रायपुर: छत्तीसगढ़ की राज्यपाल अनुसुइया उइके और भूपेश बघेल सरकार के बीच टकराव कम होने का नाम नहीं ले रहा हैं. गवर्नर ने अब बघेल सरकार द्वारा बुलाए जा रहे विधानसभा के विशेष सत्र पर प्रश्न खड़ा कर दिया है. जबकि भाजपा ने इसे मरवाही विधानसभा उपचुनाव को प्रभावित करने की मौजूदा सरकार की एक चाल बता रही है.
पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह की सरकार के बाद राजस्थान और छत्तीसगढ़ नीत कांग्रेस सरकार भी केंद्र सरकार द्वारा लाए गए कृषि सुधार विधेयक के खिलाफ नया कानून लाना चाहती है. इसके लिए सरकार विधानसभा में विशेष सत्र 27 अक्टूबर को बुलाना चाहती है. विधानसभा का विशेष सत्र बुलाने के लिए सोमवार को बघेल सरकार ने गवर्नर को प्रस्ताव भेजा था लेकिन गवर्नर ने मंगलवार को सरकार के प्रस्ताव की फाइल लौटाते हुए पूछा, ’58 दिन पहले हुए मानसून सत्र के बाद विशेष सत्र की क्या आवश्यकता पड़ी गई.’
यही नहीं गवर्नर ने सरकार से विधानसभा में होनेवाले विधि विषयक कार्यों का ब्यौरा भी मांगा है. गवर्नर के सवाल के जवाब में सरकार ने कहा कि यह सत्र किसानों की सुरक्षा के लिए बुलाया जा रहा है क्योंकि केंद्र के कृषि सुधार विधेयक से किसानों का हित प्रभावित हो रहा है.
मुख्यमंत्री बघेल ने सार्वजनिक रूप से चुनौती भरे लहजे में कहा, ‘हमारी पूर्ण बहुमत की सरकार है. विशेष सत्र बुलाने से कोई नहीं रोक सकता. भाजपा राजभवन को राजनीति का अखाड़ा न बनाए.’ हालांकि माना जा रहा है कि विशेष सत्र का विवाद आज सुलझा लिया जाएगा.
सीधी टक्कर
गौरतलब है कि हाल ही में यह तीसरा मामला है जिसमें राज्य सरकार और राजभवन सीधे टकराव की स्थिति में आ गए हैं. कुछ दिन पहले ही गवर्नर को विश्वास में लिए बिना उनके सचिव सोनमणि बोरा का तबादला कर दिया गया था. इससे नाराज़ उइके ने भूपेश बघेल सरकार से कहा था, ‘सचिवालय की नियुक्तियों और तबादलों में उनकी पसंद और नापसंद का ख्याल रखा जाए.’
राजभवन और सरकार के बीच टकराव के चलते ही राज्यपाल के नवनियुक्त अल्पकालिक सचिव अमृत कुमार खलको समय से प्रभार नहीं ले पाए.
राजभवन ने राज्य सरकार को 15 अक्टूबर को लिखे एक पत्र में साफ किया कि पूर्णकालिक सचिव की नियुक्ति में उनकी सहमति ली जाए जिससे विवाद और गहरा गया. खलको पदभार संभालने के लिए राजभवन पहुंचे लेकिन उन्हें प्रभार सोनमणि बोरा को रिलीव किए जाने के तीन दिन बाद मिला.
राज्यपाल के इस पत्र के जवाब में बघेल ने कहा था कि गैर भाजपा शासित प्रदेशों में गवर्नर, सरकार के काम में हस्तक्षेप क्यों करते हैं. वहीं प्रदेश के संसदीय कार्य और कृषि मंत्री रविन्द्र चौबे ने राज्यपाल को ‘मर्यादा‘ में रहने की सीख दे डाली थी.
इस दौरान एक अन्य मामले में राज्यपाल ने प्रदेश में कानून व्यवस्था को लेकर गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू के साथ विभागीय समीक्षा के लिए 15 अक्टूबर को एक दूसरा पत्र लिखा लेकिन साहू समीक्षा बैठक में नही पहुंचे. तीन बाद साहू ने 18 अक्टूबर को मीडिया को बताया कि वह कोरोना संक्रमितों के संपर्क में आए थे इसलिए उन्होंने खुद को क्वारेंटाइन किया हुआ था.
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कुलपति नियुक्ति विवाद
इसी वर्ष मार्च में राज्यपाल और बघेल सरकार के बीच प्रदेश की कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता और जनसंचार विश्वविद्यालय और पंडित सुन्दरलाल शर्मा ओपन विश्वविद्यालय के कुलपतियों की नियुक्ति को लेकर भी विवाद हो गया था.
राज्यपाल द्वारा आरएसएस पृष्ठभूमि के बलदेव भाई शर्मा को पत्रकारिता विश्व विद्यालय का कुलपति बनाए जाने पर राज्य सरकार ने विरोध जताया था और कहा कि सरकार के साथ कई दौर की बात होने के बावजूद भी किसी एक नाम पर सहमति नहीं बन पायी थी लेकिन राज्यपाल ने शर्मा को फिर भी नियुक्ति दे दी.बाद में राजभवन द्वारा जानकारी दी गई कि उनके द्वारा गठित विशेषज्ञों की समिति की राय के बाद ही कुलपति की नियुक्ति का निर्णय लिया गया है.
कुलपति नियुक्ति के बाद सरकार की तरफ से कहा गया था की राज्यपाल ने जो करना था वह कर लिया अब ‘सरकार की बारी है.’
इसी प्रकार राज्यपाल द्वारा पं सुन्दरलाल शर्मा ओपन यूनिवर्सिटी के कुलपति वंश गोपाल सिंह का कार्यकाल बघेल सरकार के विरोध के बावजूद भी पांच साल के लिए बढ़ा दिया था. बाद में सरकार की तरफ से आरोप लगाया गया कि राज्यपाल ने उसके द्वारा भेजे गए पैनल के नामों को दरकिनार कर सिंह का कार्यकाल पांच साल के लिए बढ़ाया. सिंह की नियुक्ति पूर्व मुख्यमंत्री डॉक्टर रमन सिंह सरकार ने की था.
यह विवाद इतना गहराया कि बघेल सरकार ने 2020 के बजट सत्र में कुलपति की नियुक्ति में राज्यपाल का अधिकार कम करने के लिए विश्वविद्यालय अधिनियम में ही बदलाव कर किया. लेकिन सरकार के इस अधिनियम पर राज्यपाल ने वीटो कर दिया जिससे विवाद और गहरा गया.
उपचुनाव
भाजपा ने भूपेश बघेल सरकार पर आरोप लगाया है कि विशेष सत्र बुलाये जाने का मकसद मरवाही विधानसभा उपचुनाव को प्रभवित करना है. मंगलवार को पार्टी नेताओं के एक दल ने मुख्य निर्वाचन अधिकारी से मिलकर राज्य सरकार के इस कदम पर रोक लगाने की मांग की है.
भाजपा नेताओं ने मुख्य निर्वाचन अधिकारी को सौपें एक पत्र में लिखा है कि मात्र 58 दिनों के अंदर प्रदेश सरकार द्वारा राज्यपाल से विधानसभा का विशेष सत्र बुलाने की अनुमति मांगना मरवाही विधानसभा के उपचुनाव को प्रभावित करने का प्रयास है. भाजपा नेताओं ने कहा कि कांग्रेस सरकार की विधानसभा का विशेष सत्र बुलाने की कोशिश केंद्रीय निर्वाचन आयोग के दिशा निर्देशों का भी उल्लंघन है.
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