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Thursday, 25 April, 2024
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कावेरी जल विवाद: कर्नाटक सरकार ने SC का दरवाजा खटखटाया, मेकेदातु परियोजना को लेकर केंद्र से बातचीत

इस मानसून में कम बारिश के बाद कर्नाटक और तमिलनाडु कावेरी जल बंटवारे को लेकर कानूनी लड़ाई में फंस गए हैं, क्योंकि दोनों राज्यों के किसान अपने हिस्से के पानी की मांग कर रहे हैं.

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बेंगलुरु: दिप्रिंट को जानकारी मिली है कि कर्नाटक सरकार सूखे के दौरान तमिलनाडु के साथ कावेरी नदी के पानी के बंटवारे के लिए एक फार्मूले का प्रस्ताव अदालत में पेश कर सकती है, क्योंकि कम बारिश होने के कारण पड़ोसी राज्य के साथ तनाव बढ़ने का खतरा है.

कावेरी नदी कर्नाटक से निकलती है और बंगाल की खाड़ी में प्रवेश करने से पहले तमिलनाडु और पुडुचेरी से होकर बहती है.

कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच कावेरी नदी के जल को लेकर खींचतान जारी है, क्योंकि इस मानसून में कम बारिश के कारण बेसिन के अधिकांश जलाशयों में पानी का प्रवाह कम हो गया है और आने वाले महीनों में पीने और सिंचाई के लिए पानी की भारी कमी की आशंका जताई जा रही है.

तमिलनाडु द्वारा इस महीने की शुरुआत में कावेरी नदी के पानी का उचित हिस्सा नहीं मिलने के कारण सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया गया था. यह मामला फिलहाल सुप्रीम कोर्ट में है.

कर्नाटक में कांग्रेस के नेतृत्व वाली सिद्धारमैया सरकार के एक अधिकारी ने दिप्रिंट से कहा, “हम तर्क देंगे कि तमिलनाडु का आवेदन विचार करने योग्य नहीं है और यह भी कहेंगे कि पानी छोड़ते समय बारिश में कमी के लिए कोई फार्मूला नहीं बनाया गया है.”

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बुधवार को बेंगलुरु में एक सर्वदलीय बैठक के बाद पत्रकारों से बात करते हुए मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने यह भी कहा कि राज्य सरकार और विपक्षी दलों ने सर्वसम्मति से एक संकट फार्मूले का ड्राफ्ट तैयार करने की बात कही है.

उन्होंने कहा, “आज तक, कोई संकट फार्मूला तैयार नहीं किया गया है. न तो न्यायाधिकरण (कावेरी जल विवाद न्यायाधिकरण) में, न ही उच्चतम न्यायालय में.”

अदालत में संकट फार्मूले पर बहस करने के अलावा, कर्नाटक सरकार लंबे समय से लंबित मेकेदातु संतुलन जलाशय-सह-पेयजल परियोजना के लिए केंद्र के समक्ष एक मामला बनाने की योजना बना रही है, जिसके बारे में उसका मानना ​​है कि यह संकट के दौरान पानी का एक अच्छा स्रोत हो सकता है.

सिद्धारमैया ने मीडिया को बताया कि वह केंद्र से परियोजना के लिए मंजूरी प्राप्त करने के लिए बाद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पास एक सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल भेजेंगे जिसका नेतृत्व वह खुद करेंगे.

तमिलनाडु ने यह कहते इसपर आपत्ति जताई कि केंद्र सरकार ने अभी तक इस परियोजना के लिए पर्यावरणीय मंजूरी नहीं दी है, इससे कावेरी जल के उसके हिस्से पर असर पड़ेगा.

दिप्रिंट से बात करते हुए, कर्नाटक के एक कैबिनेट मंत्री ने कहा कि सरकार ने राज्य में सूखाक्षेत्र के मूल्यांकन की प्रक्रिया शुरू कर दी है.

घटनाक्रम की जानकारी रखने वाले राज्य सरकार के एक दूसरे सूत्र ने कहा कि “177 तालुकाओं या प्रशासनिक इकाइयों में से कम से कम 120-130 को सूखाग्रस्त घोषित किए जाने की संभावना है”.

राज्य सरकार के सूत्रों ने यह भी बताया कि कर्नाटक की पिछली बीजेपी नेतृत्व वाली सरकारें-सीएम बी.एस. येदियुरप्पा और फिर बसवराज बोम्मई- ने संकट सूत्र रणनीति को आगे बढ़ाने के लिए कुछ नहीं किया.

दिप्रिंट ने तमिलनाडु के जल संसाधन मंत्री दुरई मुरुगन से फोन पर टिप्पणी के लिए संपर्क किया, लेकिन उनकी ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली. उनकी ओर से प्रतिक्रिया मिलने पर रिपोर्ट को अपडेट कर दिया जाएगा.

कावेरी विवाद एक सदी से भी अधिक पुराना विवाद है. जो दोनों के बीच समय समय पर विवाद का एक बड़ा विषय बनता रहा है. यह बेहद भावनात्मक मुद्दा है लेकिन इसका इस्तेमाल हमेशा से बड़े पैमाने पर राजनीतिक उद्देश्यों के लिए किया गया है.


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‘सही’ हिस्से की मांग

फरवरी 2018 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने कर्नाटक से तमिलनाडु को पानी के आवंटन को कम कर दिया, जिसे उस समय “सामान्य वर्षों” के लिए प्रत्येक राज्य को पानी आवंटित करके लंबे समय से चले आ रहे विवाद की शुरुआत के रूप में देखा गया था.

एक “सामान्य वर्ष” वह होता है जिस साल पर्याप्त वर्षा होती है. इस दौरान ऊपरी तटवर्ती राज्य कर्नाटक को तमिलनाडु के लिए 177.25 हजार मिलियन क्यूबिक फीट (टीएमसीएफटी) पानी छोड़ना होता है.

हालांकि, इस मानसून में अगस्त में बारिश की कमी के कारण, दोनों राज्यों के किसान कावेरी नदी के पानी के अपने हिस्से की मांग कर रहे हैं. किसानों का कहना है कि पानी की कमी के चलते इसका असर खड़ी फसलों पर पड़ेगा.

कर्नाटक की ओर के किसानों ने मांड्या जैसे जिलों में कई विरोध प्रदर्शन किए हैं. तमिलनाडु के एम.के. स्टालिन लगातार कर्नाटक पर पानी छोड़ने के लिए दबाव बनाए हुए हैं.

10 अगस्त को, कावेरी जल विनियमन समिति (सीडब्ल्यूआरसी) ने कर्नाटक को अगले 15 दिनों के लिए हर दिन (11 अगस्त को सुबह 8 बजे से) तमिलनाडु को 15,000 क्यूसेक पानी छोड़ने का निर्देश दिया.

हालांकि, कर्नाटक ने कावेरी जल प्रबंधन प्राधिकरण (सीडब्ल्यूएमए) के समक्ष तर्क दिया कि वह घाटे का सामना कर रहा है, जिसके बाद प्राधिकरण ने राज्य को 15,000 क्यूसेक के बजाय 10,000 क्यूसेक पानी छोड़ने का निर्देश दिया.

सीडब्ल्यूआरसी और सीडब्ल्यूएमए में कर्नाटक, तमिलनाडु और केंद्र के प्रतिनिधि शामिल हैं और जल विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के आदेशों को लागू करने के लिए 2018 में गठित किए गए थे.

सीडब्ल्यूएम के आदेश को चुनौती देते हुए, तमिलनाडु ने सुप्रीम कोर्ट में एक आवेदन दायर किया, जिस पर शुक्रवार को सुनवाई होनी है.

दिप्रिंट से बात करते हुए, ऊपर उद्धृत कर्नाटक के कैबिनेट मंत्री ने कहा, “पांच साल तक, किसी भी सरकार ने संकट का फॉर्मूला बनाने का पालन नहीं किया. जब हमारे पास खुद पानी नहीं है तो हम तमिलनाडु को पानी कैसे दे सकते हैं.”

मंत्री ने आगे कहा, “यह एक निर्धारित (संकट) फॉर्मूला नहीं हो सकता, क्योंकि हर साल बारिश की कमी अलग-अलग हो सकती है. इसलिए, इसकी गणना जमीनी हकीकत के आधार पर की जानी चाहिए और पानी की मात्रा को उसके अनुसार समायोजित किया जाना चाहिए.”

(संपादन: ऋषभ राज)

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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