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Tuesday, 16 April, 2024
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जातिगत मुद्दे, करप्शन – कर्नाटक में कैसे बोम्मई पर दांव लगाना BJP के लिए उल्टा पड़ सकता है

कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई को मतदाताओं की उम्मीदों पर खरा उतरने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है. बेंगलुरू के चरमराते बुनियादी ढांचे और उनकी सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों ने उनके संकट को और बढ़ा दिया है.

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बेंगलुरु: दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक से इतर कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आमने-सामने की मुलाकात राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बनी हुई है. पिछले सप्ताह उनकी 15 मिनट की इस बातचीत को लेकर अटकलों का बाजार गर्म बना हुआ है.

भाजपा आलाकमान काफी समय से लिंगायत नेता येदियुरप्पा के मान-मनौव्वल में जुटा है जिसने अपने पार्टी सहयोगी और एक अन्य लिंगायत साथी बसवराज बोम्मई के लिए जुलाई 2021 में मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ दी थी. अगर यह प्रयोग काम कर गया होता, तो भाजपा येदियुरप्पा को फिर से मनाकर स्थिति को बेहतर बनाने की कोशिश नहीं कर रही होती.

शनिवार को बोम्मई और अन्य वरिष्ठ भाजपा नेताओं ने इस साल विधानसभा चुनाव वाले राज्य कर्नाटक में दो लिंगायत मठों – ज्ञान योगाश्रम और सिद्धगंगा – से राज्यव्यापी ‘विजय संकल्प यात्रा’ की शुरुआत की.

यात्रा की शुरुआत के मौके पर भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव (संगठन) बी.एल. संतोष ने कहा कि किसी भी राजनीतिक दल में कोई भी ‘नंबर एक’ नहीं होता है. उन्हें येदियुरप्पा के विरोधी के रूप में देखा जाता है.

दूसरी ओर, बोम्मई ने कहा कि भाजपा ‘सामूहिक नेतृत्व’ के तहत कर्नाटक का चुनाव लड़ेगी.

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उन्होंने कहा, ‘आने वाले दिनों में हमारी पार्टी के वरिष्ठ नेता हमें कई और कार्यक्रम देंगे.’ यह राज्य की योजनाओं की कमी को दूर करने और दक्षिण भारत में एकमात्र भाजपा शासित राज्य में सत्ता बनाए रखने के लिए केंद्र सरकार पर उनकी निरंतर निर्भरता का संकेत है.

कर्नाटक में औसत मतदाता के लिए बोम्मई ने कोई प्रभावशाली योजना शुरू की हो, ऐसा दूर-दूर तक नजर नहीं आता है. अपने कार्यकाल के दौरान उनका अधिकतम समय मतदाताओं की उम्मीदों पर खरा उतरने के लिए संघर्ष करने के अलावा प्रमुख जाति समूहों के बीच बढ़ते गुस्से को नियंत्रित करने, पार्टी के भीतर की कलह को नियंत्रित करने, ढहते बुनियादी ढांचे के लिए एक-दूसरे को जिम्मेदार ठहराने में बीता है.

भाजपा नेताओं और कार्यकर्ताओं के साथ-साथ विपक्ष के लोगों का मानना है कि बोम्मई के नेतृत्व वाला प्रशासन मतदाताओं का सामना करने से डरा हुआ है. पार्टी के लिए अनुकूल परिणाम सुरक्षित करने के लिए उसमें आत्मविश्वास की कमी है.

लिंगायत और वोक्कालिगा को खुश करने के अलावा, ओबीसी (अन्य पिछड़ी जाति) आरक्षण कोटे को फिर से वर्गीकृत करके और बढ़ाकर दो प्रमुख समुदायों को लुभाने के लिए बोम्मई की नई चाल ने अन्य जाति समूहों को परेशान कर दिया है. इन सभी कारकों को एक साथ देखने से विधानसभा चुनाव में भाजपा की चुनावी संभावनाओं पर असर पड़ता नजर आ रहा है.

बेंगलुरु स्थित राजनीतिक विश्लेषक ए. नारायण ने दिप्रिंट को बताया, ‘उन्हें वास्तव में खुद से शुरुआत करने की इजाजत नहीं थी क्योंकि जिस क्षण वे ऊपर उठे, उस समय हिंदुत्ववादी ताकतों ने कर्नाटक पर कब्जा कर लिया था. यह येदियुरप्पा के सत्ता में होने पर थोड़ा और मुश्किल था.’

वह आगे कहते हैं, ‘स्थिति ऐसी थी कि जब तक वह उनके (हिंदुत्व बलों के) हाथों में नहीं खेलते, उन्हें बने रहने की इजाजत नहीं दी जा सकती थी.’

बोम्मई को मॉरल पुलिसिंग, हिंदू मंदिर मेलों में मुस्लिम व्यापारियों के प्रवेश पर प्रतिबंध, हिजाब और हलाल विवाद और धर्मांतरण विरोधी कानून को सही ठहराने के लिए विपक्ष द्वारा निशाना बनाया गया है.

उडुपी स्थित राजनीतिक विश्लेषक और अकादमिक फनी राजन्ना ने कहा, ‘उन्होंने (बोम्मई) एक ऐसी स्थिति पैदा की है जो अल्पसंख्यकों की रोजमर्रा की गतिविधियों का अपराधीकरण करके राज्य और इसकी आबादी को किनारे पर रखती है. उनका एकमात्र लक्ष्य चरम दक्षिणपंथी को खुश करना और अपने पद को बनाए रखना है.’


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‘बोम्मई को देख लगता नहीं कि वह नियंत्रण में हैं’

दिप्रिंट से बात करने वाले कई नेताओं के अनुसार, जब से उन्होंने कार्यभार संभाला है, तब से बोम्मई एक संकट से दूसरे संकट की ओर बढ़ रहे हैं. वह खुद के लिए एक जगह बनाने के लिए संघर्ष करते आए हैं. लेकिन उन्हें अपने इन प्रयासों में सफलता नहीं मिल पाई है.

कर्नाटक के मुख्यमंत्री कैबिनेट विस्तार के लिए भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व को राजी करने में असमर्थ रहे हैं. ये कदम सरकार के भीतर असंतुष्ट आवाजों को शांत करने में मदद कर सकता था. तीन बार के भाजपा विधायक ने कहा, ‘मंत्रिमंडल का विस्तार करने की संभावना काफी कम है क्योंकि अगर लोगों को हटा दिया गया, नजरअंदाज कर दिया गया या समायोजित नहीं किया गया तो इससे तनाव और बढ़ जाएगा.’

दूसरी ओर, राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि कर्नाटक को विपक्ष के साथ गठबंधन करने के लिए ‘स्थानीय गठबंधन पार्टियों ‘ की जरूरत है. 1983 के बाद से कोई भी पार्टी विधानसभा में सत्ता बरकरार रखने में कामयाब नहीं हुई है.

कर्नाटक के एक राजनीतिक विश्लेषक ने नाम नहीं बताने की शर्त पर कहा, ‘ऐसा नहीं लगता कि वह नियंत्रण में है. भाजपा की केंद्रीकृत प्रणाली में आपके पास कोई ऐसा व्यक्ति होना चाहिए जो मजबूत होने का ढोंग करे और फिर भी आलाकमान को स्वीकार्य हो.’

बोम्मई के कार्यकाल में हुए चुनावों के नतीजे भी भरोसेमंद नहीं रहे हैं. उनके कार्यकाल के दौरान हुए एमएलसी चुनावों और उपचुनावों में भाजपा को हार का सामना करना पड़ा. इसमें उनके गृह जिले हावेरी में हंगल सीट का नुकसान भी शामिल था. अधिक आरक्षण के लिए पंचमसाली आंदोलन का नेतृत्व करते हुए कुडलसंगम मठ के संत जया मृत्युंजय ने पिछले सप्ताह पीएम मोदी को लिखे एक पत्र में कहा था कि समुदाय ने मुख्यमंत्री के रूप में बोम्मई में ‘विश्वास खो दिया है’. यह एक ऐसे समूह के गुस्से को शांत करने में भाजपा की अक्षमता को दिखाता है, जिसका समर्थन उसकी चुनावी संभावनाओं के लिए महत्वपूर्ण है. इस स्थिति ने उसकी समस्याओं की बढ़ती सूची में इजाफा किया है.

पिछले साल अगस्त में बीजेपी येदियुरप्पा को पार्टी के शीर्ष निर्णय लेने वाले निकाय (संसदीय बोर्ड) में वापस ले आई, ताकि पार्टी के समर्पित लिंगायत वोट के मामले में उन्हें हुए नुकसान की भरपाई की जा सके.

स्थानीय स्तर पर कर्नाटक में सबसे महत्वपूर्ण नागरिक निकाय बृहत बेंगलुरु महानगर पालिके (बीबीएमपी) की कार्य कुशलता पर भी अनिश्चितता मंडरा रही है, जो सितंबर 2020 से एक निर्वाचित परिषद के बिना काम कर रहा है. पिछले अक्टूबर में बाढ़ से शहर का ढहता बुनियादी ढांचा, सड़कों और क्वालिटी ऑफ लाइफ में गिरावट बेंगलुरु में भाजपा के खिलाफ काम कर सकती है.

भाजपा के एक पूर्व पार्षद ने कहा कि राज्य में नेताओं का चुनाव कराने का कोई इरादा नहीं है. भाजपा के पूर्व नगरसेवक और अब कर्नाटक भाजपा के पदाधिकारी ने कहा, ‘न तो यह सरकार और न ही विधायक चाहते हैं कि (बीबीएमपी) चुनाव हों. कम से कम विधानसभा चुनाव होने तक कोई भी चुनाव कराना नहीं चाहता है.’

जिला और तालुका पंचायतों के चुनावों में भी देरी हुई है, क्योंकि कई जिलों में वर्तमान में कोई स्थानीय प्रशासन नहीं है.

अक्टूबर में सरकार के खिलाफ ठेकेदारों के भ्रष्टाचार के आरोपों ने सुर्खियां बटोरी थीं. गौरतलब है कि उस समय बोम्मई के कार्यालय पर कथित तौर पर कुछ पत्रकारों को नकदी के साथ दीवाली मिठाई के डिब्बे वितरित करके प्रेस का फेवर हासिल करने की कोशिश करने का आरोप लगाया गया था.

अगले महीने कांग्रेस पार्टी ने भ्रष्टाचार पर सीधे तौर पर बोम्मई को निशाना बनाते हुए एक अभियान शुरू कर दिया था. पार्टी ने पूरे बेंगलुरु में ‘PayCM’ के पोस्टर लगाए थे.

हाल ही में पिछले हफ्ते कर्नाटक स्टेट कॉन्ट्रैक्टर्स एसोसिएशन ने आरोप लगाया कि निर्वाचित प्रतिनिधि और मंत्री सार्वजनिक कार्यों के ठेके देने और बिलों को मंजूरी देने के लिए ‘कमीशन’ की मांग कर रहे हैं. एसोसिएशन ने एक ऑडियो क्लिप भी जारी किया है, जिसमें दावा किया गया है कि तुमकुर के भाजपा विधायक जी.एच. थिप्पारेड्डी ने विभिन्न कार्यों के बिलों का भुगतान करने और नई परियोजनाओं को मंजूरी देने के लिए रिश्वत की मांग की.


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