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Wednesday, 20 November, 2024
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कांग्रेस की गलतियों से दलितों को लुभाने में जुटी BJP, लेकिन ज़मीनी हकीकत इससे अलग

बेरोज़गारी, किसानों के विरोध और अग्निवीर योजना को लेकर सत्तारूढ़ पार्टी से दलितों के नाराज़गी को कम करने के लिए भाजपा कांग्रेस की अंदरूनी कलह को उजागर कर रही है और दलितों के खिलाफ हिंसा की पिछली घटनाओं को फिर से सामने ला रही है.

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रोहतक/अंबाला/सोनीपत: हरियाणा के कलानौर में राज्य के दलित समुदाय के तीन किसान दोपहर की धूप में अपने खेतों के पास ताश के पत्तों पलट रहे हैं. उनका खेत पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा के गढ़ रोहतक से 15 किलोमीटर से भी कम दूरी पर है.

राज्य में पांच अक्टूबर को विधानसभा चुनाव होने हैं और सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) तीसरी बार सत्ता में वापसी की कोशिश कर रही है. वहीं कलानौर के किसान में नाराज़गी है.

अनुसूचित जाति (एससी) के लिए आरक्षित 90-सदस्यीय विधानसभा की 17 सीटों में से एक कलानौर निर्वाचन क्षेत्र के दलित किसान वेदपाल ने दिप्रिंट से कहा, “कांग्रेस ने दलितों को प्लॉट देने का वादा किया है और पेंशन दोगुनी करने की घोषणा की है.”

उन्होंने कहा, “हमारी फसल को एमएसपी नहीं मिल रही है. हम भाजपा को वोट क्यों दें? उन्होंने मुफ्त राशन देने के अलावा गरीबों के लिए कुछ नहीं किया है। हम इस बार भाजपा को वोट नहीं देंगे.”

वेदपाल के दोस्त कृष्ण, जो खुद भी किसान हैं, ने सहमति में सिर हिलाया.

भाजपा के खिलाफ दलितों में नाराज़गी भले ही बढ़ रही हो, लेकिन भाजपा बिना लड़े हार नहीं मानेगी. जैसे-जैसे चुनाव नज़दीक आ रहे हैं, सत्तारूढ़ पार्टी दलित वोट बैंक को एकजुट करने की कोशिश कर रही है, इसके लिए प्रमुख दलित नेता कुमारी शैलजा के चुनाव प्रचार से दूर रहने के बाद कांग्रेस में अंदरूनी कलह की खबरों का इस्तेमाल किया जा रहा है और दलितों के खिलाफ हिंसा के दशकों पुराने मामलों को उठाया जा रहा है.

विश्लेषकों का सुझाव है कि एक दशक की सत्ता विरोधी लहर, किसानों के जारी विरोध प्रदर्शन, बढ़ती बेरोज़गारी, अग्निवीर का विरोध और कांग्रेस के संवैधानिक परिवर्तन अभियान ने सामूहिक रूप से पार्टी के लिए दलित समर्थन को मजबूत किया है. कलानौर में भाजपा ने तीन बार की मौजूदा कांग्रेस विधायक शकुंतला खटक के खिलाफ पिछली कांग्रेस सरकार के दौरान मेयर रहीं रेणु डबाला को मैदान में उतारा है.

खटक हुड्डा के समर्थन पर भरोसा कर रही हैं, जबकि डबाला को उम्मीद है कि कांग्रेस विधायक के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर उन्हें अपना पहला विधानसभा चुनाव जीतने में मदद करेगी.

लगभग 150 किलोमीटर दूर, अंबाला जिले में एक और एससी आरक्षित निर्वाचन क्षेत्र मुलाना के भाजपा गढ़ में, माहौल अलग नहीं है.

मुलाना के खानपुर गांव में एक छोटी सी चाय की दुकान पर तीन किसान चाय की चुस्की लेते हुए बैठे हैं.

वाल्मीकि समुदाय से ताल्लुक रखने वाले बलजिंदर ने कहा, “हमने भाजपा सरकार के 10 साल देखे हैं. राशन के अलावा कुछ नहीं हुआ. उन्होंने किसानों के लिए क्या किया है? किसानों के विरोध के दौरान बॉर्डर बंद रखे जो कि अज भी बंद है. सरकार का कहना है कि हम किसान नहीं बल्कि राजनीतिक कार्यकर्ता हैं. क्या आपको लगता है कि किसानों के पास इतना समय है, या किसी के पास बॉर्डर पर रहने के लिए इतना वक्त है? भाजपा का दावा है कि उसने 24 फसलों पर एमएसपी दिया है, लेकिन सरकार मंडी से दो से अधिक फसलों की खरीद नहीं कर रही है.”

At a tea shop in Mullana's Khanpur village, in Ambala district | Shanker Arnimesh | ThePrint
अंबाला जिले के मुलाना के खानपुर गांव में एक चाय की दुकान पर बैठे लोग | फोटो: शंकर अर्निमेष/दिप्रिंट

इन तीनों ने 2014 और 2019 में नरेंद्र मोदी को वोट दिया था, लेकिन इस साल उन्होंने लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को वोट दिया और विधानसभा चुनाव में भी उसी पार्टी को वोट देंगे.

अंबाला को भाजपा का गढ़ माना जाता था, जहां हरियाणा में पार्टी का दलित चेहरा रतन लाल कटारिया 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में प्रतिनिधित्व करते थे.

2023 में उनकी मृत्यु के बाद, उनकी पत्नी, बंतो कटारिया ने इस साल के संसदीय चुनावों में एससी-आरक्षित सीट के लिए चुनाव लड़ा. हालांकि, उनके पक्ष में सहानुभूति लहर के बावजूद वे कांग्रेस से हार गईं.

मुलाना में भाजपा ने संतोष चौहान सरवन को मैदान में उतारा है, जो पहली बार 1991 में कांग्रेस के टिकट पर चुने गए थे और फिर 2014 में भाजपा के टिकट पर फिर से चुने गए.

उनकी प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस के लोकसभा सांसद वरुण चौधरी की पत्नी पूजा चौधरी हैं. वरुण 2019 के विधानसभा चुनावों में मुलाना से चुने गए थे.


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दलित वोट बैंक को लुभाना

हरियाणा की राजनीति को आमतौर पर जाट और नॉन-जाट जातियों के एकजुट होने के चश्मे से देखा जाता है.

हरियाणा में प्रमुख जाति समूह जाट, जो राज्य की आबादी का 25 प्रतिशत है, कांग्रेस, खासकर हुड्डा गुट के समर्थन की रीढ़ है.

दूसरी ओर, 33 प्रतिशत आबादी वाले अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) भाजपा का समर्थन करते हैं.

लेकिन इस चुनाव में निर्णायक कारकों में से एक दलित आबादी है, जो राज्य की आबादी का 21 प्रतिशत है.

यह भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि जाटों और दलितों के बीच एकता के कारण कांग्रेस का समर्थन बढ़ा और लोकसभा चुनाव में भाजपा को पांच लोकसभा सीटों का नुकसान हुआ.

हैरानी की बात नहीं है कि भाजपा विपक्षी पार्टी के भीतर अंदरूनी कलह की खबरों का उपयोग करके कांग्रेस से इस महत्वपूर्ण वोट आधार को हथियाने की पूरी कोशिश कर रही है, खासकर हुड्डा और शैलजा के बीच (प्रमुख दलित व्यक्ति जो कि सीट वितरण से असंतुष्ट बताई जा रही हैं).

कांग्रेस में असंतोष की सुगबुगाहट तब और बढ़ गई जब शैलजा 18 सितंबर को राज्य चुनावों के लिए कांग्रेस के घोषणापत्र को जारी करने के दौरान समारोह में शामिल नहीं हुईं और अभियान से दूर रहीं. बुधवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोनीपत में एक रैली में कांग्रेस पर तीखा हमला किया और दलितों को कांग्रेस से सावधान रहने के लिए कहा.

मोदी ने कहा, “2014 में जब हुड्डा जी यहां सीएम हुआ करते थे, तब ऐसा कोई साल नहीं था जब दलितों के साथ अन्याय नहीं हुआ. अनेक दलितों के साथ अन्याय हुआ. हर कोई जानता था कि दलितों के खिलाफ कांग्रेस खाद-पानी देती है.”

उन्होंने कहा, “आज हरियाणा का दलित समाज एक बार फिर हरियाणा के अंदर कांग्रेस का जो ड्रामा चल रहा है उसे देख रहा है. कांग्रेस ने हमेशा ही गरीब और पिछड़ों को विकास से बाहर रखा है.”

गृह मंत्री अमित शाह ने भी इस हफ्ते एक रैली में कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा कि पार्टी दलित विरोधी है.

टोहाना में एक रैली में शाह ने कहा, “कांग्रेस ने हमेशा अपने दलित नेताओं का अपमान किया है, चाहे वे बहन कुमारी शैलजा हों या अशोक तंवर. भाजपा ही एकमात्र पार्टी है जो दलितों के अधिकारों की रक्षा करेगी और भाजपा के सत्ता में रहते हुए आरक्षण खत्म नहीं होगा.”

कांग्रेस द्वारा नामित उम्मीदवार जस्सी पेटवार के समर्थक, जिन्हें कांग्रेस सांसद दीपेंद्र हुड्डा का करीबी माना जाता है, ने शैलजा के बारे में जातिवादी टिप्पणी की, जिसके बाद भाजपा ने सोशल मीडिया पर शैलजा के अपमान की कहानी को आगे बढ़ाया.

पूर्व सीएम भूपेंद्र हुड्डा को इसमें बीच-बचाव करते हुए कड़ी निंदा जारी करनी पड़ी.

केंद्रीय मंत्री मनोहर लाल खट्टर ने घरौंडा में एक रैली में शैलजा को भाजपा में शामिल होने का प्रस्ताव भी दिया. पूर्व सीएम ने कहा, “कांग्रेस में बहुत अंदरूनी कलह है. हमारी बहन शैलजा घर बैठी हैं. उनसे नाराज़ कई लोगों को भाजपा ने संग मिलाया है. हम फिर से उन्हें भी संग लाने के लिए तैयार हैं और अगर वे आती हैं, तो हम उन्हें शामिल करने के लिए तैयार हैं.”

बाद में शैलजा ने खट्टर के प्रस्ताव को अस्वीकार करते हुए पार्टी में असंतोष की खबरों को खारिज कर दिया.

शैलजा ने कहा, “आज टिप्पणी करने वाले कई भाजपा नेताओं की तुलना में मेरा राजनीतिक जीवन लंबा रहा है. मुझे सलाह न दें, मैं अपनी राह जानती हूं और मेरी पार्टी मेरा रास्ता जानती है. हम मजबूती से आगे बढ़ेंगे, चाहे वो भाजपा हो या कोई और…मुझे पता है कि किस तरह के बयान दिए जा रहे हैं. भ्रम फैलाया जा रहा है कि शैलजा इस पार्टी में जा रही हैं.”

पुराने जख्म

चुनावों से पहले दलितों का दिल जीतने की कोशिश में जुटी भाजपा के शाह ने लोगों को हुड्डा के कार्यकाल के दौरान 2005 में गोहाना और 2010 में मिर्चपुर में दलितों पर हुए हमलों की भी याद दिलाई.

2005 में सोनीपत के गोहाना में अंतरजातीय हिंसा के एक मामले में दलितों के 50 घर जला दिए गए थे, जब गांव के एक दलित पर ऊंची जाति के व्यक्ति की हत्या में शामिल होने का संदेह था.

2010 में मिर्चपुर में दलितों के एक दर्जन से अधिक घर जला दिए गए थे. घटना के दौरान एक किशोरी और 70-वर्षीय व्यक्ति की जलकर मौत हो गई थी.

स्थानीय लोगों का कहना है कि पिछले हमलों को उछालने से मतदाता प्रभावित नहीं होंगे क्योंकि हिंसा की यादें केवल पुरानी पीढ़ी के ज़ेहन में है, जबकि नई पीढ़ी को हमलों के बारे में बहुत कम जानकारी है.

दलित समाज के एक सदस्य दीपक राम ने कहा, “20 साल हो गए हैं और अब चीज़ें बदल गई हैं.”

उन्होंने आगे कहा, “पिछड़ी जाति हुड्डा को वोट देगी. 10 साल बहुत होते हैं.”


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बढ़ती नाराज़गी

ऐसा लगता है कि हरियाणा में सत्तारूढ़ पार्टी के खिलाफ नाराज़गी बढ़ रही है.

मतदाता किसानों के अनसुलझे विरोध, अग्निवीर योजना के लागू होने और राज्य में फैली बेरोज़गारी से नाखुश हैं. खट्टर सरकार की परिवार पहचान पत्र (पीपीपी) योजना को लेकर दलितों में नाराज़गी बढ़ रही है क्योंकि अधिकांश वंचित समूहों को पोर्टल पर डिटेल्स सही करने के लिए कई चक्कर लगाने पड़े.

इस बीच, राज्य की मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस के लिए समर्थन मजबूत बना हुआ है, खासकर किसानों, जवानों और पहलवानों के बीच.

हरियाणा में भाजपा के दलित समर्थन आधार अचानक नहीं घटा है. 2024 के लोकसभा चुनावों में भाजपा का समर्थन आधार 2019 में 51 प्रतिशत के मुकाबले 2024 में घटकर 24 प्रतिशत रह गया है.

इस बीच, कांग्रेस में लगातार उछाल देखा गया है. 2024 के लोकसभा चुनावों में इंडिया ब्लॉक ने दलितों के 68 प्रतिशत वोट हासिल किए.

इस बार दो जाट पार्टियां — जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) और इंडियन नेशनल लोकदल (आईएनएलडी) दलित नेता चंद्रशेखर आज़ाद की आज़ाद समाज पार्टी (एएसपी) और बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) के साथ गठबंधन करके दलित वोट बैंक को सुरक्षित करने का लक्ष्य लेकर चल रही हैं.

अन्य आंकड़े भी भाजपा के लिए घटते समर्थन की ओर इशारा करते हैं.

2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने सभी 10 सीटें जीती थीं. 2024 में पार्टी ने दो आरक्षित सीटों, सिरसा और अंबाला सहित पांच सीटें खो दीं.

सिरसा से कांग्रेस पार्टी की शैलजा जीतीं और अंबाला में भाजपा के रतन लाल कटारिया की पत्नी कांग्रेस उम्मीदवार वरुण चौधरी से हार गईं.

2019 के 15 से 2024 के लोकसभा चुनाव में 17 आरक्षित निर्वाचन क्षेत्रों में भाजपा की बढ़त घटकर चार रह गई. कांग्रेस ने अपनी बढ़त पिछली बार के दो से बढ़ाकर 11 कर ली.

2019 के विधानसभा चुनावों में भाजपा ने 2014 में 9 से घटकर सिर्फ पांच आरक्षित एससी सीटें जीतीं, जबकि कांग्रेस ने सात एससी सीटें और जेजेपी ने चार सीटें जीतीं. 2024 के लोकसभा चुनाव में 20 प्रतिशत से ज़्यादा एससी आबादी वाले 47 विधानसभा क्षेत्रों में भाजपा की बढ़त 2019 के 44 से घटकर 18 रह गई, जबकि कांग्रेस की बढ़त 2019 में सिर्फ दो सीटों से बढ़कर 25 हो गई.

वंचित अनुसूचित जातियों को लुभाना

लोकसभा चुनावों में मिली करारी हार के बाद मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी के नेतृत्व में भाजपा सरकार ने दलित और पिछड़े समुदायों को अपने पक्ष में करने की कोशिश शुरू की.

मुख्यमंत्री ने सामाजिक न्याय विभाग से पिछले साल से अनुसूचित जाति के छात्रों को लंबित पोस्ट-मैट्रिक छात्रवृत्ति राशि जारी करने को कहा.

भाजपा वंचित अनुसूचित जाति (डीएससी) का समर्थन हासिल करने के लिए हरसंभव प्रयास कर रही है. दलितों को दिए गए 17 टिकटों में से नौ डीएससी समूह से हैं.

सैनी ने ओबीसी वोट बैंक को मजबूत करने के लिए न केवल क्रीमी लेयर मानदंड को 6 लाख से बढ़ाकर 8 लाख किया, बल्कि डीएससी समूह को संतुष्ट करने के लिए सरकारी नौकरियों में आरक्षण के लिए एससी के उप-वर्गीकरण पर हरियाणा एससी आयोग की सिफारिश को स्वीकार करने की भी घोषणा की.

यह कदम ऐसे समय उठाया गया है जब भाजपा पर एससी आरक्षण में उप-वर्गीकरण लाने के लिए दबाव डाला जा रहा है.

हरियाणा में दलित दो समूहों में विभाजित हैं: डीएससी और सशक्त समूह.

डीएससी — जिसमें वाल्मीकि, बाजीगर, सांसी, देहास, धानक और सपेरा जैसी 36 श्रेणियां शामिल हैं — राज्य की दलित आबादी का 11 प्रतिशत है और यह भाजपा का समर्थन समूह है.

दलितों का सशक्त समूह या ब्लॉक बी, जिसका नेतृत्व चमार करते हैं — जो दलित आबादी का 9.7 प्रतिशत है — आमतौर पर कांग्रेस का समर्थन करता है.

सोमवार को हरियाणा भाजपा के संगठन महासचिव फणींद्र नाथ सरमा ने डीएससी समुदाय का समर्थन हासिल करने के लिए दलित महापंचायत के नेता और पंचायत के अध्यक्ष से मुलाकात की. इस दलित समूह ने अपनी मांगों को लेकर दबाव बनाने के लिए पिछले हफ्ते जींद में महापंचायत की.

हालांकि, भाजपा को दलित वोट खोने का खतरा बना हुआ है.

दलित महापंचायत के अध्यक्ष देवी दास वाल्मीकि ने दिप्रिंट से कहा, “हुड्डा और शैलजा के शासन के दौरान, अदालत ने डीएससी और दलित बी समूह को विभाजित करने वाली 1994 की अधिसूचना को रद्द कर दिया था. पिछले 10 सालों से भाजपा सरकार हमारे लोगों से भारत माता की जय और गौ माता की जय का नारा लगाने का आग्रह कर रही है, लेकिन सबसे पिछड़े दलित समूह के सशक्तिकरण के लिए समाधान नहीं सुझा रही है.”

उन्होंने आगे कहा, “जब सुप्रीम कोर्ट ने दलित समुदाय में उप-वर्गीकरण लाने का सुझाव दिया, तो सरकार इस पर चुप क्यों बैठी है? 2020 में जब हरियाणा सरकार ने शैक्षणिक संस्थानों के लिए कोटा के भीतर कोटा लाया, तो उन्हें इसे सरकारी नौकरियों के लिए भी लागू करना चाहिए था.”

भाजपा न केवल दलित समाज को खुश करने के लिए नायब सिंह सैनी के हालिया प्रयासों पर भरोसा कर रही है, बल्कि लोगों को हुड्डा सरकार की कम वंचित दलित समुदाय को पारदर्शी रोज़गार देने में विफलता की भी याद दिला रही है.

भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष ओम प्रकाश धनखड़ ने कहा, “कांग्रेस की हुड्डा सरकार के दौरान सभी रोज़गार पारदर्शिता के बिना हुए और उस समय अधिकांश पिछड़ी जातियों को रोज़गार नहीं मिला. भाजपा ने पूरी व्यवस्था को पारदर्शी बना दिया है और अब रोज़गार पत्र आवेदक के घर तक पहुंच जाता है.”

लेकिन दलित मतदाताओं को जीतना आसान नहीं है.

पंजाब यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर आशुतोष कुमार ने दिप्रिंट से कहा, “मोदी लहर काम नहीं कर रही है. भाजपा के पास कोई अखिल भारतीय नेता नहीं है और 10 साल की सत्ता विरोधी लहर ने भाजपा को किसान विरोधी और दलित विरोधी बना दिया है.”

उन्होंने कहा, “किसान, पहलवान और वंचित समूह इन विरोधों से प्रभावित हुए हैं. भाजपा लोकसभा में इस धारणा के नुकसान को रोक नहीं पाई है और विधानसभा में भी यह उसके खिलाफ जा सकता है.”

भाजपा को उम्मीद है कि बसपा, इनेलो और जेजेपी का तीसरा मोर्चा कांग्रेस के दलित वोट बैंक को विभाजित करने में मदद कर सकता है. बसपा ने इनेलो के साथ गठबंधन करके हरियाणा में 30 से अधिक उम्मीदवार उतारे हैं.

उत्तर प्रदेश की दलित नेता मायावती के हरियाणा में प्रचार करने के साथ, भाजपा को उम्मीद है कि यह गठबंधन कांग्रेस के दलित वोट में सेंध लगाएगा.

भाजपा अंबाला जिला अध्यक्ष राजेश बतौरा ने कहा, “कई निर्वाचन क्षेत्रों में बसपा का अपना कैडर है. 2019 में भाजपा को कुछ सीटों पर 30,000-40,000 वोट मिले थे. अगर इसे इनेलो और जेजेपी के साथ जोड़ दिया जाए, तो वो कई जगहों पर कांग्रेस को नुकसान पहुंचा सकते हैं.”

(इस ग्राउंड रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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