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Friday, 26 April, 2024
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भागवत के ‘आरक्षण पर बहस’ के विचार से बैकफुट पर भाजपा, विपक्षी पार्टियों ने लपका बयान

मोहन भागवत ने रविवार को एक कार्यक्रम में कहा कि जो आरक्षण के पक्ष में हैं और जो इसके खिलाफ है उन्हें सौहादर्पूर्ण वातावरण में बैठकर विचार करना चाहिये.

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नई दिल्ली: तीन राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले आरक्षण पर बहस करने की संघ प्रमुख मोहन भागवत की सलाह ने भाजपा को एक बार फिर बैकफुट पर ला खड़ा किया है. महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड में विधानसभा चुनाव सामने हैं और भागवत का आरक्षण बम मुरझाए विपक्ष को संजीवनी दे सकता है.

संघ प्रमुख ने रविवार को एक कार्यक्रम में कहा कि जो आरक्षण के पक्ष में हैं और जो इसके खिलाफ है उन्हें सौहादर्पूर्ण वातावरण में बैठकर विचार करना चाहिये. उनका तो कोई नुकसान नहीं होने वाला पर जिनका हो सकता है उन्हें दस बार सोचना पड़ेगा. भागवत ने कहा कि वे पहले भी इस मुद्दे पर अपनी राय रख चुके हैं पर उस समय इस मुद्दे पर बड़ा बवाल मचा था.

हालात संभालने में जुटी भाजपा

मोहन भागवत का बयान आते ही भाजपा मामले की नाजुकता को समझते हुए हालात संभालने में जुट गई है. भाजपा महासचिव मुरलीधर राव ने दिप्रिंट से कहा कि, ‘इस मसले पर भाजपा की राय बड़ी साफ़ है और पार्टी आरक्षण की संवैधानिक प्रक्रिया में किसी भी तरह के छेड़छाड़ के पक्ष में नहीं है. इसमें व्यक्तिगत राय का कोई महत्व नहीं है लेकिन विपक्षी दलों को मानो महाराष्ट्र, हरियाणा , झारखंड विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा पर हमला करने का बड़ा मौका मिल गया.’

कांग्रेस, बसपा और आरजेडी ने लपका बयान

मायावती ने मामले को लपकते हुए कहा कि भागवत के बयान से आरएसएस की आरक्षण विरोधी मानसिकता सामने आ गई है. वहीं कांग्रेस के प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने भागवत के बयान को ट्वीट करते हुए लिखा कि ग़रीबों के आरक्षण को खत्म करने और संविधान बदलने की अगली नीति का खुलासा हो गया है .आरजेडी प्रवक्ता और सांसद मनोज झा ने कहा लगभग धमकी देते हुए कहा कि ‘बीजेपी आग से न खेले.’

भागवत के बयान से मानों भाजपा को सांप सूंघ गया है. मामले की नाज़ुकता समझते हुए भाजपा आधिकारिक रूप से इस पर प्रक्रिया देने से बचती रही पर केन्द्रीय कैबिनेट में शामिल इस्पात राज्यमंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते ने कहा, ‘आरक्षण एक संवैधानिक प्रक्रिया है और इसकी समीक्षा और बदलने का कोई सवाल ही पैदा नहीं होता.’ कुलस्ते ने दिप्रिंट से कहा कि, ‘इंदौर के एक कार्यक्रम में भागवत जी ऐसा विचार व्यक्त कर चुके हैं पर बीजेपी की राय बड़ी साफ़ है कि आरक्षण का फायदा सभी वर्गों तक अभी नहीं पहुंचा है.’

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पहले भी दे चुके हैं सुझाव

ये पहली बार नहीं है कि जब आरक्षण की समीक्षा और उसकी उपयोगिता पर बहस करने का सुझाव आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने दिया है. बिहार विधानसभा चुनाव के समय 2015 में भागवत के आरक्षण की समीक्षा पर दिए बयान को आरजेडी प्रमुख लालू यादव ने चुनाव का मुख्य मुद्दा बना दिया था और भाजपा को विधानसभा चुनाव में करारी हार का सामना करना पड़ा था .

बिहार विधानसभा चुनाव में अकेली लड़ी भाजपा को हार की कई वजहों में भागवत के बयान के बाद पिछड़ों में हुए ध्रुवीकरण को मुख्य वजह माना गया था. हरियाणा में जाट और महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण के लिए आंदोलन कर चुके हैं, और फडनवीस सरकार को प्रभुत्वशाली मराठा समुदाय को ख़ुश करने के लिए 16 प्रतिशत आरक्षण देने की घोषणा करनी पड़ी थी.

मोदी सरकार ने लोकसभा चुनाव से पहले अगड़ी जातियों की नाराजगी दूर करने के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण आर्थिक रूप से पिछड़ों को देने की घोषणा की थी पर भागवत के बयान को विपक्षी दलों ने भुनाया तो आदिवासी पिछड़ों की बहुतायत वाले राज्य झारखंड और महाराष्ट्र में भाजपा को घर संभालने के लिए ज्यादा मेहनत करनी पड़ेगी.

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