लखनऊ: भाजपा के समर्थन से समाजवादी पार्टी (सपा) के बागी विधायक नितिन अग्रवाल सोमवार को उत्तर प्रदेश विधानसभा के उपाध्यक्ष चुन लिए गए. अग्रवाल को 304 वोट मिले, जबकि सपा के नरेंद्र वर्मा 364 वैध वोटों में से सिर्फ 60 वोट ही हासिल कर पाए.
अग्रवाल के निर्वाचन के साथ यूपी विधानसभा को करीब 14 साल बाद डिप्टी स्पीकर मिला है. सदन में आखिरी डिप्टी स्पीकर भाजपा के राजेश अग्रवाल थे, जिन्हें 2004 में निर्विरोध चुना गया था. उनका कार्यकाल 2007 तक चला था.
राजनीतिक जानकारों के मुताबिक, डिप्टी स्पीकर का मुख्य कार्य स्पीकर की अनुपस्थिति में सदन की कार्यवाही का संचालन करना होता है. यह पद परंपरागत तौर पर किसी विपक्षी दल के नेता को मिलता है.
हालांकि, भाजपा ने इस चुनाव पर काफी ज्यादा जोर दिया जबकि मौजूदा विधानसभा का कार्यकाल करीब छह महीने बाद ही पूरा होने वाला है.
पार्टी सूत्रों ने कहा कि पार्टी की तरफ से अग्रवाल का निर्वाचन सुनिश्चित किए जाने की कई वजहें थीं.
यूपी भाजपा के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि चुनाव कराने का मुख्य कारण इस बात को उजागर करना था कि विपक्षी एकता है या उसका अभाव है.
पदाधिकारी ने कहा कि कांग्रेस ने मतदान का बहिष्कार किया, जबकि बसपा के कुछ विधायक भी इससे दूर ही रहे. इससे साफ पता चलता है कि सपा पूरी तरह अलग-थलग है.
उन्होंने कहा, ‘हमारे निशाने पर समाजवादी पार्टी थी क्योंकि अखिलेश यादव कई बार कह चुके हैं कि भाजपा के कई विधायक उनके संपर्क में हैं. तो, आखिर अब वे कहां थे? भाजपा समर्थित उम्मीदवार को कुल पड़े 364 मतों में से 300 से अधिक वोट मिले. सपा प्रत्याशी को महज 60 वोट ही मिले. राजनीति संदेशों-संकेतों का खेल है. हमने दिखा दिया है कि हम क्या करने में सक्षम हैं. संख्या के मामले में हम अब भी शीर्ष पर हैं.’
नतीजे घोषित होने के बाद अपने संबोधन में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी सपा पर निशाना साधा और कहा कि चुनाव ने विपक्षी एकता के भ्रम को दूर कर दिया है.
उन्होंने कहा, ‘समाजवादी पार्टी समेत समूचा विपक्ष डिप्टी स्पीकर के चुनाव में कोई एकता नहीं दिखा सका. यह परिणाम इस बात का स्पष्ट संकेत है कि 2022 के विधानसभा चुनाव में क्या होने वाला है.
योगी ने यह भी कहा कि भाजपा ने पूरे साढ़े चार साल इंतजार किया, लेकिन सपा ने डिप्टी स्पीकर पद के लिए कोई नाम सामने नहीं रखा. उन्होंने कहा कि ‘तकनीकी तौर पर’ नितिन अभी भी सपा सदस्य हैं और इस तरह भाजपा ने सदन की परंपराओं का पालन किया है.
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विद्रोहियों, निर्दलीयों और बनियों को लुभाने की कोशिश कर रहे
भाजपा के एक दूसरे पदाधिकारी ने कहा कि पार्टी अन्य निर्दलीय और बागियों को लुभाने की कोशिश कर रही है.
पदाधिकारी ने कहा, ‘नितिन को एक पद देकर हमने विद्रोहियों और निर्दलीय उम्मीदवारों के मन में थोड़ी जगह बना ली है. हालांकि, कांग्रेस ने चुनाव का बहिष्कार किया लेकिन उनकी बागी विधायक अदिति सिंह मतदान के लिए पहुंचीं. कुछ निर्दलीयों ने भी हमारे लिए वोट दिया. बसपा के एक विधायक ने भी हमारे पक्ष में वोट दिया.’
भाजपा के एक तीसरे नेता ने कहा कि अगर पार्टी नितिन अग्रवाल को इस तरह समायोजित नहीं करती तो वह वापस सपा में चले जाते.
नेता ने कहा, ‘अगर हम नितिन को उम्मीदवार नहीं बनाते तो वह वापस सपा में चले जाते. हमने अभी तक उनके पिता को भी कोई महत्वपूर्ण भूमिका नहीं दी है. हमने उन्हें फिर से राज्यसभा नहीं भेजा है.’
नितिन तीन बार से विधायक हैं. उनके पिता और पूर्व राज्यसभा सदस्य नरेश अग्रवाल 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले ही भाजपा में शामिल हो गए थे.
2019 में विधानसभा के एक विशेष सत्र में हिस्सा लेकर पार्टी व्हिप की अवहेलना करने को लेकर नितिन अग्रवाल को सदन से अयोग्य घोषित किए जाने के सपा के आवेदन को राज्य विधानसभा अध्यक्ष ने हाल ही खारिज कर दिया था.
कई भाजपा पदाधिकारियों ने यह संकेत भी दिया कि जाति समीकरणों ने इस चुनाव में एक अहम भूमिका निभाई.
नितिन अग्रवाल एक बनिया हैं और व्यापारी वर्ग से आते हैं.
भाजपा के एक चौथे नेता ने कहा, ‘गोरखपुर की घटना के बाद (जहां एक होटल में कानपुर के व्यवसायी की हत्या कर दी गई थी) व्यापारी वर्ग में सरकार के खिलाफ गुस्सा था और इसी नाराजगी को दूर करने के लिए हमने डिप्टी स्पीकर पद के लिए एक बनिया विधायक का समर्थन किया. मध्य यूपी की आबादी के बनिया तीन फीसदी से ज्यादा हैं. वे भाजपा के परंपरागत मतदाता हैं और इसलिए हम उन्हें खोना नहीं चाहते.’
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सपा ने कहा- यह निरंकुशता है
हालांकि, समाजवादी पार्टी ने चुनाव को राज्य में बढ़ते निरंकुश शासन का एक और उदाहरण बताया है.
सपा के एमएलसी और पार्टी प्रवक्ता सुनील सिंह साजन ने कहा, ‘हम सभी जानते हैं कि डिप्टी स्पीकर का पद आमतौर पर विपक्षी दल के पास होता है. हमने कई बार विधानसभा में इस पद के लिए चुनाव कराने का आग्रह किया, लेकिन उन्होंने (सरकार) कोई जवाब नहीं दिया. अब चुनाव से कुछ ही समय पहले अचानक उन्होंने एक बागी विधायक का समर्थन किया है, जिनका सपा से अब कोई भी लेना-देना नहीं है. स्पष्ट तौर पर यह भाजपा की तानाशाही पूर्ण मानसिकता को दर्शाता है.’
लखनऊ यूनिवर्सिटी में राजनीति विज्ञान के सेवानिवृत्त प्रोफेसर और राजनीतिक विश्लेषक एस.के. द्विवेदी ने कहा कि भाजपा की कोशिश इस पद के लिए चुनाव कराकर केवल राजनीतिक लाभ हासिल करने की थी.
उन्होंने कहा, ‘यह एक संवैधानिक दायित्व है कि स्पीकर और डिप्टी स्पीकर का पद भरा जाए लेकिन आजकल सब कुछ राजनीतिक आधार पर किया जा रहा है न कि संवैधानिक नैतिकता के मद्देनजर. यह बात तो इसी से पता चलती है कि यह पद (डिप्टी स्पीकर) 14 साल से खाली पड़ा था.’
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