नई दिल्ली: बिहार चुनाव से कुछ महीने पहले, लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के अध्यक्ष चिराग पासवान ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर हमले तेज कर दिए हैं. इससे जनता दल (यूनाइटेड) के भीतर संदेह पैदा हो गया है कि क्या 2025 का चुनाव भी 2020 जैसा ही होगा, जब चिराग ने बिहार की राजनीति में नीतीश के लिए एक बड़ी चुनौती खड़ी कर दी थी.
ताजा मुद्दा जिस पर केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने नीतीश के खिलाफ मोर्चा खोला है, वह है बीजेपी नेता और व्यवसायी गोपाल खे़मका की हत्या, जिसने पूरे राज्य को झकझोर दिया है. इस हत्या के बाद विपक्ष—राजद नेता तेजस्वी यादव से लेकर कांग्रेस नेता राहुल गांधी तक—नीतीश पर कानून व्यवस्था को लेकर हमला बोल रहे हैं और उनके ‘सुशासन’ के दावे का मज़ाक उड़ा रहे हैं. लेकिन चिराग ऐसे इकलौते एनडीए नेता हैं जिन्होंने सीधे नीतीश को निशाने पर लिया है, जबकि नीतीश के पास बतौर सीएम गृह विभाग भी है.
2020 में चिराग ने एक ऐसा विघटनकारी रोल निभाया जिसने एनडीए के समीकरणों को बदल दिया और जदयू और नीतीश कुमार की स्थिति को कमजोर किया. एलजेपी ने 243 में से 134 सीटों पर चुनाव लड़ा था और रणनीति के तहत ज़्यादातर जदयू के खिलाफ उम्मीदवार उतारे थे ताकि वोटों का बंटवारा हो सके. रिपोर्ट्स के मुताबिक, एलजेपी ने 28 सीटों पर जदयू उम्मीदवारों की हार में भूमिका निभाई.
जहां तक खे़मका की हत्या की बात है, एनडीए के बाकी साझेदार जीतन राम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा ने या तो चुप्पी साध रखी है या आरजेडी के ‘जंगल राज’ को निशाना बनाया है ताकि नीतीश सरकार को शर्मिंदा न करना पड़े. ऐसे में चिराग सबसे अलग नज़र आते हैं.
छपरा में ‘नव संकल्प रैली’ को संबोधित करते हुए चिराग ने कहा, “यह बहुत गंभीर विषय है—बिहार में जिस तरह से रोज़ हत्या और अपहरण की घटनाएं हो रही हैं. कानून व्यवस्था पूरी तरह चरमरा गई है. और यह सिर्फ हत्या की बात नहीं है बल्कि यह एक पॉश इलाके में, खुलेआम हुई हत्या है, जो पुलिस स्टेशन और अफसरों के आवास से सिर्फ 100 मीटर की दूरी पर हुई.”
“सोचिए, अगर पटना जैसे शहर के पॉश इलाकों में खुलेआम हत्याएं हो रही हैं, तो दूरदराज़ के गांवों में क्या हाल होगा? जिस सरकार को सुशासन के लिए जाना जाता है, वहां कानून व्यवस्था की यह स्थिति विपक्ष को सवाल उठाने का मौका देती है. यह गंभीर है, क्योंकि मैं खुद भी सरकार का समर्थन करता हूं. सरकार को ऐसा उदाहरण पेश करना चाहिए जिससे जनता का विश्वास बहाल हो सके.”
एक दिन बाद, चिराग ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के गृह ज़िले में हुई एक और हत्या का ज़िक्र कर राज्य में कानून व्यवस्था की बदहाली को उजागर किया. उन्होंने कहा, “कल बिहारशरीफ, नालंदा में 16 साल के हिमांशु पासवान और 20 साल के अनु कुमार की अपराधियों ने बेरहमी से गोली मारकर हत्या कर दी। यह घटना अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण और निंदनीय है. यह जघन्य कृत्य न केवल मानवता को झकझोरता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि बिहार में कानून व्यवस्था पूरी तरह से ध्वस्त हो चुकी है.”
जैसे 2020 में उन्होंने जदयू के खिलाफ उम्मीदवार उतारकर नीतीश के वोट बैंक में सेंध लगाई थी, वैसे ही अब भी एनडीए में रहते हुए चिराग नीतीश विरोधी रुख अपनाए हुए हैं. वह कानून व्यवस्था के साथ-साथ जातीय जनगणना, शराबबंदी, युवाओं का पलायन और डोमिसाइल कानूनों जैसे मुद्दों पर भी सरकार की आलोचना करते रहे हैं.
जाति सर्वे की आलोचना
एक महीने पहले, जून में, जब नीतीश सरकार को एक नौ साल की दलित बच्ची के गैंगरेप और इलाज के अभाव में पटना अस्पताल में हुई उसकी मौत के बाद विपक्ष की तीखी आलोचना का सामना करना पड़ा, तो चिराग पासवान ने नीतीश सरकार की “गंभीर लापरवाही” के लिए आलोचना की और इस घटना को “मानवता के खिलाफ अपराध” बताया. उन्होंने मुख्यमंत्री को एक पत्र लिखा.
चिराग के पत्र में लिखा था: “26 मई को मुजफ्फरपुर के कुढ़नी इलाके में एक नौ वर्षीय दलित बच्ची के साथ सामूहिक दुष्कर्म और उसके बाद हत्या के प्रयास की घटना ने पूरे राज्य को झकझोर दिया है. यह भयावह अपराध न केवल एक मासूम की क्रूर हत्या है, बल्कि यह बिहार की कानून व्यवस्था, सामाजिक चेतना और सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली की गहरी विफलता को भी उजागर करता है.”
एक हफ्ते पहले, चिराग के बहनोई और जमुई से सांसद अरुण भारती ने बिहार में 2023 की बहुचर्चित जातीय जनगणना को एक साज़िश बताया. उन्होंने आरोप लगाया कि दलितों, महादलितों और आदिवासियों की गिनती जानबूझकर कम करके की गई. उन्होंने कहा, “इसका मकसद मुस्लिम-यादव वर्चस्व को स्थापित करना है, जबकि दलितों को सिर्फ वोट बैंक के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है.” हालांकि उन्होंने जातीय जनगणना को लेकर मोदी सरकार की योजनाओं की तारीफ की.
युवा रोजगार का मुद्दा
रविवार को हुई एक बैठक में चिराग पासवान ने बिहार सरकार से सवाल किया कि रोजगार की कमी के कारण लोग राज्य से बाहर क्यों पलायन कर रहे हैं. यह वही मुद्दा है जिसे विपक्षी नेता तेजस्वी यादव और प्रशांत किशोर बार-बार नीतीश कुमार पर हमला करने के लिए उठाते हैं.
चिराग ने पूछा, “क्या आपने कभी सुना है कि दिल्ली के लोग बिहार में काम करना चाहते हैं? क्या आपने कभी सुना है कि मुंबई के लड़के-लड़कियां बेहतर पढ़ाई के लिए बिहार आना चाहते हैं? बिहार के लोग बाहर क्यों जाते हैं? मैं यहां क्लस्टर बनाना चाहता हूं ताकि बेहतर रोजगार मिल सके, और मैं बेहतर शिक्षा देना चाहता हूं ताकि हमारे बच्चे कोटा न जाएं.”
पिछले हफ्ते, बिहार लोक सेवा आयोग (BPSC) की परीक्षा की तैयारी कर रहे छात्रों ने सरकार की ओर से डोमिसाइल नीति लागू करने की मांग को लेकर प्रदर्शन किया ताकि बिहार के युवाओं को ज्यादा से ज्यादा सरकारी नौकरियां मिल सकें.
सैकड़ों अभ्यर्थियों ने विरोध प्रदर्शन किया और बिहार के मुख्य सचिव अमृत लाल मीणा से मुलाकात की, सरकार से उनकी मांगें पूरी करने की अपील की.
तेजस्वी यादव पहले ही वादा कर चुके हैं कि अगर महागठबंधन की सरकार बनती है तो 100 फीसदी डोमिसाइल नीति तुरंत लागू की जाएगी.
हालांकि, जेडीयू ने डोमिसाइल नीति की मांग का विरोध किया है. उसका कहना है कि “सरकारी नौकरियों के लिए डोमिसाइल नीति लाना संविधान के खिलाफ होगा.”
अपने गठबंधन में होने के बावजूद चिराग पासवान ने डोमिसाइल नीति का समर्थन किया है. उन्होंने कहा, “बिहार के युवाओं के हित में मैं सरकारी नौकरियों के लिए डोमिसाइल नीति लाने के पक्ष में हूं; यह नौकरी चाहने वालों की लंबे समय से चली आ रही मांग है.”
षड्यंत्र और चिंताएं
रविवार को चिराग पासवान ने परोक्ष रूप से साज़िश की ओर इशारा किया. बिना किसी का नाम लिए उन्होंने कहा कि कुछ लोग नहीं चाहते कि वह बिहार विधानसभा चुनाव लड़ें, लेकिन वह चुनाव लड़ने के लिए पूरी तरह से तैयार हैं.
चिराग ने यह भी कहा, “लोग अपने भविष्य को सुरक्षित करने में संतुष्ट हैं. उन्हें मेरे ‘बिहार फर्स्ट’ और ‘बिहारी फर्स्ट’ विज़न से डर लगता है, इसलिए वे मुझे राज्य की राजनीति से दूर रखने की साज़िश कर रहे हैं. वे लोगों के मन में भ्रम पैदा कर रहे हैं कि क्या चिराग विधानसभा चुनाव लड़ेंगे या नहीं, लेकिन हम 243 की 243 सीटों पर चुनाव लड़ेंगे.”
यह आरोप ऐसे समय में आए हैं जब दो हफ्ते पहले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने यह सवाल किया था कि एक केंद्रीय मंत्री होते हुए चिराग पासवान को बिहार विधानसभा चुनाव लड़ने की क्या ज़रूरत है.
पिछले हफ्ते अरुण भारती ने खुलासा किया था कि प्रधानमंत्री की रैली से पहले नीतीश और चिराग के बीच एक संक्षिप्त बातचीत हुई थी. नीतीश ने कथित तौर पर चिराग से कहा, “आप युवा केंद्रीय मंत्री हैं, आपको विधानसभा चुनाव लड़ने की क्या ज़रूरत है, और आप कौन सी सीट से लड़ रहे हैं? आपका भविष्य बहुत उज्ज्वल है.” इस पर चिराग ने कथित तौर पर जवाब दिया, “अभी पार्टी संगठनात्मक मोड में है; अगर पार्टी ने मेरी उम्मीदवारी का फ़ैसला किया, तो मैं आपसे आशीर्वाद लेने ज़रूर मिलूंगा.”
अरुण भारती द्वारा किए गए इस दावे से यह संकेत मिलता है कि जेडीयू के भीतर चिराग को लेकर चिंता बढ़ रही है. जेडीयू को यह आशंका हो सकती है कि 2025 में चिराग वही भूमिका निभा सकते हैं जैसी उन्होंने 2020 में निभाई थी, जब उन्होंने जेडीयू के वोट बैंक में सेंध लगाई थी.
दलित नेतृत्व, या बड़ी महत्वाकांक्षाएं?
सूत्रों के मुताबिक, सिर्फ जेडीयू ही नहीं बल्कि केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी भी चिंतित हैं कि चिराग पासवान के उभरने से दलित नेतृत्व का स्वरूप कैसा बनेगा.
पिछले हफ्ते, एनडीए के प्रमुख दलित नेता जीतन राम मांझी ने कहा था, “चिराग के पास अनुभव की कमी है.” इसके तुरंत बाद, अरुण भारती ने मांझी को याद दिलाया कि चिराग के पास बिना विधानसभा का सामना किए मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने का भी कोई अनुभव नहीं है.
मई में, जब तेजस्वी यादव ने आगामी विधानसभा चुनाव से पहले पासी दलित वोटों को ध्यान में रखते हुए एक बड़ा पासी सम्मेलन आयोजित किया और मांग की कि “ताड़ी को उद्योग का दर्जा दिया जाए और शराबबंदी से बाहर किया जाए”, तब चिराग ने उनका समर्थन किया और राज्य सरकार की शराबबंदी नीति पर सवाल उठाया.
उन्होंने कहा: “मैं कई बार कह चुका हूं कि यहां ताड़ी एक प्राकृतिक उत्पाद है, इसे ‘शराब’ नहीं कहा जाना चाहिए. मैं सरकार का समर्थन कर रहा हूं, लेकिन कई बार ताड़ी पर से प्रतिबंध हटाने की मांग की है.”
हालांकि, एलजेपी के एक नेता ने इस बात को खारिज किया कि चिराग केवल दलित नेतृत्व के लिए संघर्ष कर रहे हैं. उन्होंने कहा, “चिराग बिहार की राजनीति में बड़ी भूमिका की ओर देख रहे हैं; वह खुद को एक दलित नेता के रूप में नहीं, बल्कि एक युवा, महत्वाकांक्षी नेता के रूप में पेश कर रहे हैं जो बिहार की समस्याओं को समझते हैं और उन्हें हल करने की क्षमता रखते हैं. बिहार में युवा और महत्वाकांक्षी मतदाता एक बूढ़े हो चुके नीतीश को वोट देने के लिए उत्साहित नहीं हैं. तेजस्वी यादव और प्रशांत किशोर पहले से ही इस वर्ग को आकर्षित करने की कोशिश कर रहे हैं. चिराग भी उन्हीं वोटरों पर नजर रखे हुए हैं.”
उन्होंने आगे कहा, “हालांकि फिलहाल वह सिर्फ मुद्दे उठा रहे हैं और खुद को नीतीश के बाद एक संभावित मुख्यमंत्री विकल्प के रूप में पेश कर रहे हैं. वह अंततः एक बड़ा खिलाड़ी बन सकते हैं, लेकिन फिलहाल जेडीयू जीतन राम मांझी को आगे कर चिराग को संतुलित करने की कोशिश कर रही है और मांझी को जगह देने में ज्यादा रुचि दिखा रही है.”
पार्टियां क्या कह रही हैं?
एलजेपी प्रवक्ता आर. विनीत ने दिप्रिंट से बात करते हुए कहा, “चिराग पासवान ने ‘बिहार फर्स्ट’ विज़न को लेकर हमारी प्राथमिकता स्पष्ट कर दी है, और हम आगामी चुनाव के लिए एनडीए के साथ एकजुट हैं. फिलहाल हमारी प्राथमिकता सीट बंटवारे की बातचीत के दौरान विधानसभा की सम्मानजनक संख्या में सीटें पाना है.”
वहीं दूसरी ओर, जेडीयू के एक प्रदेश उपाध्यक्ष ने दिप्रिंट से कहा, “बीजेपी के 2020 वाले प्लान को देखते हुए हम अब ऐसे खेलों को लेकर सतर्क हैं. एलजेपी एनडीए की सभी रैलियों में हिस्सा ले रही है और ज्यादा सीटों की मांग के लिए तैयारी कर रही है, लेकिन इतिहास को देखते हुए हम सतर्क हैं.”
जेडीयू के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि नीतीश के मजबूत गढ़ राजगीर और शाहाबाद में एलजेपी की रैली ने पार्टी को सतर्क कर दिया है.
बीजेपी प्रवक्ता प्रेम रंजन पटेल ने दिप्रिंट से कहा, “बिहार में एनडीए के साझेदारों के बीच कोई भ्रम नहीं है कि हम यह चुनाव नीतीश कुमार के नेतृत्व और प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में लड़ रहे हैं। जहां तक चिराग पासवान की विधानसभा चुनाव लड़ने की इच्छा की बात है, वह एलजेपी के प्रमुख हैं और आवंटित सीटों से चुनाव लड़ सकते हैं.”
बीजेपी के सूत्रों का कहना है कि चिराग की महत्वाकांक्षा है कि वे ज्यादा विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ें ताकि उनकी पार्टी की जीत की संभावना बढ़े और 2005 से अब तक विधानसभा चुनावों में जो गिरावट आई है, उसे पलट सकें. उनमें से एक ने दिप्रिंट से कहा, “चूंकि बिहार में तीन बड़े खिलाड़ी हैं — बीजेपी, जेडीयू और आरजेडी — चिराग खुद को बिहार में नीतीश के बाद के दौर के लिए तैयार कर रहे हैं.”
जेडी(यू) का साहसी चेहरा
बिहार में कानून व्यवस्था को लेकर बीजेपी के पटेल ने कहा, “हमारी अपराध के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति है. मुख्यमंत्री ने खुद खेमका [हत्या] मामले में अधिकारियों को कार्रवाई करने के निर्देश दिए हैं.”
लगातार हो रहे हमलों के बीच जेडीयू ने नीतीश का बचाव किया है और कहा है कि हाल के दिनों में बिहार में कानून व्यवस्था में सुधार हुआ है, खासकर जब मुख्यमंत्री खुद हस्तक्षेप कर अधिकारियों को जरूरी कदम उठाने का निर्देश देते हैं.
जेडीयू प्रवक्ता राजीव रंजन सिंह ने कहा, “अपराध कहीं भी हो सकता है, लेकिन पुलिस क्या ज़िम्मेदारी निभा रही है, यह ज्यादा अहम है. गिरफ्तारी, जांच और कार्रवाई सुनिश्चित करने में पुलिस का ट्रैक रिकॉर्ड ज्यादा मायने रखता है.”
“पिछले 20 वर्षों में बिहार सरकार ने एक ऐसी व्यवस्था विकसित की है जिसमें मुख्यमंत्री नीतीश कुमार खुद पुलिस के काम की निगरानी करते हैं, और हर केस को पुलिस एक चुनौती की तरह लेती है. विपक्ष शोर मचा रहा है, लेकिन हमारी ज़िम्मेदारी है कि हम सही कार्रवाई सुनिश्चित करें. बिहार पुलिस इस पर काम कर रही है.”
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