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Monday, 23 December, 2024
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बलिया में हत्या के आरोपी का समर्थन करने वाले MLA को BJP का नोटिस, पहले जारी हुए Notice रहे हैं बेअसर

इस साल यूपी के विधायकों को नोटिस देने के साथ प्रज्ञा ठाकुर जैसे सांसदों तक, बीजेपी में ऐसे कई उदाहरण हैं, जिसमें नेताओं के खिलाफ कार्रवाई नहीं की गई है.

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नई दिल्ली: बीजेपी ने अपने यूपी अध्यक्ष स्वतंत्र देवसिंह को, बलिया विधायक सुरेंद्र सिंह को कारण बताओ नोटिस जारी करने के लिए कहा है, जिसके एक सहायक पर अधिकारियों और पुलिस की मौजूदगी में, एक पंचायत मीटिंग में एक व्यक्ति की गोली मारकर हत्या करने का आरोप है. विधायक ने गिरफ्तार अभियुक्त धीरेंद्र प्रताप सिंह का, ये कहते हुए बचाव किया है, कि उसने आत्म-रक्षा में गोली चलाई, और प्रशासन एक तरफा जांच कर रहा है.

विधायक सिंह ने कहा कि ऐसी घटना कहीं भी हो सकती थी; फिर उन्होंने वारदात की निंदा की और उसकी जांच की भी. उन्होंने कहा कि अगर धीरेंद्र ने आत्म-रक्षा में गोली न चलाई होती, तो उसके परिवार के बहुत से सदस्य मारे जाते.

बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने स्वतंत्र देव सिंह को फोन किया, और विधायक के व्यवहार को लेकर चेतावनी दी. उसके बाद सोमवार को यूपी प्रमुख ने विधायक को एक चेतावनी जारी कर दी.

लेकिन, ऐसा पहली बार नहीं है कि बीजेपी ने किसी बेलगाम विधायक या सांसद को, कारण बताओ नोटिस जारी किया है, लेकिन अधिकतर मामलों में आगे कोई कार्रवाई नहीं हुई. दिप्रिंट ऐसे ही कुछ मामलों पर नज़र डालता है.


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यूपी में बड़ी संख्या में नोटिस

इस साल अप्रैल में, बीजेपी ने बरहाज विधायक सुरेश तिवारी को, लोगों से ये कहने के लिए कारण बताओ नोटिस दिया था, कि मुसलमान विक्रेताओं से सब्ज़ियां न ख़रीदें. उन्होंने कहा था, ‘मैं बोल रहा हूं ओपनली, कोई भी मियां के हाथों सब्ज़ी नहीं लेगा’.

उस टिप्पणी की बहुत आलोचना हुई, और नड्डा ने यूपी इकाई को नोटिस जारी करने के लिए कहा. तिवारी ने जवाब भी दिया, लेकिन उसके आगे कोई कार्रवाई नहीं हुई.

उसी महीने, गोपामऊ विधायक श्याम प्रकाश को नोटिस जारी किया गया, जब मेडिकल उपकरणों की ख़रीद में भ्रष्टाचार के आरोप सामने आए. उन्होंने भी बीजेपी के नोटिस का जवाब दिया, लेकिन बस आगे कुछ नहीं.

अप्रैल में ही, सीतापुर विधायक राकेश राठौड़ को, एक वायरल वीडियो के लिए नोटिस जारी हुआ, जिसमें वो अग्रिम मोर्चे के कोविड योद्धाओं के लिए ताली बजाने की, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अपील का मज़ाक़ उड़ा रहे थे. एक दूसरे बीजेपी लीडर से बात करते हुए, उन्होंने पूछा था कि क्या तालियां और शंख बजाने से, कोरोनावायरस को भगाया जा सकता है. उन्होंने कहा था,‘आप मूर्खता के रिकॉर्ड तोड़ रहे हो’. उन्हें भी नोटिस दिया गया, लेकिन आगे कोई कार्रवाई नहीं हुई.

अगस्त में, गोरखपुर विधायक राधा मोहन दास अग्रवाल को, अपनी ही पार्टी के शासन में पुलिस के ‘बेअसर रवैये’ की आलोचना करने के लिए, नोटिस जारी किया गया. अग्रवाल ने सोशल मीडिया पर कहा था, कि क़ानून व्यवस्था पर पुलिस का असर ख़त्म हो रहा है, और उन्होंने गृह विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव, तथा पुलिस महानिदेशक को हटाने की मांग की थी.

मई में अग्रवाल ने एक महिला आईपीएस अधिकारी को निशाने पर लिया था, जिसने एक शराब विरोधी प्रदर्शन को रोकने का आदेश दिया था. उन्होंने सड़क निर्माण और जलभराव के मुद्दों पर भी, सरकार की आलोचना की थी, जिसके बाद उन्हें यूपी बीजेपी उपाध्यक्ष जेपीएस राठौड़ की ओर से नोटिस मिला था. अग्रवाल ने कहा था कि सदन के भीतर वो अपनी पार्टी के साथ थे, लेकिन जनप्रतिनिधि होने के नाते, वो लोगों के प्रति ज़्यादा ज़िम्मेदार हैं. इस बार भी, आगे कोई कार्रवाई नहीं हुई.

यूपी बीजेपी की अनुशासनात्मक कार्रवाई समिति के अध्यक्ष सत्यदेव सिंह ने दिप्रिंट से कहा: ‘अधिकतर मामलों में पार्टी एक चेतावनी देती है, और उनके अपने बयान या काम का स्पष्टीकरण देने के बाद, पार्टी उन्हें एक चेतावनी देकर माफ कर देती है. कोई कार्रवाई नहीं होती…

‘आख़िरी बार जब कोई कार्रवाई हुई, तो वो कुलदीप सिंह सेंगर (विधायक जिसे बाद में उन्नाव रेप और उससे जुड़े मामलों में दोषी ठहराया गया) के खिलाफ हुई थी. (बलिया विधायक) सुरेंद्र सिंह के मामले में, प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष ने जवाब मांगा है, जिसके बाद हमारी कमेटी उनके मामले पर विचार करेगी’.

पड़ोसी उत्तराखंड में, सितंबर में बीजेपी ने लोहाघाट विधायक पूरन सिंह को, सूबे में अपनी पार्टी के सत्ता में रहते हुए, विकास कार्यों में भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाने पर, एक नोटिस जारी किया था. विधायक ने कहा था कि अधिकारी भ्रष्टाचार करते हैं, लेकिन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को शिकायत करने से भी कुछ नहीं हुआ. पूरन सिंह ने इस मुद्दे को उत्तराखंड विधान सभा में भी उठाया, और बीजेपी अध्यक्ष नड्डा से शिकायत भी की.

एक बीजेपी उपाध्यक्ष ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, ये नोटिस राजनीतिक मजबूरियों के चलते दिए गए थे, लेकिन चेतावनी देने और पछतावे के इज़हार के बाद, नेताओं को छोड़ दिया गया.

उपाध्यक्ष ने कहा, ‘सियासत में ज़्यादा अहमियत संख्या और गणित की होती है; बहुत से मामलों में कुछ विरोध होता है, जिसपर ध्यान दिया जाता है. लेकिन निलंबन और निष्कासन सिर्फ उन्हीं मामलों में होता है, जहां कोई और रास्ता नहीं होता’.


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सांसद जो मुश्किल में थे

2019 के लोकसभा चुनावों से पहले, भोपाल बीजेपी उम्मीदवार ‘साध्वी’ प्रज्ञा सिंह ठाकुर ने खुलेआम, महात्मा गांधी की हत्या के लिए नाथूराम गौडसे की प्रशंसा की थी, जिसके लिए पीएम मोदी ने कहा था, कि वो उन्हें माफ नहीं करेंगे.

छह बार के सांसद और पूर्व मंत्री अनंत कुमार हेगड़े ने, लोकसभा चुनावों से पहले कहा था, और फिर फरवरी 2010 में दोहराया, कि महात्मा गांधी की अगुवाई में स्वतंत्रता आंदोलन एक ‘नाटक’ था. उन्होंने कहा था, ‘मेरा ख़ून खौलता है जब में इतिहास पढ़ता हूं…ऐसे लोग महात्मा बन गए’.

दोनों को नोटिस दिए गए, और फिर उसके बाद मामले के बारे में कुछ सुनने को नहीं मिला, बावजूद इसके कि हेगड़े का केस, अनुशासनिक कार्रवाई समिति को भी भेजा गया था.

हमीरपुर (हिमाचल) सांसद अनुराग ठाकुर और पश्चिमी दिल्ली सांसद प्रवेश वर्मा को भी, दिल्ली विधान सभा चुनावों के दौरान, मुसलमानों के खिलाफ सांप्रदायिक टिप्पणियां करने पर, चुनाव आयोग की निंदा के बावजूद छोड़ दिया गया.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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