नई दिल्ली: यूपी में घटित दो हाई-प्रोफाइल घटनाओं की वजह से योगी आदित्यनाथ की सरकार पिछले एक महीने से मुश्किल में हैं. 27 सितंबर को यूपी पुलिस ने मुख्यमंत्री के निर्वाचन क्षेत्र गोरखपुर के एक होटल में घुस कर कानपुर के कारोबारी मनीष गुप्ता की कथित तौर पर पीट-पीट कर हत्या कर दी थी.
उसके कुछ दिनों बाद 3 अक्टूबर को लखीमपुर खीरी की घटना हुई जिसमें केंद्रीय राज्य मंत्री अजय मिश्रा के बेटे अशीष मिश्रा ने प्रदर्शन कर रहे किसानों पर गाड़ी चढ़ा दी थी जिसमें एक स्थानीय पत्रकार भी शामिल था.
दोनों घटनाओं में मुख्यमंत्री ने तेज़ी से कार्रवाई की और कारोबारी की हत्या मामले में मुआवज़े और सरकारी नौकरी की घोषणा की.
लेकिन, उत्तर प्रदेश बीजेपी का मानना है कि वो अपने आईटी सेल की वजह से उनके खिलाफ भड़के गुस्से पर काबू पा सके. आईटी सेल के सूत्रों ने बताया कि पार्टी ने अपने खिलाफ चल रही नकारात्मक खबरों का मुकाबला करने के लिए अपने काफी बड़े सोशल मीडिया नेटवर्क के जरिए खुद के छोटे छोटे क्लिप को बनाकर लोगों में फैलाया.
फिलहाल पार्टी अपने सोशल मीडिया की पहुंच का विस्तार करने का सोच रही है. बीजेपी ने राज्यभर में कुल 1,63,000 आईटी संयोजक और सदस्यों के लिए सोशल मीडिया यूनिट बनाने का काम शुरू कर दिया है.
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इसके अलावा 2022 के महत्वपूर्ण विधानसभा चुनाव को देखते हुए यूपी में पार्टी मंडलस्तर पर 1918 आईटी सेल हेड्स और 1,लाख 70 हज़ार वॉट्स्ऐप ग्रुप पर ज्यादा से ज्यादा कंटेंट भेजने की तैयारी कर रही है.
पार्टी के यूपी आईटी सेल के हेड कामेश्वर मिश्रा ने कहा कि ‘बीजेपी की डिजिटल सेना विपक्षी दलों के आरोपों का मुकाबला करने के लिए लगातार काम करेगी. सरकार के काम का प्रचार और ‘हर घंटे के आधार पर महत्त्वपूर्ण जानकारी लोगों तक पहुंचाएगी.’
उन्होंने कहा कि ‘यह तय किया गया है कि हर बूथ पर एक आईटी सेल प्रमुख और दो सह-संयोजक नियुक्त किए जाएंगे. कम से कम पांच लोगों की एक टीम होगी जिनके पास पांच स्मार्टफोन होंगे. वो एक घंटे में राज्य और मुख्यालयों से भेजी जा रही चुनावी जानकारियों को आगे बढ़ाएंगे.’
‘उनके ऊपर रोज़ाना सोशल मीडिया पर पांच से 10 ओरिजिनल कंटेंट फैलाने की जिम्मेदारी होगी.’ राज्य में लगभग 1,63,000 बूथ हैं.
वॉट्स्ऐप से एक समय में पंद्रह करोड़ जनता तक पहुंचने की रणनीति
आईटी सेल के एक प्रमुख सदस्य ने बताया कि चुनाव अभियान के लिए डिजिटल आर्मी नें दो रणनीतियां बनाई गई हैं. आईटी सेल के राज्य मुख्यालय से कोई भी संदेश मैसेज, वीडियो भाषण, कार्टून सबसे पहले मंडल इकाईयों को भेजी जाएगी, जो तुरंत शक्ति केन्द्र और वहां से बूथ आईटी सेल प्रमुख को भेजा जाएगा. वहां से इस मैटर को आगे फॉरवर्ड किया जाएगा.
पार्टी के पास 27,000 शक्ति केंद्र हैं और हर एक शक्ति केंद्र में छह से सात बूथ शामिल हैं.
दूसरे बीजेपी आईटी सेल के अधिकारी ने बताया कि ‘जनता तक पहुंच बनाने के लिए हमारे पास लगभग दो करोड़ वॉट्स्ऐप ग्रुप हैं. पार्टी की आईटी सेल एक क्लिक से 15 करोड़ लोगों तक कोई वीडियो या कोई मैसेज वायरल कर सकती है. यह सबसे महत्त्वपूर्ण जरिया है जिसके माध्यम से हम लोगों के वॉट्स्ऐप ग्रुप में जा कर जनमत को बदलते हैं.’
उन्होंने आगे कहा, ‘मिसाल के तौर पर जब पीएम मोदी रैली को संबोधित करते हैं तो हम दो मिनट की छोटी क्लिप बनाते हैं और इसे कुछ ही सेकंड में 15-20 करोड़ लोगों तक पहुंचाते हैं. जब ये संदेश 15-20 करोड़ लोगों तक पहुंच सकते हैं, तो हमें अपने अभियान को जनता तक ले जाने के लिए टीवी चैनलों या न्यूजपेपर्स की ज़रूरत नहीं होती है. लेकिन इस सबको हैंडिल करने के लिए एक बड़ी कोशिश की ज़रूरत होती है.’
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आईटी सेल के अधिकारियों के मुताबिक ‘राज्य इकाई के फेसबुक पेज पर लगभग 37 लाख फॉलोवर्स हैं. वहीं, 26 लाख फॉलोवर ट्विटर पर हैं. पार्टी हाल ही में इंस्टाग्राम पर भी सक्रिय हुई है जहां उसके 25 हज़ार फॉलोवर्स हैं.’
यूपी के बीजेपी सोशल मीडिया के अध्यक्ष अंकित चंदेल ने कहा कि ‘हमने हाल ही में तीन से चार कैंपेन शुरू किए हैं. जिनमें से एक है ‘फ़र्क़ साफ़ है.’ इसमें ग्राफिक्स बनाकर अखिलेश यादव और योगी आदित्यनाथ के कामों की तुलना की जाती है.’
‘दूसरे कैंपेन में ‘सोच ईमानदार, काम दमदार’ योगी सरकार की सफलताओं पर आधारित है. पार्टी इंस्टाग्राम पर विपक्षी दल के कामों और मंशाओं को कार्टून के ज़रिए दिखाती है.’
पार्टी की रणनीति के मुताबिक़ असल मुहिम पीएम मोदी के चुनावी कैंपेन में उतरने के बाद ही शुरू होगी.
विशेषज्ञों का कहना है कि चुनावी कैंपेन में सोशल मीडिया सिर्फ सप्लीमेंट के तौर पर तो उपयोग कर सकता है लेकिन इसे हटाया नहीं जा सकता है.
अंबेडकर यूनिवर्सिटी, लखनऊ में पॉलिटिकल साइंस के प्रोफेसर शशिभूषण पांडेय कहते हैं,’ सोशल मीडिया और आईटी सेल तभी प्रभावी होते हैं जब राज्यों में बीजेपी का सामना करने वाला कोई मजबूत विपक्षी नेता न हो. यह चुनावी कैंपेन में एक सप्लीमेंट तो हो सकता है लेकिन यह अपने आप में कोई उत्पाद नहीं हो सकता है.
झारखंड और पश्चिम बंगाल में बीजेपी का मज़बूत सोशल मीडिया कैंपेन झारखंड में विरोधी लहर और पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के नेतृत्व की वजह से सफल नहीं हो पाया.
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