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Thursday, 19 December, 2024
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कांग्रेस से BJP, तृणमूल और AAP से होते हुए — राहुल के करीबी रहे अशोक तंवर के राजनीतिक बदलाव की कहानी

हरियाणा कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अशोक तंवर शनिवार को बीजेपी में शामिल हो गए, जहां कुछ लोग उनके लगातार बदलावों पर सवाल उठा रहे हैं, वहीं बीजेपी का कहना है कि वे ‘एसेट’ तंवर का स्वागत करने के लिए तैयार है.

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गुरुग्राम: कांग्रेस अपने राजनीतिक विरोधियों के कारण नहीं बल्कि गंभीर आंतरिक विरोधाभासों के कारण आंतरिक संकट से गुज़र रही है, अशोक तंवर ने 4 अक्टूबर 2019 को तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को एक पत्र में लिखा था और पार्टी से इस्तीफा दे दिया था.

उन्होंने कहा था, कांग्रेस अब “सामंती रवैये और मध्ययुगीन साजिशों से ग्रस्त लोकतंत्र की विरोधी” है.

उससे एक महीने पहले, कांग्रेस ने पूर्व लोकसभा सांसद तंवर, जो जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) में अपने छात्र जीवन से ही पार्टी के साथ थे, को हटाकर कुमारी सैलजा को हरियाणा कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया था.

पूर्व मुख्यमंत्री भूपिंदर सिंह हुडा के साथ पार्टी के भीतर लड़ाई में फंसे 48-वर्षीय तंवर को उस साल विधानसभा चुनाव के लिए टिकट देने से भी इनकार कर दिया गया था.

सोनिया को पत्र लिखने से दो दिन पहले उन्होंने और उनके समर्थकों ने उनके आवास 10, जनपथ के बाहर प्रदर्शन किया था. उन्होंने खुद को “मानव बम” कहा था और हुड्डा की आलोचना की थी और गरजते हुए कहा था, “तंवर को इतनी आसानी से खत्म नहीं किया जा सकता.”

4 साल बाद तेज़ी से आगे बढ़ते हुए तंवर, जो कभी राहुल गांधी के विश्वासपात्र थे, कथित तौर पर भाजपा में शामिल हो गए हैं.

लेकिन कांग्रेस से बीजेपी तक के सफर में कई उतार-चढ़ाव आए हैं.

2019 के विधानसभा चुनाव में तंवर ने दुष्यंत चौटाला की जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) का समर्थन किया, जो अब भाजपा के नेतृत्व वाली राज्य सरकार में गठबंधन भागीदार है.

फरवरी 2021 में उन्होंने अपना स्वयं का सामाजिक-राजनीतिक संगठन “अपना भारत मोर्चा” लॉन्च किया, जिसे उन्होंने “तीसरे राष्ट्रीय विकल्प” के रूप में पेश किया.

हालांकि, बमुश्किल नौ महीने बाद, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने हरियाणा में “तीसरा विकल्प” बनाने के लिए उनका तृणमूल कांग्रेस में स्वागत किया.

अप्रैल 2022 में, वह “शासन के केजरीवाल मॉडल” की सराहना करते हुए और हरियाणा को “भ्रष्टाचार मुक्त सरकार” देने की कसम खाते हुए आम आदमी पार्टी (आप) में शामिल हो गए.

आप ने उन्हें राज्य में अपनी प्रचार समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया, लेकिन तंवर ने मंगलवार को पार्टी से इस्तीफा दे दिया.

जाते समय उन्होंने कांग्रेस से अपने मोहभंग को इसका कारण बताया.

उन्होंने आप संयोजक अरविंद केजरीवाल को लिखे अपने पत्र में कहा कि विपक्ष के इंडिया ब्लॉक के बैनर तले कांग्रेस के साथ आप का “गठबंधन” उनकी “नैतिकता” के अनुरूप नहीं है.

जबकि 2019 के बाद से तंवर के राजनीतिक करियर में आए बदलावों को राजनीतिक विश्लेषकों और कांग्रेस के नेता एक गलती की तरह देख रहे हैं — एक विधायक ने दिप्रिंट को बताया कि इससे तंवर की “विश्वसनीयता” खत्म हो गई है — और ऐसा लगता है कि भाजपा उनका स्वागत करने के लिए तैयार है.

हरियाणा भाजपा अध्यक्ष नायब सिंह सैनी ने तंवर को “जनाधार वाला एक अच्छा राजनीतिक नेता बताया, जिन्होंने कांग्रेस में बहुत अच्छा प्रदर्शन किया”.

उन्होंने कहा, कांग्रेस ने उनके साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया.

सैनी ने कहा, “कांग्रेस गहरी जड़ें जमाए हुए भाई-भतीजावाद वाली पार्टी है. कुछ राजनीतिक परिवारों का पार्टी पर नियंत्रण है और ये परिवार तंवर जैसे नेताओं को बढ़ने नहीं देते जिनके पास अपना आधार है. विशेष रूप से दलित नेताओं की कांग्रेस में स्थिति ठीक नहीं है. मुझे भरोसा है कि तंवर हमारी पार्टी के लिए एक संपत्ति साबित होंगे.”


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एक निजी बंधन का टूटना

हरियाणा के झज्जर जिले के चिमनी गांव में एक दलित परिवार में जन्मे तंवर सेना के हवलदार दिलबाग सिंह और गृहिणी कृष्णा राठी के तीन बेटों में सबसे छोटे हैं.

तंवर के पिता अपने बेटों की शिक्षा के लिए दिल्ली चले गए. जबकि तंवर के भाइयों ने ग्रेजुएशन के बाद प्राइवेट नौकरियां कीं, उन्होंने राजनीति में तब कदम रखना शुरू कर दिया जब वह अपने मास्टर्स के लिए जेएनयू के सेंटर फॉर हिस्टोरिकल स्टडीज़ में पढ़ने गए थे.

वह कांग्रेस की छात्र शाखा, नेशनल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ इंडिया (एनएसयूआई) में शामिल हो गए और अंततः इसके अध्यक्ष (2003-2005) बने.

उन्होंने पांच साल (2005-2010) तक भारतीय युवा कांग्रेस (आईवाईसी) का नेतृत्व भी किया और जब राहुल आईवाईसी और एनएसयूआई के प्रभारी अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के महासचिव बने तो उन्हें राहुल के ‘लोकतंत्रीकरण’ प्रयोग को पूरा करने का काम सौंपा गया.

एनएसयूआई के दिनों में ही तनवे की मुलाकात उनकी पत्नी अवंतिका माकन से हुई, जो संगठन की सदस्य भी थीं.

भारत के पूर्व राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा की पोती माकन के लिए कांग्रेस का मतलब एक पार्टी से कहीं अधिक है.

अवंतिका 6 साल की थीं जब उनके माता-पिता ललित माकन, एक कांग्रेस सांसद और गीतांजलि माकन, शर्मा की बेटी, को 31 जुलाई 1985 को उनके कीर्ति नगर आवास के बाहर सिख चरमपंथियों ने गोली मार दी थी.

हत्याओं के मद्देनज़र, तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी और उनकी पत्नी सोनिया गांधी अवंतिका को सांत्वना देने के लिए माकन परिवार के यहां पहुंचने वाले पहले व्यक्ति थे और इस तरह एक विशेष बंधन शुरू हुआ.

अवंतिका ने गुरुवार को दिप्रिंट को बताया, “बचपन में मैं बिल्कुल गांधी परिवार के घरेलू सदस्य की तरह थी.”

उन्होंने कहा, “मैं प्रियंका जी की शादी में शामिल रही. शुरू में मैं सोनिया जी को सोनिया आंटी कहकर बुलाती थी, लेकिन जब मैं बड़ी हुई और एनएसयूआई में शामिल हुई तो मैंने उन्हें ‘मैडम’ कहकर बुलाना शुरू कर दिया.”

माकन ने कहा, “पहला कारण क्योंकि सम्मान के तौर पर सभी उन्हें सोनिया जी बुलाते थे. दूसरा एक बार जब आप प्रोफेशनल हो जाते हैं, तो सोनिया जी, जो पार्टी की बॉस थीं, को सोनिया आंटी कहने का मतलब होगा कि कोई दूसरों, सहकर्मियों को अनुचित रूप से प्रभावित करने की कोशिश कर रहा है.”

जबकि अवंतिका अपने पति के साथ खड़ी हैं और कांग्रेस के साथ उनके मनमुटाव को समझती हैं, लेकिन रिश्ते को बिगड़ते देखकर उन्हें थोड़ा दुख हुआ.

अवंतिका ने 2019 में दिप्रिंट को बताया था, “ऐसा महसूस हुआ जैसे मेरे भीतर कुछ मर गया है.”

गुरुवार को यह पूछे जाने पर कि क्या उन्हें अब भी गांधी परिवार के साथ बचपन का रिश्ता टूटने का दुख है, अवंतिका ने कहा, “मेरे लिए सबसे पहले मेरे पति अशोक जी आते हैं.”

परिवार में हुईं हत्याओं के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा, “मैं गीतांजलि माकन की बेटी हूं, जो अपने पति के सामने तब कूद गई जब हत्यारे उन्हें गोली मारने वाले थे.”

अवंतिका ने कहा, “जब उन्हें अस्पताल ले जाया जा रहा था, तब भी मुझे बताया गया, मेरी मां पूछ रही थी कि ललित कैसे हैं. कुकी (रंजीत सिंह गिल उर्फ कुकी दंपति के तीन हत्यारों में से एक) ने रूबरू रोशनी (आमिर खान-किरण राव द्वारा निर्मित डॉक्यूमेंट्री) पर रिकॉर्ड पर कहा कि वे गीतांजलि को मारना नहीं चाहते थे.” उन्होंने उन्हें ललित माकन से अलग करने की बहुत कोशिश की, लेकिन वह सिर्फ अपने पति से चिपकी रहीं और उनके (कुकी और अन्य) पास ज्यादा समय नहीं था. इसलिए, उन्हें दोनों को मारना पड़ा.”

अवंतिका ने कहा कि तंवर ने कांग्रेस छोड़ी क्योंकि पार्टी ने उनके साथ उचित व्यवहार नहीं किया था.

उन्होंने कहा, “ऐसा इसलिए नहीं था क्योंकि उन्हें राज्य कांग्रेस प्रमुख नहीं बनाया गया. यह हर राजनीतिक दल में एक प्रक्रिया है कि वे पदाधिकारी बदलते रहते हैं.”

तंवर की पत्नी ने कहा, “लेकिन आप एक व्यक्ति को पार्टी के राज्य प्रमुख के रूप में नियुक्त करते हैं, उम्मीद करते हैं कि वह लोगों को पार्टी में लाएगा. उस व्यक्ति ने पांच साल से अधिक समय तक कड़ी मेहनत की. कई नये लोगों को पार्टी से जोड़ा. वे पार्टी की पदयात्राओं, साइकिल यात्राओं में हिस्सा लेते हैं. अपनी जेब से पैसा खर्च करें और इस उम्मीद में ईंधन जलाएं कि वह (अशोक), पार्टी प्रमुख के रूप में उन्हें पार्टी का टिकट दिलाएंगे और जब टिकट बांटने का समय आया, तो उनके किसी भी समर्थक को एक भी टिकट नहीं दिया गया.”

उन्होंने पूछा, “उनमें से कुछ इतने प्रभावशाली थे कि उन्होंने अपने दम पर या अन्य दलों से टिकट मांगकर चुनाव जीता. उस घोर अन्याय के बाद भी अगर अशोक जी कांग्रेस में बने रहते तो उन्हें अपने समर्थकों को क्या मुंह दिखाते?”

अवंतिका ने कहा कि उनके पति जिस भी पार्टी में शामिल हों, उन्हें “अपना 100 प्रतिशत देना चाहिए, जैसा कि वह अब तक करते आए हैं.”

अवंतिका ने कहा, “2019 में जब उन्होंने कांग्रेस छोड़ी तो मुझे सच में दुख हुआ, लेकिन यह देखते हुए कि पार्टी ने अशोक जी को हटाने के बाद उनके साथ कितना खराब व्यवहार किया…मुझे अब गांधी परिवार या कांग्रेस से अलग होने का कोई अफसोस नहीं है.”


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हुड्डा से तंवर के रिश्ते

2009 के लोकसभा चुनाव में जब कांग्रेस ने तंवर को सिरसा से मैदान में उतारा, तब तक हुड्डा लगभग पांच साल तक हरियाणा के सीएम रह चुके थे.

तंवर आईवाईसी अध्यक्ष और राहुल के विश्वासपात्र होने की प्रतिष्ठा के साथ सिरसा आए थे.

सिरसा के अपने दौरों में हुड्डा तंवर को काफी महत्व देते थे और पांच साल तक उनके रिश्ते सौहार्दपूर्ण रहे.

कहा जाता है कि एक अवसर पर, जब उन्होंने पाया कि तंवर का नाम बोर्ड से गायब है, तो हुड्डा ने अपनी सरकार में मंत्री रहे गोपाल कांडा को फटकार लगाई थी और उनके द्वारा बनाए जा रहे सामुदायिक केंद्र की आधारशिला रखने से इनकार कर दिया था.

जब कांडा के छोटे भाई तंवर, जिन्होंने कार्यक्रम में शामिल होने से इनकार कर दिया था, को उस आयोजन स्थल पर लाए, तभी हुडा ने आधारशिला रखी.

2014 के संसदीय चुनावों से कुछ दिन पहले तंवर को हरियाणा प्रदेश कांग्रेस कमेटी का प्रमुख नामित किया गया था.

उस साल के अंत में विधानसभा चुनावों के दौरान हुड्डा-तंवर समीकरण में खटास शुरू हो गई.

कहा जाता है कि तंवर सिरसा में हुड्डा के कुछ वफादारों को टिकट देने के खिलाफ थे और उन्हें यह पसंद नहीं आया.

रिश्ते तनावपूर्ण बने रहे, लेकिन माना जा रहा था कि कांग्रेस के अधिकांश विधायक हुड्डा के पक्ष में हैं.

अक्टूबर 2016 में जब कांग्रेस कार्यकर्ता अपनी किसान यात्रा से लौटने पर राहुल गांधी का स्वागत करने के लिए नई दिल्ली में एकत्र हुए, तो पार्टी कार्यकर्ताओं के कथित हमले में तंवर घायल हो गए.

तंवर ने तब आरोप लगाया कि हुड्डा के वफादारों ने उन पर हमला किया था (हालांकि, हुड्डा ने आरोपों को खारिज कर दिया).

जब तंवर को चोटों के कारण राम मनोहर लोहिया अस्पताल में भर्ती कराया गया था, तो उनसे मिलने वालों में भाजपा के तत्कालीन सीएम मनोहर लाल खट्टर भी शामिल थे.


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‘एक संपत्ति’

हरियाणा के मुलाना से कांग्रेस विधायक और राज्य कांग्रेस के युवा दलित चेहरे वरुण चौधरी ने कहा कि तंवर ने बार-बार राजनीतिक दल बदलकर खुद को नुकसान पहुंचाया है और अपनी विश्वसनीयता खो दी है.

उन्होंने दिप्रिंट से कहा, “कांग्रेस ने तंवर को पार्टी का राज्य प्रमुख बनाया, लेकिन उन्होंने पार्टी छोड़ दी जब कांग्रेस नेतृत्व ने उन्हें पांच साल से अधिक समय देने के बाद उनकी जगह ले ली.”

उन्होंने कहा, “उन्होंने आम आदमी पार्टी में शामिल होने का फैसला क्यों किया और अब उन्होंने इस्तीफा क्यों दिया है, यह केवल वह ही बेहतर जानते हैं, लेकिन अब वह भाजपा में शामिल हो रहे हैं. क्या बीजेपी उन्हें पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बनाएगी?”

सहायक प्रोफेसर और ‘Land of Gods: The Story of Haryana’ किताब के लेखक अर्जुन सिंह कादियान, जो वर्तमान में प्रधानमंत्री संग्रहालय और लाइब्रेरी (पीएमएमएल), नई दिल्ली में फेलो हैं, ने कहा कि तंवर के कांग्रेस से बाहर जाने के लिए काफी हद तक हुड्डा के साथ उनके तनावपूर्ण रिश्ते जिम्मेदार थे.

उन्होंने कहा, “हरियाणा में कोई भी नेता जो अपनी स्वतंत्र राजनीति करना चाहता है, तो वो टिक नहीं पाता है, क्योंकि हुड्डा इतने शक्तिशाली हैं कि वह किसी और को अपनी जगह नहीं बनाने देंगे.”

कादियान ने कहा, “मुझे लगता है कि तंवर का टीएमसी और आप में जाने का फैसला एक गलती थी, क्योंकि हरियाणा में कांग्रेस, चौटाला और बीजेपी तीन विकल्प हैं और कोई भी अन्य पार्टी अपनी छाप छोड़ने के बारे में सोच भी नहीं सकती.”

हालांकि, हरियाणा बीजेपी के प्रवक्ता संजय शर्मा ने तंवर को राज्य की राजनीति में बड़ी छवि वाला राजनीतिक नेता बताया.

उन्होंने कहा, “तंवर के ससुर कांग्रेस में एक बड़े नेता थे. वह राहुल गांधी के करीबी विश्वासपात्र थे. कांग्रेस में उनके साथ जिस तरह का व्यवहार किया गया…उससे पता चलता है कि हरियाणा में जहां भूपिंदर सिंह हुड्डा की हुकूमत चलती है, वहां दलित नेताओं के साथ कैसा व्यवहार किया जाता है.”

शर्मा ने कहा, “तंवर को पीटा भी गया था और उन्होंने इसका आरोप हुड्डा के लोगों पर लगाया था. अब, एक अन्य दलित नेता कुमारी सैलजा को हरियाणा में दरकिनार किया जा रहा है.”

यह पूछे जाने पर कि तंवर लगातार राजनीतिक दल बदलते हुए भाजपा के लिए क्या लेकर आए हैं, शर्मा ने कहा कि तंवर के पास कांग्रेस छोड़ने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा था.

उन्होंने कहा, “2019 के विधानसभा चुनावों में तंवर ने उन उम्मीदवारों का समर्थन किया जो कांग्रेस को हराने की क्षमता रखते थे. इस प्रक्रिया में उन्होंने अंबाला में कुछ भाजपा उम्मीदवारों का भी समर्थन किया.”

शर्मा ने कहा, “अगर वह उस समय भाजपा में शामिल हो गए होते तो यह उनके लिए बेहतर होता क्योंकि AAP का हरियाणा में कोई भविष्य नहीं है. हालांकि, पार्टी में उनका स्वागत है और मुझे यकीन है कि वह भाजपा के लिए एक संपत्ति साबित होंगे.”

(संपादन : फाल्गुनी शर्मा)

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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