बेंगलुरु/नई दिल्ली: कर्नाटक के खासे प्रभावशाली लिंगायत समुदाय के कद्दावर नेता और पूर्व मुख्यमंत्री बी.एस. येदियुरप्पा को राज्य में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की पकड़ मजबूत करने का प्रमुख आधार माना जाता है और अब वही पार्टी के लिए सबसे बड़ी दुविधा बनकर उभर रहे हैं.
राज्य के 17 प्रतिशत लिंगायत वोटबैंक के मद्देनजर उन्हें बेहद अहम नेता माना जाता रहा है और मौजूदा समय में भाजपा की कर्नाटक इकाई की कुछ समस्याएं भी उन्हीं के इर्द-गिर्द केंद्रित हैं.
येदियुरप्पा के बेटे और पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष बी.वाई विजयेंद्र को लेकर असहमतियों के सुर की वजह से राज्य इकाई में अराजकता और कलह की स्थिति साफ नज़र आ रही है.
गौरतलब है कि विजयेंद्र को अपने उत्तराधिकारी के रूप में प्रोजेक्ट करने की येदियुरप्पा की कोशिशें—और इस पर राज्य में कुछ नेताओं में उपजी नाराजगी—ही जुलाई 2021 में उन्हें मुख्यमंत्री पद से हटाए जाने की एक प्रमुख वजह मानी जाती हैं.
हालांकि, विजयेंद्र एक लोकप्रिय नेता बन चुके हैं और खासकर युवाओं के बीच उनका प्रभाव बढ़ा है लेकिन स्थानीय भाजपा नेताओं के एक वर्ग को वह अभी भी अखर रहे हैं, जिनका कहना है कि उन्होंने अपने पिता के सीएम रहने के दौरान एक समानांतर सरकार चलाई थी.
पिछले साल, येदियुरप्पा ने घोषणा की थी कि वे विजयेंद्र के लिए अपने निर्वाचन क्षेत्र शिकारीपुरा को छोड़ रहे हैं.
इस बात के अलावा पार्टी के एक खेमे में इस बात को लेकर भी येदियुरप्पा के प्रति नाराज़गी रही है कि पूर्व सीएम कांग्रेस और जनता दल (एस) के बागियों के प्रति अधिक उदार रवैया अपनाए रहे हैं, जिन्होंने 2019 में उनकी सत्ता में वापसी सुनिश्चित की थी.
कर्नाटक भाजपा के उपाध्यक्ष निर्मल कुमार ने दिप्रिंट से बातचीत में कहा,‘‘इसमें कोई संदेह नहीं कि येदियुरप्पा पार्टी के सबसे सम्मानित नेता हैं, जिनका जनता पर व्यापक प्रभाव है, जैसा कि पीएम के भाषणों से भी झलकता है.’’
उन्होंने कहा, ‘‘पार्टी येदियुरप्पा और मुख्यमंत्री के मार्गदर्शन में चुनाव जीतने के लिए लड़ रही है.’’
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टिकट के लिए मारामारी
इस सप्ताह की शुरुआत में येदियुरप्पा चिकमंगलूर जिले में एक निर्धारित रैली से अचानक चले गए, जब भाजपा कार्यकर्ताओं के एक वर्ग ने मांग की कि मौजूदा विधायक एम.पी. कुमारस्वामी को आने वाले चुनाव में टिकट न दिया जाए.
दूसरी तरफ, इस मामले पर भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव सी.टी. रवि ने पार्टी के प्रदर्शनकारियों को खरी-खोटी सुनाई. रवि ने कहा, ‘‘क्या पार्टी का कोई सम्मान नहीं रह गया है? (आप) पार्टी का अपमान करने की कोशिश कर रहे हैं.’’
वहीं, सप्ताह के भीतर ही रवि सीधे तौर पर येदियुरप्पा पर निशाना साधते नज़र आए, हालांकि, उन्होंने इस बात से इनकार किया है.
महाराष्ट्र और तमिलनाडु की जिम्मेदारी संभालने वाले रवि ने मंगलवार को कहा, ‘‘चुनावी दौड़ से बाहर होने के बाद येदियुरप्पा ने जो शिकारीपुरा सीट खाली की है, उसके लिए विजयेंद्र खुद-ब-खुद पसंदीदा विकल्प नहीं बन गए हैं.’’
उन्होंने कहा, ‘‘उम्मीदवार पर फैसला कोई अपने स्तर पर नहीं कर सकता.किसी को टिकट सिर्फ इसलिए नहीं मिलेगा क्योंकि वह किसी का खास इंसान का बेटा है.’’
उन्होंने कहा कि फैसला किसी उम्मीदवार के जीतने की क्षमता के आधार पर किया जाएगा.
हालांकि, रवि ने बाद में स्पष्ट किया कि उनके विचार विशेष तौर पर विजयेंद्र पर केंद्रित नहीं थे और येदियुरप्पा ने भी अपनी तरह से यह कहते हुए मामले को ज्यादा तवज्जो नहीं दी कि ‘‘रवि सही हैं, चाहे विजयेंद्र हों या कोई अन्य विधायक, यह फैसला तो बोर्ड को ही करना है कि टिकट किसे दिया जाएगा.’’
हालांकि, कोप्पल जिले का दौरा कर रहे विजयेंद्र अगले दिन इस मामले पर बरस पड़े. उन्होंने कहा, ‘‘जब दुश्मन बढ़ते हैं, तो साफ हो जाता है कि हम प्रगति कर रहे हैं. सी.टी. रवि एक वरिष्ठ नेता हैं और जानते हैं कि बी.एस. येदियुरप्पा उनसे अधिक वरिष्ठ हैं और उन्होंने कर्नाटक में पार्टी को खड़ा करने में मदद की है…हर कोई जानता है कि फैसला कहां किया जाएगा.’’
उन्होंने बुधवार को कहा, ‘‘चुनाव को लेकर मैंने अपनी नींद नहीं गंवा रखी है. पार्टी ने मुझे काम दिया है और मैं पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के फैसले का पालन करूंगा.’’
फिर कांग्रेस-जद (एस) के बागी भी हैं, जिन्हें 2019 के उपचुनावों में भाजपा की तरफ से टिकट दिया गया था और अधिकांश को येदियुरप्पा के कहने पर पार्टी नेताओं की कीमत पर राज्य सरकार में समायोजित किया गया.
अब, पूर्व मंत्री और 2019 में सत्ता में वापसी के लिए भाजपा में शामिल होने वाले बागी विधायकों में से एक रमेश जरकीहोली ने कहा है कि वह भाजपा की तरफ से तभी चुनाव लड़ेंगे जब पार्टी उनके दोस्त और कांग्रेस के एक पूर्व बागी महेश कुमथल्ली को टिकट देगी.
बेलगावी जिले, जिसमें 18 विधानसभा सीटें आती हैं, में सभी मामलों में जरकीहोली के कथित हस्तक्षेप को लेकर चिंता जताने के लिए कम से कम 6 भाजपा विधायकों ने पिछले रविवार को केंद्रीय मंत्री और कर्नाटक प्रभारी धर्मेंद्र प्रधान से मुलाकात की है.
दूसरी तरफ, रवि-विजयेंद्र प्रकरण के बारे में पूछने पर, राज्य भाजपा प्रवक्ता गणेश कार्णिक ने कहा कि रवि स्पष्ट कर चुके हैं कि उनका बयान येदियुरप्पा पर केंद्रित नहीं था. उन्होंने कहा, ‘‘पार्टी में हर कोई जानता है कि टिकट कैसे बांटे जाते हैं…यह एक अच्छी तरह परिभाषित ढांचा है.’’
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राज्य इकाई की मुश्किल आखिर है क्या
पिछले महीने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के राज्य के दौरे पर आने के दौरान यह बात स्पष्ट तौर पर नज़र आई कि केंद्रीय नेतृत्व येदियुरप्पा को कितनी अहमियत दे रहा है.
हालांकि, इस महीने के शुरू में मौजूदा मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई, जो खुद भी लिंगायत समुदाय से आते हैं, को अभियान समिति के प्रमुख के तौर पर नियुक्त किया गया था, जबकि येदियुरप्पा को इस पद का दावेदार माना जा रहा था, लेकिन येदियुरप्पा को पैनल का केवल सदस्य बनाया गया.
दिप्रिंट से बातचीत में भाजपा नेताओं ने कहा कि इस निर्णय का उद्देश्य येदियुरप्पा और बोम्मई के बीच संतुलन साधने का प्रयास था. उन्होंने कहा, ऐसा यह सुनिश्चित करने के लिए किया गया कि कोई यह न सोचे कि भाजपा ने अपने मुख्यमंत्री को ही किनारे कर दिया है.
बहरहाल, जुलाई 2021 में येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री की कुर्सी से हटाना एक ऐसा कदम था, जिसने अब तक भाजपा को परेशान कर रखा है.
कांग्रेस मौके को भुनाने की कोशिश करते हुए लिंगायत समुदाय के बीच अपनी आउटरीच बढ़ाने में जुटी है और इस मुद्दे को प्रमुखता से उभार रही है कि कैसे राज्य में समुदाय के सबसे बड़े नेता के प्रति भाजपा में कोई सम्मान नहीं रह गया है.
भाजपा के एक केंद्रीय पदाधिकारी ने दिप्रिंट से कहा, ‘‘भ्रम की स्थिति और विजयेंद्र के बढ़ते प्रभाव को लेकर चिंता’’ कुछ ऐसे मुद्दे हैं जो भाजपा की परेशानी का सबब बने हुए हैं.
उन्होंने कहा कि राजनेता चुनाव के समय तक अपने मतभेदों को सुलझा लेंगे. ‘‘जब पीएम, गृह मंत्री मतदाताओं से मोदी-येदियुरप्पा के नेतृत्व में भरोसा रखने की अपील कर रहे हैं, तो जाहिर है कि शीर्ष नेतृत्व जानता है कि येदियुरप्पा को साथ बनाए रखना कितना महत्वपूर्ण है.’’
उन्होंने कहा कि लिंगायत एक मुखर समुदाय है.
माना जाता है कि 2013 में भाजपा के चुनावों में कमजोर साबित होने का एक बड़ा कारण लिंगायतों का समर्थन न मिलना था, जब कुछ समय के लिए बगावत करके येदियुरप्पा ने दूसरी पार्टी बना ली थी.
नेता ने आगे कहा कि लिंगायतों के वर्चस्व को देखते हुए ऐसे समय पर येदियुरप्पा पर कोई भी हमला प्रतिकूल साबित हो सकता है जब कांग्रेस लिंगायत वोटबैंक को अपने पाले में लाने की हरसंभव कोशिश कर रही है. उन्होंने कहा, ‘‘अगर लिंगायत सत्ता में अपनी भागीदारी की उम्मीद खो देंगे तो उत्साह के साथ मतदान नहीं करेंगे.’’
अभियान समिति के प्रमुख के रूप में बोम्मई की नियुक्ति पर एक अन्य केंद्रीय पार्टी पदाधिकारी का तर्क है, ‘‘उन्हें अभियान समिति प्रमुख नहीं बनाने से सीधे तौर पर यही संदेश जाता कि पार्टी ने अपने मुख्यमंत्री को दरकिनार कर दिया है.’’
उन्होंने कहा, ‘‘जब आप जंग के बीच होते हैं, तो अपने सेनापति को नहीं बदल सकते…कैडर मनोबल खो देगा और लड़ाई हार जाएगा. मनोबल को ऊंचा बनाए रखने के लिए यह ज़रूरी था.’’
(अनुवाद: रावी द्विवेदी | संपादन : फाल्गुनी शर्मा)
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