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Wednesday, 6 November, 2024
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छत्तीसगढ़ सरकार ने चला 27 % ओबीसी आरक्षण कार्ड तो भाजपा बोली, ‘असफलता छुपाने का नया प्रपंच है’

अध्यादेश जारी करने के बाद सरकार ने जनसंख्या का डेटाबेस बनाने के लिए पूर्व जिला एवं सत्र न्यायाधीश छबिलाल पटेल की अध्यक्षता में एक आयोग का गठन किया. राज्य सरकार का मानना है कि प्रदेश की ओबीसी जनसंख्या 47 प्रतिशत है.

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रायपुर: छत्तीसगढ़ शासन ने सरकारी नौकरियों में ओबीसी वर्ग को 27% आरक्षण देने की कवायद एक बार फिर से शुरू कर दी है. सरकार इस बार राशनकार्ड धारकों की संख्या को आधार बनाएगी. लेकिन जानकारों का कहना है कि राज्य सरकार की कवायद को हाईकोर्ट से दोबारा झटका मिल सकता है.

छत्तीसगढ़ कैबिनेट ने अपने 19 सितंबर की बैठक में सरकारी नौकरियों में ओबीसी आरक्षण को 14 से 27 प्रतिशत बढ़ाने का निर्णय एक बार फिर लिया है. कैबिनेट के निर्णय में कहा गया है, ‘राज्य के अन्य पिछड़ा वर्ग को 27 प्रतिशत और आर्थिक रूप से कमजोर ‘सामान्य वर्ग’ के लोगो को शासकीय सेवाओं में 10 प्रतिशत आरक्षण दिए जाने संबंधित हाईकोर्ट में लंबित मामले के निराकरण के लिए सरकार नया डेटाबेस तैयार करेगी.

इसके लिए ओबीसी जनसंख्या का निर्धारण राशनकार्ड की संख्या के आधार पर किया जाएगा.’ लेकिन आरक्षण के लिए अंतिम डेटा 2019 में सरकार द्वारा गठित छबीलाल पटेल कमीशन के मार्गदर्शन में तैयार किया जाएगा.

कैबिनेट के निर्णय में यह नहीं बताया गया है की ओबीसी जनसंख्या का निर्धारण राशनकार्ड से कैसे किया जाएगा लेकिन सरकार के अनुसार इस डेटा का अनुमोदन ग्राम सभा तथा नगरीय निकायों से कराया जाएगा.

खाद्य विभाग के एक अधिकारी ने अपना नाम न बताने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया, ‘राशनकार्ड धारकों के नाम के आधार पर नगरीय और ग्रामीण निकाय स्तर पर उनकी जाति की गणना होगी और फिर जनसंख्या का डेटाबेस तैयार किया जाएगा. यही कारण है कि सरकार आने वाले दिनों में राशनकार्ड की संख्या भी बढ़ाएगी जिससे उसका ओबीसी जनसंख्या प्रतिशत का दावा और पुष्ट हो सके.’


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नौकरियों में 82 फीसदी आरक्षण

बघेल सरकार ने सितंबर 2019 में एक अध्यादेश के माध्यम से प्रदेश में सरकारी नौकरियों में ओबीसी आरक्षण 14 से 27 प्रतिशत, एससी आरक्षण 12 से 13 प्रतिशत और सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से कमजोर व्यक्तियों के लिए 10 प्रतिशत निर्धारित किया था. एसटी आरक्षण पूर्ववत 32 प्रतिशत ही रखा गया. इस तरह बघेल सरकार ने राज्य की शासकीय नौकरियों में कुल 82 प्रतिशत आरक्षण कर दिया था.

अध्यादेश जारी करने के बाद सरकार ने जनसंख्या का डेटाबेस बनाने के लिए पूर्व जिला एवं सत्र न्यायाधीश छबिलाल पटेल की अध्यक्षता में एक आयोग का गठन किया. आयोग का मैंडेट राज्य की जनसंख्या में अन्य पिछड़े वर्ग और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों का सर्वेक्षण कर एक ‘क्वांटिफिएबल डेटा’ (quantifiable data) तैयार करना था. राज्य सरकार का मानना है कि प्रदेश की ओबीसी जनसंख्या 47 प्रतिशत है.

सरकार के निर्णय को हाईकोर्ट में कई याचिकाकर्ताओं ने चुनौती दी. उनके अनुसार सरकार का ओबीसी आरक्षण अध्यादेश नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस (एनएसएसओ), आरबीआई और भारत सरकार के बीपीएल सर्वे के आंकड़ों पर आधारित था जो असंवैधानिक और गैरकानूनी था. हाइकोर्ट ने अक्टूबर 2019 में इन याचिकाकर्ताओं की दलील को स्वीकार करते हुए सरकार के आदेश पर स्टे लगा दिया था. बाद में सरकार द्वारा अध्यादेश को विधानसभा में नही लाए जाने से वह अमान्य हो गया.

सरकार द्वारा जारी एक वक्तव्य में भूपेश बघेल और उनके मंत्रियों ने खाद्य विभाग द्वारा तैयार किये गए राशनकार्ड आधारित डेटाबेस को विश्वसनीय बताया है. सरकार के अनुसार उच्च न्यायालय के स्टे के मद्देनजर ओबीसी वर्ग का एक पारदर्शी एवं विश्वसनीय डेटाबेस बनाया जाएगा.

राशनकार्ड धारकों के परिवारों की सूची ग्राम पंचायतों एवं नगरीय निकायों के वार्डो में सार्वजनिक की जाएगी. इस संबंध में दावा-आपत्ति का निराकरण और छूटे हुए परिवारों का राशनकार्ड बनाने नए आवेदन भी लिए जाएंगे. कैबिनेट के निर्णय में कहा गया है कि सरकार नए डेटाबेस तैयारो करने का काम पटेल कमीशन के मार्गदर्शन में नई गाईडलाइन जारी कर करेगी. बता दें कि पटेल कमीशन की समयावधि छः माह थी लेकिन सरकार ने उसकी रिपोर्ट कभी सार्वजनिक नही किया.

खाद्य विभाग के सचिव कमलप्रीत सिंह द्वारा कैबिनेट को दी गई जानकारी के अनुसार प्रदेश में अभी 66,73, 133 राशनकार्ड धारक है, जिनकी कुल सदस्य संख्या 2,47,70,566 है. सरकारी आंकड़ों के अनुसार इनमें से 31,52,325 कार्ड धारक ओबीसी हैं जिनकी सदस्य संख्या 1,18,26,787 है.

यह कुल लाभान्वित जनसंख्या का 47.75 प्रतिशत है. वहीं सामान्य वर्ग के राशनकार्डों की संख्या 5.89 लाख और सदस्य संख्या 20,25,42 बताया है जो राज्य में कुल लाभान्वित जनसंख्या का 8.18 प्रतिशत है. इस मामले में दिप्रिंट द्वारा संपर्क करने पर खाद्य सचिव कमलप्रीत सिंह, मुख्य सचिव आरपी मंडल और मुख्यमंत्री कार्यालय में सचिव सिद्धार्थ कोमल सिंह ने कोई जवाब नही दिया. जवाब आने पर खबर को अपडेट किया है.

घोटाले में घिरी है राशन कार्ड संख्या 

राशन कार्ड के आधार पर आरक्षण पर  छत्तीसगढ़ हाइकोर्ट के वरिष्ट अधिवक्ता मुकेश शर्मा दिप्रिंट से कहते हैं, ‘राशनकार्ड की संख्या को आधार मानकर जनसंख्या सर्वे कराना कई प्रश्नों को जन्म देता है. पहले तो राशनकार्डों की संख्या ही प्रदेश में एक घोटाला साबित हुई है.’

उन्होंने इस ओर भी ध्यान दिलाया कि राशनकार्ड में किसी की ‘जाति’ नहीं लिखी जाती. वह आगे कहते हैं, ‘क्या आपदा मैनेजमेंट के इस दौर में सरकार का यह निर्णय उचित होगा. इस सर्वे में सरकारी मैन पावर का इस्तेमाल कहां तक उचित होगा. यह तय है कि सरकार के इस निर्णय को भी न्यायालय में चुनौती दी जाएगी.’

हाइकोर्ट में PIL विशेषज्ञ के रूप में पहचान बना चुके अधिवक्ता देवर्षि ठाकुर कहते हैं, ‘अक्टूबर 2019 में सरकार के इसी निर्णय पर हाइकोर्ट ने स्टे लगा दिया था क्योंकि उसका आधार NSSO, RBI और केंद्र सरकार के BPL सर्वे रिपोर्ट्स को रखा गया था. अब राशनकार्ड के माध्यम से जनसंख्या निर्धारण की कवायद की जा रही है. इसे दोबारा चैलेंज किया जाना तय है.’

वह आगे कहते हैं कि यह न्यायालय पर निर्भर है कि वह सरकार के तर्क को कैसे लेता है लेकिन विश्वसनीयता के लिए सरकार द्वारा पहले बताए गए जनसंख्या के मापदंडों और राशनकार्ड का माध्यम एक जैसे ही हैं.


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भाजपा के सवाल

प्रदेश में विपक्ष का कहना है सरकार का ओबीसी आरक्षण का निर्णय राजनीति से प्रेरित है. भाजपा नेताओं ने दिप्रिंट से बात करते हुए आरोप लगाया है कि सरकार अपनी असफलताओं से जनता का ध्यान हटाने के लिए ‘नए प्रपंच’ गढ़ रही है.

सदन में नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक ने बताया, ‘आरक्षण के मुद्दे पर सरकार जरा भी गंभीर नही है. सीएम पिछले एक साल से चुप बैठे थे और अब अचानक एलान किया गया ओबीसी आरक्षण का निर्धारण फिर से किया जाएगा. यदि यह सच है तो पहले वाले अध्यादेश को क्यों रद्द होने दिया गया.’

कौशिक आगे कहते हैं, ‘सरकार ने समय रहते अपना पक्ष क्यों नही रखा. प्रदेश में कोरोना संक्रमण के प्रबंधन में पूरी तरह असफल होने के बाद अब मुख्यमंत्री जनता को नए शगूफे से गुमराह कर है.’

भाजपा के पूर्व विधायक और पार्टी के कद्दावर नेता देवजीभाई पटेल कहते हैं, ‘सरकार को भी पता है कि उसके इस कदम का हस्र क्या होने वाला है. सरकार के पास आनेवाले मरवाही विधानसभा उपचुनाव में उपलब्धि गिनाने के लिए कुछ नही है. इसिलिये सीएम ओबीसी राजनीति का सहारा ले रहे हैं.

वह आगे कहते हैं, ‘राशनकार्ड से जाति आधारित जनसंख्या का निर्धारण अर्थहीन होगा. यदि न्यायालय में चुनौती दी गई तो इसका भी हाल पिछले वर्ष जैसा ही होगा.’


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