नई दिल्ली: भारतीय जनता पार्टी के मुख्यमंत्री रमन सिंह चौथी बार सत्ता में आने के लिए छत्तीसगढ़ में चुनाव लड़ रहे हैं. अब तक पार्टी की सीधी टक्कर कांग्रेस से होती थी. पर इस बार गणित में पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी की जनता कांग्रेस ने मायावती की बहुजन समाज पार्टी से गठबंधन कर पेंच फंसा दिया है.
पिछले चुनावों में भी कांटे का मुकाबला हुआ था. 2003 में भाजपा का वोट शेयर 39.3 प्रतिशत था तो कांग्रेस का 36.7. यानि 2.6 प्रतिशत का अंतर था. 2008 में भाजपा को 40.33 प्रतिशत मत मिले तो कांग्रेस को 38.6 प्रतिशत यानि बस 1.7 प्रतिशत का अंतर. 2013 में कहानी वैसी ही रही. भाजपा को 41.04 प्रतिशत मत मिले और कांग्रेस के 40.29, बस 0.75 प्रतिशत का दोनों पार्टियों के बीच का फर्क रहा.
पर इस बार चुनावी विश्लेषकों का काम मुश्किल होगा, क्योंकि मायावती-जोगी की जोड़ी न केवल कांग्रेस के वोट बैंक बल्कि भाजपा के वोट बैंक पर भी सेंध मार सकती है.
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छत्तीसगढ़ में दो चरणों में चुनाव हुए थे. 12 और 20 नवंबर को. पहले चरण में नक्सली इलाकों में वोट पड़े और चुनाव से ठीक पहले नक्सली हिंसा की भी कुछ घटनाएं हुईं थी. जिसमें एक पत्रकार की मौत हो गई थी. राज्य में चुनाव के नतीजे 11 दिसम्बर को आयेंगे.
चावल वाले बाबा के नाम से जाने वाले रमन सिंह क्या वे अपने गढ़ को बचा पायेंगे. भाजपा यहां अपनी नीतियों और काम के नाम पर फिर वोट मांग रही है. भाजपा नेता दावा कर रहे है कि वो 90 सदस्यीय विधानसभा में बहुमत प्राप्त कर लेंगे. पर सत्ता विरोधी लहर से पार पाना भाजपा के लिए आसान नहीं होगा.
कांग्रेस की मुसीबत ये है कि रमन सिंह के मुकाबले में किसे खड़ा करें. कांग्रेस राज्य में सत्ता से 15 साल से बाहर हैं और जोगी का पार्टी से निकलना भी उसको धक्का है.
मुख्य मुद्दे
कृषि संकट, भ्रष्टाचार, विकास,सड़कें, बिजली संकट, माओवाद – सभी चुनाव में मुद्दे रहे. राज्य में दोनों मुख्य दलों ने किसानों को लुभाने की कोशिश में कई वादे अपने धोषणापत्र में कर डाले. किसानों की संख्या राज्य में अच्छी खासी है और उन्हें संतुष्ट रखना ज़रूरी.
कांग्रेस राज्य में नक्सली हिंसा के समाप्त न होने पर भाजपा को आड़े हाथों ले रही थी तो मोदी सरकार ने अरबन नक्सल का समर्थन करने का आरोप कांग्रेस पर मढ़ा.