बेंगलुरू/विजयपुरा: कर्नाटक में दो विधानसभा क्षेत्रों हंगल और सिंदागी के लिए चुनाव प्रचार बुधवार को समाप्त हो गया. सिंदागी में जहां शुरुआत में बीजेपी के लिए आसान रास्ता दिख रहा था, अब मुकाबला कांटे की लड़ाई में बदल गया है. वहीं, हंगल जो पहले से ही बीजेपी के लिए एक कड़ी चुनौती पेश कर रहा था, वहां बीजेपी और कांग्रेस के बीच एक काफी नजदीकी मुकाबला है.
हालांकि मौजूदा बीजेपी सरकार के लिए ये उपचुनाव संख्यात्मक दृष्टि से महत्वहीन हैं लेकिन फिर भी मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई के नेतृत्व वाली पार्टी इन दोनों सीटों पर जीत के लिए हर संभव प्रयास कर रही है. राज्य इकाई द्वारा नियुक्त ‘प्रभारियों’- इन दोनों में से प्रत्येक विधानसभा सीट के लिए मंत्रियों सहित 13-13 लोगों के अलावा बोम्मई ने मतदाताओं को लुभाने के लिए अपने मंत्रिमंडल की पूरी ताकत झोंक दी है.
हर रोज लगभग 10 मंत्रियों ने हंगल में डेरा डाला और वहां प्रचार किया. बता दें कि यह बीजेपी के लिए एक प्रतिष्ठा वाली सीट बन गई है जिसे वह हर हाल में अपने पास बनाए रखने के लिए लड़ रही है.
सिंदागी, जो पहले जनता दल (सेक्युलर) के पास थी उसमें भी राज्य भर से बीजेपी के मंत्रियों और विधायकों की भीड़ उमड़ रही है. वे तमाम तरह की बैठकें कर रहे हैं और कैडर में जान फूंक रहे हैं.
सिंदागी की कच्ची, धूल भरी सड़कों में डगमगाते हुए गुजरने वाली राजनीतिक नेताओं की बड़ी कारें यहां के सीधे-सादे निवासियों के बीच चर्चा का विषय बन गई हैं.
सिंदागी निवासी रेवनसिद्दप्पा मुकरंबी ने दिप्रिंट से बात करते हुए कहा, ‘हमने कभी भी इतने सारे मंत्रियों को एक साथ नहीं देखा. अगर उपचुनाव ऐसे ही दिखते हैं तो हर पांच साल में दो या तीन ऐसे उपचुनाव होने चाहिए.’
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बोम्मई खुद को साबित करना चाहते हैं, लेकिन फिर भी वे येदियुरप्पा पर निर्भर हैं
बोम्मई के लिए उपचुनावों में बहुत कुछ दांव पर लगा है. खासकर हाल ही में हुए तीन नगर निगमों के चुनावों में उनके नेतृत्व में लड़ने वाली बीजेपी को मिलने वाले मिले-जुले नतीजों के बाद.
सिंदागी और हंगल के ये उपचुनाव किसी चुनाव में बीजेपी के प्रमुख चेहरे और अपने समुदाय के मतदाताओं- लिंगायतों के बीच उनकी अपील के रूप में उनकी योग्यता की असल परीक्षा है, खासकर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह द्वारा सितंबर में यह घोषित किए जाने के बाद कि पार्टी कर्नाटक में बोम्मई के नेतृत्व में ही चुनाव लड़ेगी.
इस दो चुनावी सीटों पर बीजेपी की किस्मत की चाबी लिंगायतों के पास ही है. इसलिए भाजपा की अपने प्रमुख लिंगायत नेता बी.एस. येदियुरप्पा जिन्हें बमुश्किल तीन महीने पहले ही सीएम पद से इस्तीफा देना पड़ा था, उन पर निर्भरता अधिक है. विशेष रूप से हंगल में जहां उनके चुनाव अभियान के कार्यक्रम को विस्तारित किया गया था.
बीजेपी की राज्य इकाई के उपाध्यक्ष और येदियुरप्पा के बेटे विजयेंद्र ने दिप्रिंट को बताया, ‘हमारा उद्देश्य इन दोनों सीटों पर जीत हासिल करना है. हंगल एक चुनौतीपूर्ण सीट है लेकिन पिछले एक हफ्ते में हमारे प्रचार अभियान ने रफ्तार पकड़ी है. बोम्मई हो या येदियुरप्पा हमारा लक्ष्य बीजेपी की जीत सुनिश्चित करना है.‘ वह हंगल सीट के प्रभारियों में से एक हैं.
येदियुरप्पा के एक करीबी सहयोगी ने दावा किया, ‘येदियुरप्पा 25 अक्टूबर को वापस लौटने वाले थे लेकिन सीएम ने जोर देकर कहा कि वह प्रचार के आखिरी दिन तक वहीं बने रहें. जब-जब उन्होंने प्रचार किया तब-तब भीड़ में अंतर स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा था खासकर हंगल में.’
उप-जाति वाला कारक सिंदागी को भी आश्चर्यजनक रूप से चुनौतीपूर्ण बना दे रहा है.
यहां सबसे प्रभावशाली समुदाय पंचमासली लिंगायत और गनीगा लिंगायत हैं. उसके बाद आते हैं कुरुबा, मुस्लिम और अनुसूचित जाति (एससी), जो एससी लेफ्ट और एससी राइट में विभाजित हैं. एससी लेफ्ट अपनी पहचान पूर्व उपप्रधानमंत्री जगजीवन राम से जोड़ते हैं और एससी राइट बी.आर. आंबेडकर और बौद्ध धर्म से.
सिंदागी निवासी राजीव भैरी एक स्कूल में शारीरिक शिक्षा के शिक्षक हैं, उन्होने कहा, ‘लिंगायतों में बी.एस. येदियुरप्पा को बाहर किए जाने के कारण एक तरह की मायूसी है. उनमें किसी और को भाजपा के मुख्यमंत्री के रूप में स्वीकार करने के प्रति अनिच्छा दिखती है.’
जहां बोम्मई स्वयं इस चुनाव अभियान का संचालन कर रहे हैं, वहीं येदियुरप्पा एक बड़ी भीड़ जुटाने वाले नेता के रूप में उभरे हैं.
पूर्व सीएम के द्वारा चुनाव प्रचार शुरू करने से पहले इस वरिष्ठ नेता के एक करीबी ने दिप्रिंट को बताया था, ‘अगर पार्टी दोनों सीटें जीत जाती है तो येदियुरप्पा के आलोचक यह घोषणा कर देंगे कि पार्टी को चुनाव जीतने के लिए अब उनकी जरूरत नहीं है. अगर वे हार जाते हैं तो यह बोम्मई और पार्टी के साथ-साथ येदियुरप्पा के लिए भी शर्मनाक बात होगी.’
कर्नाटक बीजेपी के महासचिव एन. रविकुमार ने दिप्रिंट को बताया, ‘उपचुनावों में हमेशा मौजूदा सरकार को अतिरिक्त फायदा होता है. हमारे चुनावी अभियान का मुख्य आधार यही है कि उपचुनाव में विपक्षी पार्टी के विधायक को चुनने से लोगों को कुछ हासिल नहीं होता है जब कि सत्ताधारी पार्टी का उम्मीदवार अच्छा काम कर सकता है.’
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चुनाव से पहले कैसी है इन दोनों सीटों की चुनावी स्थिति?
सिंदागी सीट जो पहले जद(एस) के पास थी लेकिन अब मुख्य लड़ाई कांग्रेस और भाजपा के बीच है.
पड़ोस के विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र जेवरगी से कांग्रेस विधायक अजय धर्म सिंह ने कहा, ‘पिछली बार हमने सिंदागी सीट 1999 में जीती थी. यह हमेशा से भाजपा का गढ़ रहा है जिसे कभी-कभार जद(एस) ने भी जीता है. भले ही दो हफ्ते पहले यहां से भाजपा को वॉकओवर मिलता दिख रहा था लेकिन अब वह स्थिति नहीं है.’
हालांकि, जद(एस) ने कांग्रेस द्वारा उसके संभावित उम्मीदवार अशोक मनागुली जो पार्टी के एक पूर्व विधायक के बेटे हैं, को ‘चोरी’ किए जाने के कदम से नाराज होते हुए एक मुस्लिम महिला उम्मीदवार नाजिया शकील अंगड़ी को मैदान में उतारा है. इसके बारे में कांग्रेस का दावा है कि इस कदम का उद्देश्य ‘धर्मनिरपेक्ष’ वोटों में सेंध लगाना है.
इसकी वजह से महिलाओं और मुस्लिम वोट बैंक को होने वाले संभावित नुकसान की भरपाई के लिए कर्नाटक प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष डी.के. शिवकुमार और कांग्रेस विधायक दल के प्रमुख सिद्धारमैया जो पार्टी के अभियान का नेतृत्व कर रहे हैं और विभिन्न समुदाय के नेताओं, मौलवियों और संतों के साथ बैठकें कर रहे हैं.
पूर्व प्रधानमंत्री और जद(एस) के संरक्षक एच.डी. देवेगौड़ा भी सिंदागी में डेरा डाले हुए हैं और इस सीट को जीतने के लिए हर संभव कोशिश कर रहे हैं. जद(एस) द्वारा लगाए जा रहे जोर ने सिंदागी को एक वॉकओवर वाली स्थिति से कांटे की टक्कर वाली लड़ाई बना दिया है.
जद(एस) के प्रदेश अध्यक्ष एच.के. कुमारस्वामी ने दिप्रिंट को बताया, ‘यह हमारी सीट रही है. सिंदागी में कांग्रेस हमेशा तीसरे नंबर पर रही है. राष्ट्रीय दलों के पास खूब पैसा होता है लेकिन सिंदागी में हमारे पास एक मजबूत, जमा-जमाया कार्यकर्ता समूह (काडर) हैं.’
हालांकि, स्थानीय निवासियों का कहना है कि दिवंगत नेता एम.सी. मनागुली की चुनावी जीत जद(एस) की अपील से ज्यादा उनके व्यक्तिगत करिश्मे की वजह से होती थी. पंचमसाली लिंगायत के नेता अशोक मनागुली की उम्मीदवारी के साथ कांग्रेस इसी फायदे को भुनाने की उम्मीद कर रही है.
भाजपा ने इस सीट से पूर्व विधायक और गनीगा लिंगायत से ताल्लुक रखने वाले रमेश भूसनूर को मैदान में उतारा है.
सिंदागी की तरह हंगल में भी एक मुस्लिम उम्मीदवार नियाज शेख को मैदान में उतारने के जद(एस) के फैसले की कांग्रेस ने कड़ी आलोचना की है.
अपनी पार्टी के उम्मीदवार शिवराज सज्जनर की हंगल सीट से जीत सुनिश्चित करने के लिए पार्टी के अभियान की रणनीति बना रहे एक बीजेपी पदाधिकारी ने कहा, ‘शहरों के विपरीत, ग्रामीण क्षेत्रों में उम्मीदवार का अपना समुदाय कम मायने रखता है. अगर जद(एस) कांग्रेस के वोट में सेंध लगाता है तो हमारे पास हंगल में अच्छा मौका है. लेकिन, अगर यह एससी, ओबीसी (कुरुबा के अलावा) वोटों को खींच ले जाता है तो हम मुश्किल में पड़ जाएंगे.’
इस पदाधिकारी ने कहा, ‘यह हमारे जीतने के लिए एक कठिन सीट है क्योंकि कांग्रेस के उम्मीदवार ने खुद को इस निर्वाचन क्षेत्र में होने वाले सभी कामों का पर्यायवाची बना लिया है, जबकि हमारे विधायक दिवंगत सी.एम. उदासी ज्यादातर अस्वस्थ और बिस्तर पर पड़े हुए थे.’
एक और जहां कांग्रेस इन उपचुनावों में महंगाई, विकास की कमी, सत्ता विरोधी लहर जैसे मुद्दों पर जोर दे रही है वहीं बीजेपी सत्ताधारी सरकार होने का लाभ उठाने की उम्मीद लगा रही है.
राजनीतिक विश्लेषक और लोकनीति नेटवर्क के राष्ट्रीय समन्वयक संदीप शास्त्री कहते हैं, ‘इस बात के प्रमाण हैं कि उपचुनाव के नतीजे सत्तारूढ़ दल के पक्ष में होते हैं लेकिन ऐसे भी सबूत हैं जो इसका उल्टा नतीजा होने की तरफ भी इशारा करते हैं. अगर उपचुनाव सरकार के कार्यकाल के शुरुआत में होते हैं तो सत्तारूढ़ दल को लाभ होता है लेकिन अगर वे कार्यकाल के बाद वाले भाग में आयोजित किए जाते हैं तो सत्तारूढ़ दल का प्रदर्शन मायने रखता है.’
शास्त्री ने आगे कहा, ‘लेकिन यह उपचुनाव उस चक्र के एकदम बीच में हो रहा है. इसलिए यह देखना दिलचस्प है कि यहां इस साइकिल का कौन सा हिस्सा कारगर होगा.’ वे यह भी कहते हैं कि उपचुनाव कभी भी राज्य की वर्तमान मनोस्थिति का संकेतक नहीं होते हैं.
सिंदागी और हंगल में शनिवार को मतदान होना है और नतीजे 2 नवंबर को सामने आएंगे.
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