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Thursday, 21 November, 2024
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चंद्रबाबू नायडू का तिरुपति का नाटक काम नहीं करेगा, आंध्र प्रदेश गुजरात नहीं है

सौभाग्य से वाईएसआर कांग्रेस पार्टी के लिए और आंध्र प्रदेश में विपक्ष के लिए जगन मोहन रेड्डी, भले ही राजनीतिक विरासत की उपज हों, लेकिन राहुल गांधी नहीं हैं.

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कोई भी राजनेता संत नहीं होता. और चंद्रबाबू नायडू ने अपने दशकों लंबे राजनीतिक करियर में अपने हिस्से के पाप किए हैं. लेकिन तिरुमाला-तिरुपति मंदिर के प्रसादम से जुड़ा जो नाटक वह कर रहे हैं, वह शायद उनके सार्वजनिक जीवन का सबसे घिनौना काम है. अधर्म और ईंशनिंदा के आरोपों से भरा, सबूतों से रहित और सांप्रदायिक उन्माद को भड़काने के लिए बनाया गया यह पीछे ले जाने वाले धर्मतंत्र का एक बेहतरीन उदाहरण है. जो लोग नायडू को जानते हैं, और जो मानते थे कि कुछ ऐसी लक्ष्मण रेखाएँ हैं जिन्हें वे कभी पार नहीं करेंगे, वे भी उनके प्रायद्वीपीय भारत के सांप्रदायिकता फैलाने की सर्वाधिक संभावना वाले व्यक्ति के रूप में तेजी से परिवर्तित होने से चकित हैं.

आरोप खुद ही अपने विरोधाभासों के बोझ तले दब रहे हैं. जैसा कि दिप्रिंट के प्रसाद निचेनमेटला ने 21 सितंबर को रिपोर्ट किया था, कथित मिलावटी घी 6 से 12 जुलाई के बीच मंदिर में पहुंचा, नायडू के मुख्यमंत्री कार्यालय में बैठने के काफी समय बाद. मंदिर का प्रबंधन करने वाले शक्तिशाली ट्रस्ट के प्रमुख और नायडू द्वारा नियुक्त श्यामला राव ने स्पष्ट रूप से कहा है कि जिस घी के दूषित होने का संदेह है, उसका इस्तेमाल तिरुपति के प्रसिद्ध लड्डू बनाने में कभी नहीं किया गया था.

बल्कि, जो हुआ, वह यह है: संदिग्ध घी के कंटेनरों को आपूर्तिकर्ता को वापस कर दिया गया क्योंकि उनका स्वाद अपेक्षित नहीं था, और इस स्टॉक के नमूनों को जांच के लिए स्पेशल प्रयोगशालाओं में भेज दिया गया. बाद में आई रिपोर्ट इस दावे का आधार प्रतीत होती है, जैसा कि नायडू के बेटे ने कहा, कि “जगन प्रशासन ने तिरुपति प्रसादम में घी के बजाय पशु की चर्बी का उपयोग किया. जगन और वाईएसआरसीपी सरकार पर शर्म आती है जो करोड़ों भक्तों की धार्मिक भावनाओं का सम्मान नहीं कर सके.”

घटनाओं के क्रम और पास में मौजूद साक्ष्यों की कम संख्या को देखते हुए, केवल एक असाधारण रूप से मूर्ख व्यक्ति ही इस स्पष्ट रूप से किसी खास मकसद से कही जा रही इन बातों के झांसे में आ सकता है.

स्वाभाविक रूप से, राहुल गांधी इसके झांसे में आ गए और तथ्यों की पुष्टि करने की ज़हमत उठाए बिना ही तिरुपति में प्रसादम की “अपवित्रता” की निंदा करने लगे – भले ही, जैसा कि राव ने पुष्टि की, ऐसा कुछ भी नहीं हुआ था. हमारे विपक्ष के नेता राहुल गांधी इतने अनोखे रूप से अक्षम हैं कि देश के धार्मिक अल्पसंख्यकों के पक्ष में बोलने के लिए, जो उन्हें खत्म करना चाहते हैं उन खालिस्तान समर्थक आतंकवादियों का समर्थन करने लगते हैं, और वह धार्मिक बहुसंख्यकों का समर्थन करने के लिए, देश के सबसे लोकप्रिय राजनेताओं में से एक के खिलाफ कट्टरतापूर्ण कैंपेन का समर्थन करने लगते हैं क्योंकि वह एक ईसाई धर्म का पालन करते हैं. यह हमारी त्रासदी है.

जगन कोई राहुल नहीं हैं

सौभाग्य से वाईएसआर कांग्रेस पार्टी के लिए और आंध्र प्रदेश में विपक्ष के लिए- जगन मोहन रेड्डी, भले ही राजनीति विरासत से उपजे हों, लेकिन राहुल गांधी नहीं हैं. अपने परिवार की राजनीतिक विरासत के राख में मिलने से उठकर सत्ता में आने की उनकी कहानी शेक्सपियर और मारियो पूजो का मिश्रण है. गणतंत्र भारत के इतिहास में शायद ही किसी के अचानक दुनिया से चले जाने का दुष्परिणाम इतना ज्यादा रहा हो जितना कि वाईएस राजशेखर रेड्डी का जाना रहा है.

अगर वे उस अजीब-ओ-गरीब हवाई त्रासदी से बच जाते, जिसमें उनकी मौत हो गई, तो कांग्रेस पार्टी के सबसे भरोसेमंद गढ़ आंध्र प्रदेश का लगभग निश्चित रूप से विभाजन नहीं होता. राज्य को विभाजित करने का निर्णय एक निरंकुशतापूर्ण ढंग से पूरा किया गया, और जो कि नरेंद्र मोदी और अमित शाह का बचकाना फैसला लगता है, और जिसने तेलुगु राज्य में पार्टी के वोट को खत्म कर दिया, ठीक उसी तरह जैसे मोदी राष्ट्रीय राजनीति में चले गए.

जगन को पिंग-पोंग बॉल की तरह पीटा गया क्योंकि उन्होंने वही मांग की जो गांधी परिवार ने की थी और वह था वंशानुगत उत्तराधिकार, जबकि कांग्रेस काफी हद तक उनके दिवंगत पिता की बदौलत सत्ता में थी. उन्हें अलग-थलग किया गया, प्रताड़ित किया गया और कानून का सहारा लेकर परेशान करने की कोशिश की गई. उनके खिलाफ देश की कुछ सबसे खूंखार राजनीतिक हस्तियां खड़ी थीं: दिल्ली में गांधी परिवार, हैदराबाद में उनके गुर्गे और आंध्र में नायडू.

जगन को जेल भेज दिया गया और उनके दिवंगत पिता की की वजह से लाभ उठाने वाले लोगों द्वारा उन्हें सताया गया. उनके पास उम्मीद की कोई वजह नहीं थी. उन्होंने कोई शिकायत नहीं की. वे मन से कमज़ोर नहीं पड़े. उन्होंने संघर्ष किया. उन्होंने एक राजनीतिक पार्टी बनाई और हाल के दिनों में राज्य भर में सबसे कठिन कहे जाने वाले मार्च में से एक का आयोजन किया. इसके लॉन्च होने के आठ साल बाद, 2019 तक वाईएसआरसीपी सत्ता में थी जो कि किसी भी मानक से एक असाधारण उपलब्धि है.

सत्ता ने जगन के निर्णय को विकृत कर दिया

दूसरी उल्लेखनीय बात यह है कि, उनके पूरे राजनीतिक जीवन में, रेड्डी परिवार की आस्था या धर्म किसी के लिए मुद्दा नहीं बनी. किसी ने भी राजशेखर रेड्डी को नेता के रूप में स्वीकार करने से इसलिए इनकार नहीं किया क्योंकि वह ईसाई थे. वह सभी धर्मों के लोगों के साथ घुलमिल गए थे. और विदेश से लौटने पर, राजशेखर रेड्डी तिरुपति जाना सुनिश्चित करते थे. मैं यह बात उन धार्मिक रूप से पीड़ित महसूस कर रहे हिंदुओं के दर्द पर मरहम लगाने के लिए नहीं कह रहा हूं जो अब रेड्डी परिवार को गुप्त धर्म प्रचारक बताकर उनकी निंदा कर रहे हैं. मैं इसका उल्लेख इसलिए कर रहा हूँ क्योंकि राजशेखर रेड्डी का रवैया और आस्था या धर्म के प्रति दृष्टिकोण, दूसरे धर्म की स्वीकृति से निर्मित, पूरी तरह से भारतीय था.

यह उन सर्वोच्च गुणों में से एक है – अनगिनत बुराइयों के साथ – जो जगन को अपने पिता से विरासत में मिले हैं. अफसोस कि सत्ता ने उनके निर्णय को विकृत कर दिया. जगन ने नायडू को अनावश्यक रूप से क्रूर तरीकों से परेशान किया. ऐसी बातें कही गईं जिन्हें वापस नहीं लिया जा सकता. नायडू आंसुओं में डूब गए. लेकिन कोई भी अपमान जगन को संतुष्ट नहीं कर सका. उन्होंने आखिरकार नायडू को जेल भेज दिया.

इस साल की शुरुआत में सत्ता में वापस आने पर, नायडू के सामने एक विकल्प था. वह या तो प्रतिशोध और दुश्मनी के इस परस्पर विनाशकारी चक्र को जारी रख सकते थे – या इसे समाप्त कर सकते थे. 2014 से 2019 तक, विभाजित आंध्र के पहले मुख्यमंत्री के रूप में अपने पहले कार्यकाल के दौरान, नायडू के सबसे करीबी और बुद्धिमान सलाहकारों में से एक ने अपने पैरों पर खड़े होने की कोशिश कर रहे जगन को एक सीधी बातचीत के लिए आमंत्रित करने का और यह कहने का आग्रह किया था कि ‘देखो, तुम्हारे पिता और मैं राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी होने से पहले दोस्त थे. तुम और मैं राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी हैं – हम दुश्मन नहीं हैं. आप मेरे अपने बेटे जैसे हैं और मैं चाहता हूं कि राज्य की भलाई के लिए हम जहां भी संभव हो सहयोग करें.’

नायडू ने सलाह को अस्वीकार कर दिया. जगन की लोकप्रियता बढ़ने के बावजूद उन्हें लगा कि जगन कोई मायने नहीं रखते. लेकिन बहुत जल्द ही जगन ने नायडू को पद से हटा दिया. अब जगन के शासनकाल में जो कुछ भी उन्होंने सहा, उससे आगे बढ़ने के लिए नायडू और खासकर उनके बेटे को अतिमानवीय संयम की आवश्यकता होगी. लेकिन राजनेता होने की यही कीमत है.

जगन को हिंदू धर्म के दुश्मन के रूप में बदनाम करने का यह प्रयास न केवल घृणा के योग्य है. यह अश्लील, विचित्र और खतरनाक रूप से लापरवाही भरा भी है. हर दिन, लगभग हर घंटे, चीजें गहराती जा रही हैं. नायडू, जो एक अग्रणी और योद्धा के रूप में याद किया जाना चाहते हैं, अब कैमरों के सामने कह रहे हैं कि मंदिर के ट्रस्ट के बोर्ड में किसी की पत्नी को बाइबिल की एक प्रति के साथ देखा गया था.

नायडू धर्म को ऐसी राजनीतिक संस्कृति में शामिल करके एक भयावह गलती कर रहे हैं, जहां इसके लिए बहुत कम जगह है. नाराज़गी की आवाज़ें दूर से आ रही हैं: आंध्र के ज़्यादातर लोग इस तमाशे को देख सकते हैं कि यह क्या है. और जो नहीं देख पा रहे हैं, उन्हें पवन कल्याण द्वारा अपने पक्ष में किया जा रहा है, जो भविष्य में नायडू को चुनौती देने वाले हैं.

किसी भी स्थिति में, रेड्डी के पास एक मज़बूत राजनीतिक आधार है. आंध्र गुजरात नहीं है, और वहां सत्ता लंबे समय तक एक ही पार्टी या नेता के पास नहीं रहेगी. सांप्रदायिकता का ज़हर, चाहे उसका तत्काल प्रतिफल कुछ भी हो, न केवल उस प्रगति को विफल करेगा जिसे नायडू अपने राज्य को देना चाहते हैं. बल्कि, यह उन्हें परेशान भी करेगा और उनकी विरासत को कलंकित भी करेगा.

(कपिल कोमिरेड्डी, जो मेलवोलेंट रिपब्लिक: ए शॉर्ट हिस्ट्री ऑफ़ द न्यू इंडिया के लेखक हैं, वर्तमान में डॉ. मार्टिन लूथर किंग जूनियर पर एक किताब पर काम कर रहे हैं. उन्हें एक्स और टेलीग्राम पर फॉलो करें. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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