scorecardresearch
Thursday, 19 December, 2024
होमराजनीतिराजस्थान के दांता रामगढ़ में पति-पत्नी की थी भिड़ंत, वीरेंद्र सिंह ने रीता चौधरी को 98 हजार वोटों से हराया

राजस्थान के दांता रामगढ़ में पति-पत्नी की थी भिड़ंत, वीरेंद्र सिंह ने रीता चौधरी को 98 हजार वोटों से हराया

वर्तमान कांग्रेस विधायक वीरेंद्र सिंह ने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी भाजपा के गजानंद कुमावत को 7,997 मतों से हराया. सिंह की पत्नी, जेजेपी की रीता चौधरी 1,597 वोट पाकर चौथे स्थान पर रहीं.

Text Size:

नई दिल्ली: राजस्थान की दांता रामगढ़ सीट पर पति-बनाम-पत्नी मुकाबले में वर्तमान कांग्रेस विधायक वीरेंद्र सिंह ने रविवार को अपनी पत्नी डॉ. रीता सिंह चौधरी को लगभग 98,000 वोटों से हरा दिया है.

जीत की तालिका में रीता चौधरी चौथे स्थान पर रहीं वहीं भाजपा के गजानंद कुमावत – इस दौड़ में उपविजेता रहे और उन्हें 7,997 वोट ही मिल सके और वो हार गए.

हरियाणा-केंद्रित जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) के टिकट पर लड़ते हुए, चौधरी को 1,567 वोट मिले, जबकि उनके पति सिंह को 99,413 वोट मिले.

मुकाबले को और भी दिलचस्प बनाने वाली बात यह है कि वीरेंद्र सिंह ने 2018 में मात्र 920 वोटों से ये सीट जीती थी, और बीजेपी दूसरे नंबर पर रही थी.

बता दें कि भाजपा ने दांता रामगढ़ सीट कभी नहीं जीती है, जबकि यहां अच्छी खासी जाट आबादी है, जिसे जेजेपी का मजबूत वोट बैंक माना जाता है.

वीरेंद्र को अपने पिता और कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष नारायण सिंह की राजनीतिक विरासत, विरासत में मिली है. पार्टी ने 1980 के बाद से दांता रामगढ़ में नौ चुनावों में से सात में जीत हासिल की है, इनमें से छह बार नारायण सिंह विजयी उम्मीदवार रहे. इससे पहले उन्होंने 1972 में भी यह सीट जीती थी.

चुनाव प्रचार के दौरान रीता चौधरी ने दिप्रिंट को बताया था कि अपने पति के खिलाफ उनकी लड़ाई “व्यक्तिगत नहीं” है. हालांकि, उनके एक करीबी सहयोगी ने कहा कि उन्हें लगता है कि उनके पति के परिवार ने उन्हें राजनीति में पीछे रखा है, भले ही कांग्रेस उन्हें मौका देने के लिए तैयार थी.

एक समय कांग्रेस सदस्य रहीं, रीता अब राजस्थान में जेजेपी की महिला विंग की अध्यक्ष हैं.

पिछले महीने अपनी उम्मीदवारी के बारे में बोलते हुए उन्होंने कहा था: “यह किसी के खिलाफ खड़ा होना नहीं है. जिला प्रमुख (सीकर के) के रूप में, मैंने बहुत काम किया है. पिछली बार कांग्रेस ने उन्हें (दांता रामगढ से) पार्टी का उम्मीदवार बनाया था और मैं जनता के बीच ही रह रही हूं. लेकिन समय किसी का इंतजार नहीं करता. आपकी जिंदगी में एक समय ऐसा आता है कि आपको अपने लिए और अपनों के लिए स्टैंड लेना होता है. अब मैंने लोगों और उनके मुद्दों के लिए स्टैंड लिया है.

चौधरी, जो दावा करती हैं कि उन्होंने क्रमशः 2013 और 2018 के चुनावों में अपने ससुर और पति की जीत के लिए कड़ी मेहनत की थी. उन्होंने कहा कि उन्होंने 2018 में कांग्रेस से टिकट मांगा था, लेकिन उनके पति को चुना गया.

जबकि उन्होंने अपने पति के साथ अनबन के लिए “बातचीत न होने और उसकी” को जिम्मेदार ठहराया, सिंह ने अपनी पत्नी और उनके चुनाव लड़ने के फैसले के बारे में बात नहीं करने का फैसला किया.

पिछले महीने अपनी जीत के प्रति आश्वस्त होकर उन्होंने दिप्रिंट से कहा था कि रीता के मैदान में उतरने से उनके वोट पर कोई असर नहीं पड़ेगा. सिंह ने कहा था कि वह अपने और अपने पिता द्वारा क्षेत्र में लाए गए ‘विकास’ पर भरोसा कर रहे हैं.

उनके अनुसार, दांता रामगढ़ निर्वाचन क्षेत्र की सबसे बड़ी समस्या पानी थी – जो रीता चौधरी का मुख्य अभियान मुद्दा था.


यह भी पढ़ें: जनता के सामने ‘नतमस्तक’ हुए PM मोदी — जहां दूसरों से उम्मीद खत्म होती है, वहां से मोदी की गारंटी शुरू होती है


 

share & View comments