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Thursday, 31 October, 2024
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गुजरात में बैकफुट पर है BJP, कांग्रेस के पास लोगों को एक साथ लाने का मौका: जिग्नेश मेवानी

जिग्नेश मेवानी ने कांग्रेस के प्रति निष्ठा का वचन दिया है और कहा है कि वो पार्टी में इस कारण से शामिल हुए हैं कि वो लोकतंत्र और इनकलाब के लिए खड़ी है.

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नई दिल्ली: कांग्रेस के प्रति निष्ठा का वचन देने वाले निर्दलीय उम्मीदवार जिग्नेश मेवानी ने मंगलवार को कहा कि वो कन्हैया कुमार के साथ मिलकर, जो पार्टी में शमिल हुए हैं, जमीनी स्तर पर युवाओं के साथ जुड़ेंगे ताकि देश के अलग-अलग हिस्सों में एक विशाल सत्ता-विरोधी आंदोलन शुरू किया जा सके.

दिल्ली में दिप्रिंट से बात करते हुए वडगाम से विधायक मेवानी ने ऐलान किया कि वो 2022 के गुजरात विधानसभा चुनाव कांग्रेस के टिकट पर लड़ेंगे.

मेवानी ने कहा, ‘हम राज्य के लोगों के पास जाएंगे और उनसे बात करेंगे. हमारा उद्देश्य राज्यों में एक जन आंदोलन छेड़ना है, जो देश को बीजेपी शासन से हो रही तबाही से बचाने में हमारी सहायता करेगा. हम पानी, स्वास्थ्य, सफाई, शिक्षा और मानवाधिकारों के मुद्दों पर बात करेंगे.

अपने गृह राज्य गुजरात के बारे में बोलते हुए मेवानी ने कहा कि सरकार के कोविड कुप्रबंधन ने राज्य में स्वास्थ्य ढांचे की बदहाली की कलई खोलकर रख दी है. मेवानी ने आगे कहा कि राज्य में छोटे कारोबारी भी नोटबंदी, लॉकडाउन और जीएसटी की वजह से मुसीबतें झेल रहे हैं.

गुजरात के दलित नेता ने पहचान की राजनीति से लेकर गुजरात में लोगों की मांगों और प्रदेश की राजनीति की वर्तमान प्रकृति तक बहुत से विषयों पर बात की.


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गुजरात में बीजेपी

मेवानी ने कहा कि गुजरात में बीजेपी भारी आपसी लड़ाई और अव्यवस्था के बीच जूझ रही है.

उन्होंने कहा, ‘गुजरात में भारतीय जनता पार्टी ने अपने मंत्रिमंडल के सदस्यों को दूध से मक्खी की तरह निकालकर फेंक दिया, प्रधानमंत्री के गृह राज्य में पार्टी के भीतर भारी उथल-पुथल मची हुई है’.

विधायक ने आगे कहा कि बीजेपी राज्य में बैकफुट पर आ गई है.

उन्होंने दावा किया, ‘मेरे सूत्रों ने बताया कि मंत्रियों को हटाए जाने से एक दिन पहले राज्य मंत्रिमंडल के एक सदस्य के यहां आयकर छापा पड़ने वाला था. फिलहाल राज्य में पार्टी की ये हालत है कि वो अब बैकफुट पर आ गई है. इसी वजह से राज्य के कांग्रेस नेताओं के लिए सही समय है कि वो युवाओं को अपने साथ जुटाएं और बीजेपी को उखाड़ फेंकने के लिए एक जन आंदोलन शुरू करें’.

बीजेपी गुजरात में 1998 से सत्ता में बनी हुई है लेकिन मेवानी को लगता है कि कांग्रेस आखिरकार इस पार्टी को उखाड़ फेंकने में कामयाब हो जाएगी.

उन्होंने कहा, ‘2017 के प्रदेश चुनावों में कांग्रेस का प्रदर्शन इतना शानदार था कि हम बीजेपी से सिर्फ 19 सीट पीछे थे. हमें जिस अंतर को पाटना है वो अब घटकर इतना कम रह गया है कि उससे हमें विश्वास मिलता है’.

2017 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी की कुल 99 सीटें, 182-सदस्यीय सदन में साधारण बहुमत के लिए ज़रूरी आंकड़े से केवल सात अधिक थीं और कांग्रेस तथा उसके सहयोगियों द्वारा जीती गईं 80 सीटों से केवल 19 ज़्यादा थीं.

बीजेपी को 49.1 प्रतिशत वोट हासिल हुए, जो 2012 के मुकाबले 1 प्रतिशत अधिक थे लेकिन उसने 16 सीटें गंवा दी थी. कांग्रेस की झोली में 16 सीटों का उछाल, जो 1985 के बाद से राज्य में इसकी सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन था, उसके वोट शेयर में केवल तीन प्रतिशत की बढ़ोतरी से आ गया.


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कांग्रेस में भूमिका

मेवानी ने कहा कि उनका अपनी निष्ठा कांग्रेस की ओर मोड़ने का कारण ये था कि पार्टी लोकतंत्र और इनकलाब के लिए खड़ी है.

पिछले कुछ सालों में पार्टी के अंदर दलित नेताओं को किनारे किए जाने के बारे में पूछने पर उन्होंने कहा, ‘मैं यहां एक बड़ी तस्वीर देख रहा हूं. हमें भारत के लोकतांत्रिक और सामाजिक ताने-बाने को बचाना है, अगर वो खत्म हो गया तो फिर दलितों के लिए लड़ने का सवाल ही नहीं रह जाएगा’.

उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के आगामी चुनावों में वो प्रचार करेंगे या नहीं, इस पर उन्होंने कहा, ‘फिलहाल मेरा फोकस मुख्य रूप से गुजरात पर रहेगा. अगर पार्टी हाईकमान फैसला करता है कि इन सूबों में मेरी जरूरत है तो मैं वहां जरूर मौजूद रहूंगा’.

मंगलवार को कांग्रेस मुख्यालय में छात्र नेता कन्हैया कुमार के साथ मंच साझा करते हुए मेवानी ने कांग्रेस के प्रति अपनी निष्ठा जताई लेकिन ये भी कहा कि वो औपचारिक तौर पर पार्टी में शामिल नहीं हो सकते क्योंकि वो गुजरात विधानसभा में एक सिटिंग विधायक हैं.

इससे पहले 2014 से 2016 के बीच, वो गुजरात में आप प्रवक्ता का काम भी कर चुके हैं. यही वो समय था जब वो गुजरात के उना में एक दलित युवक को पीटे जाने के खिलाफ प्रदर्शन कर चर्चा में आए थे.

राज्य में आम आदमी पार्टी के साथ संभावित गठबंधन पर स्थिति स्पष्ट करते हुए 38 वर्षीय विधायक ने कहा, ‘कांग्रेस ने मुझे छात्र कार्यकर्ता से एक राजनेता बनने में सहायता की, उन्होंने वडगाम में कोई विपक्षी उम्मीदवार न खड़ा करके मेरी मदद की. फिर मैं कहीं और क्यों जाऊं? जब देश की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी ने मेरी प्रगति में सहायता की है, तो फिर मैं किसी और पार्टी में क्यों जाउंगा?’

पार्टी में अपने पद को लेकर, जो अभी तक तय नहीं हुआ है, मेवानी ने कहा, ‘फिलहाल मेरे दिमाग में सिर्फ एक चीज़ है कि बीजेपी सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए देश के युवाओं के बीच एक जन आंदोलन शुरू करूं. पार्टी के अंदर कोई पद लेना मेरी प्राथमिकता नहीं है’.


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पहचान की राजनीति से आगे बढ़ना

हार्दिक पटेल जिन्होंने 2015 के पटेल आंदोलन के दौरान चर्चा में आए उन्हें लगता है कि पार्टी के अंदर ‘गुटबाज़ी’ एक ऐसा कारण रहा है, जिसने उन्हें राज्य में खुलकर काम नहीं करने दिया. कांग्रेस में शामिल होने के बाद सूबे की सियासत में उनकी मौजूदगी धीरे-धीरे गायब हो गई.

अपने पार्टी सदस्य के बचाव और एक दलित नेता की अपनी पहचान पर बोलते हुए मेवानी ने कहा, ‘हार्दिक का उदय 2015 में एक पाटीदार नेता के तौर पर हुआ और वही उनकी पहचान बन गया. अब वो एक किसान और युवा नेता के तौर पर अपनी छवि को सुधारने में लगे हैं.

‘जहां तक एक दलित नेता की मेरी छवि का सवाल है, तो मैं ऐसे लोगों के लिए आवाज उठाता रहा हूं जो अपने बुनियादी अधिकारों से वंचित रहे हैं. मैं उनके अधिकारों के लिए बोलना बंद नहीं करूंगा लेकिन आप मुझे पहचान की राजनीति से आगे बढ़ते हुए देखेंगे और ऐसे बहुत से विषयों पर बोलते हुए देखेंगे जो गुजरात के लोगों के लिए महत्वपूर्ण हैं’.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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