा रहे हैं. वे अपने कार्यकाल (गोवा के मंत्री के रूप में) के दौरान सबसे भ्रष्ट व्यक्तियों में से एक थे और हर कोई जानता है कि कैसे वे मुंबई में एक लड़की के साथ पकड़े गए थे. उन्हें कुछ भी (पद) नहीं दिया गया, यही वजह है कि वे इस तरह के आरोप लगा रहे हैं. उनकी पत्नी ने पिछला चुनाव लड़ा था, लेकिन हार गईं.”
भाजपा की अवज्ञा के बावजूद, भ्रष्टाचार के आरोप गोवा में पार्टी के लिए नियमित शर्मिंदगी बन गए हैं. जनवरी में, पूर्व विधायक फैरेल फर्टाडो ने सीएम सावंत के सामने बोलते हुए दावा किया कि उनके एक छात्र ने गोवा पुलिस में नौकरी पाने के लिए 25 लाख रुपये दिए थे.
राज्य में कथित कैश-फॉर-जॉब घोटाले की भी प्रवर्तन निदेशालय द्वारा जांच की जा रही है. विपक्षी दलों ने इसमें राज्य के मंत्रियों की संलिप्तता का आरोप लगाया है.
जब संतोष ने स्थिति को समझने और शिकायतों को दूर करने के लिए राज्य का दौरा किया, तो कथित तौर पर कई भाजपा विधायकों ने सरकार में भ्रष्टाचार के पैमाने, खासकर मंत्रियों के बारे में शिकायत की. फिर, जब भाजपा के संगठनात्मक चुनावों के बाद अरुण सिंह को मंडल अध्यक्षों को सम्मानित करने के लिए भेजा गया, तो विधायकों ने शासन में बढ़ते भ्रष्टाचार और पार्टी कार्यकर्ताओं के प्रति मंत्रियों के रवैये की शिकायत की.
गोवा सरकार में भ्रष्टाचार की शिकायत करने वाले एक भाजपा विधायक ने दिप्रिंट से बात करते हुए कहा, “सभी नहीं, बल्कि तीन या चार मंत्री भ्रष्ट हैं. उनमें से एक उद्योग और परिवहन मंत्री मौविन गोडिन्हो हैं, जो हर प्रोजेक्ट में अपना कट मांगते हैं. शायद पांडुरंग उनके बारे में शिकायत कर रहे थे. इतना ही नहीं, वे भाजपा कार्यकर्ताओं के साथ दुर्व्यवहार करते हैं और उनकी बात नहीं सुनते. वे सीएम का भी अपमान करते हैं.”
उन्होंने कहा, “एक और गोविंद गौडे हैं, जिनके पास ग्रामीण विकास मंत्रालय है. अटानासियो मोनसेरेट (श्रम मंत्री) को पैसे की ज़रूरत नहीं है, लेकिन उन्हें भाजपा कार्यकर्ताओं की परवाह नहीं है और रोहन खाउंटे (पर्यटन) चौथे मंत्री हैं. मैंने पार्टी नेताओं को इन चार मंत्रियों के बारे में सूचित कर दिया है और पार्टी को संदेश देने के लिए बदलाव करने की ज़रूरत है.”
दिप्रिंट ने टिप्पणी के लिए गोडिन्हो, गौडे, मोनसेरेट और खाउंटे से संपर्क किया, लेकिन उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया.
यह भी पढ़ें: कंगना रनौत कहां हैं? BJP की पसंदीदा सांसद कैसे हुईं स्क्रिप्ट से गायब
अंदरूनी कलह
भ्रष्टाचार के आरोपों के अलावा, अंदरूनी कलह और पार्टी के भीतर अनुशासन की कमी भी ऐसे मुद्दे बन गए हैं, जिन्हें सुलझाने के लिए गोवा भाजपा संघर्ष कर रही है.
12 मार्च को गोवा भाजपा विधायक मिशेल लोबो ने तब हलचल मचा दी, जब उन्होंने सरकार पर स्कूलों को एनजीओ को सौंपने का आरोप लगाया और स्कूलों में कोंकणी को बढ़ावा देने की सरकार की नीति का विरोध किया.
उन्होंने सावंत सरकार से प्राथमिक स्तर पर एजुकेशन का मीडियम मराठी और कोंकणी से बदलकर अंग्रेज़ी करने का आह्वान किया और कहा कि “भाषा की राजनीति ने गोवा में स्कूली पढ़ाई को खत्म कर दिया है.” वे गोवा के पहले सीएम दयानंद बंदोदकर की जयंती के अवसर पर बोल रहे थे, जिन्होंने राज्य में शिक्षा क्रांति की शुरुआत की थी.
उन्होंने कहा, “हर कोई अपने बच्चों को अंग्रेज़ी मीडियम वाले स्कूलों में दाखिला दिलाना चाहता है, लेकिन सरकारी स्कूल कोंकणी और मराठी में पढ़ाते हैं. (सरकारी) स्कूल एक के बाद एक बंद हो रहे हैं और सरकार उन्हें एनजीओ को सौंप रही है. सरकार को बदलाव करने दीजिएस सभी प्राइमरी स्कूल अब अंग्रेज़ी में होने चाहिए.”
हालांकि, सावंत ने कहा कि “राज्य में अंग्रेज़ी को लेकर सरकार की नीति स्पष्ट है”.
जनवरी में, पूर्व पीडब्ल्यूडी मंत्री और विधायक नीलेश कैबरल ने अपने कर्चोरेम निर्वाचन क्षेत्र में रुकी हुई परियोजनाओं के लिए सीएम की आलोचना की थी.
उन्होंने कथित तौर पर कहा, “बतौर मंत्री, मैंने अपने निर्वाचन क्षेत्र में कई प्रोजेक्ट शुरू किए, लेकिन अब ये रुक गए हैं. एक साल पहले, सीएम ने सभी लंबित कार्यों को पूरा करने का वादा किया था, लेकिन तब से कुछ भी नहीं हुआ. अब, जब चुनाव नज़दीक आ रहे हैं, तो उन्हें लोगों को जवाब देना होगा.”
कैबिनेट की बैठक में, खाउंटे ने अपने एक कैबिनेट सहयोगी पर गोवा को बदनाम करने के लिए काम करने का आरोप लगाया, जबकि जनवरी में, जब भाजपा राज्य में संगठनात्मक चुनाव कर रही थी, तनावड़े ने कथित तौर पर पर्यावरण मंत्री एलेक्सो सेक्वेरा को अपना चुनाव कार्य नहीं करने के लिए चेतावनी दी और उन्हें इस बारे में आत्मनिरीक्षण करने के लिए कहा कि क्या उन्हें 2027 के विधानसभा चुनावों के लिए टिकट मिलेगा.
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
यह भी पढ़ें: उत्तराखंड के वित्त मंत्री का इस्तीफा, ‘पहाड़ी बनाम मैदानी’ विवाद ने कैसे बढ़ाई भाजपा की मुश्किलें