scorecardresearch
Thursday, 25 April, 2024
होमराजनीतिकांग्रेस के 135 साल के इतिहास में यूपी विधान परिषद में पहली बार नहीं रहेगा कोई MLC

कांग्रेस के 135 साल के इतिहास में यूपी विधान परिषद में पहली बार नहीं रहेगा कोई MLC

यूपी विधान परिषद में पार्टी के एकमात्र एमएलसी दीपक सिंह बुधवार को सेवानिवृत्त हो गए, जिसके बाद कांग्रेस का यूपी विधान परिषद में कोई भी प्रतिनिधि नहीं रहेगा.

Text Size:

नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश विधान परिषद में कांग्रेस के एकमात्र एमएलसी दीपक सिंह बुधवार को सेवानिवृत्त हो गए, जिसके बाद पार्टी का पहली बार यूपी विधान परिषद में कोई भी प्रतिनिधि नहीं रहेगा.

यह इस साल की शुरुआत में यूपी विधानसभा चुनाव में हार का सामना करने के बाद हुआ है, विधानसभा चुनाव में कांग्रेस केवल दो सीटें जीतने में सफल रही थी- कांग्रेस ने 2017 में सात सीटें जीती थीं. कांग्रेस का वोट शेयर भी घटकर सिर्फ दो प्रतिशत रह गया है.

2022 के चुनाव के लिए पार्टी के अभियान को राज्य प्रभारी प्रियंका गांधी वाड्रा द्वारा संचालित किया गया था, जो अपने महिला-केंद्रित अभियान – लड़की हूं, लड़ सकती हूं – के साथ कांग्रेस के भाग्य को बदलने में विफल रही थीं.

पार्टी के सूत्रों ने कहा कि चुनाव के बाद पार्टी की राज्य इकाई के अध्यक्ष अजय लल्लू को इस्तीफा देने के लिए कहा गया था और पार्टी अभी भी उनके विकल्प को खोजने के लिए संघर्ष कर रही है.

रायबरेली के एक कांग्रेस पदाधिकारी ने पूछा, ‘हमने चुनाव के बाद प्रियंका गांधी और उनकी टीम को नहीं देखा है. कोई नहीं जानता कि क्या हो रहा है. हम बिना नेता के तीन महीने से अधिक समय तक कैसे रह सकते हैं? जिसे कभी पार्टी का गढ़ माना जाता रहा है और गांधी-परिवार का गढ़ माना जाता है. पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी इस निर्वाचन क्षेत्र से लोकसभा सांसद हैं. उनके बेटे और कांग्रेस सांसद, राहुल गांधी, 2019 के लोकसभा चुनाव में अपना दूसरा गढ़ – अमेठी (निकटवर्ती निर्वाचन) क्षेत्र – भाजपा की स्मृति ईरानी से हार गए थे.’

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

कांग्रेस के सूत्रों ने कहा कि गांधी-वाड्रा अभी भी उत्तर प्रदेश में सभी निर्णय ले रहे थे और पार्टी अध्यक्ष का पद भरना मुश्किल हो रहा था.

अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के एक पदाधिकारी ने कहा, ‘आराधना मिश्रा-मोना जैसी नेता हैं, जिन्हें वह (गांधी-वाड्रा) प्रभारी बनाना चाहती थीं, लेकिन उनके जैसे नेता – यूपी कांग्रेस में कुछ बचे हुए लोगों में से एक, जिनका अभी भी कुछ दबदबा है. वो भी राज्य इकाई के अध्यक्ष का पद नहीं लेना चाहती हैं.’

एआईसीसी के पदाधिकारी ने कहा, ‘अन्य वरिष्ठ नेता जैसे पीएल पुनिया पद संभालने के लिए बहुत बूढ़े हैं. पंजाब और अन्य राज्यों के विपरीत, यूपी में नेताओं की युवा नेता अभी भी इतनी सक्षम नहीं है कि वह सत्ता संभाल सके.’

जबकि राजनीतिक विशेषज्ञ बताते हैं कि पार्टी की यूपी इकाई पारंपरिक रूप से दिल्ली से ‘रिमोट कंट्रोल’ होती रही है – जो कि केंद्र में कांग्रेस की सत्ता खोने के बाद एक मुद्दा बन गया था – पार्टी के सूत्रों ने कहा कि समस्या प्रियंका और राहुल की कैडर से दूरी है.

पार्टी सूत्रों ने कहा कि हाल ही में हुए राज्यसभा चुनाव में, पार्टी ने राज्य से तीन उम्मीदवारों को उच्च सदन में भेजा, जाहिर तौर पर गांधी-वाड्रा के आग्रह पर भेजा होगा.

उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रवक्ता सचिन रावत ने दिप्रिंट को बताया, ‘कांग्रेस ने 2022 के राज्य विधानसभा चुनाव दृढ़ता से लड़ा. हमने जनता के मुद्दों को उठाया, लेकिन परिणाम इसके विपरीत रहे हैं. चूंकि विधान परिषद चुनाव परिणाम मुख्य रूप से विधानसभा चुनाव परिणामों को दर्शाते हैं, क्योंकि विधान परिषद के सदस्यों को राज्य विधानसभा चुनावों के बाद चुना जाता है.

इस मुद्दे पर टिप्पणी के लिए दिप्रिंट ने यूपी कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं अजय लल्लू, आराधना मिश्रा, पवन खेड़ा और सुप्रिया के पास कॉल और टेक्स्ट मैसेज के माध्यम से बात करने का प्रयास किया, लेकिन इस लेख के छपने तक कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली.


यह भी पढ़ें : ‘आप कांग्रेस में क्या कर रहे हैं, अरुण भैया?’ शिवराज इस नेता को BJP में क्यों लाना चाहते हैं


रिमोट कंट्रोल से सुधार का प्रयास

दिप्रिंट से बात करते हुए, अशोका विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान के एसोसिएट प्रोफेसर, गिल्स वर्नियर्स ने कहा कि ऐतिहासिक रूप से, कांग्रेस को उन राज्यों में वापसी करना मुश्किल लगता है, जहां उसका वोट शेयर 20 प्रतिशत से कम है. उन्होंने कहा कि इसका कारण नेतृत्व की कमी है.

वर्नियर्स ने कहा, ‘जब किसी राज्य में कांग्रेस का पतन होता है, पार्टी के अधिकांश कार्यकर्ता पार्टी छोड़ देते हैं या अन्य दलों में चले जाते हैं या तो वाईएसआरसीपी या एनसीपी की तरह एक और पार्टी बनाई जाती है या कैडर सिर्फ बीजेपी सहित अन्य पार्टियों में चले जाते हैं. यह केवल मतदाताओं का मोहभंग नहीं है, यह एक संगठनात्मक समस्या भी है और पार्टी के पास संगठन के पुनर्निर्माण के लिए संसाधन या नेतृत्व नहीं है.’

यूपी में कांग्रेस ने पिछले कुछ सालों में कई वरिष्ठ नेताओं को खोया है. जितिन प्रसाद और आरपीएन. सिंह भाजपा में चले गए हैं, ललितेश पति त्रिपाठी तृणमूल कांग्रेस में चले गए हैं, क्योंकि वह पार्टी हिंदी भाषी क्षेत्र में अपने विस्तार की योजना बना रही है.

वर्नियर्स के मुताबिक, उत्तर प्रदेश में पिछले 20 साल से पार्टी का विमर्श संगठन के पुनर्निर्माण के बारे हुआ, लेकिन उसमें से कुछ भी नहीं निकला है.

केंद्रीय नेतृत्व द्वारा खुद को राज्य इकाई पर थोपने की समस्या भी है.

वर्नियर्स ने कहा, ‘यदि आप 60 के दशक में लिखी गई कांग्रेस के बारे में किताबों पर वापस जाते हैं – जैसे (राजनीतिक वैज्ञानिक) पॉल ब्रास द्वारा, उदाहरण के लिए – उन्होंने इस तथ्य के बारे में बात की कि कांग्रेस की यूपी इकाई दिल्ली द्वारा चलाई गई थी. भारत के सबसे बड़े राज्यों को दिल्ली से चलाना पार्टी की लंबे समय से चली आ रही विशेषता रही है. यूपी के एक मजबूत कांग्रेसी व्यक्ति को याद नहीं किया जा सकता है, जिसने यूपी में अपनी अंतर्निहितता से अपना अधिकार प्राप्त किया हो. लेकिन यह तब तक काम करता है जब तक केंद्र में कांग्रेस सत्ता में थी.’

उन्होंने कहा, ‘अब जब वे केंद्र में सत्ता में नहीं हैं, तो वे स्पष्ट रूप से दिल्ली से रिमोट-कंट्रोल से पुनरुद्धार नहीं कर सकते.’

‘गांधी परिवार जुड़ नहीं पा रहा है’

जबकि वर्नियर्स की राज्य इकाई के दिल्ली से रिमोट कंट्रोल होने की परिकल्पना सही है. पार्टी सूत्रों के अनुसार, अमेठी और रायबरेली के गांधी के गढ़ के नेताओं ने कहा कि समस्या दिल्ली में रिमोट कंट्रोल के साथ नहीं है, बल्कि यह तथ्य है कि यह अब गलत हाथों में है.

रायबरेली के कांग्रेस पदाधिकारी ने कहा कि ‘जब इंदिरा गांधी आस-पास थीं, तो वह सभी राज्य और जिला पदाधिकारियों के नाम जानती थीं और उन्हें चेहरे से भी पहचानती थीं. वह आती थी और लोगों से मिलती थी. वह जानती थी कि वे क्या चाहते हैं. भाई-बहन (राहुल और प्रियंका) शायद ही कभी यहां आते हैं, जब तक कि चुनाव प्रचार न हो. फिर भी वे 5-10 से ज्यादा लोगों को नहीं जानते जो उन्हें घेरे हुए हैं. उनका समग्र रूप से राज्य इकाई से जुड़ाव नहीं है.’

उन्होंने कहा, ‘एक तरह का अहंकार भी है.’

रायबरेली के कांग्रेस पदाधिकारी ने कहा, ‘जब अदिति सिंह (पूर्व कांग्रेस नेता, अब भाजपा में) ने घोषणा की कि वह यहां से (इस साल के चुनाव में) लड़ेंगी, तो हमें यह सुनिश्चित करने के लिए सख्ती से निर्देश दिया गया था कि वह जीत नहीं पाए. लेकिन ऐसा नहीं है कि यह कैसे काम करता, उनके पिता का गांधी भाई-बहनों की तुलना में अधिक गुडविल है.’

दूसरी ओर, अमेठी के एक जिला पदाधिकारी ने कहा कि नेतृत्व ‘सामाजिक समीकरणों को ठीक करने पर बहुत अधिक ध्यान दे रहा है और राज्य स्तर के नेताओं को बनाए रखने और तैयार करने पर पर्याप्त नहीं है.

रायबरेली के पदाधिकारी ने कहा, ‘ऐसा कोई नहीं है जिससे हम रूबरू हो सकें. संगठन का कोई कद नहीं है, हमारे कैडर डिमोटिवेटेड हैं और हमारे सुझाव नेतृत्व तक कभी नहीं पहुंचते हैं. चुनाव के दौरान टिकट वितरण भी ठीक नहीं था, लोग टिकट हासिल करने के लिए गांधी-वाड्रा की टीम के साथ अपने प्रभाव और निकटता का उपयोग कर रहे थे.’

उन्होंने कहा, ‘मुझे नहीं पता कि आगे क्या योजना है, लेकिन हम सभी अंधेरे में हैं.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें )


यह भी पढ़ें : अखिलेश और उनके सहयोगी ओमप्रकाश राजभर के बीच BSP को लेकर क्यों हो रहा विवाद


 

share & View comments