नई दिल्ली: झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन रांची के एक औद्योगिक क्षेत्र में भूमि आवंटन और खनन पट्टे के आवंटन को लेकर अपने ऊपर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों में खुद को मुश्किल में पा रहे हैं.
राज्य के आदिवासी समुदायों के समर्थन न मिल पाने की वजह से 2019 के विधानसभा चुनाव हारने वाली भाजपा अब सोरेन के इस्तीफे की मांग कर रही है. वह सोरेन को ‘भ्रष्टाचार का चेहरा’ बता रही है.
अपने पिता शिबू सोरेन की तरह झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन भी खुद को भ्रष्टाचार के आरोपों से बचाते हुए नजर आ रहे हैं. शिबू सोरेन का नाम 1993 के सांसद रिश्वत कांड में खूब उछला था. नरसिम्हा राव सरकार के खिलाफ लाए गए अविश्वास प्रस्ताव में झामुमो सांसदों को सरकार के पक्ष में मतदान करने का निर्देश देने के लिए कथित रूप से 1 करोड़ रुपये लेने का आरोप लगा था.
सीएम सोरेन पर लगे आरोप
भाजपा ने पिछले दिनों झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन पर आरोप लगाया कि उन्होंने राज्य खनन विभाग के पद पर रहते हुए अपने साथ-साथ, अपने राजनीतिक सलाहकार पंकज मिश्रा और प्रेस सलाहकार अभिषेक प्रसाद को भी खनन पट्टा आवंटित किया है.
झामुमो की महासचिव सुप्रिया भट्टाचार्य ने दिप्रिंट को बताया, ‘भाजपा द्वारा लगाए गए आरोप अदालत में टिक नहीं पाएंगे. वे मुख्यमंत्री पर जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 9ए का उल्लंघन करने का आरोप लगा रहे हैं, क्योंकि उन्होंने अपनी कंपनी को खदान आवंटित करने का आदेश जारी किया था.’
वह आगे कहती हैं, ‘लेकिन यह एक प्रशासनिक गलती थी. और जब इसे मुख्यमंत्री के ध्यान में लाया गया तो उन्होंने इसे ठीक कर दिया. यहां तक कि उन्होंने खदान का पट्टा भी सरेंडर कर दिया. तो ऐसे में मामला कहां बनता है.’
भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री रघुबर दास ने आगे आरोप लगाया है कि मुख्यमंत्री सोरेन जिस विभाग के मंत्री हैं, उसी विभाग ने रांची के बीजूपारा औद्योगिक क्षेत्र में उनकी पत्नी कल्पना सोरेन के नाम भी 11 एकड़ भूमि आवंटित कर दी.
झारखंड के राज्यपाल रमेश बैस ने पिछले सप्ताह नई दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की और उन्हें मामले के ताजा घटनाक्रम की जानकारी दी.
एक सूत्र ने दिप्रिंट को बताया, ‘राज्यपाल ने इस मुद्दे पर राज्य सरकार के साथ और भ्रष्टाचार के आरोपों की वैधता की जांच करने के लिए चुनाव आयोग के साथ जो भी बातचीत हुई, केंद्रीय गृह मंत्री के साथ उस पर चर्चा की.’
राज्यपाल बैस ने भारत के चुनाव आयोग को भी पत्र लिखकर आग्रह किया कि वह सीएम सोरेन के खिलाफ आरोपों की जांच करें और क्या उन्हें ऑफिस ऑफ प्रॉफिट के मामले के चलते एक निर्वाचित प्रतिनिधि के रूप में अयोग्य घोषित किया जा सकता है.
चुनाव आयोग ने झारखंड के मुख्य सचिव को पत्र भेजकर खनन पट्टों के आवंटन से संबंधित दस्तावेजों के साथ इस संबंध में राज्य सरकार से जवाब मांगा है.
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खोई जमीन पर नजर गड़ाए बीजेपी
पिछले विधानसभा चुनावों में आदिवासी समुदायों का समर्थन खो देने के बाद, भाजपा इसे झारखंड के आदिवासी बेल्ट में खोई हुई जमीन फिर से हासिल करने के अवसर के रूप में देख रही है. झामुमो-कांग्रेस गठबंधन ने 2019 में इस बेल्ट की 28 में से 25 सीटें जीती थीं, जबकि भाजपा केवल दो सीटों पर दावा करने में सफल रही थी.
झारखंड की 81 सदस्यीय विधानसभा में झामुमो के 30, कांग्रेस के 16 और भाजपा के 25 विधायक हैं.
भाजपा के झारखंड प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश ने दिप्रिंट को बताया, ‘हम जल्दी में नहीं हैं. जनता की राय सोरेन के खिलाफ हो रही है और हमें भ्रष्टाचार के खिलाफ इस लड़ाई को तार्किक निष्कर्ष की ओर ले जाना है. यदि वह (मुख्यमंत्री के रूप में) अपने पद पर बने रहते हैं तो हम राज्यव्यापी आंदोलन शुरू करेंगे. ये मामला ऑफ़िस ऑफ़ प्रोफ़िट केस के लिए फ़िट बैठता है.
उन्होंने कहा, ‘झामुमो का स्पष्टीकरण बेतुका है. अगर कोई हत्या करता है और कहता है कि यह मेरी गलती थी, तो इससे अपराध कम नहीं हो जाएगा’
एक भाजपा नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, ‘हम जानते हैं कि हमारे पास अभी नंबर्स नहीं हैं. लेकिन कौन जानता है, अगर वह दोषी पाए गए तो क्या होगा? अयोग्य घोषित किए जाने के बाद, संभवतः झामुमो के भीतर विद्रोह हो सकता है. शिबू सोरेन के समय भी ऐसा ही हुआ था. झामुमो के कई नेताओं ने विद्रोह कर दिया था. अगर उन्हें (सीएम सोरेन) दोषी करार दिया जाता है तो कोई भी उनके पक्ष में नहीं खड़ा होगा. और ऐसे में सत्ता परिवर्तन हो सकता है.’
भाजपा के एक अन्य वरिष्ठ नेता ने दिप्रिंट को बताया, ‘यह आदिवासी बेल्ट में अपना आधार फिर से हासिल करने के लिए हमारे चुनाव अभियान की शुरुआत है. लोकसभा और विधानसभा चुनावों के लिए बस दो साल बचे हैं. हम जल्दबाजी में कोई कदम नहीं उठाएंगे क्योंकि आदिवासी भावनाएं उफान मार सकती हैं. हम चुनाव आयोग से भ्रष्टाचार के इस मामले को आगे बढ़ाने का आग्रह करेंगे. लेकिन यह आदिवासियों के बीच सोरेन की छवि को धूमिल करने का एक अच्छा अवसर है.’
सीएम सोरेन के सामने विकल्प
एक संवैधानिक विशेषज्ञ ने कहा कि चुनाव आयोग द्वारा मामले की जांच करने के बाद से सीएम सोरेन का भविष्य अनिश्चितता के बीच झूल रहा है. अगर उनके खिलाफ आरोप सही पाए जाते हैं तो संविधान के प्रावधान के तहत एक विधायक के रूप में उन्हें अयोग्य घोषित कर दिया जाएगा.
संविधान के अनुच्छेद 191 के तहत राज्य विधान सभा के सदस्य को पांच प्रावधानों के तहत अयोग्य घोषित किया जा सकता है: लाभ के किसी भी पद को धारण करना, दिमागी स्थिति का ठीक न होना, दिवालिया होना, भारत की नागरिकता छोड़ना या किसी दूसरे देश की नागरिकता के लिए आवेदन करना, या संसदीय विधानों का उल्लंघन किया जाना.
एसके मेंदीरत्ता जो की 2018 तक 53 साल तक ईसीआई से जुड़े रहे हैं. उन्होंने ने दिप्रिंट को बताया, ‘2001 के करतार सिंह बनाम हरि सिंह नलवा मामले और अन्य मामले में तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने कहा था कि खनन पट्टा सरकार द्वारा निष्पादित किए जाने वाले कार्यों की श्रेणी में नहीं आता है.’
मेंदिरत्ता ने आगे कहा,‘सुप्रीम कोर्ट के फैसले के पैरा 13 में कहा है कि संबंधित सरकार जिसने सड़क बिछाने या बांध बनाने जैसे काम हाथ में लिए हैं और ऐसे काम के क्रियान्वयन के ठेके दिए है, धारा 9 ए के तहत अयोग्य घोषित किया जाना चाहिए. फैसले में यह भी कहा गया है कि माइनिंग लीज खनन को अमल में लाने का कॉन्ट्रैक्ट नहीं है.
हालांकि, झामुमो के एक सूत्र ने कहा कि अगर चुनाव आयोग सीएम हेमंत सोरेन के खिलाफ लगे आरोपों को सही पाता है तो ऐसे में सोरेन अपने परिवार के किसी सदस्य को चुनावों तक सरकार चलाने के लिए नियुक्त कर सकते हैं.
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