नई दिल्ली: पिछले कुछ दिनों में बीजेपी के शीर्ष स्तर की बैठकों की एक श्रृंखला ने 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले आखिरी कैबिनेट फेरबदल, संभावित संगठनात्मक परिवर्तन और जाति संतुलन को लेकर पार्टी में अटकलें तेज कर दी हैं.
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, बीजेपी. अध्यक्ष जे.पी.नड्डा और पार्टी के महासचिव (संगठन) बी.एल. संतोष ने बीते बुधवार को सरकार में संभावित बदलावों को लेकर पांच घंटे तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से उनके आवास पर बैठक की. जुलाई 2021 के बाद से अब तक मोदी मंत्रिमंडल में कोई फेरबदल नहीं किया है.
बैठक में, पार्टी नेतृत्व ने 2024 के लोकसभा चुनावों की रणनीतियों पर भी चर्चा की और फैसला लिया गया कि लोकसभा की सभी 543 सीटों को तीन क्षेत्रों- उत्तर, पूर्व और दक्षिण में बांट दिया जाएगा. इसके बाद इन क्षेत्रों के हिसाब से रणनीति को लेकर जुलाई की शुरुआत से बैठक शुरू होने की उम्मीद है.
कुछ राज्यों के प्रदेश अध्यक्षों का कार्यकाल भी समाप्त होने के करीब है, ऐसे में उन पदों पर भी नियुक्ति काफी महत्वपूर्ण हो जाती है. माना जा रहा है कि आम चुनाव से पहले पार्टी संगठन को और अधिक लड़ाकू बनाने के लिए अधिक “अनुभवी चेहरों” को लाने की जरूरत पर जोर दे रही है और बुधवार की बैठक में इसपर भी चर्चा की गई.
यह बैठक ऐसे समय में हुई है जब लोकसभा चुनाव में एक साल से भी कम समय है और पांच महत्वपूर्ण राज्यों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम में नवंबर के आसपास चुनाव होने वाले हैं.
जुलाई 2021 में मोदी कैबिनेट में आखिरी फेरबदल की गई थी. इसमें छह कैबिनेट मंत्रियों- रविशंकर प्रसाद (आईटी और कानून), प्रकाश जावड़ेकर (आई एंड बी), रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ (शिक्षा), डॉ. हर्षवर्धन (स्वास्थ्य), डी.वी. सदानंद गौड़ा (रसायन और उर्वरक) और थावरचंद गहलोत (सामाजिक न्याय और सशक्तिकरण) सहित 12 दिग्गजों को हटा दिया गया था. अब, महत्वपूर्ण राज्यों में चुनावों को देखते हुए एक राजनीतिक संदेश और जाति संतुलन की आवश्यकता को देखते हुए बीजेपी पार्टी संगठन और सरकार में अनुभवी चेहरों को लाने पर विचार कर सकती है.
अमेरिका की अपनी यात्रा से लौटने के तुरंत बाद मोदी ने इस सप्ताह की शुरुआत में भोपाल में अपनी पार्टी के बूथ स्तर के कार्यकर्ताओं के साथ बातचीत करते हुए यूनिफॉर्म सिविल कोड (यूसीसी) का मुद्दा उठाकर अगले लोकसभा अभियान की रूपरेखा तैयार कर दी. यूसीसी बीजेपी के 2019 के घोषणापत्र में किए गए वादे में एक प्रमुख अधूरा वादा है.
पीएम के साथ बुधवार की बैठक से पहले नड्डा, शाह और संतोष ने जून के पहले सप्ताह में बैठकों की एक और श्रृंखला में संभावित बदलावों पर चर्चा की थी. इनमें से एक बैठक में, तीनों नेताओं ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के संयुक्त महासचिव और बीजेपी और उसके वैचारिक स्रोत के बीच सूत्रधार अरुण कुमार से मुलाकात की. समझा जाता है कि बैठक में कुमार ने संगठन और सरकार में नए चेहरे लाने की जरूरत की बात उठाई. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी पार्टी की राज्य इकाई में संभावित बदलावों पर जून के पहले सप्ताह में बीजेपी आलाकमान से मुलाकात की थी.
जहां तक सरकार में बदलाव का सवाल है, बीजेपी सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि चुनाव वाले राज्यों के नेताओं को बड़ी भूमिकाएं दी जा सकती हैं. राजस्थान से- जो एक ठीकठाक आदिवासी आबादी वाला राज्य है- आलाकमान कैबिनेट में आदिवासी प्रतिनिधित्व बढ़ाने पर विचार कर सकता है. 2018 में पार्टी को आरक्षित विधानसभा सीटों पर काफी नुकसान हुआ था जोकि एक प्रमुख चिंता का विषय है.
ऐसा समझा जाता है कि पूर्वी राजस्थान से एक नेता को शामिल करने से जातिगत संतुलन करने और “क्षेत्रीय आकांक्षाओं” को पूरा करने की संभावना है. इसके अलावा, कई विभागों को संभालने वाले मंत्री को हटाया भी जा सकता है.
पार्टी सूत्रों ने आगे कहा कि अगर कैबिनेट में फेरबदल होता है, तो महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की शिवसेना के एक सदस्य को भी मंत्रिमंडल में जगह मिल सकती है.
पार्टी के एक नेता ने दिप्रिंट को बताया कि आलाकमान आमतौर पर नियमित बदलावों को लेकर 3-4 से अधिक बैठकें नहीं करता है, इसलिए वर्तमान घटनाक्रम से यह पता चलता है कि एक बड़ा बदलाव आने वाला है और आगामी चुनावों के लिए एक “व्यापक रणनीति” पर काम चल रहा है.
पार्टी के एक अन्य नेता ने दिप्रिंट से कहा, “यह जरूरी नहीं है कि कैबिनेट में फेरबदल हो. कुछ महासचिवों को जोड़ा जा सकता है क्योंकि कुछ मौजूदा महासचिवों का रिपोर्ट कार्ड संतोषजनक नहीं है. उपाध्यक्षों और फ्रंटल संगठनों में बदलाव किया जा सकता है. यूपी से, श्रीकांत शर्मा और सिद्धार्थ नाथ सिंह, जिन्हें योगी कैबिनेट से हटा दिया गया था, को संगठन में लाया जा सकता है. इसके अलावा कुछ राज्यों के प्रभारी और प्रदेश अध्यक्ष भी बदले जा सकते हैं.”
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हिंदी पट्टी के चुनावी राज्यों पर ध्यान केंद्रित करें
बीजेपी के एक पदाधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया, “कर्नाटक, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली स्थानीय निकाय चुनावों में हार के बाद पार्टी असमंजस में है. नवंबर में कई विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. तीन राज्य (राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़) सबसे महत्वपूर्ण हैं क्योंकि वे हिंदी पट्टी में हैं. उनके खाते में 65 लोकसभा सीटें हैं, जिनमें से 58 सीटें अभी बीजेपी के पास हैं.”
पदाधिकारी ने आगे कहा कि राजस्थान और छत्तीसगढ़ को नए पार्टी अध्यक्ष मिल गए हैं. राजस्थान में सी.पी. जोशी ने सतीश पूनिया की जगह ली है. अरुण साव को छत्तीसगढ़ का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया है. एमपी के प्रदेश अध्यक्ष बी.डी. शर्मा ने अपना कार्यकाल पूरा कर लिया है और पार्टी को उन्हें बरकरार रखने पर फैसला लेना है. पदाधिकारी ने आगे कहा, “हालांकि, पार्टी आम तौर पर चुनाव वाले राज्य में संगठनात्मक ढांचे में गड़बड़ी नहीं करती है, लेकिन शर्मा और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के बीच ‘तालमेल की कमी’ की हालिया रिपोर्ट ने आलाकमान को ‘चिंतित’ कर दिया है.”
पता चला है कि कुछ बीजेपी नेताओं ने एमपी इकाई प्रमुख पद के लिए संभावित उम्मीदवारों के रूप में महासचिव कैलाश विजयवर्गीय, कृषि मंत्री नतेंद्र सिंह तोमर और केंद्रीय जल शक्ति राज्य मंत्री प्रह्लाद सिंह पटेल के नाम सुझाए हैं.
चौहान के सीएम के रूप में पहले कार्यकाल के दौरान तोमर प्रदेश अध्यक्ष बने थे. उन्हें 2006 में इस पद पर नियुक्त किया गया था और वह दो कार्यकाल तक इस पद पर रहे. माना जाता है कि दोनों नेताओं के बीच पहले भी अच्छी ट्यूनिंग रही है.
कर्नाटक बीजेपी के अध्यक्ष के पद को भरने की जरूरत है, क्योंकि नलिन कुमार कतील ने अपना तीन साल का कार्यकाल पूरा कर लिया है. पिछले महीने राज्य चुनावों में पार्टी की हार के बाद, 3 जुलाई को विधानसभा सत्र शुरू होने से पहले विपक्ष का नेता को चुना जाना भी आवश्यक है.
बीजेपी के एक अधिकारी ने दिप्रिंट से कहा, “सबसे महत्वपूर्ण राज्य कर्नाटक है, जहां गंभीर अंदरूनी कलह चल रही है. पार्टी को न सिर्फ वोक्कालिगा बल्कि लिंगायत इलाकों में भी झटका लगा है. पूर्व सीएम (बसवराज) बोम्मई से लेकर (पूर्व मंत्री) अश्वथ नारायण और आर अशोक से लेकर सुनील कुमार और (विधायक) बसनगौड़ा पाटिल यतनाल और (पूर्व मंत्री) शोभा करंदलाजे ने शीर्ष पद के लिए दावा किया है. लिंगायत और वोक्कालिंगा दोनों ही नेता प्रतिपक्ष का पद चाहते हैं. पार्टी को दोनों समुदायों को संतुष्ट करना होगा.”
पहले उद्धृत किए गए पार्टी पदाधिकारी ने कहा कि सबसे महत्वपूर्ण राज्य उत्तर प्रदेश के चुनाव प्रभारी का पद भी खाली पड़ा है.
जबकि पूर्व मंत्री राधा मोहन सिंह यूपी के लिए पार्टी प्रभारी हैं, बीजेपी मिशन 2024 के लिए अधिक “ऊर्जावान” व्यक्ति पर विचार कर रही है. गुजरात पार्टी अध्यक्ष सी.आर. पाटिल, केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर और धर्मेंद्र प्रधान सहित कई नाम इसको लेकर चर्चा में हैं.
‘क्षेत्रीय आकांक्षाएं’, कई विभागों वाले मंत्री
बीजेपी पदाधिकारियों ने कहा कि पार्टी अध्यक्ष नड्डा का कार्यकाल जनवरी 2024 तक बढ़ाए जाने के बाद नई राष्ट्रीय कार्यकारिणी समिति की घोषणा नहीं की गई है, इसलिए संभावना है कि नए नाम जोड़े जाएंगे.
कैबिनेट में संभावित बदलावों पर उन्होंने कहा कि राजस्थान से केवल पांच मंत्री हैं और आदिवासियों का कोई प्रतिनिधित्व नहीं है. उन्होंने कहा, “गजेंद्र सिंह शेखावत (जल शक्ति) और अश्विनी वैष्णव (रेलवे) उच्च जाति से हैं. भूपेन्द्र यादव (श्रम और पर्यावरण) और कैलाश चौधरी (कृषि राज्य मंत्री) ओबीसी समुदाय से आते हैं जबकि अर्जुन राम मेघवाल (कानून) एससी समुदाय से ताल्लुक रखते हैं.”
पदाधिकारी ने कहा: “पूर्वी राजस्थान के जातीय संतुलन और क्षेत्रीय आकांक्षा के लिए आदिवासियों और एक उच्च जाति से प्रतिनिधित्व देने की जरूरत है. सांसद दीया कुमारी, रंजीता कोली, राहुल कस्वां और घनश्याम तिवाड़ी के नाम की चर्चा हैं. मध्य प्रदेश से छह मंत्री हैं लेकिन कैबिनेट में मालवा, महाकौशल विंध्य क्षेत्रों से कोई प्रतिनिधित्व नहीं है.”
इसके साथ ही कुछ ऐसे भी मंत्री है जिसके पास कई विभाग हैं. एक बीजेपी नेता ने कहा, “ऐसे कई मंत्री हैं जिनके पास 2-3 मंत्रालयों का प्रभार है, जैसे मुख्तार अब्बास नकवी को हटाए जाने के बाद स्मृति ईरानी के पास महिला एवं बाल विकास के साथ-साथ अल्पसंख्यक मंत्रालय भी हैं. पीयूष गोयल, प्रल्हाद जोशी, सर्बानंद सोनोवाल, ज्योतिरादित्य सिंधिया, अश्विनी वैष्णव, हरदीप पुरी और भूपेन्द्र यादव भी इस लिस्ट में शामिल हैं. एनडीए को मजबूत करने के लिए सहयोगियों को अधिक सीटें दी जा सकती हैं.”
बदलावों की घोषणा संसद के मानसून सत्र से पहले की जा सकती है, जो जुलाई के तीसरे सप्ताह में शुरू होने की संभावना है. ऊपर उद्धृत नेता ने कहा, “हालांकि, जैसा कि पहले भी हुआ है और होता आ रहा है, यह पूरी तरह से प्रधानमंत्री पर निर्भर है.”
(संपादन: ऋषभ राज)
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