scorecardresearch
Thursday, 25 April, 2024
होमराजनीतिगुजरात में बुरी तरह से हार, पर हिमाचल में मिली शांतिः कांग्रेस विधानसभा चुनावों से क्या हासिल कर पाएगी

गुजरात में बुरी तरह से हार, पर हिमाचल में मिली शांतिः कांग्रेस विधानसभा चुनावों से क्या हासिल कर पाएगी

गुजरात और हिमाचल में चुनावी नतीजे ऐसे समय में आए हैं जब पार्टी नए अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के नेतृत्व में कुछ बड़े संगठनात्मक बदलाव कर रही है.

Text Size:

नई दिल्ली: कांग्रेस फिलहाल हिमाचल प्रदेश में सरकार बनाने के लिए तैयार है. विधानसभा चुनाव में एक हैरान करने वाली खुशी- तीन सालों में राज्य में अपनी पहली जीत दर्ज की है. हालांकि गुजरात में पार्टी की हार, जहां वह 1990 से सत्ता से बाहर है, एक बड़े झटके के रूप में सामने आई है. लेकिन हिमाचल में जीत पार्टी के लिए काफी मायने रखती है, खासकर उस समय जब अगले नौ राज्यों में चुनाव होने जा रहे हैं. उनमें से कम से कम चार में – कर्नाटक, राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ – पार्टी सीधे-सीधे भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ खड़ी है.

जाहिर है गुजरात में 56 सीटों का नुकसान और वोट शेयर में 14 प्रतिशत की गिरावट से पार्टी को चिंता होगी, लेकिन वह हिमाचल प्रदेश में अपनी जीत से सांत्वना ले सकती है. यहां पार्टी ने 2018 की सर्दियों के बाद से पहला राज्य चुनाव जीता है.

दोनों राज्यों में, पार्टी मौजूदा बीजेपी की प्रमुख प्रतिद्वंद्वी थी. हालांकि हिमाचल में कांग्रेस 68 में से 40 सीटों के साथ पहाड़ी राज्य में सत्तारूढ़ दल को हटाने में सफल रही. लेकिन गुजरात में विभिन्न सत्ता-विरोधी लहर को भुनाने में वह बुरी तरह असफल थी. आम आदमी पार्टी उसकी दुश्मन बनकर उभरी है.

2017 के विधानसभा चुनावों से कांग्रेस को लगभग 14 फीसदी वोटों का नुकसान हुआ है, जो 41 फीसदी से घटकर 27 फीसदी रह गया. आप ने गुजरात में लगभग 13 प्रतिशत वोट हासिल किए हैं. आप ने भाजपा के वोट बैंक को नहीं खाया है. यह भाजपा के वोट शेयर में लगभग 3 फीसदी की वृद्धि से साफ हो रहा है. 2017 के चुनावों में उसे 49 प्रतिशत वोट मिले थे, जो इस बार बढ़कर 49 प्रतिशत से थोड़ा ज्यादा है.
कांग्रेस ने राहुल गांधी के बिना किसी योगदान के हिमाचल जीता है, जो अपनी ‘तपस्या’ या भारत जोड़ो यात्रा पर हैं. राहुल हिमाचल में प्रचार या पार्टी की चुनावी तैयारियों से दूर रहे, इसे अपनी बहन प्रियंका वाड्रा पर छोड़ दिया था. प्रियंका आखिरी बार उत्तर प्रदेश के चुनावों में महासचिव के रूप में शामिल हुई थीं, जहां एक जोरदार अभियान के बाद भी कांग्रेस राज्य विधानसभा में 7 सीटों के अपने पहले से ही दयनीय आंकड़े से फिसलकर दो पर आ गई थी.

पार्टी सूत्रों का कहना है कि यूपी के विपरीत जहां राज्य प्रभारी के रूप में प्रियंका अभियान के सभी पहलुओं से लेकर राजनीतिक रणनीति तक में शामिल थीं, हिमाचल में वह सिर्फ एक ‘प्रचार चेहरा’ ज्यादा थीं. अभियान की रणनीति काफी हद तक छत्तीसगढ़ के सीएम भूपेश बघेल के हाथों में था- राज्य चुनाव प्रभारी के रूप में राजीव शुक्ला ने सहायक भूमिका निभाई थी – जिन्हें राज्य के वरिष्ठ पर्यवेक्षक के रूप में नियुक्त किया गया था. हालांकि प्रियंका की टीम के मुताबिक, शुरुआती सर्वे से लेकर टिकट बंटवारे तक वह ज्यादातर निर्णयों में शामिल रहीं थीं.

दूसरी ओर, नरेंद्र मोदी के गृह क्षेत्र में एक बार फिर सीधी भिड़ंत में राहुल गांधी चमकने में नाकाम रहे हैं. कांग्रेस दाहोद, सूरत और राजकोट के इलाकों में पिछड़ गई, जहां गांधी के वंशज ने प्रचार किया था.

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

इन चुनावों के परिणाम इसलिए भी महत्वपूर्ण हैं क्योंकि नौ राज्यों में अगले साल लोकसभा चुनाव होने हैं. इनमें से चार राज्यों कर्नाटक, तेलंगाना, मध्य प्रदेश और मिजोरम में कांग्रेस प्रमुख विपक्ष है. दो अन्य राज्यों, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में, यह सत्ताधारी दल है.

गुजरात के नतीजे राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत के भविष्य में भी भूमिका निभा सकते हैं, जो अपने विश्वासपात्र रघु शर्मा के साथ राज्य में पार्टी के मामलों को संभाल रहे थे. गुजरात में कांग्रेस के सबसे खराब प्रदर्शन के लिए इन दोनों को आलोचना का सामना करना पड़ सकता है.

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को गुजरात चुनाव के लिए वरिष्ठ पर्यवेक्षक नियुक्त किया गया था. उनका पार्टी नेता सचिन पायलट के साथ सत्ता को लेकर टकराव बना हुआ है. जहां अब राज्य में भारत जोड़ो यात्रा के कारण सत्ता का संकट अस्थायी रूप से थम चुका है, वहीं दिल्ली में आलाकमान को अब इस पर फैसला लेने के लिए मजबूर होना पड़ सकता है क्योंकि चुनाव के नतीजे आ चुके हैं.

राजस्थान के पार्टी के महासचिव अजय माकन ने पिछले महीने राज्य में एक विधायक दल की बैठक के लिए एक पर्यवेक्षक के रूप में भेजे जाने पर गहलोत के वफादारों द्वारा स्पष्ट रूप से झिड़कने के बाद अपने पद से इस्तीफे दे दिया था. लिहाजा उनके इस्तीफे ने नेतृत्व पर दबाव बढ़ाया है. इस हफ्ते पंजाब के नेता सुखजिंदर रंधावा को माकन की जगह पर लाया गया. संयोग से पायलट हिमाचल प्रदेश चुनाव के पर्यवेक्षक थे.

तो वहीं हिमाचल प्रदेश में एक जीत भूपेश बघेल को एक कम महत्वपूर्ण ‘रॉकस्टार’ से बदल कर पार्टी में मजबूत स्थिति में ला खड़ा किया है, जहां एक के बाद एक नेता बड़े कामों को पूरा करने में विफल रहे हैं. हिमाचल में पार्टी के अभियान, जहां उन्हें वरिष्ठ पर्यवेक्षक के रूप में भेजा गया था, पर बघेल की छाप दिखाई दे रही थी. धर्म आधारित पर्यटन मार्गों से लेकर उनके प्रसिद्ध ‘गोबर इकॉनमी’ मॉडल की विविधता और पुरानी पेंशन योजना (ओपीएस) को बहाल करने के लिए एक पिच, हिमाचल में कांग्रेस के घोषणापत्र ने बहुत सी चीजों का वादा किया था जो पहले से ही छत्तीसगढ़ में बघेल द्वारा लागू की जा रही हैं.

हिमाचल में जीत बघेल को चुनाव से पहले छत्तीसगढ़ में काम करने की अधिक स्वायत्तता देगी, खासकर पार्टी से संबंधित मामलों में. अधिकांश कांग्रेस पदाधिकारियों के अनुसार, छत्तीसगढ़ एक ऐसा राज्य है जहां पार्टी ने भाजपा को दबाव में रखा है, उसके हिंदुत्व के तख्ते को हड़प लिया है और उसके लड़खड़ाते नेतृत्व का फायदा उठा रही है.


यह भी पढ़ें: कुढ़नी उपचुनाव में JDU की हार नीतीश की प्रतिष्ठा के लिए झटका, BJP बोली- बिहार के CM ने EBC वोट गंवाया


 

पार्टी अध्यक्ष, ‘नेता’ और एक ‘महिला चेहरा’

पिछले हफ्ते पार्टी की संचालन समिति की एक बैठक में खड़गे ने पार्टी नेताओं को साफ संदेश दिया – काम करो या रास्ता नापो. राहुल जहां बार-बार इसे चुनावी लड़ाई को वैचारिक लड़ाई बता रहे हैं, वहीं खड़गे ने उनके उलट रेखांकित किया कि लोगों की सेवा के लिए चुनाव जीतना जरूरी है.

उन्होंने उन राज्यों के लिए एक विस्तृत रोडमैप भी मांगा जहां लोकसभा 2024 तक चुनाव होने जा रहे हैं. अक्टूबर में पार्टी अध्यक्ष चुने जाने के बाद से खड़गे ने तीन बार अपने गृह राज्य कर्नाटक का दौरा किया है.

पार्टी की कर्नाटक इकाई के नेताओं के अनुसार, इस राज्य में अगले साल होने वाले चुनाव एक ऐसी लड़ाई है जिसे नौ बार के कर्नाटक विधायक खुद आगे बढ़ाना चाहते हैं.

खड़गे ने सभी राज्य और क्षेत्रीय प्रभारियों से अगले 30 दिनों में उनके साथ आमने-सामने बैठक करने को कहा है, ताकि राज्यों में चुनाव की योजना को औपचारिक रूप दिया जा सके.

संचालन समिति की बैठक में पार्टी ने भारत जोड़ो यात्रा की भी घोषणा की, जिसमें ब्लॉक, ग्राम पंचायत और जिला स्तर पर जन लामबंदी शामिल होगी. दिलचस्प बात यह है कि फोलो-अप ‘हाथ से हाथ जोड़ो अभियान’ का चेहरा फिर से राहुल गांधी होंगे न कि खड़गे. अभियान की योजना के मसौदे के अनुसार, राहुल का एक पत्र उन जगहों पर जनता को सौंपा जाएगा, जहां ये आउटरीच कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे.

इसी तरह से प्रियंका को भी पार्टी के महिला आउटरीच कार्यक्रम की अगुवाई करने की भूमिका दी गई है और वह सभी राज्यों की राजधानियों में ‘महिला मार्च’ का नेतृत्व करेंगी.

गांधी वाड्रा के साथ मिलकर काम करने वाले एक पार्टी पदाधिकारी ने कहा, ‘लड़की हूं लड़ सकती हूं’ अभियान जिसे प्रियंका ने यूपी में चलाया था, भले ही उसका यूपी में चुनावी फायदा नहीं मिल पाया हो क्योंकि कांग्रेस उन चुनावों में एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी नहीं थी. लेकिन एक कॉन्सेप्ट के तौर पर इसे पूरे देश में सराहा गया था. 2024 में यह महिला-केंद्रित अभियान महिला मतदाता को कांग्रेस की ओर आकर्षित करने में मदद कर सकता है.’

गुजरात और हिमाचल के नतीजे ने भूमिकाओं के इस अलगाव को साफ कर दिया कि – अध्यक्ष खड़गे, पार्टी नेता राहुल और पार्टी का ‘महिला चेहरा’ प्रियंका.

2023 विधानसभा चुनाव

हालांकि पार्टी को आंतरिक रूप से गुजरात से बहुत उम्मीदें नहीं थीं, हिमाचल वह था जिसे वह जीतना चाह रही थी. कांग्रेस के एक सांसद ने कहा, ‘वैसे राज्य के चुनाव रीजनल फैक्टर पर निर्भर करते हैं, यह महत्वपूर्ण है कि पार्टी को एक व्यवहार्य विकल्प के रूप में देखा जाए. यहां तक कि अगर पार्टी संगठन मजबूत हो जाता है तो भी मतदाता को यह विश्वास दिलाना मुश्किल हो जाता है कि कांग्रेस एक गंभीर दावेदार है. क्योंकि पार्टी एक के बाद एक चुनाव हारती जा रही है.’

सांसद ने आगे कहा कि हिमाचल जैसे राज्यों में भी अगर कांग्रेस कमजोर भाजपा के खिलाफ नहीं जीत सकी, तो यह हर जगह पार्टी की धारणा को बर्बाद कर देगा. वह बताते हैं, ‘क्षेत्रीय दल इसका अपना फायदा उठाने के लिए इस्तेमाल करेंगे. वह राज्य गठबंधन में कांग्रेस के साथ बातचीत को मुश्किल बना देगें. क्योंकि यह धारणा है कि कांग्रेस बिना मदद के जीत के निशान को पार नहीं कर सकती है.’

अगले साल जिन 5 राज्यों में चुनाव होने हैं उनमें से 4 में कांग्रेस का सीधा मुकाबला बीजेपी से है. एक अतिरिक्त राज्य और बाद में अन्य राज्यों के चुनावों में जीत का मतलब 2024 से पहले पैसे और बाहुबल वाली भाजपा के खिलाफ पार्टी संसाधनों में बढ़ोतरी का होना.

(अनुवाद: संघप्रिया मौर्य )

(इस फीचर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: 3 चुनाव, 3 पार्टियां, 3 नतीजे- यह BJP, AAP और कांग्रेस के लिए थोड़ा खुश, थोड़ा दुखी होने का मौका है


share & View comments