नई दिल्ली: विपक्ष की तरफ से आगामी राष्ट्रपति चुनाव के लिए प्रत्याशी बनाए जाने के एक दिन बाद पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा ने कहा कि ‘हमारे लिए यह तय करना आवश्यक है कि क्या हम ‘बुलडोजर राज’ चाहते हैं या फिर संविधान पर अमल होते देखना चाहते हैं.’
सिन्हा ने दिप्रिंट को दिए एक इंटरव्यू में अपनी पूर्व पार्टी के संदर्भ में कहा, ‘प्रधानमंत्री (नरेंद्र मोदी) और गृह मंत्री (अमित शाह) के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) एक ऐसे रास्ते पर चल रही है जो न केवल अलोकतांत्रिक है, बल्कि हमारे भविष्य के लिए भी खतरनाक है.’
सिन्हा का मुकाबला राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) की प्रत्याशी झारखंड की पूर्व राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू से होगा. यद्यपि आंकड़े मुर्मू के पक्ष में नजर आते हैं, लेकिन सिन्हा के मुताबिक, 18 जुलाई की तारीख केवल आंकड़ों के लिहाज से अहम नहीं है, बल्कि यह एक ‘अधिनायकवादी’ सरकार के खिलाफ एकजुट विपक्ष की लड़ाई की प्रतीक भी है.
यद्यपि मुकाबले में मुर्मू की जीत लगभग तय मानी जा रही है क्योंकि नवीन पटनायक के नेतृत्व वाली बीजू जनता दल (बीजद) जैसी पार्टियां पहले से ही समर्थन का ऐलान कर चुकी हैं. दरअसल, एनडीए उम्मीदवार को आसानी से जीतने के लिए बीजद या जगन मोहन रेड्डी-वाईएसआर कांग्रेस पार्टी के समर्थन की ही जरूरत है. लेकिन सिन्हा को भरोसा है कि सभी गैर-भाजपा नेता और दल उनका समर्थन करेंगे.
उन्होंने कहा, ‘हम पूरी तरह से निश्चिंत हैं कि राज्यों में सक्रिय सभी गैर-भाजपा दल मौजूदा हालात को देखेंगे और इस देश के सामने आने वाले खतरों (सत्तारूढ़ दल से) को महसूस करेंगे और उनमें खड़े होने का साहस होगा.’
सिन्हा ने दावा किया कि उनकी उम्मीदवारी के लिए विपक्ष का साथ आना एक नई शुरुआत है. उन्होंने इसे विपक्ष के लिए ‘नई पहलट और ‘नई शुरुआत’ करार दिया.
उन्होंने कहा, ‘हर कोई पहले कह रहा था कि कोई विपक्ष नहीं है और यह बिखरा हुआ है. अब, यह एक है. मुझे भरोसा है कि यह एकता भविष्य में बनी रहेगी और एकदम निरंकुश होती जा रही सरकार के खिलाफ एक अथक लड़ाई की शुरुआत होगी.’
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‘अनुभव काम आएगा’
एक आईएएस अधिकारी के तौर पर दो दशकों की सेवा के साथ-साथ दो सरकारों में केंद्रीय मंत्री के रूप में अपने कार्यकाल का जिक्र करते हुए सिन्हा ने दावा किया कि उनका लंबा करियर और अनुभव उन्हें इस शीर्ष पद के लिए एक योग्य उम्मीदवार बनाता है.
उन्होंने 2018 में भाजपा छोड़ने से संबद्ध घटनाक्रम के बारे में ज्यादा कुछ कहने से इनकार कर दिया. गौरतलब है कि अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में इसी पार्टी में रहते हुए उन्होंने उस समय देश की प्रमुख राजनीतिक ताकत रही कांग्रेस के खिलाफ एक लंबी लड़ाई लड़ी थी. सिन्हा के मुताबिक, राजनीति हमेशा बदलती रहती है और इसमें कोई स्थिरता नहीं होती है, और पार्टियों को इन बदलती परिस्थितियों को ध्यान में रखना होगा.
उन्होंने कहा, ‘भाजपा जो कल थी, वही आज कांग्रेस है. वाजपेयी और आडवाणी की भाजपा अब खत्म हो चुकी है. विपक्ष में कांग्रेस ने भी हमारा (राष्ट्रपति पद के नामांकन में) सहयोग किया है. लोकतंत्र केवल संख्या पर निर्भर नहीं करता, बल्कि सर्वसम्मति से चलता है.’
चुनाव में सिन्हा का मुकाबला ओडिशा की आदिवासी नेता मुर्मू के साथ है, जो झारखंड से विधायक होने के साथ-साथ राज्यपाल भी रह चुकी हैं.
हालांकि, सिन्हा को पता था कि भाजपा उनके खिलाफ उम्मीदवार उतारेगी, लेकिन उनका कहना कि ‘अच्छा यही होता कि वह इस पद के लिए अकेले दावेदार होते.’ फिर भी, पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री को भरोसा है कि उन्हें समान विचारधारा वाले विपक्षी दलों से समर्थन मिलेगा.
यह उम्मीद जताते हुए कि निर्वाचक मंडल के ऐसे नेता उन्हें वोट देंगे, सिन्हा ने यह भी कहा कि गैर-भाजपा मुख्यमंत्रियों को अब केंद्र की ‘नाराजगी’ का सामना करना पड़ेगा.
शिवसेना के मंत्री एकनाथ शिंदे के अपनी ही पार्टी के प्रमुख और मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के खिलाफ बगावत कर देने के बाद महा विकास अघाड़ी सरकार के भविष्य को लेकर अनिश्चितता का जिक्र करते हुए कहा सिन्हा ने कहा, ‘मैं व्यक्तिगत तौर पर जानता हूं कि आज कितने नेता ईडी (प्रवर्तन निदेशालय) और सीबीआई (केंद्रीय जांच ब्यूरो) जैसी सरकारी एजेंसियों से परेशान हैं. आज धनबल और ऐसी एजेंसियों के दुरुपयोग के जरिये जनता का चुनावी जनादेश बदला जा रहा है. देखिए आज महाराष्ट्र में क्या हो रहा है.’
सिन्हा ने कहा कि एक ‘राजनीतिक व्यक्ति’ के नाते लोगों को इन ‘खतरों’ के बारे में आगाह करना उनका कर्तव्य है. उन्होंने कहा, ‘आज हम रेड राज में जी रहे हैं.’
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