नई दिल्लीः मध्यप्रदेश में भाजपा के गढ़ इंदौर लोकसभा सीट पर लंबे इंतजार के बाद भारतीय जनता पार्टी ने अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया है. पार्टी ने यहां से प्रदेश के एक मात्र सिंधी उम्मीदवार शंकर लालवानी को टिकट दिया है. इधर,प्रत्याशी घोषित होने के बाद शंकर का विरोध भी शुरू हो गया है. विरोध के बावजूद उम्मीदवारी तय होने के पीछे पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की सहमति भी बताई जा रही है. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार भाजपा की ओर से शंकर लालवानी देश के पहले सिंधी उम्मीदवार है.
इंदौर लोकसभा सीट पर 1989 के बाद पहली बार जीत की उम्मीद की चमक कांग्रेस की आंखों में देखी जा सकती है. रविवार देर शाम भाजपा के टिकट के घोषणा के साथ ही लोकसभा क्षेत्र के समीकरण बदलते हुए नजर आ रहे है. चुनाव की घोषणा के बाद इंदौर लोकसभा में कांग्रेस के लिए योग्य उम्मीदवार की तलाश मुश्किल मानी जा रही थी. प्रदेश के मुख्यमंत्री और कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ ने राज्य की भोपाल और इंदौर सीटों को कांग्रेस की सबसे कठिन सीटों में शुमार किया था.
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इसी योजना के तहत कांग्रेस ने कठिन सीट पर मुकाबले के लिए पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह को मैदान में उतारा. उम्मीद इंदौर से भी किसी बड़े नाम को उतारे जाने की थी. भोपाल में दिग्विजय सिंह के उम्मीदवार होने से कांग्रेस मैदान में आ गई और मुकाबला कांटे का हो गया. इंदौर से कोई बड़ा नाम सामने नहीं आया और शहर से ही तीन चुनाव हारने वाले पंकज संघवी को टिकट दे दिया.
भाजपा अपने टिकट में लगातार देरी कर रही थी. वहीं लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन भी चुनावी मैदान में से खुद को बाहर करने की घोषणा कर चुकी थी. उम्मीदवार घोषित करने में देरी के पीछे ऐसा माना जा रहा था कि पार्टी की रणनीति है और कोई बड़ा नेता भाजपा की ओर से प्रत्याशी बनेगा. इधर रविवार को जब भाजपा ने उम्मीदवार के तौर पर शंकर लालवानी का नाम घोषित किया तो कांग्रेसियों के चेहरे खिल गए. असल में चार दिन पहले ही लालवानी के नाम की घोषणा होते होते रुक गई थी, क्योंकि भाजपा के चुनाव प्रभारी व विधायक रमेश मैंदोला और भाजपा इंदौर नगर अध्यक्ष ने भी शंकर लालवानी को कमजोर बताकर विरोध जता दिया था. 30 सालों में पहली बार भाजपा जातिगत समीकरण के आधार पर टिकट तय करते हुए नजर आ रही है. भाजपा का जोर मराठी, वैश्य या सिंधी उम्मीदवार चुनने पर लगा था. विरोध के बावजूद सिंधी समीकरण की जीत हुई ओर लालवानी का नाम घोषित कर दिया गया.
एक ओर जहां प्रदेश की राजधानी भोपाल में कांग्रेस ने दिग्विजय सिंह को उम्मीवार बनाकर मुकाबले को कड़ा बना दिया है. वहीं इंदौर जैसी परंपरागत सीट पर भाजपा ने विरोध को दरकिनार करते हुए कमजोर माने जा रहे लालवानी को भी टिकट देकर मुकाबले को कड़ा कर दिया है. शंकर लालवानी इससे पहले सिर्फ पार्षद का चुनाव लड़े है. उन्हें पार्टी ने विधानसभा में मौका नहीं दिया था.
जमीनी राजनीति से दूर लालवानी इंदौर लोकसभा के लिए गांवों से समर्थन जुटाना आसान नहीं होगा. उम्मीदवार के पास अपनी टीम की भी कमी है. कांग्रेस उम्मीदवार पंकज संघवी के लिए शहर की विधानसभा सीटों पर भाजपा की बीते चुनाव की लीड को पाटना मुश्किल माना जा रहा है.
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नईदुनिया अखबार के पॉलिटिकल एडिटर ऋषि पांडे ने दिप्रिंट हिंदी से चर्चा में कहा कि इंदौर के उम्मीदवार चयन में इस बार सुमित्रा महाजन और कैलाश विजयवर्गीय की नहीं चली. लालवानी ताई की पसंद नहीं थे, उन्होंने मजबूरी में इस नाम पर सहमति जाहिर की. पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान ने अपने वीटों का इस्तेमाल कर इंदौर का टिकट फाइनल करवा लिया. उन्होंने राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह को इस टिकट के लिए तैयार किया.
शहर में शंकर के होते विरोध को देखते हुए आगामी एक या दो दिन में पूर्व सीएम शिवराज इंदौर जाकर सभी गुटों के साथ बैठक कर आगामी रणनीति पर चर्चा भी करेंगे.
वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी को टिकट नहीं दिए जाने से सिंधी समाज नाराज था. पार्टी ने यह टिकट से सिंधी समाज को साधने की कोशिश की है. हाल ही में इंदौर में भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी को टिकट नहीं दिए जाने से नाराज सिंधी समाज ने विरोध भी दर्ज किया था.
वहीं इंदौर से भाजपा नेता बालकृष्ण अरोरा ने दिप्रिंट हिंदी को बताया कि शंकर लालवानी देश में एक मात्र सिंधी उम्मीदवार है.
भाजपा के लिए गढ़ बचाना आसान नहीं होगा
मध्यप्रदेश में इंदौर लोकसभा सीट भाजपा का गढ़ है. पार्टी ने यहां से कद्दावर नेता सुमित्रा महाजन का 75 के फार्मूले के तहत टिकट काट दिया है. नए उम्मीदवार के चयन के बाद ताई ने बयान भी दिया है , ‘मैं शंकर के पीछे खड़ी हूं.’ हालांकि, दबी जुबान में यह भी बात सामने निकल कर आ रही है कि कमजोर उम्मीदवार को मैदान में लाकर महाजन ने पार्टी को संदेश देने की कोशिश की है कि उनका टिकट कटने के बाद भाजपा के लिए अपना गढ़ बचाना आसान नहीं होगा. कुल मिलाकर इस उम्मीदवारी चयन में महाजन को अपना प्रभाव जताने और बनाए रखने का मौका मिलता दिख रहा है.
गौरतलब है कि इंदौर लोकसभा सीट पर 1957 में कांग्रेस पार्टी ने जीत दर्ज की थी. 1962 में मजदूर नेता होमी दाजी केवल 6293 मतों से जीते थे. इसके बाद यहा से दो बार कांग्रेस के कद्दावर नेता पी.सी. सेठी जीते. 1977 में इस सीट से जनता पार्टी के कल्याण जैन को जीत हासिल हुई. इसके बाद लगातार दो बार कांग्रेस ने इस सीट पर जीत हासिल की. 1980 में हुए चुनाव में सुमित्रा महाजन ने पीसी सेठी को हराकर यहां ले जीत दर्ज की. इसके बाद से लगातार वे सांसद रही हैं. वे इंदौर से 30 साल तक सांसद रही है.