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Sunday, 22 December, 2024
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‘लीडरशिप की कमी’, मुस्लिम नेताओं के निष्कासन और निलंबन से BSP में बढ़ी चिंता

पिछले 6 वर्षों में, कई मुस्लिम नेता बसपा से बाहर हो गए हैं, जिससे 2024 के लोकसभा चुनावों में पार्टी को झटका लगने की चिंता बढ़ गई है. इस बीच कांग्रेस ने अपनी यूपी जोड़ो यात्रा शुरू कर दी है.

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लखनऊ: दिसंबर में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) द्वारा अमरोहा से लोकसभा सांसद दानिश अली को निलंबित किए जाने के बाद, पार्टी के उन अनुभवी सदस्यों के बीच चिंताएं बढ़ गई हैं, जिसने 2022 के विधानसभा चुनावों में अपना सबसे खराब प्रदर्शन कर, सिर्फ एक सीट जीती और उन्हें ऐसा अंदेशा है कि उसे आगामी आम चुनावों में और झटका लग सकता है.

पिछले छह वर्षों में, कई मुस्लिम नेता बसपा से बाहर हो गए हैं, जिसकी शुरुआत नसीमुद्दीन सिद्दीकी से हुई, जिन्होंने राज्य में बसपा शासन के दौरान खुद को “मिनी-सीएम” उपनाम दिया और शुरुआत मई 2017 में नसीमुद्दीन सिद्दीकी (जिन्होंने राज्य में बसपा शासन के दौरान “मिनी-सीएम” उपनाम हासिल किया). और उनके बेटे अफ़ज़ल सिद्दीकी से हुई जब उन्हें पार्टी से निष्कासित कर दिया गया. उस साल विधानसभा चुनाव में बसपा ने केवल 19 सीटें जीती थीं और भाजपा राज्य में सत्ता पर काबिज हुई थी.

पिछले साल अगस्त में, मुजफ्फराबाद के पूर्व विधायक इमरान मसूद को कथित “अनुशासनहीनता और पार्टी विरोधी गतिविधियों” के लिए बसपा ने निष्कासित कर दिया था. अपने निष्कासन से पहले, मसूद कांग्रेस नेता राहुल गांधी की प्रशंसा करने के लिए चर्चा में थे.

पिछले साल मई में गैंगस्टर एक्ट मामले में दोषी ठहराए जाने के बाद पार्टी के गाजीपुर सांसद अफजाल अंसारी को पद से अयोग्य घोषित कर दिया गया था. अंसारी को चार साल कैद की सजा सुनाई गई थी, लेकिन जुलाई 2023 में जमानत पर रिहा कर दिया गया था. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने इस महीने की शुरुआत में अंसारी की सजा को निलंबित कर दिया था. लेकिन यह देखना बाकी है कि मेयर चुनाव में मारे गए गैंगस्टर अतीक अहमद की पत्नी शाइस्ता परवीन को पार्टी द्वारा उम्मीदवारी से इनकार करने की पृष्ठभूमि में बसपा उन्हें फिर से सीट से मैदान में उतारेगी या नहीं.

पिछले साल फरवरी में अतीक के बेटे असद अहमद और उसके सहयोगियों द्वारा कथित तौर पर भाजपा नेता और वकील उमेश पाल की हत्या के बाद, मायावती ने टिप्पणी की थी कि वह अतीक की पत्नी या उनके परिवार के किसी अन्य सदस्य को टिकट नहीं देंगी और “बसपा कानून का सम्मान करती है.”

नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट से बात करते हुए, एक वरिष्ठ बीएसपी नेता ने स्वीकार किया कि कई मुस्लिम नेताओं के चले जाने से, पार्टी में लीडरशिप की कमी है.

नेता ने कहा, ”हालांकि, बसपा में शीर्ष पर हमेशा एक ही नेतृत्व रहा है, बाकी सभी कार्यकर्ता हैं.”

अब, दानिश अली कांग्रेस की ओर झुकाव का संकेत दे रहे हैं, जबकि इमरान मसूद पहले ही कांग्रेस में जा चुके हैं.

पिछले साल सितंबर में भाजपा के रमेश बिधूड़ी द्वारा संसद में उनके खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी करने के बाद अली ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी से मुलाकात की थी. बैठक के बाद, गांधी ने दोनों की गले मिलते हुए एक तस्वीर पोस्ट की थी. उन्होंने एक्स पर पोस्ट किया, “नफरत के बाजार में प्यार की दुकान”.

इसके अलावा, अली ने विपक्षी एकता की वकालत की है, जिसे उन्होंने “पहले से कहीं अधिक आवश्यक” बताया है.

इसमें अली अकेले नहीं हैं. बसपा के भीतर अन्य लोगों का मानना है कि मुस्लिम समुदाय कांग्रेस की ओर देख रहा है और पार्टी को यह सुनिश्चित करने के लिए INDIA गठबंधन में प्रवेश करने की जरूरत है कि वह आगामी चुनावों में अच्छा प्रदर्शन कर सके.

बसपा के पूर्व राष्ट्रीय प्रवक्ता धर्मवीर चौधरी ने दिप्रिंट को बताया, “यह सच है कि मुसलमान कांग्रेस की ओर देख रहे हैं जो एक बड़ी पार्टी है. जब हमने 2014 के आम चुनाव में गठबंधन नहीं किया, तो हमें एक भी सीट नहीं मिली और जब 2019 के चुनाव में हमने गठबंधन किया, तो हमने 10 सीटें जीतीं. पार्टी को यह सुनिश्चित करने की ज़रूरत है कि हम इंडिया ब्लॉक के साथ गठबंधन करें ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि हम अच्छा प्रदर्शन करें. अगर हम नेताओं को पार्टी से निकालते रहेंगे, तो कौन लड़ेगा.”

राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि मुस्लिम नेताओं को पार्टी से बाहर करने से राज्य में पार्टी की संभावनाओं को काफी नुकसान होगा.

बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान विभाग के प्रमुख शशिकांत पांडे ने दिप्रिंट को बताया, “बसपा ने हमेशा राज्य में दलितों, मुस्लिमों और ब्राह्मणों के संयोजन से पार्टी को वोट देकर जीत हासिल की है, लेकिन वह राज्य में भी लगातार दलितों का विश्वास खो रही है, खासकर गैर-जाटव मतदाता और एससी जैसे पासी और वाल्मिकी समुदाय, जहां बीजेपी ने गहरी पैठ बना ली है.”

“बसपा मुसलमानों के बीच भी अपना समर्थन आधार खोती जा रही है. पिछले चुनावों में मुसलमान लगातार सपा को वोट देते रहे हैं.”

हालांकि, जब सिद्दीकी और मसूद को पार्टी से बाहर करने और अब दानिश अली के निलंबन के बारे में सवाल किया गया, तो बसपा के एक राज्यसभा सदस्य ने इन दावों का खंडन किया कि मसूद और अली को बाहर करने से बसपा को नुकसान होगा.

नेता ने कहा, “वे बसपा की नर्सरी से नेता बनकर उभरे हैं. उनके बाहर होने से जमीनी स्तर पर कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि वे तभी जीते जब बसपा के मुख्य मतदाता ने उन्हें वोट दिया. अली एक JD(S) नेता थे, जिन्हें बहनजी उस पार्टी के साथ एक समझौते के तहत यूपी में लाई थीं.”


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‘मुस्लिम इलाकों में BSP को हो सकती है परेशानी’

2019 के लोकसभा चुनाव में बसपा के तीन मुस्लिम उम्मीदवारों ने गाजीपुर (अफजल अंसारी), अमरोहा (दानिश अली) और सहारनपुर (फजलुर रहमान) से चुनाव जीता था. हालांकि, पार्टी पिछले साल हुए नगर निगम चुनावों में अपनी मेयर सीटें – अलीगढ़ और मेरठ में हार गई थी. दोनों सीटों पर अच्छी खासी मुस्लिम आबादी है. वह सहारनपुर मेयर सीट भी भाजपा से हार गई थी, जो एकमात्र सीट थी जहां उसने सत्तारूढ़ पार्टी को कड़ी टक्कर दी थी.

पांडे ने कहा कि जब नेताओं को किसी पार्टी द्वारा एक मंच दिया जाता है, तो वे अपना खुद का एक समर्थन आधार विकसित करते हैं और उनके निष्कासन से समुदाय के भीतर एक बुरा संदेश जाता है.

“अल्पसंख्यक समुदाय के मन में असुरक्षा की भावना होती है और जब वे अपने नेताओं को टेलीविजन और सोशल मीडिया पर बोलते हुए देखते हैं, तो वे उन्हें नायक मानने लगते हैं. जब ऐसे नेताओं को पार्टी हटा देती है, तो इससे समुदाय के बीच खराब संदेश जाता है.” उन्होंने कहा कि आगामी लोकसभा चुनाव में बसपा को मुस्लिम बहुल सीटों पर परेशानी का सामना करना पड़ सकता है.

यूपी में कांग्रेस की मुस्लिम पहुंच

इस बीच, कांग्रेस का लक्ष्य उस राज्य में अपना प्रभाव बढ़ाना है जो देश की संसद में अधिकांश सांसदों का योगदान देता है और सक्रिय रूप से मुस्लिम समुदाय में पैठ बनाने की कोशिश कर रही है, जो राज्य की आबादी का लगभग 20 प्रतिशत है.

यह प्रयास कांग्रेस और समाजवादी पार्टी (सपा) के बीच संभावित गठबंधन की चर्चा के बीच आया है.

कांग्रेस, जिसने पिछले महीने सहारनपुर से अपनी ‘यूपी जोड़ो यात्रा’ शुरू की थी, अपनी यात्रा के तहत कई मुस्लिम बहुल लोकसभा सीटों तक पहुंच बना रही है. इनमें पश्चिमी यूपी क्षेत्र के सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, बिजनौर, अमरोहा, मुरादाबाद, रामपुर और बरेली शामिल हैं.

दिप्रिंट से बात करते हुए, यूपी कांग्रेस के अल्पसंख्यक विभाग के प्रमुख शाहनवाज आलम ने कहा कि अतीत में, कांग्रेस को यूपी में जीत मिली है जब किसानों, मुसलमानों और जाटों ने पार्टी पर भरोसा किया. आलम ने स्वीकार किया कि कांग्रेस की मुस्लिम पहुंच पश्चिमी यूपी क्षेत्र में विशेष रूप से उल्लेखनीय है.

उन्होंने कहा, “2009 के लोकसभा चुनावों में, कांग्रेस ने मुस्लिम बहुल कई सीटों पर जीत हासिल की. हमारी रणनीति लोगों को यह याद दिलाना है कि हमने हमेशा किसानों और अल्पसंख्यकों के लिए काम किया है.”

संपादन: अलमिना खातून
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