चंडीगढ़: दिल्ली की सीमाओं पर कृषि बिलों के खिलाफ महीनों तक विरोध प्रदर्शन करने वाले किसानों की सद्भावना जीतकर पंजाब में सत्ता में आई आम आदमी पार्टी (आप) के किसान समुदाय के साथ संबंध अब खराब होते दिख रहे हैं.
पंजाब भर में किसानों की बुधवार को कई स्थानों पर पुलिस के साथ झड़प हुई, जब वह राज्य सरकार और केंद्र द्वारा उनकी मांगों पर सहमति न जताने के खिलाफ एक हफ्ते के धरना प्रदर्शन के लिए चंडीगढ़ की ओर मार्च करने का प्रयास कर रहे थे, जिसमें अन्य मुद्दों के अलावा फसलों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के लिए कानूनी गारंटी, कर्ज़ माफी और उच्च कृषि आय शामिल हैं.
संयुक्त किसान मोर्चा (SKM) द्वारा जारी एक बयान में कहा गया है कि आंदोलनकारी किसानों ने उन जगहों पर धरना शुरू कर दिया है, जहां उन्हें रोका गया था. अखिल भारतीय किसान सभा के पी. कृष्ण प्रसाद ने गुरुवार को दिप्रिंट को बताया, “कल से एक दर्जन से अधिक स्थानों पर ये जारी है और हम आज दिन में बाद में इस बारे में फैसला निर्णय लेंगे कि आगे क्या करना है.”
पंजाब पुलिस ने मंगलवार को अभूतपूर्व कार्रवाई करते हुए सैकड़ों किसानों को हिरासत में लिया, जिनमें एसकेएम के कई शीर्ष नेता भी शामिल थे, जिनमें से कुछ को जेल भी भेजा गया. बुधवार को जारी एसकेएम के बयान में दावा किया गया कि राज्य भर में लगभग 350 किसान नेताओं को हिरासत में लिया गया है.
पुलिस ने मुख्य सड़कों के दोनों ओर लाइन लगाई और किसानों को ट्रैक्टर लेकर अपने गांवों से बाहर निकलने से रोका. चंडीगढ़ के विभिन्न प्रवेश बिंदुओं को सील कर दिया गया और चंडीगढ़ पुलिस ने कड़ी सुरक्षा व्यवस्था की.
किसानों के विरोध प्रदर्शन पर मान की प्रतिक्रिया अब सिंघू सीमा पर 2021 के एसकेएम के नेतृत्व वाले आंदोलन के दौरान उनकी पार्टी के रुख के बिल्कुल विपरीत है. उस समय, उन्होंने और AAP के अन्य नेताओं ने प्रदर्शनकारियों का खुलकर समर्थन किया था, जबकि अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली दिल्ली सरकार ने सीमा पर एक साल तक चले किसानों के धरने के दौरान उन्हें व्यापक रसद सहायता प्रदान की थी.
पार्टी का कर्ज़ चुकाते हुए, ग्रामीण किसानों ने 2022 के विधानसभा चुनावों के दौरान आम आदमी पार्टी के पक्ष में मतदान किया था, जिसके कारण वह राज्य में पहली बार सत्ता में आए और 117 में से 92 सीटें जीतीं.
मंगलवार को मीडिया से बात करते हुए मान ने कहा कि वे सिर्फ एक वर्ग के मुख्यमंत्री नहीं हैं. मान ने कहा, “मैं सिर्फ किसानों का नहीं बल्कि पंजाब की 3.5 करोड़ आबादी का संरक्षक हूं और किसान व्यापारियों, कारोबारियों, छात्रों और कर्मचारियों को असुविधा पहुंचा रहे हैं.”
बुधवार से शुरू होने वाला धरना प्रदर्शन किसानों के चल रहे आंदोलन में तीसरे मोर्चे के रूप में शुरू किया गया था. पिछले साल फरवरी से पंजाब-हरियाणा सीमा पर शंभू और खनौरी में एसकेएम से अलग हुए गुटों के नेतृत्व में दो स्थायी विरोध प्रदर्शन पहले से ही चल रहे हैं.
इस बीच, पटियाला के शंभू बॉर्डर पर किसान नेता सरवन सिंह पंढेर किसान मजदूर मोर्चा (केएमएम) के बैनर तले आंदोलन का नेतृत्व कर रहे हैं.
दोनों संगठन अन्य बातों के अलावा फसलों पर एमएसपी की कानूनी गारंटी की मांग कर रहे हैं.
दोनों संगठन पिछले साल के अधिकांश समय में मिलकर काम कर रहे थे, लेकिन दोनों नेताओं के बीच मतभेद के बाद, डल्लेवाल अपने समर्थकों के साथ खनौरी चले गए.
दोनों संगठनों के संयुक्त विरोध को पंजाब में किसान यूनियनों के छत्र निकाय एसकेएम द्वारा समर्थन नहीं दिया गया है क्योंकि उनके आंदोलन के तरीकों पर मतभेद हैं.
सीएम मान ने मंगलवार को एसकेएम नेताओं पर पंजाब को “धरनों का राज्य” बनाने के लिए निशाना साधा, जिससे “आर्थिक नुकसान” हुआ और लोगों को अनगिनत असुविधाएं हुई.
खरड़ में मीडियाकर्मियों से बात करते हुए, स्पष्ट रूप से नाराज़ मान ने कहा कि किसानों के साथ सभी बातचीत “खत्म” हो गई है और वह “आगे बढ़ सकते हैं और धरने पर बैठ सकते हैं”. मान ने कहा, “जब धरनों में कोई कमी नहीं आने वाली है, तो टेबल वार्ता पर अपना समय क्यों बर्बाद करें?”
सीएम ने आगे कहा, “किसान यूनियनें एक-दूसरे से आगे निकलने के लिए प्रतिस्पर्धात्मक विरोध प्रदर्शन कर रही हैं. उन्हें गांवों के लोगों का समर्थन है, जो उनका इस्तेमाल खेती से संबंधित मुद्दों को सुलझाने के लिए कर रहे हैं. किसान यूनियनें साथ-साथ सरकार चला रही हैं.”
मान का किसानों के खिलाफ सख्त रुख एसकेएम के नेताओं के साथ बैठक से बाहर निकलने के एक दिन बाद आया, जो पंजाब के 30 से अधिक किसान यूनियनों का गठबंधन है, जिसने तीन केंद्रीय कृषि कानूनों के खिलाफ 2021 के विरोध का नेतृत्व किया था, जिन्हें बाद में नरेंद्र मोदी सरकार ने निरस्त कर दिया था.
विशेषज्ञ इस घटनाक्रम को व्यापक राजनीतिक बदलावों का संकेत मानते हैं. गुरु नानक देव यूनिवर्सिटी, अमृतसर में राजनीति विज्ञान विभाग के पूर्व संकाय सदस्य प्रोफेसर कुलदीप सिंह ने दिप्रिंट से कहा कि किसानों के प्रति मुख्यमंत्री की कार्रवाई आकस्मिक नहीं थी, बल्कि एक सावधानीपूर्वक योजनाबद्ध कदम था.
उन्होंने कहा, “सीएम का मानना है कि किसानों ने समाज के अन्य वर्गों की सहानुभूति खो दी है. दूसरे, उन्हें पता है कि ग्रामीण इलाकों में उनके और उनकी सरकार के खिलाफ काफी असंतोष है. अब शहरी तबकों के साथ खड़े होना एक सुनियोजित कदम है, जिसे वह यह कहकर करने की कोशिश कर रहे हैं कि किसानों के विरोध प्रदर्शन से पंजाब के बाकी हिस्सों में असुविधा हो रही है.”
हालांकि, पिछले साल प्रकाशित दक्षिण एशिया में व्यापक रूप से प्रशंसित पंजाब नदी जल विवाद के लेखक सिंह ने कहा कि पंजाब में कोई भी सरकार किसानों की चिंताओं को दूर किए बिना सफलतापूर्वक शासन करने की उम्मीद नहीं कर सकती है.
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मान का ‘रणनीतिक’ कदम?
एसकेएम ने पिछले महीने चंडीगढ़ में पंजाब की आम आदमी पार्टी सरकार और केंद्र की मोदी सरकार के खिलाफ 6 दिवसीय धरना प्रदर्शन की घोषणा की थी, क्योंकि वह अपनी लंबित मांगों को पूरा करने में विफल रहे हैं. किसानों ने फसलों पर एमएसपी की कानूनी गारंटी, कृषि ऋण माफी और कृषि आय बढ़ाने के उपायों सहित लगभग 18 मांगें रखी थीं.
मान ने विरोध प्रदर्शन से पहले 3 मार्च को नेताओं को एक बैठक के लिए आमंत्रित किया, लेकिन बैठक के बीच में ही सीएम ने किसानों से धरना देने की योजना छोड़ने को कहा. सीएम ने मंगलवार को कहा, “मैं किसानों के साथ 2 घंटे से ज़्यादा देर तक बैठा, जिसके बाद मैंने उनसे कहा कि चूंकि उनकी अधिकांश मांगों पर चर्चा हो चुकी है, इसलिए उन्हें धरने पर बैठने का विचार छोड़ देना चाहिए, लेकिन उन्होंने कहा कि धरने की योजना जस की तस है. फिर मेरे 2 घंटे क्यों बर्बाद करे? उन्हें या तो बातचीत के लिए आना चाहिए या धरना देना चाहिए.”
हालांकि, बैठक में शामिल हुए किसान नेताओं का दावा है कि सीएम ने बैठक के दौरान ठीक तरीके से व्यवहार नहीं किया.
बैठक के बाद मीडिया से बात करते हुए बीकेयू (राजेवाल) के प्रमुख बलबीर सिंह राजेवाल ने कहा, “वे अचानक से काफी उत्तेजित हो गए और गुस्से में बैठक छोड़कर चले गए. वे (मान) चाहते थे कि हम उन्हें आश्वासन दें कि हम अपना धरना नहीं देंगे. हमने उनसे कहा कि धरना न देने या स्थगित करने का फैसला सामूहिक रूप से बैठक के नतीजे स्पष्ट होने के बाद ही लिया जा सकता है, उससे पहले नहीं, लेकिन वे काफी नाराज़ हो गए और यह कहते हुए उठकर चले गए कि उस समय तक उन्होंने जो भी मांगें मान ली थीं, वह भी अब रद्द हो गई हैं.”
राजेवाल उन नेताओं में शामिल हैं जिन्हें पुलिस ने मंगलवार की सुबह कई अभियानों के दौरान गिरफ्तार किया. गिरफ्तार किए गए अन्य नेताओं में रुलदू सिंह मानसा, जंगवीर सिंह चौहान, गुरमीत सिंह भाटीवाल, नछत्तर सिंह जैतों, वीरपाल सिंह ढिल्लों, बिंदर सिंह गोलेवाल, गुरनाम भीखी और हरमेश सिंह ढेसी शामिल हैं.
बुधवार को राज्य में सबसे बड़ी बीकेयू और एसकेएम के घटक दल के प्रमुख जोगिंदर सिंह उग्राहन को भी हिरासत में लिया गया.
कृषि विशेषज्ञ रमनदीप सिंह ने दिप्रिंट से कहा कि किसान यूनियनों को अपने व्यक्तिगत एजेंडे को छोड़कर एकजुट होने की ज़रूरत है.
सिंह ने कहा, “विभाजित सदन की आवाज़ को कमजोर किया जाता है और उसे गंभीरता से नहीं लिया जाता. यूनियनों को एक साथ आने और एक स्वर में अपने मुद्दों को उठाना होगा.”
चंडीगढ़ सेक्टर 10 स्थित डीएवी कॉलेज की डॉ. कंवलप्रीत कौर ने कहा कि इस बात में कोई संदेह नहीं है कि शहरी और अर्ध-शहरी पंजाब के बड़े हिस्से में किसानों के प्रति सहानुभूति खत्म हो गई है.
उन्होंने दिप्रिंट से कहा, “किसान यूनियनों को इस पर ध्यान देना चाहिए कि उनके बीच कोई एकता नहीं है. यह खुलेआम कहा जा रहा है कि कुछ यूनियनें सत्ता के लिए विभाजनकारी एजेंडे चला रही हैं, जो किसानों के आंदोलन को बदनाम करना चाहते हैं. मुख्यमंत्री को भी अपना रुख एक बार और सभी के लिए स्पष्ट करना चाहिए. उन्होंने एसकेएम से झुंझलाहट में ऐसा किया, भले ही उनकी सरकार खनौरी सीमा पर विरोध के प्रति बहुत ही नरम रही हो.”
विपक्ष का मान पर हमला
किसान नेताओं के खिलाफ अभूतपूर्व पुलिस कार्रवाई के कारण विपक्ष ने मान सरकार की तीखी आलोचना की है.
पंजाब विधानसभा में विपक्ष के नेता और कांग्रेस नेता प्रताप सिंह बाजवा ने कहा कि सीएम का व्यवहार अहंकार की नई ऊंचाइयों को छू गया है और उन्होंने आप से मान की जगह किसी और “समझदार” व्यक्ति को लाने को कहा.
एक्स पर एक पोस्ट में उन्होंने लिखा, “यह बेहद निंदनीय है कि @AAPPunjab सरकार चंडीगढ़ में 5 मार्च को विरोध प्रदर्शन करने से रोकने के लिए किसान यूनियन नेताओं के ठिकानों पर छापेमारी कर रही है. क्या सीएम @BhagwantMann पंजाब को तानाशाही राज्य में नहीं बदल रहे हैं? पंजाब एक कृषि प्रधान राज्य है. पंजाब के लिए यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि यहां एक ऐसा सीएम है, जो किसानों और खेत मजदूरों की समस्याओं को सुनने के लिए भी तैयार नहीं है…”
It is highly deplorable that the @AAPPunjab govt is raiding the locations of farm union leaders to stop them from staging a protest on March 5 in Chandigarh. Isn't CM @BhagwantMann turning Punjab into a dictatorial state? Punjab is an agriculture-dominated state. It is very…
— Partap Singh Bajwa (@Partap_Sbajwa) March 4, 2025
लुधियाना से भाजपा सांसद और केंद्रीय मंत्री रवनीत सिंह बिट्टू ने कहा कि मान ने राज्य में “आपातकाल जैसी” स्थिति पैदा कर दी है.
कांग्रेस विधायक परगट सिंह ने मुख्यमंत्री मान पर तानाशाह की तरह काम करने का आरोप लगाया और दावा किया कि वे केंद्र में भाजपा के विभाजनकारी एजेंडे को आगे बढ़ा रहे हैं.
सिंह ने एक्स पर पोस्ट किया, “मुख्यमंत्री @BhagwantMann पहले किसानों को बातचीत के लिए आमंत्रित करते हैं, फिर दुर्व्यवहार करते हैं, बैठक से भाग जाते हैं और बाद में ट्वीट के माध्यम से उनके खिलाफ नफरत भड़काते हैं! अब, वे उनकी गिरफ्तारी का आदेश दे रहे हैं – यह शुद्ध तानाशाही है. यह न केवल पंजाब के किसानों का अपमान है, बल्कि राज्य में भाजपा के विभाजनकारी एजेंडे का स्पष्ट क्रियान्वयन है. पंजाब इसे बर्दाश्त नहीं करेगा!”
एक अन्य कांग्रेस नेता सुखपाल खेड़ा ने एक्स पर एक पोस्ट में कहा कि मान ने पंजाब को पुलिस स्टेट में बदल दिया है और एसकेएम किसान नेताओं की आधी रात को की गई गिरफ्तारी की निंदा की.
शिरोमणि अकाली दल (एसएडी) के पूर्व अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने किसानों के साथ खड़े होने की अपनी पार्टी की प्रतिबद्धता दोहराई.
एक्स पर एक पोस्ट में उन्होंने लिखा: “पहले मुख्यमंत्री भगवंत मान ने किसान नेताओं को धमकाया, जिन्हें उन्होंने कल चंडीगढ़ में बातचीत के लिए आमंत्रित किया था. आज सुबह-सुबह पुलिस ने किसान नेताओं के घरों पर छापेमारी शुरू कर दी और संयुक्त किसान मोर्चा के 5 मार्च के आंदोलन को विफल करने के एक क्रूर प्रयास में उनमें से कई को हिरासत में ले लिया. इस तरह के तानाशाही तरीके कभी भी अन्नदाता की आवाज़ को दबा नहीं सकते. अकाली_दल_ प्रदर्शनकारी किसानों और उनके मुद्दों के साथ एकजुटता व्यक्त करता है और यह सुनिश्चित करने की पूरी कोशिश करेगा कि उनकी सभी मांगें इस भ्रष्ट और अहंकारी @AAPPunjab सरकार द्वारा स्वीकार की जाएं.”
वरिष्ठ अकाली नेता बिक्रम सिंह मजीठिया ने कहा कि सीएम के व्यवहार से पता चलता है कि उन्हें “मेडिकल सहायता” की दरकार है.
मजीठिया ने मीडियाकर्मियों से कहा, “उनका व्यवहार एक मुख्यमंत्री के लिए अनुचित है. उनकी हरकतें शर्मनाक हैं.”
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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