बंगलुरू: कर्नाटक के मुख्यमंत्री बीसी येदियुरप्पा खुद को ऐसी स्थिति में देख रहे हैं जहां से वो अपने राज्य में कैबिनेट का विस्तार नहीं कर पा रहे हैं.
मुख्यमंत्री को भाजपा अध्यक्ष और गृह मंत्री अमित शाह से मिलने का समय नहीं मिल पा रहा है जहां वो कैबिनेट विस्तार की योजना पर बात कर सकें. ऐसा केवल एक बार नहीं हुआ है बल्कि अबतक छह बार हो चुका है. सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि शाह ने पिछले महीने तीन मौकों पर मुख्यमंत्री से मिलने से मना कर दिया था.
सोमवार सुबह येदियुरप्पा ने मीडिया से दावा किया कि उन्हें शाह से मिलने दिल्ली बुलाया गया था. शाम तक मुख्यमंत्री ने कहा कि वो उस दौरे पर नहीं जा रहे हैं क्योंकि उन्हें रायचूर में एक कार्यक्रम में जाना है.
येदियुरप्पा ने मीडिया से कहा, ‘मैं दिल्ली जाना चाहता हूं लेकिन ऐसा कर नहीं पा रहा हूं क्योंकि शाह काफी व्यस्त हैं. मुझे रायचूर में एक कार्यक्रम में हिस्सा लेना है. कैबिनेट का विस्तार होगा जैसा कि पहले कहा गया है और मैं विधायकों से आग्रह करता हूं कि अफवाहों से दूर रहे.’
कर्नाटक कैबिनेट में वर्तमान में 18 मंत्री है और 16 पद खाली हैं.
मुख्यमंत्री दबाव में हैं कि 11 बागी विधायकों को कैसे एडजस्ट किया जाए जिन्होंने कांग्रेस-जेडीएस सरकार को गिराया था. लेकिन उनकी योजना पर भाजपा के आलाकमान का व्यवहार भारी पड़ रहा है.
राज्य सरकार के सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि मुख्यमंत्री ने कई बार अमित शाह से मिलने के लिए समय मांगा लेकिन उन्हें समय नहीं मिला. इसकी वजह गृह मंत्री की दिल्ली चुनाव प्रचार में व्यस्तता का हवाला दिया जा रहा है.
सूत्रों ने दावा किया कि भाजपा आलाकमान येदियुरप्पा से इसलिए नहीं मिलना चाहते हैं क्योंकि पार्टी के बड़े नेता मुख्यमंत्री से खुश नहीं है. इसका कारण है कि मुख्यमंत्री अपनी सरकार चलाने के लिए बीजेपी के नेताओं से सलाह नहीं ले रहे हैं.
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एक सरकारी सूत्र ने कहा, ‘मोदीजी और शाहजी से मिलने के कई प्रयासों के बाद वह (येदियुरप्पा) आखिरकार तुमकुरू में मोदीजी से मिलने में सफल रहे. वहां भी उन्होंने सार्वजनिक मंच से राज्य में बाढ़ प्रभावित होने पर फंड की मांग की जिससे आलाकमान खुश नहीं है.’
18 जनवरी को शाह का कर्नाटक जाने का कार्यक्रम है.
रॉकी रिलेशनशिप
पिछले साल जुलाई में जब से येदियुरप्पा ने कर्नाटक के मुख्यमंत्री के तौर पर काम करना शुरू किया है तब से वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह से नहीं मिल पाए हैं. जिससे पता चलता है कि उनके और भाजपा के बीच रिश्ते काफी कठोर हैं.
जब 22 जुलाई को कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन की सरकार गिर गई थी उसके चार दिन बाद तक उन्हें केंद्रीय नेतृत्व के जबाव का इंतजार करना पड़ा था कि सरकार बनाने का दावा पेश किया जाए या नहीं.
उसके बाद उन्होंने लगातार 22 दिन तक वन-मैन कैबिनेट के तौर पर सरकार चलाई. 20 अगस्त को आखिरकार उन्हें कैबिनेट विस्तार की इजाजत मिल गई.
येदियुरप्पा के एक शुभचिंतक ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, ‘लगभग तीन महीनों तक ऐसा लग रहा था कि वो जानबूझकर प्रशासन में गतिरोध बनाए रखना चाहते थे.’
बंगलुरू स्थित राजनीतिक वैज्ञानिक संदीप शास्त्री ने कहा कि येदियुरप्पा का हमेशा ही केंद्रीय नेतृत्व से रिश्ते तल्खी भरे रहे हैं. वो भी 2018 से ही जब से वो राज्य में सरकार बनाने की कोशिश कर रहे थे.
शास्त्री ने बताया बाकी भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्री केंद्र की तरफ झुके होते हैं लेकिन येदियुरप्पा ने हमेशा आलाकमान को चुनौती दी है.
येदियुरप्पा से संवाद करने के लिए केंद्र का एक तरीका है कि वे उनकी सभी मांगों को स्वीकार नहीं करेंगे. शास्त्री ने कहा कि केंद्र इस बात से अच्छी तरह वाकिफ है कि वह उन सभी विधायकों को मंत्री बनाने सहित उनसे क्या पूछने जा रहा है. ‘वे अपनी मांगों को स्वीकार करने के लिए उन पर अतिरिक्त दबाव डालने से रोकने के लिए एक दबाव रणनीति के रूप में इसका उपयोग कर सकते हैं.’
दबाव में मुख्यमंत्री
मुख्यमंत्री उन बागी विधायकों के दबाव में हैं जिन्होंने कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन की सरकार को गिराने में मदद की. लेकिन उन्हें अब कैबिनेट में जगह चाहिए.
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कांग्रेस और जेडीएस से 17 विधायकों को पार्टी विरोधी गतिविधियों के कारण निकाल दिया गया. जिसके बाद भाजपा ने उनमें से 15 लोगों को दिसंबर में हुए चुनाव में मैदान में उतारा. 11 बागी लोग जीत कर आए औप येदियुरप्पा सरकार को मजबूती दी.
मुख्यमंत्री ने उन लोगों से वादा किया था कि वे उन्हें मंत्री पद देंगे. जिस कारण वो अब दबाव में है.
सरकारी सूत्र ने कहा कि, ‘दबाव काफी है और नए चुन कर आए 11 विधायकों से वादा किया गया था.’ ‘जबकि येदियुरप्पा जी आलाकमान से उनके बारे में बात करने के लिए तैयार हैं.’
एक बागी विधायक एएच विश्वनाथ जो उपचुनाव हार गए ने दिप्रिंट को बताया कि, ‘उनके पास कोई दूसरा विकल्प नहीं है सिवाए इसके कि वो इंतजार कर देखे कि क्या हो रहा है.’
विश्वनाथ ने कहा, ‘ये येदियुरप्पा पर है कि वो अमित शाह और भाजपा आलाकमान को कैसे विश्वास दिलाते हैं और सभी 17 नेताओं का क्या करते हैं जिन्होंने अपनी पार्टी छोड़कर भाजपा का दामन थामा. यह हमारा बलिदान था जिससे भाजपा सत्ता में आई और ये उन्हें पता है.’
एक और बागी विधायक बीसी पाटिल जिन्होंने अपनी हीरेकुरूर सीट से दोबारा जीत हासिल की, ने भी इन्हीं भावनाओं को व्यक्त किया. उन्होंने कहा, ‘हम आशा कर रहे हैं कि कुछ अच्छा होगा और हम इसका इंतज़ार कर रहे हैं.’
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