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Saturday, 4 May, 2024
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या तो मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लगे, या सीएम को जाना चाहिए’, BJP के मिजोरम सहयोगी MNF के सांसद बोले

एमएनएफ के लोकसभा सांसद सी लालरोसांगा का कहना है कि पीएम मोदी को मणिपुर मुद्दे पर बहुत पहले बोलना चाहिए था. उनका दावा है कि उन्हें इशारों में कहा गया था कि एनडीए की बैठक में इस पर चर्चा न करें.

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नई दिल्ली: मणिपुर में जातीय हिंसा को रोकने में भाजपा सरकार की विफलता की ओर इशारा करते हुए एनडीए सहयोगी मिजोरम नेशनल फ्रंट (एमएनएफ) के लोकसभा सांसद सी. लालरोसांगा ने कहा है कि या तो मुख्यमंत्री बीरेन सिंह को इस्तीफा दे देना चाहिए या राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा देना चाहिए.

एमएनएफ मिजोरम में सत्तारूढ़ पार्टी है, ज़ोरमथांगा मुख्यमंत्री हैं. यह भाजपा के नेतृत्व वाले नॉर्थ-ईस्ट डेमोक्रेटिक अलायंस (एनईडीए) का भी हिस्सा है. 2019 के लोकसभा चुनाव में एमएनएफ के सी. लालरोसांगा ने मिजोरम की एकमात्र संसदीय सीट जीती थी.

लालरोसांगा हाल ही में अपनी पार्टी की ओर से दिल्ली में आयोजित एनडीए बैठक में शामिल हुए थे, लेकिन उनका दावा है कि उन्हें ‘अप्रत्यक्ष’ रूप से मणिपुर और यूनिवर्सल सिविल कोड (यूसीसी) के मुद्दे पर चर्चा नहीं करने के लिए कहा गया था.

उन्होंने सोमवार को दिप्रिंट को बताया, “नहीं.. बिल्कुल नहीं.. मुझे पहली बार में बोलने के लिए नहीं कहा गया था. मुझसे इनडायरेक्टली कहा गया कि मुझे मणिपुर और यूसीसी पर नहीं बोलना चाहिए. यही कारण है कि मैंने आमंत्रित किए जाने पर भी न बोलने का फैसला किया.”

लोकसभा सांसद ने कहा कि अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस मुद्दे पर पहले ही बात की होती तो स्थिति बेहतर हो सकती थी.

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उन्होंने कहा, “पीएम को बहुत पहले बोलना चाहिए था. सिर्फ उस विशेष वीडियो पर ही नहीं, जिसमें दो नग्न लड़कियों को बेरहमी से घुमाया जा रहा था. न केवल उस पर बल्कि अन्य मुद्दों पर भी.. जो इससे जुड़े हुए मुद्दे हैं. इस समस्या का कारण क्या है और इस समस्या की जड़ क्या है उन्हें इसपर भी नजर रखनी चाहिए. उन्हें बहुत पहले ही बोलना चाहिए था जैसा कि उन्होंने देश में कई दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं के दौरान किया है, जहां वह हमेशा सबसे पहले सामने आते रहे हैं और लोगों के प्रति सहानुभूति जताते हुए बोलते थे. मुझे लगता है कि कम से कम कुछ हद तक स्थिति बेहतर होती (अगर उन्होंने पहले बोला होता),” .

लालरोसांगा ने कहा, बीरेन सिंह राज्य में हिंसा को रोकने में विफल रहे. उन्होंने कहा, “जहां तक मैं देख रहा हूं मणिपुर की हालत ख़राब है, स्थिति नियंत्रण से बाहर होती जा रही है. वास्तव में जब हिंसा भड़की तब से ही यह नियंत्रण में नहीं है. इसलिए स्थिति काफी खराब है. हालांकि इसे शांतिपूर्ण बताया गया है, लेकिन यह निश्चित रूप से बिल्कुल भी शांतिपूर्ण नहीं है. और इसलिए मेरा मानना है कि बहुत कड़ी कार्रवाई करनी होगी. स्थिति को नियंत्रण में लाने के लिए कुछ कठोर कदम उठाने होंगे. ”

उन्होंने कहा, “वर्तमान में, मैं भाजपा (एनडीए) के साथ गठबंधन में हूं, यह एक सच्चाई है. लेकिन बात यह है कि मणिपुर में विशेष राज्य सरकार, भले ही वह भाजपा सरकार है, मुझे लगता है कि स्थिति को नियंत्रित करने में विफल रही है. वे स्थिति को नियंत्रित करने में सक्षम नहीं हैं, और वे कोई समाधान देने में भी सक्षम नहीं हैं. इसलिए मेरा मानना है कि राज्य सरकार को जाना होगा. या तो राज्य को राष्ट्रपति शासन के तहत रखा जाना चाहिए, या मुख्यमंत्री को जाना चाहिए. ”

एमएनएफ सांसद ने कहा कि मणिपुर मुद्दे का भाजपा के साथ उनके गठबंधन पर असर पड़ने की संभावना है, हालांकि उन्होंने बताया कि अंतिम निर्णय उनकी पार्टी पर निर्भर है. उन्होंने कहा, “मणिपुर मुद्दे का निश्चित रूप से (गठबंधन पर) प्रभाव पड़ने की संभावना है. क्योंकि जो पार्टी सत्ता में है वो बीजेपी की सरकार है. मेरे निर्वाचन क्षेत्र में मेरे लोग हैं, उनकी भावनाएं आदिवासियों के साथ हैं. इसलिए, उन्हें लगता है कि बहुत अन्याय हुआ है.. और, इसलिए, हम अन्याय का पक्ष नहीं ले सकते. और हम, शायद, अब एनडीए में बने नहीं रह सकते. बेशक, यह मेरी पार्टी नेतृत्व को तय करना है लेकिन मुझे ऐसा लगता है. मोटे तौर पर यही जनता की भावना है.”.

मणिपुर में जातीय हिंसा पर मोदी के बयान की मांग को लेकर विपक्षी सदस्यों के विरोध प्रदर्शन के बाद लोकसभा और राज्यसभा की कार्यवाही बाधित हुई है.

लालरोसांगा ने कहा कि वह इस मुद्दे को संसद में उठाने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ.उन्होंने कहा, “संसद सत्र शुरू होने से ठीक पहले, सत्र-पूर्व बैठकों में जो हमने (सर्वदलीय बैठक) की थी, मैंने कहा था कि इन मामलों को निश्चित रूप से सदन के पटल पर उठाया जाना चाहिए और मुझे एक पड़ोसी राज्य के सांसद के रूप में बोलने की अनुमति दी जानी चाहिए, जो तात्कालिकता और इसमें शामिल जातीयता के कारण बहुत चिंतित है. मैंने कहा कि मुझे बोलने की अनुमति दी जानी चाहिए. अब तक, कोई मौका नहीं मिला है.”

“मैंने एक स्थगन प्रस्ताव प्रस्तुत किया था लेकिन यह अभी तक सामने नहीं आया है.”

मैतेई को अनुसूचित जनजाति (एसटी) श्रेणी में शामिल करने की मांग का विरोध करने के लिए 3 मई को निकाले गए ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ के बाद मणिपुर के आदिवासी कुकी और गैर-आदिवासी मैतेई समुदायों के बीच जातीय झड़पें शुरू हो गईं. पुलिस आंकड़ों के मुताबिक, हिंसा में अब तक 157 से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी है और 50,000 से ज्यादा लोग विस्थापित हुए हैं.

लालरोसांगा ने कहा कि मणिपुर हिंसा का असर मिजोरम पर पड़ सकता है, खासकर राज्य में इस साल के अंत में होने वाले चुनाव से पहले.

उन्होंने जोर देकर कहा,“मैं अपने राज्य में इन चीजों के फैलने को लेकर बहुत आशंकित हूं. जैसा कि आप जानते हैं, मिज़ोरम एक बहुत ही शांतिपूर्ण राज्य है, और इसलिए हम अपने राज्य में शांति बनाए रखना चाहेंगे. लेकिन हमें आशंका है कि चीजें मणिपुर से फैल सकती हैं… उथल-पुथल हो सकती है, इसलिए मैं सभी संबंधित पक्षों को सलाह दे रहा हूं कि वे कृपया देखें कि मिजोरम की स्थिति कैसे बरकरार रखी जाए और हम अभी भी उन लोगों के लिए शांति का आश्रय बने रह सकते हैं जो आश्रय चाहते हैं, चाहे वह म्यांमार से हों, या बांग्लादेश से, या मणिपुर से, जैसा कि हम अभी भी कर रहे हैं.”

(संपादन- पूजा मेहरोत्रा)


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