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Wednesday, 20 November, 2024
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सारे फैसले मोदी-शाह के लेने से BJP की निर्णायक इकाई निष्क्रिय, योगी को शामिल करने पर कोई सुगबुगाहट नहीं

भाजपा संसदीय बोर्ड का आखिरी पुनर्गठन अमित शाह ने 2014 में किया था, जब वो पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे. फिलहाल इस पैनल में पांच रिक्तियां हैं.

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नई दिल्ली: भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सर्वोच्च निर्णय लेने वाली इकाई ‘संसदीय बोर्ड’ फिलहाल निष्क्रिय होती नज़र आ रही है. बोर्ड सिर्फ नाम के लिए मौजूद है क्योंकि यहां पिछले पांच सालों में एक के बाद एक करके पांच पद खाली हो चुके हैं. इसके बाद से इकाई की ताकत न केवल लगभग आधी रह गई है, बल्कि दो सालों से एक बार भी बोर्ड की मीटिंग नहीं हुई है.

पांच सालों में पार्टी के कम से कम चार मुख्यमंत्रियों को बदला गया है. उत्तराखंड में दो, असम में एक, गुजरात में एक और मध्य प्रदेश के सीएम के रूप में शिवराज सिंह चौहान को शपथ दिलाई गई थी. इसके अलावा उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में चुनावों के बाद इन चार राज्यों के मौजूदा मुख्यमंत्री को बनाए रखा गया था.

हालांकि ऐसे सभी महत्वपूर्ण निर्णय लेने का अधिकार संसदीय बोर्ड को दिया गया है लेकिन इन नियुक्तियों में बोर्ड ने कोई भूमिका नहीं निभाई. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह सभी निर्णय लेते हैं. बाद में पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा अन्य सदस्यों को पार्टी के फैसले की जानकारी देते हैं. जेपी नड्डा बोर्ड के भी अध्यक्ष हैं.

भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया, ‘निर्णय लेने वाले इस बोर्ड के निष्क्रिय हो जाने के कई कारण रहे हैं. 2014 में एल.के आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी के जाने के बाद से अरुण जेटली और सुषमा स्वराज ही स्टैंड लेने वाले दो दिग्गज नेता थे. वेंकैया नायडू सुझाव देने के लिए हमेशा तैयार रहते थे. अब नितिन गडकरी को छोड़कर बोर्ड में कोई नेता ऐसा नहीं रहा है जो अपने विचारों को सामने रख सके.’

योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में यूपी में ऐतिहासिक जीत के बाद से उम्मीद लगाई जा रही थी कि उन्हें संसदीय बोर्ड के सदस्य के रूप में शामिल किया जाएगा. लेकिन फिलहाल तो नड्डा 12 सदस्यीय पैनल के पांच खाली पड़े पदों को भरने से परहेज करते नज़र आ रहे हैं. बोर्ड को पिछली बार 2014 में तत्कालीन पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने पुनर्गठित किया था.

भाजपा पदाधिकारियों का कहना है कि योगी और अन्य को शामिल करने के लिए बोर्ड की बैठकें बुलाने की जरूरत पड़ सकती है ताकि मुख्यमंत्रियों के चयन, गठबंधन की रणनीतियों और अन्य महत्वपूर्ण नीतिगत फैसलों पर विचार-विमर्श किया जा सके.

2017 के बाद से बोर्ड के खाली पदों की संख्या बढ़ी हैं. साल 2018 में अनंत कुमार और 2019 में सुषमा स्वराज और अरुण जेटली की मौत के बाद से तीन पद खाली हो गए थे. वहीं 2017 में उपराष्ट्रपति के रूप में वेंकैया नायडू की पदोन्नति और पिछले साल कर्नाटक के राज्यपाल के रूप में थावरचंद गहलोत की नियुक्ति ने दो रिक्तियां और बढ़ा दीं.

सुषमा स्वराज के निधन के बाद से बोर्ड में एक भी महिला सदस्य नहीं है. वर्तमान में नड्डा के अलावा मोदी, शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी, मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव (संगठन) बीएल संतोष भाजपा के संसदीय बोर्ड के सदस्य हैं.

दिप्रिंट द्वारा संपर्क किए जाने पर भाजपा प्रवक्ता गुरु प्रकाश पासवान ने कहा, ‘पार्टी अन्य नेताओं के साथ बातचीत के बाद ही फैसले लेती है. निर्णय लेने के मामले में भाजपा सबसे ज्यादा लोकतांत्रिक पार्टी है. इसके लिए चुनाव समिति और राष्ट्रीय कार्यकारिणी समेत कई मंच हैं. पार्टी संसदीय बोर्ड के खाली पड़े पदों को सही समय आने पर भरेगी.’


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‘वाजपेयी-आडवाणी युग’ में बोर्ड लेता था फैसले

अटल बिहारी वाजपेयी, एल.के. आडवाणी और डॉ. मुरली मनोहर जोशी संसदीय बोर्ड के सदस्य रह चुके हैं.

यह राजनाथ सिंह ही थे जिन्होंने पहली बार मोदी को 2006 में बोर्ड में शामिल किया था. बाद में उन्हें 2007 में हटा दिया गया था. लेकिन 2013 में उस समय गुजरात के मुख्यमंत्री रहे मोदी को एक बार फिर से इस सर्वोच्च इकाई में शामिल कर लिया गया.

भाजपा के एक पदाधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि ‘वाजपेयी-आडवाणी युग’ के दौरान निर्णय लेने की प्रक्रिया अलग थी. उस समय बोर्ड की बैठकें हुआ करती थीं. उन बैठकों में सदस्य अपने विचार व्यक्त करते और सर्वसम्मति के बाद ही निर्णय लिए करते थे.’

उन्होंने कहा, ‘लेकिन अब नड्डा, मोदी और शाह आपस में सलाह-मशविरा करते हैं. और उनके फैसले की जानकारी बोर्ड के अन्य सदस्यों को फोन के जरिए दे दी जाती है.’


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संभावित नई नियुक्तियां

भाजपा के संविधान के अनुसार संसदीय बोर्ड में पार्टी अध्यक्ष के अलावा 11 सदस्य हैं. पार्टी अध्यक्ष बोर्ड को ही बोर्ड का अध्यक्ष बनाया जाता है. और वह पार्टी के महासचिव को बोर्ड के सचिव के रूप में नामित करता है.

जब शाह ने आखिरी बार 2014 में संसदीय बोर्ड का पुनर्गठन किया तो उन्होंने चौहान को इसमें शामिल किया था. नड्डा को बोर्ड के सचिव के रूप में नामित किया गया था. शाह से पहले बोर्ड के अध्यक्ष राजनाथ सिंह थे.

पार्टी के एक नेता ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया, ‘जब से योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बने हैं, ऐसी अटकलें हैं कि सर्वोच्च निर्णय लेने वाली इकाई में पद पाने के लिए वह सही विकल्प हैं. चूंकि शिवराज चौहान पहले से ही बोर्ड में हैं, इसलिए सबसे अधिक आबादी वाले राज्य के मुख्यमंत्री को मौका देने से इनकार नहीं किया जा सकता. लेकिन पार्टी को इस बारे में व्यावहारिक होना होगा कि क्या वह पैनल में दो मुख्यमंत्री चाहती है.’

पार्टी के एक सूत्र ने कहा, ‘भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय संसदीय बोर्ड के लिए एक और संभावित उम्मीदवार हो सकते हैं, लेकिन विजयवर्गीय पहले मध्य प्रदेश सरकार में मंत्री रह चुके हैं और चौहान पहले से ही बोर्ड का हिस्सा हैं तो ऐसे में राज्य में सत्ता समीकरण बिगड़ सकते हैं.’

राष्ट्रीय महासचिव और राजस्थान और कर्नाटक के पार्टी प्रभारी अरुण सिंह का भी नाम चर्चा में है. सूत्र ने आगे बताया, ‘वह बिना किसी बड़ी राजनीतिक पहुंच के उस ब्रैकेट में फिट हो सकते हैं.’

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण, महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी, राज्य सभा में सदन के नेता पीयूष गोयल, शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान और श्रम मंत्री भूपेंद्र यादव के नाम भी संभावित की लिस्ट में शामिल हैं.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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