कोलकाता: पिछले हफ्ते पश्चिम बंगाल में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के कार्यकर्ताओं ने अपने ही सांसद और केंद्रीय मंत्री डॉ. सुभाष सरकार को बांकुरा निर्वाचन क्षेत्र के पार्टी कार्यालय के अंदर बंद कर दिया. वहां मौजूद कार्यकर्ता “वापस जाओ” के नारे लगा रहे थे और उन्हें एक घंटे से अधिक समय तक बंद कर रखा. बीजेपी के जिला अध्यक्ष सुनील रुद्र मंडल ने उन्हें शांत कराने की कोशिश की लेकिन गुस्साई भीड़ ने उन पर ही हमला कर दिया.
प्रदर्शनकारियों में से एक मोहित शर्मा ने मीडिया को बताया कि वे सरकार के “भाई-भतीजावाद और पार्टी मामलों में हस्तक्षेप” से नाखुश थे.
उन्होंने कहा, “हमने हर चुनाव में बीजेपी के लिए कड़ी मेहनत की है. पंचायत से लेकर लोकसभा चुनाव तक हमने काम किया है. लेकिन वह जिला और मंडल समितियों में अपने सहयोगियों को नियुक्त कर रहे हैं. वह पार्टी को बर्बाद कर रहे हैं. इसलिए हम विरोध कर रहे हैं.” मामला इतना बढ़ा गया कि पुलिस को हस्तक्षेप करना पड़ा और शिक्षा राज्य मंत्री को बचाकर निकालना पड़ा.
रुद्र मंडल ने दावा किया कि प्रदर्शनकारी बीजेपी के कार्यकर्ता नहीं थे. उन्होंने कहा, “वे सभी गद्दार हैं जिन्होंने बीजेपी को नुकसान पहुंचाने के लिए टीएमसी (तृणमूल कांग्रेस) से हाथ मिलाया है. उन्हें टीएमसी के साथ काम करने के लिए पार्टी से निष्कासित कर दिया गया था.” उन्होंने पिछले मंगलवार को यह कहा था.
टीएमसी विधायक और मंत्री ज्योत्सना मंडी के अनुसार यह घटना बीजेपी के भीतर गुटबाजी का नतीजा है.
उन्होंने पिछले बुधवार को मीडिया से कहा, “यह तो एक शुरुआत है. जैसे-जैसे 2024 का लोकसभा चुनाव नजदीक आएगा, हम जिले में अंदरूनी कलह के ऐसे और मामले देखेंगे.”
हालांकि, बीजेपी के राज्य प्रवक्ता समिक भट्टाचार्य इसे “संगठनात्मक कमजोरी” के रूप में नहीं देखते हैं.
शनिवार को दिप्रिंट से बात करते हुए भट्टाचार्य ने कहा कि सरकार के साथ हुई घटना अभूतपूर्व और दुर्भाग्यपूर्ण थी. उन्होंने कहा, “हम पूछताछ कर रहे हैं कि ये कार्यकर्ता कौन थे. इसका मतलब यह नहीं है कि कोई संगठनात्मक कमजोरी है. ऐसी चीजें ही पार्टी को मजबूत बनाती हैं और हम इसका जल्द से जल्द समाधान करेंगे.”
हालांकि, यह बीजेपी की राज्य इकाई में कलह का कोई पहला मामला नहीं था. पार्टी ने पिछले दो सालों में अंदरूनी कलह, विधायकों और नेताओं के दलबदल और पार्टी नेतृत्व के खिलाफ असंतोष की आवाज के कई मामले देखे हैं. पंचायत चुनावों और उपचुनावों में भी पार्टी का प्रदर्शन निराशाजनक रहा है, जिससे राज्य में इसकी भविष्य की संभावनाओं पर सवाल खड़े हो रहे हैं.
2019 में, जब बीजेपी ने 40 प्रतिशत वोट शेयर के साथ पश्चिम बंगाल में 42 में से 18 लोकसभा सीटें जीतीं, तो वह सत्तारूढ़ टीएमसी के लिए एक मजबूत चुनौती बनकर उभरी, जिसने कांग्रेस और वामपंथियों को राज्य की राजनीति में तीसरे स्थान पर धकेल दिया.
2021 के विधानसभा चुनावों में, बीजेपी 294 सीटों में से 77 सीटें जीतकर टीएमसी को सत्ता से हटा तो नहीं सकी, लेकिन 38 प्रतिशत वोट शेयर ने दिखाया कि बीजेपी राज्य में एक प्रमुख ताकत बनी हुई है.
हालांकि, तब से इसमें गिरावट आ रही है क्योंकि बीजेपी में आंतरिक झगड़े, विधायकों और नेताओं के दलबदल और पार्टी नेतृत्व के खिलाफ असंतोष की आवाजें देखी जा रही हैं. कई विधायक पहले ही पार्टी छोड़ चुके हैं. पूर्व केंद्रीय मंत्री बाबुल सुप्रियो ने पार्टी छोड़ दी और टीएमसी में शामिल होने के लिए लोकसभा से इस्तीफा दे दिया.
पंचायत चुनाव में बीजेपी ने 30.8 फीसदी वोट शेयर हासिल किया, लेकिन टीएमसी ने 51 फीसदी वोट शेयर हासिल किया. इस महीने की शुरुआत में बीजेपी धुपगुड़ी उपचुनाव हार गई. यह सीट बीजेपी विधायक की मौत के बाद खाली हो गई थी.
राजनीतिक विश्लेषक स्निग्धेंदु भट्टाचार्य के मुताबिक, बंगाल में बीजेपी का प्रदर्शन केंद्रीय नेतृत्व की उम्मीदों के मुताबिक नहीं रहा है. उन्होंने कहा कि पार्टी की संगठनात्मक ताकत कमजोर है और राज्य के अधिकांश हिस्सों में बूथ समितियों का अभाव है.
उन्होंने कहा, “बीजेपी का वोट शेयर 2014 में बढ़कर 17 प्रतिशत हो गया, लेकिन अगर राज्य के नेताओं की मानें तो राज्य के 75 प्रतिशत बूथों पर उनके पास बूथ समितियां नहीं हैं. इसलिए, अगर हम 2019 के चुनावों को देखें तो जब बीजेपी ने 40 प्रतिशत वोट शेयर और 18 सीटें जीतीं, तो वह मोदी-लहर पर सवार थी. लेकिन संगठनात्मक रूप से वे कमजोर बने हुए हैं.”
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केंद्रीय नेतृत्व पर आरोप लगा रहे हैं
बीजेपी के खराब प्रदर्शन और आंतरिक कलह के कारण राज्य और केंद्र दोनों स्तरों पर इसके नेतृत्व की आलोचना हुई है.
पूर्व राज्यपाल और बीजेपी नेता तथागत रॉय ने दिप्रिंट से कहा कि उन्होंने पार्टी को बहुत करीब से देखा है और कैलाश विजयवर्गीय को बंगाल प्रभारी के रूप में चुनना सबसे बड़ी गलती थी जिसका खामियाजा पार्टी को भुगतना पड़ रहा है.
रॉय ने कहा, “बीजेपी पश्चिम बंगाल में एक छोटी पार्टी थी. लेकिन बाद में यह एक प्रमुख विपक्षी पार्टी बन गई. संगठनात्मक निर्णय लेने के लिए कैलाश विजयवर्गीय को चुनना सबसे बड़ी गलती थी जिसके लिए पार्टी को भुगतान करना पड़ रहा है. अगर पार्टी जीत के प्रति गंभीर है तो केंद्रीय नेताओं को तुरंत पार्टी में फेरबदल करना चाहिए.”
उन्होंने विजयवर्गीय पर टीएमसी से “कचरा” लाने और उन्हें बीजेपी में शामिल करने का भी आरोप लगाया. रॉय ने कहा, “इससे भी बुरा था सी-ग्रेड अभिनेताओं को लाना और उन्हें 2021 विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए टिकट देना. जिन लोगों ने पार्टी के उत्थान के लिए काम किया, वे स्वाभाविक रूप से नाराज़ थे.”
दिप्रिंट ने टेक्स्ट मैसेज के जरिए कैलाश विजयवर्गीय तक पहुंचने की कोशिश की, लेकिन उनकी ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली. प्रतिक्रिया मिलने पर रिपोर्ट को अपडेट कर दिया जाएगा.
पिछले साल, बीजेपी के पूर्व सांसद और राष्ट्रीय सचिव अनुपम हाजरा ने राज्य प्रमुख डॉ. सुकांत मजूमदार को दूसरों द्वारा नियंत्रित “कठपुतली” कहा था और कहा था उनमें “व्यक्तित्व” की कमी थी. वह अपने निर्वाचन क्षेत्र में अपनी पार्टी द्वारा आयोजित एक विरोध रैली में आमंत्रित नहीं किए जाने से नाराज थे.
जनवरी 2022 में, मतुआ समुदाय से राज्य मंत्री और सांसद शांतनु ठाकुर ने यह आरोप लगाते हुए बीजेपी का व्हाट्सएप ग्रुप छोड़ दिया था कि उनके समुदाय के सदस्यों को पार्टी द्वारा नजरअंदाज किया जा रहा है.
उन्होंने कथित तौर पर तब कहा था, “ऐसा लगता है कि बीजेपी पार्टी में मतुआ समुदाय द्वारा निभाई गई भूमिका को नहीं पहचानती है. जिस तरह से कुछ नेताओं द्वारा पार्टी को चलाया जा रहा है वह पूरी तरह से अस्वीकार्य है. राज्य पदाधिकारियों की समिति का गठन बिना किसी उचित परामर्श के किया गया था.”
2021 के राज्य चुनावों के दौरान नंदीग्राम से ममता बनर्जी को हराने के लिए बीजेपी में शामिल हुए पूर्व टीएमसी नेता और विपक्ष के नेता सुवेंदु अधिकारी और 2022 में राज्य इकाई के पूर्व प्रमुख दिलीप घोष के बीच भी मौखिक विवाद छिड़ गया.
दिसंबर 2022 में कोलकाता में एक विरोध रैली के दौरान, अधिकारी ने कहा, (घोष का नाम लिए बिना) “मुझे सुबह की सैर के दौरान बयान देने की आदत नहीं है. मैं बोलने से पहले सोचता हूं.” दरअसल दिलीप घोष हर दिन सुबह की सैर के दौरान मीडिया से बात करने के लिए जाने जाते हैं.
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बंगाल में बीजेपी को क्या परेशानी है?
पार्टी के एक वरिष्ठ नेता के अनुसार, जिन्होंने 2021 का चुनाव लड़ा था, लेकिन अपनी पहचान उजागर नहीं करना चाहते थे, पार्टी की छवि को टीएमसी की “वॉशिंग मशीन” टैगलाइन से नुकसान हुआ था. इसने बीजेपी पर अन्य दलों के भ्रष्ट नेताओं को आश्रय देने का आरोप लगाया था.
उन्होंने कहा, “आप देखिए, पश्चिम बंगाल की राजनीति दक्षिण भारत या हिंदी पट्टी से बहुत अलग है. यहां लोग सामाजिक रूप से अधिक उत्साहित हैं और अपनी बंगाली पहचान पर गर्व करते हैं. पाजो लोग अन्य पार्टियों से, खासकर टीएमसी से आए, जिनके खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप थे और हमारे साथ शामिल हुए, उन्होंने टीएमसी के ‘वॉशिंग मशीन’ के आरोप को साबित करने में मदद की और आज तक यह मतदाताओं के दिमाग में बैठा हुआ है.”
उनके मुताबिक पार्टी में जन नेताओं की भी भारी कमी है. उन्होंने कहा, “दिलीप घोष और सुवेंदु अधिकारी को छोड़कर पार्टी के पास राज्य में कोई चेहरा नहीं है.”
उन्होंने बताया, “लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि पार्टी अध्यक्ष (सुकांत मजूमदार) 2019 में पहली बार सांसद होने के कारण पश्चिम बंगाल में यहां के प्रमुख बने. वह अभी भी जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओं से अनजान हैं. जब राहुल सिन्हा प्रभारी थे (2005-19 तक), अगर कोई गुटीय झगड़ा होता था, तो वह तुरंत अपनी टीम वहां भेजते थे और मुद्दे को सुलझाते थे और नब्ज पकड़ते थे, जो अब पूरी तरह से गायब है.”
एक अन्य कारक जिस पर राजनीतिक विश्लेषक स्निग्धेन्दु ने प्रकाश डाला, वह है पार्टी के भीतर घर्षण पैदा करने में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की भूमिका.
उन्होंने बताया, “बीजेपी 2014 तक पश्चिम बंगाल में एक बहुत छोटी पार्टी थी. फिर वामपंथी समर्थकों के आने से यह बढ़ती गई. साथ ही संघ ने नेतृत्व को मजबूत करने के लिए अपने आयोजकों को बीजेपी में नियुक्त करना शुरू कर दिया. फिर, टीएमसी ने विभिन्न स्तरों पर पार्टी में आना शुरू कर दिया.”
उन्होंने कहा कि इसलिए बीजेपी सभी ताकतों का एक मिश्रण है.
उन्होंने आगे कहा, “जिन लोगों के राजनीतिक हित हैं और वे अन्य दलों से बीजेपी में शामिल हुए हैं, वे इस बात से नाराज हैं कि आरएसएस से जुड़े नेताओं को बीजेपी में फायदा है. फिर, बीजेपी के पुराने लोग भी हैं जिनकी आरएसएस पृष्ठभूमि है और वे इस बात को नापसंद करते हैं कि अन्य दलों के नेता जो 2021 में (विधानसभा चुनाव से पहले) बीजेपी में शामिल हुए हैं, उन्हें फायदा है. इससे पार्टी के भीतर गुटीय कलह पैदा होती है.”
इसके अलावा, पार्टी संगठनात्मक ढांचे की समयसीमा को पूरा करने में भी चूक रही है. बीजेपी नेताओं के मुताबिक, पश्चिम बंगाल के 77,000 बूथों में से उन्होंने 67,000 बूथ तैयार कर लिए हैं.
रिपोर्ट्स के मुताबिक, बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व ने 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले पार्टी को बढ़ावा देने के लिए राज्य भर में 1,000 रैलियां करने का काम सौंपा था. कथित तौर पर दिल्ली के शीर्ष अधिकारियों ने कार्य पूरा करने के लिए जून-जुलाई की समय सीमा तय की थी. हालांकि, बीजेपी अगस्त के अंत तक केवल 300 रैलियां ही कर पाई.
कथित तौर पर राज्य इकाई को 15 सितंबर तक दूसरा विस्तार दिया गया था, लेकिन पार्टी अपने लक्ष्य को हासिल करने में सक्षम नहीं हो पाई है, जबकि नेता अधूरे कार्य को पूरा करने के लिए राज्य की लंबाई और चौड़ाई की यात्रा करते हैं.
समिक भट्टाचार्य ने प्रिंट को बताया, “राज्य भर में 1,000 रैलियों का लक्ष्य अभी तक पूरा नहीं हुआ है, लेकिन हम इस पर काम कर रहे हैं. मैं एक रैली को संबोधित करने जा रहा हूं. हमारे नेता पार्टी को और मजबूत करने के लिए मैदान पर हैं.”
(संपादन: ऋषभ राज)
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