बेंगलुरु: कर्नाटक में नवगठित कांग्रेस सरकार ने कहा है कि वह भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) द्वारा पारित सभी विधेयकों और कार्यकारी आदेशों की समीक्षा करेगी, जिसमें धर्मांतरण-विरोधी, मवेशी को काटे जाने विरोधी ( anti-cattle slaughter) और हिजाब बैन जैसे कानून शामिल हैं.
कांग्रेस इस बात को लेकर काफी सतर्क थी कि विधानसभा चुनाव से पहले इनमें से किसी भी विधेयक या उसकी समीक्षा की योजना का जिक्र वह न करे, लेकिन 20 मई को सिद्धारमैया की सरकार बनने के तुरंत बाद इस पर रिव्यू करने का विचार कर रही है.
कर्नाटक में नवनियुक्त कैबिनेट मंत्री और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के बेटे प्रियांक खड़गे ने ट्विटर पर एक पोस्ट में कहा, “सरकार पिछली भाजपा सरकार द्वारा पारित किसी भी विधेयक की समीक्षा करने के लिए दृढ़ है जो: राज्य की छवि को प्रभावित करता है, निवेश को रोकता है, रोजगार पैदा नहीं करता है, असंवैधानिक है और किसी व्यक्ति के अधिकारों का उल्लंघन करता है. हम आर्थिक और सामाजिक रूप से समानता पर आधारित कर्नाटक का निर्माण करना चाहते हैं.
माना जाता है कि राज्य की 224 सीटों में से 135 सीटें हासिल करने वाली कांग्रेस को विधानसभा चुनावों में मुस्लिम, दलित और लिंगायत जैसे कई समुदायों का समर्थन मिला. अब समुदाय के लोग अपने अधिकारों की मांग कर रहे हैं, जैसे कि अपने नेताओं के लिए प्रमुख कैबिनेट बर्थ और साथ ही उन नीतियों को हटाने की मांग जो कि उन्हें अलग-थलग करती हैं.
धर्मांतरण-विरोधी और एंटी-कैटल स्लॉटर बिलों ने कई विजलैंट ग्रुप्स द्वारा धर्मांतरण या गोहत्या के संदेह वाले किसी भी व्यक्ति पर आरोप लगाने और उन पर हमला किए जाने को बढ़ावा दिया. इसके अलावा हिजाब बैन ने भी बड़े विवाद को जन्म दिया था. हालांकि, हिजाब मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के अंतिम फैसले का अभी इंतजार है.
कांग्रेस का बयान इंटरनेशनल ह्यूमन राइट्स एडवोकेसी ग्रुप, एमनेस्टी (इंडिया) द्वारा नव-निर्वाचित राज्य सरकार से इन तीन ‘प्राथमिकता वाले कार्यों (priority actions)’ की मांग के बाद आए हैं.
एमनेस्टी ने अपने पोस्ट में कहा, “शिक्षण संस्थानों में महिलाओं के हिजाब पहनने पर लगे प्रतिबंध को तुरंत रद्द करें. प्रतिबंध मुस्लिम लड़कियों को उनकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और धर्म के अपने अधिकारों व शिक्षा के अधिकार के बीच चयन करने के लिए मजबूर करता है, जो समाज में सार्थक रूप से सहभागिता निभाने की उनकी योग्यता पर रोक लगाता है,”
“यह राज्य के अधिकारियों के लिए मानवाधिकारों के सम्मान, सुरक्षा और पूर्ति के अपने दायित्वों को पूरा करने का एक अवसर है. @AIIndia ने अधिकारियों से अधिकारों की गारंटी के लिए ये प्रभावी और तत्काल कदम उठाकर अपनी प्रतिबद्धता प्रदर्शित करने की मांग की है.”
इसे रिव्यू करने के कांग्रेस की घोषणा पर प्रतिक्रिया देते हुए, कर्नाटक के वरिष्ठ भाजपा सांसद लहर सिंह सिरोया ने गुरुवार को ट्वीट किया: “@PriyankKharge जिस तरह से बोलते हैं उसका अधिकार उन्हें कहां से मिला है? उनके पास अभी भी कोई पोर्टफोलियो नहीं है. वह सीएम या डिप्टी सीएम भी नहीं हैं. वह @INCKarnataka (कर्नाटक कांग्रेस) या @INCIndia (कांग्रेस) के अध्यक्ष भी नहीं हैं. क्या वह कर्नाटक के नए सुपर सीएम हैं?”
क्या हैं कानून
जनवरी 2022 में, उडुपी के गवर्नमेंट प्रि-यूनिवर्सिटी गर्ल्स कॉलेज की 12 छात्राओं ने कक्षाओं के अंदर भी हिजाब पहनने की मांग की. इसे कॉलेज के अधिकारियों ने खारिज कर दिया था क्योंकि भाजपा के नेतृत्व वाली कॉलेज डेवलपमेंट काउंसिल (सीडीसी) के सदस्य और अब प्रतिबंधित की जा चुकी कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया (सीएफआई) इस मुद्दे पर एक दूसरे से भिड़ गए.
इसके चलते बसवराज बोम्मई सरकार ने ऑफिशियल यूनिफॉर्म के तौर पर धार्मिक प्रतीकों के प्रदर्शन पर प्रतिबंध लगाने का आदेश दे दिया. यह निर्णय न केवल कर्नाटक में बल्कि देश के अन्य हिस्सों में भी अल्पसंख्यक अधिकारों पर चर्चा का केंद्र बिंदु बन गया.
स्टूडेंट्स द्वारा अपनी धार्मिक पहचान पर जोर देने की घटनाओं के बाद, न केवल उडुपी बल्कि कर्नाटक के विभिन्न शहरों में सरकार द्वारा संचालित शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब पहनने वाले छात्रों को प्रवेश देने से इनकार करने का चलन देखा गया. कथित तौर पर इसके परिणामस्वरूप राज्य में मुस्लिम लड़कियों के स्कूल छोड़ने की दर बहुत बढ़ गई.
पूरे मामले को गति देने की भूमिका निभाने वाले सीडीसी के वाइस चेयरमैन यशपाल सुवर्ण ने इसी साल उडुपी से विधानसभा चुनाव कांग्रेस कैंडीडेट प्रसादराज कंचन के सामने 32 हजार से ज्यादा वोटों से जीत दर्ज की.
पिछले साल सितंबर में, भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार ने कर्नाटक विधानसभा में धार्मिक स्वतंत्रता अधिकार संरक्षण विधेयक, 2021 को पारित किया, जिसे ‘धर्मांतरण-विरोधी’ विधेयक के रूप में जाना जाता है.
बोम्मई सरकार ने इस पर तर्क दिया था कि नए कानून का इरादा ‘बल, प्रलोभन या धोखाधड़ी’ के जरिए धर्मांतरण को रोकना है. इसके तहत 10 साल तक की जेल की सजा और 1 लाख रुपये के भारी जुर्माने का प्रावधना किया गया था.
(संपादनः शिव पाण्डेय)
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