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Tuesday, 28 October, 2025
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त्रिपुरा में BJP की मुश्किलें बढ़ीं. TIPRA से तनाव और अंदरूनी कलह से डगमगाई माणिक साहा सरकार

हाल के महीनों में, सत्तारूढ़ गठबंधन में एक प्रमुख सहयोगी, TIPRA मोथा, स्वदेशी अधिकारों के संरक्षण से संबंधित समझौते के कथित गैर-निष्पादन को लेकर गठबंधन से बाहर निकलने की धमकी दे रहा है.

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नई दिल्ली: पिछले कुछ हफ्तों में त्रिपुरा की सत्तारूढ़ बीजेपी कई विवादों में घिर गई है. इन विवादों ने न केवल पार्टी के आदिवासी सहयोगी टिपरा मोथा के साथ रिश्तों में तनाव पैदा किया है, बल्कि मुख्यमंत्री माणिक साहा के समर्थक और विरोधी खेमों के बीच गहरे मतभेद भी उजागर कर दिए हैं.

यह राजनीतिक हलचल राज्य में बढ़ती जातीय दरारों को लेकर चिंताओं को भी फिर से उभार रही है. पिछले डेढ़ दशक में वाम मोर्चा सरकार और फिर बीजेपी के शासन में हिंसा में कमी आई थी.

बीजेपी और टिपरा मोथा के बीच तनाव 22 अक्टूबर को तब बढ़ गया जब पश्चिम त्रिपुरा जिले में बीजेपी कार्यकर्ताओं पर कथित रूप से टिपरा मोथा के सदस्यों ने हमला किया. 60 सदस्यीय विधानसभा में 13 विधायकों वाली टिपरा मोथा सत्तारूढ़ गठबंधन की अहम सहयोगी है.

झड़पों के अगले दिन हालात और बिगड़ गए जब हाल ही में गठित सिविल सोसाइटी फोरम ‘टिप्रासा सिविल सोसाइटी’ के सदस्यों ने अवैध प्रवासियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग को लेकर दक्षिण त्रिपुरा के एक बाजार में बंद कराने की कोशिश की. इस फोरम का नेतृत्व टिपरा मोथा विधायक और पूर्व उग्रवादी कमांडर रंजीत देबबर्मा कर रहे हैं. उन्होंने केंद्र और राज्य सरकार के साथ 2024 में किए गए उस समझौते को लागू करने की भी मांग की, जो आदिवासी अधिकारों की सुरक्षा से जुड़ा है.

बंद समर्थकों ने दुकानदारों और स्थानीय लोगों पर हमला किया. इस दौरान कई लोग घायल हुए, जिनमें स्थानीय पुलिस अधीक्षक, उप-मंडलीय पुलिस अधिकारी और ब्लॉक विकास अधिकारी शामिल हैं. मुख्यमंत्री माणिक साहा ने दोनों घटनाओं के लिए टिपरा मोथा को जिम्मेदार ठहराया, जबकि देबबर्मा ने आरोपों को खारिज कर दिया.

हाल के महीनों में, त्रिपुरा के पूर्व राजघराने के उत्तराधिकारी प्रद्योत देबबर्मन के नेतृत्व वाली टिपरा मोथा सरकार से समझौते को लागू न करने के आरोप में गठबंधन से अलग होने की धमकी दे रही है. शुक्रवार को अगरतला में पत्रकारों से बात करते हुए साहा ने कहा कि प्रशासन ऐसे घटनाओं को बर्दाश्त नहीं करेगा.

बीजेपी को मुख्य रूप से बंगाली हिंदुओं का समर्थन मिलता है, जबकि लगातार हुई जनसांख्यिकीय बदलावों और प्रवासन की लहरों ने त्रिपुरा की आदिवासी आबादी को अल्पसंख्यक बना दिया है. यही मुद्दा टिपरा मोथा की राजनीति की नींव है.

जब साहा से पूछा गया कि क्या सहयोगी दल इस तरह के कदमों से बीजेपी पर दबाव बना रहे हैं, तो उन्होंने कहा कि “साजिशें सफल नहीं होंगी और समय के साथ दबाव कम हो जाएगा. कानून से ऊपर कोई नहीं है.” जब उनसे पूछा गया कि क्या बीजेपी के भीतर का असंतोष भी इन घटनाओं की वजह हो सकता है, तो उन्होंने कहा कि यह एक कारण हो सकता है.

बीजेपी के पास 32 विधायक हैं, जो बहुमत के ठीक ऊपर हैं. ऐसे में माणिक साहा सरकार की स्थिरता के लिए टिपरा मोथा के साथ गठबंधन जरूरी है.

दो दिन बाद, अगरतला में एक सार्वजनिक कार्यक्रम में साहा ने पार्टी के अंदरूनी विवादों को और स्पष्ट कर दिया. उन्होंने अपने पूर्ववर्ती और पश्चिम त्रिपुरा के मौजूदा लोकसभा सांसद बिप्लब देब पर अप्रत्यक्ष रूप से निशाना साधा, जिन्हें मई 2022 में मुख्यमंत्री पद से हटा दिया गया था.

त्रिपुरा में “सुधरी हुई कानून व्यवस्था” पर बोलते हुए साहा ने कहा कि पहले उपद्रवियों को उनके ‘दादा’ या राजनीतिक संरक्षकों से खुली छूट मिलती थी और पुलिस को कार्रवाई से रोका जाता था. उन्होंने कहा, “पिछले चार सालों में हमने कभी ऐसा नहीं होने दिया.”

बीजेपी 2018 में त्रिपुरा की सत्ता में आई थी, जब उसने 1993 से लगातार शासन कर रहे वाम मोर्चे को हटा दिया था. बिप्लब देब को मुख्यमंत्री बनाया गया था, लेकिन मई 2022 में उन्हें हटाकर राज्यसभा सांसद माणिक साहा को मुख्यमंत्री बनाया गया.

राज्य की बीजेपी की मुश्किलें तब और बढ़ गईं जब पिछली मोदी सरकार में केंद्रीय राज्य मंत्री रही प्रतिमा भौमिक को रविवार को दक्षिण त्रिपुरा के उस स्थान पर जाने से रोक दिया गया जहां टिप्रासा सिविल सोसाइटी द्वारा बुलाए गए बंद के दौरान हिंसा हुई थी.

गुस्साए भौमिक ने पुलिस अधिकारियों पर नाराजगी जताई जिन्होंने उनकी गाड़ी को रोका था. उन्होंने पूछा कि बंद के दौरान पुलिस हिंसा रोकने और लोगों की सुरक्षा करने में विफल क्यों रही. भौमिक ने आरोप लगाया कि राजनीतिक नेतृत्व अब नौकरशाही के अधीन हो गया है और सरकार की कार्यक्षमता पर सवाल उठाया.

यह विवाद उस समय सामने आया जब राज्य के एकमात्र मुस्लिम बीजेपी विधायक तफज्जल हुसैन ने एक कार्यक्रम में, जिसमें बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष और राज्यसभा सांसद राजीव भट्टाचार्य भी मौजूद थे, भौमिक और देब पर निशाना साधा. हुसैन ने साहा और भट्टाचार्य की प्रशंसा करते हुए देब और भौमिक की आलोचना की और जनता के प्रति उनकी प्रतिबद्धता पर सवाल उठाया.

इस साल की शुरुआत में भी नेताओं के बीच कलह के कारण बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व को त्रिपुरा इकाई के नए अध्यक्ष के चयन के लिए होने वाले आंतरिक चुनाव को रोकना पड़ा था.

इन घटनाओं ने राज्य की बीजेपी की परेशानी और बढ़ा दी है, जो पहले से ही मंत्री सुधांशु दास के बयान को लेकर विपक्ष के निशाने पर थी. एक साक्षात्कार में दास ने कहा था कि यह “खुला राज” है कि राजनेताओं की आमदनी का “मुख्य स्रोत” सरकारी परियोजनाएं पूरी करने वाले ठेकेदारों द्वारा दिए गए कमीशन हैं.

विपक्ष ने बीजेपी पर हमला बोलते हुए कहा कि दास ने अप्रत्यक्ष रूप से पार्टी के शासन में व्याप्त भ्रष्टाचार को स्वीकार किया है. कांग्रेस ने शनिवार को पुलिस में शिकायत दर्ज कराई और दास के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम और भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की संबंधित धाराओं के तहत मामला दर्ज करने की मांग की.

दास ने उस सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की चेतावनी दी है जिसने यह साक्षात्कार प्रसारित किया था. उनका आरोप है कि उनके बयान को संदर्भ से हटाकर पेश किया गया.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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