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Saturday, 21 December, 2024
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BSP ‘0’ पर ही अटकी रहेगी- अकालियों से गठबंधन पर असंतोष के बीच पंजाब इकाई के बागियों ने चेताया

बसपा इस कदम के खिलाफ बोलने के कारण पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रशपाल राजू को पहले ही निष्कासित कर चुकी है, जबकि इसकी ओबीसी इकाई के अध्यक्ष सुखबीर सिंह शालीमार ने फैसले के विरोध में इस्तीफा दे दिया है.

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नई दिल्ली: बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की तरफ से पंजाब में शिरोमणि अकाली दल (एसएडी) के साथ गठबंधन किए जाने के फैसले ने राज्य में पार्टी के नेताओं को नाराज कर दिया है, जिनका कहना है कि जिस तरह सीट बंटवारा किया गया है वह चुनावी जीत की उसकी संभावनाओं को धूमिल कर देगा.

बसपा ने जून के अंतिम हफ्ते में अपने पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रशपाल राजू को इस कदम के खिलाफ आवाज उठाने के कारण निष्कासित कर दिया था, जबकि पार्टी की ओबीसी इकाई के अध्यक्ष सुखबीर सिंह शालीमार इस फैसले के विरोध में इस्तीफा दे चुके हैं.

दोनों नेताओं ने दिप्रिंट से बात की और चेतावनी दी कि आने वाले दिनों में और भी नेता बसपा छोड़ने वाले हैं.

उनके मुताबिक, दोआबा में बड़ी संख्या में सीटें छोड़ने का बसपा का फैसला असंतोष का मुख्य कारण है, जो कि पंजाब का दलित बहुल क्षेत्र है और यहां पार्टी के लिए अच्छी चुनावी संभावनाएं हैं.

उन्होंने यह दावा भी किया कि गठबंधन बसपा की संभावनाओं को केवल और केवल नुकसान ही पहुंचाएगा क्योंकि जैसा कि उनका कहना है कि अकालियों को तीन विवादास्पद कृषि कानूनों पर किसानों के विरोध का नतीजा चुनावों में भुगतना होगा.

दिप्रिंट ने टेक्स्ट मैसेज और फोन कॉल के जरिये बसपा की पंजाब इकाई के अध्यक्ष जसवीर सिंह गढ़ी से संपर्क की कोशिशें की लेकिन उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया.


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एक ‘नाखुश’ गठबंधन

सीट बंटवारे के फॉर्मूले के मुताबिक, पंजाब की 117 सीटों में से बसपा 20 सीटों पर चुनाव लड़ेगी और शिरोमणि अकाली दल 97 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेगा.

दोआबा, जिस क्षेत्र से बसपा के संस्थापक कांशीराम संबद्ध थे, में पार्टी को 23 विधानसभा सीटों में से सिर्फ आठ सीटें मिली हैं.

राजू ने दिप्रिंट से बातचीत में कहा कि इससे पार्टी की संभावनाओं पर खासा प्रतिकूल असर पड़ेगा. साथ ही जोड़ा कि राज्य में विपक्ष की मौजूदा स्थिति भी इस पार्टी के आगे बढ़ने में बाधा बन सकती है.

उन्होंने कहा, ‘दोआबा की 12 विधानसभा सीटों पर हमारे पास हर निर्वाचन क्षेत्र में 15,000 से 25,000 तक वोट हैं. लेकिन हमारा घरेलू मैदान आराम से अकाली दल को थमा दिया गया. हमारे वोट उन्हें ट्रांसफर हो जाएंगे. लेकिन इसके बदले में हमें क्या दिया गया है? ऐसी सीटें जिन पर हमारे पास महज 1,500 वोट हैं.’

उन्होंने कहा कि 2020 में जब विवादास्पद कृषि विधेयक पारित किए गए थे तब अकाली चूंकि भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) का ही हिस्सा थे, इसलिए आने वाले चुनावों में उनकी संभावनाएं काफी धूमिल हैं.

उन्होंने कहा, ‘कृषि संबंधी कानूनों ने किसी भी पार्टी की तुलना में अकालियों को ज्यादा नुकसान पहुंचाया है. बसपा के समर्पित कार्यकर्ता सीटों के इस बंटवारे के खिलाफ आवाज उठाते रहे हैं लेकिन उनकी (बसपा नेतृत्व) तरफ से दूसरी बैठक नहीं बुलाई जा रही. इसके बजाये बहनजी (मायावती) पार्टी के समझदार लोगों को बाहर निकाल रही हैं. फिलहाल हमें जो सीटें मिली हैं, हम उनमें से एक भी नहीं जीतेंगे.’

राजू ने दावा किया कि असंतोष बढ़ रहा है. उन्होंने कहा, ‘आने वाले दिनों में और लोग बसपा छोड़ देंगे. नेता दुखी हैं लेकिन बस इतना ही है कि वे प्रेस के सामने नहीं आ रहे हैं.’

पूर्व बसपा नेता ने यह भी कहा कि उन्हें निष्कासन की जानकारी व्हाट्सएप के जरिये मिली थी. उन्होंने कहा, ‘26 जून की मध्यरात्रि में प्रदेश अध्यक्ष (गढ़ी) ने हमारे विभिन्न व्हाट्सएप ग्रुप पर एक संदेश भेजा कि मुझे सीट बंटवारे के फॉर्मूले के खिलाफ आवाज उठाने के लिए पार्टी से निकाला जा रहा है.’


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‘वरिष्ठों को भरोसे में नहीं लिया गया’

शालीमार ने अपनी ओर से आरोप लगाया कि सीट बंटवारे के फॉर्मूले को अंतिम रूप दिए जाने से पहले वरिष्ठ नेताओं को भरोसे में नहीं लिया गया.

उन्होंने कहा, ‘सबसे पहली बात तो यह है कि पहले से ही सिखों की नाराजगी झेल रहे अकालियों को हमारा सहयोगी नहीं होना चाहिए था. उन्हें अपने दम पर 20 से ज्यादा सीटें तक नहीं मिलने वाली हैं. दूसरी बात, बहनजी यूपी में तो पूर्व नेताओं से बात कर रही हैं और उन्हें आमंत्रित कर रही हैं, लेकिन पंजाब में वह पार्टी से नेताओं को निकाल रही हैं. ऐसा लगता है कि उनकी पंजाब में कोई रुचि नहीं रह गई है.’

उन्होंने आगे कहा, ‘अकालियों को तो वो हमारी मजबूत सीटें दे रहे हैं. यही समझ नहीं आ रहा कि वो चाहते क्या हैं, बसपा अपने आधार को बढ़ाए या फिर इसे समेटकर शून्य कर दे.

पंजाब में अपने अब तक के सबसे खराब प्रदर्शन के बाद बसपा 2022 के विधानसभा चुनावों में उतरने वाली है. 2017 के चुनावों में पार्टी का वोट-शेयर गिरकर 1.5 प्रतिशत रह गया था जो 2012 के चुनावों में 4.29 प्रतिशत रहा था. यह 1992 के विधानसभा चुनाव में उसके सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन से बहुत दूर है, जब बसपा ने यहां नौ सीटें जीती थीं और कुल वोटों में उसकी भागीदारी 16.32 प्रतिशत रही थी.

शालीमार ने दावा किया कि कार्यकर्ताओं में काफी नाराजगी है और जमीनी स्तर पर कोई काम नहीं कर रहे हैं.

उन्होंने कहा, ‘हमारे कार्यकर्ता बिल्कुल भी खुश नहीं हैं. मायावती राजू को निकालकर एक संदेश देना चाहती थीं. यह संदेश यही है कि यदि आप अपनी आवाज उठाते हैं, तो पार्टी में आपके लिए कोई जगह नहीं है.’

शालीमार के मुताबिक, साझा फ्रंट पंजाब के बैनर तले ओबीसी और दलितों का एक नया मोर्चा तैयार हो रहा है. उन्होंने कहा, ‘इस संबंध में पिछले एक सप्ताह में कुछ बैठकें भी हुई हैं.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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