नई दिल्ली: कांग्रेस ने सोमवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस आरोप को खारिज कर दिया कि पार्टी ने वंदे मातरम पर मुस्लिम लीग के आगे झुक गई थी. कांग्रेस का कहना है कि आज़ादी के आंदोलन के दौरान, खासकर 1905 में बंगाल के विभाजन के वक्त, पार्टी के प्रयासों की वजह से यह गीत पहली बार ब्रिटिशों के खिलाफ एक राजनीतिक नारा बना.
विपक्ष की ओर से वंदे मातरम के 150 साल पूरे होने पर हुई बहस की शुरुआत करते हुए लोकसभा में कांग्रेस के डिप्टी लीडर गौरव गोगोई ने बीजेपी पर तीखा हमला बोला. उन्होंने कहा कि बीजेपी को बंगाल की समझ नहीं है और दिल्ली पुलिस के हालिया सर्कुलर का ज़िक्र किया जिसमें बंगला को “बांग्लादेशी भाषा” कहा गया था.
उन्होंने कहा, “प्रधानमंत्री के एक घंटे के भाषण के दो उद्देश्य थे. पहला, उन्होंने ऐसा दिखाया जैसे उनके राजनीतिक पूर्वज ब्रिटिशों के खिलाफ लड़ रहे थे या विभिन्न आंदोलनों में शामिल थे. उनकी मंशा इतिहास को बदलने और फिर से लिखने की थी, जो उनके भाषण में झलक रही थी. दूसरा उद्देश्य वंदे मातरम की बहस को राजनीतिक रंग देना था.”
जोरहाट लोकसभा सीट का प्रतिनिधित्व करने वाले गोगोई ने कहा कि वंदे मातरम, जो भारत का राष्ट्रीय गीत है और जिसे 1875 में बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय ने लिखा था और बाद में 1882 में अपने उपन्यास आनंदमठ में शामिल किया था, पहली बार 1896 के कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में गाया गया था.
इतिहास में दर्ज है कि टैगोर ने खुद इसकी पहली पंक्ति को सुरों में ढाला, बंकिम को सुनाया और कलकत्ता सत्र में इसे पहली बार गाया.
इसके बाद 1905 में बंगाल के विभाजन के खिलाफ स्वदेशी आंदोलन के दौरान यह एक राजनीतिक नारा बन गया.
इसके बाद 1907 के बनारस (अब वाराणसी) सत्र में, सरला देवी चौधरानी ने बंकिम द्वारा बंगाल की आबादी के लिए इस्तेमाल किए गए शब्द “सप्तकोटि” की जगह त्रिंशतकोटि (30 करोड़) का उपयोग किया, क्योंकि कांग्रेस इसे बड़े राष्ट्रीय आंदोलन से जोड़ रही थी.
कांग्रेस नेता ने मोदी पर तंज कसते हुए उनके भाषणों में जवाहरलाल नेहरू का नाम बार-बार लेने का ज़िक्र किया. “ऑपरेशन सिंदूर बहस के दौरान 14 बार, संविधान के 75वें वर्ष की बहस में 10 बार, और राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव की चर्चा में क्रमशः 2022 और 2020 में 15 और 20 बार,” उन्होंने कहा.
उन्होंने कहा, “लेकिन मैं उन्हें और उनकी पार्टी को विनम्रता से कहना चाहता हूं कि चाहे आप कितनी भी कोशिश कर लें, नेहरू की विरासत पर एक भी दाग नहीं लगा पाएंगे.”
गोगोई ने कहा कि मुस्लिम लीग, जिसकी स्थापना मोहम्मद अली जिन्ना ने की थी, और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के बीच अंतर यह था कि जहां जिन्ना वंदे मातरम के खिलाफ थे, वहीं कांग्रेस के मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ने स्पष्ट कर दिया था कि उन्हें इस गीत से कोई आपत्ति नहीं है.
उन्होंने यह भी कहा कि 1937 के कांग्रेस के कलकत्ता सत्र में, पार्टी ने गीत की पहली दो पंक्तियों को अपने अधिवेशन और कार्यक्रमों में गाने के लिए अपनाया था.
गोगोई ने कहा, “वंदे मातरम का उद्देश्य ब्रिटिशों के दिलों में डर पैदा करना था, लेकिन आपने कब इस दिशा में प्रयास किया. वे 1937 की बात करते हैं. मैं पूछना चाहता हूं कि 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान आपके राजनीतिक पूर्वज कहां थे. अगर आपको लगता है कि कांग्रेस ने वंदे मातरम को कमजोर करने की साजिश की, तो मैं पूछता हूं कि जब वंदे मातरम का मूल विचार—जो ब्रिटिश शासन के खिलाफ था—लड़ा जा रहा था, तब आप कहां थे.”
असम कांग्रेस के अध्यक्ष गोगोई ने नेहरू द्वारा उठाई गई मुस्लिम लीग की आपत्तियों पर हुई चर्चा में टैगोर की भूमिका को रेखांकित किया. उन्होंने नेहरू को उद्धृत करते हुए कहा कि 1937 के सत्र में नेहरू ने कहा था, “वंदे मातरम शब्द शक्ति का नारा बन गया जिसने हमारे लोगों को प्रेरित किया और ऐसा अभिवादन बन गया जो हमें राष्ट्रीय स्वतंत्रता के संघर्ष की याद दिलाता है.”
टैगोर ने कांग्रेस नेतृत्व को समझाने में अहम भूमिका निभाई कि गीत की पहली दो पंक्तियों को अपनाना उचित होगा क्योंकि उनमें “कोमलता की भावना” और “हमारे मातृभूमि के सुंदर और कल्याणकारी पहलुओं” पर जोर था.
गीत के बाद के हिस्सों में हिंदू देवियों का उल्लेख है, जिनसे इस्लाम के अनुयायी—जो एकेश्वरवादी धर्म है—सहज नहीं थे, खासकर उस समय जब मुस्लिम लीग के उभार के साथ ध्रुवीकरण बढ़ रहा था. विरोध आनंदमठ से भी था, जो बंगाल में अठारहवीं सदी के मध्य में आए अकाल की पृष्ठभूमि पर लिखे विद्रोह पर आधारित उपन्यास था.
टैगोर ने कहा था कि वह “इसे बाकी कविता और पुस्तक के उन हिस्सों से अलग करने में कोई कठिनाई नहीं देखते, जिनसे मैं, अपने पिता से मिली एकेश्वरवादी मान्यताओं के कारण, कोई सहानुभूति नहीं रखता.”
1937 की कांग्रेस वर्किंग कमेटी में, कांग्रेस ने टैगोर की सलाह मान ली. नेहरू ने कहा, “पहली दो पंक्तियाँ ऐसी हैं कि उन पर कोई आपत्ति नहीं कर सकता, जब तक कि वह दुर्भावनापूर्ण न हो. याद रखें, हम पूरे भारत के लिए राष्ट्रीय गीत की सोच रहे हैं.”
सीडब्ल्यूसी ने यह प्रस्ताव भी पारित किया कि गीत की पहली दो पंक्तियां हमारे राष्ट्रीय आंदोलन का “जीवित और अविभाज्य हिस्सा बन चुकी हैं और इसलिए उन्हें हमारा सम्मान और स्नेह मिलना चाहिए.”
प्रस्ताव में कहा गया, “समिति मुस्लिम मित्रों द्वारा गीत के कुछ हिस्सों पर उठाई गई आपत्तियों की वैधता को स्वीकार करती है. जबकि समिति ने इन आपत्तियों को उनकी वास्तविक महत्ता के अनुसार नोट किया है, समिति यह बताना चाहती है कि गीत के आधुनिक उपयोग का विकास, जो राष्ट्रीय जीवन का हिस्सा बन गया है, उसके ऐतिहासिक उपन्यास वाली पृष्ठभूमि से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है.”
गोगोई के बाद बोलते हुए, सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने भाजपा पर ब्रिटिशों की “फूट डालो और राज करो” नीति अपनाने का आरोप लगाया. यादव ने कहा, “वे राष्ट्रवादी नहीं बल्कि राष्ट्र विरोधी हैं.”
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