नई दिल्ली: बीजेपी के किसान नेता मोदी सरकार को सतर्क कर रहे हैं, कि मुख्य रूप से दिल्ली के सिंघू बॉर्डर पर डेरा डाले हुए प्रदर्शनकारियों के लिए, खालिस्तानी और टुकड़े टुकड़े गैंग जैसे शब्दों का इस्तेमाल न करे, क्योंकि इस क़दम का उल्टा असर पड़ सकता है.
सीनियर बीजेपी लीडर सुरजीत सिंह ज्यानी ने दिप्रिंट से कहा, ‘इस तरह की भाषा से बचना चाहिए. हम जानते हैं कि ऐसे बहुत से किसान समूह हैं, जिनका वाम-पंथी झुकाव है लेकिन उन्हें टुकड़े-टुकड़े गैंग और राष्ट्र-विरोधी क़रार देने से, गतिरोध ख़त्म नहीं होगा’.
‘इसका असर उल्टा पड़ सकता है. हमें आंदोलनकारियों की मांगों के प्रति संवेदनशील होना चाहिए. आख़िरकार, वो हमारे भाई-बहन हैं. सिर्फ बातचीत से ही गतिरोध को दूर किया जा सकता है’.
ज्यानी, जो पिछली अकाली-बीजेपी पंजाब सरकार में कैबिनेट मंत्री थे, एक आठ-सदस्यीय समिति के अध्यक्ष रह चुके हैं, जिसे बीजेपी ने तीन विवादास्पद कृषि बिलों पर, किसानों से बात करने के लिए गठित किया था. ज्यानी ने पंजाब में 35 किसान यूनियनों के साथ बातचीत की, लेकिन गतिरोध ख़त्म नहीं किया जा सका.
उन्होंने दिप्रिंट से आगे कहा, कि गतिरोध के दौरान ‘असंवेदनशील भाषा’ इस्तेमाल करने से, किसान समुदाय के बीच सरकार की साख को नुक़सान पहुंचेगा.
पंजाब से एक और बीजेपी किसान नेता सुखिंदर ग्रेवाल ने भी, उनके विचारों से सहमति जताई. ग्रेवाल भी उस आठ-सदस्यीय कमेटी के सदस्य थे.
ग्रेवाल ने कहा, ‘एक तरफ हम उनसे बात कर रहे हैं, और दूसरी तरफ हम उन्हें ख़ालिस्तानी बता रहे हैं. इससे हमें कोई फायदा नहीं होगा. दूसरे राज्यों के किसानों की भी, इन आंदोलनकारी किसानों के साथ हमदर्दी है. कुछ तत्व हैं जो इस आंदोलन का इस्तेमाल करने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन हमें सावधान रहना चाहिए, कि हमें सिर्फ उन्हें निशाना बनाएं, अस्ली किसानों को नहीं’.
और ये सिर्फ पंजाब के बीजेपी किसान नेता नहीं हैं, जो पार्टी और सरकार को ‘असंवेदनशील टिप्पणियां’ न करने की चेतावनी दो रहे हैं.
गौरी शंकर बिसेन ने भी, जो मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान की पिछली सरकार में कृषि मंत्री थे, सरकार को ‘संवेदनशील’ रहने की सलाह दी है.
बिसेन ने कहा, ‘इस आंदोलन का मध्यप्रदेश में कोई असर नहीं है, लेकिन सरकार को हमेशा संवेदनशील और विचारशील रहना चाहिए’. उन्होंने आगे कहा, ‘लोगों ने मोदी को अपनी मुसीबतें कम करने, और अपने जीवन को बेहतर बनाने के लिए चुना है. इसके विपरीत कोई संदेश नहीं जाना चाहिए’.
किसानों के सिंघू बॉर्डर पर आकर डेरा डालने के कोई 20 दिन बाद भी, उनका आंदोलन कम होता नहीं दिख रहा है, और कई केंद्रीय मंत्रियों ने आरोप लगाया है, कि ‘राष्ट्र-विरोधी तत्वों ने’ आंदोलन को हाइजैक कर लिया है.
रविवार को क़ानून मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने, बिहार में एक बीजेपी किसान संपर्क कार्यक्रम के दौरान बोलते हुए कहा, कि ‘टुकड़े-टुकड़े गिरोह’ किसान प्रदर्शनों का फायदा उठा रहा है.
उन्होंने कहा, ‘मैं स्पष्ट कर देता हूं, कि भारत सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, किसानों का सम्मान करते हैं, और किसान भी उनका आदर करते हैं’. उन्होंने आगे कहा, ‘लेकिन किसान प्रदर्शनों की आड़ में, अगर देश को तोड़ रहे टुकड़े-टुकड़े लोग, आंदोलन के कंधे से बंदूक़ चलाएंगे, तो सरकार उनके खिलाफ सख़्त कार्रवाई करेगी’.
उससे एक दिन पहले, रेल मंत्री पीयूष गोयल ने दावा किया था, कि ‘वामपंथी और माओवादी प्रदर्शनों में घुस गए हैं’.
कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने भी कहा था कि मोदी-विरोधी तत्व प्रदर्शनों में शामिल हो गए हैं. इससे पहले बीजेपी आईटी सेल के प्रमुख अमित ने, प्रदर्शनों में एक ख़ालिस्तानी एंगल का इल्ज़ाम लगाया था.
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‘उल्टा पड़ सकता है’
प्रदर्शनों से निपटने के लिए बीजेपी ने एक दोहरी रणनीति अपनाई है. तीन कृषि क़ानूनों के प्रति देश के बाक़ी हिस्से में किसानों को समझाने के लिए, उसने एक विशाल संपर्क अभियान शुरू किया है. उसने टेलिवीज़न विज्ञापनों का सिलसिला शुरू किया है, और साथ ही किसानों को थोक भाव में व्हाट्सएप संदेश भी भेज रही है, जिनके नंबर उसने किसान क्रेडिट कार्ड के डेटाबेस, और किसान सम्मान निधि स्कीमों से हासिल किए हैं.
बीजेपी सूत्रों ने बताया कि दूसरी रणनीति ये है, कि प्रदर्शनकारियों की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े करके, आंदोलन में फूट डाली जाए. बीजेपी ने भारतीय किसान यूनियन (एकता उग्रहण) के उस क़दम का फायदा उठाने की कोशिश की, जिसमें उसने 10 दिसंबर को अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस के मौक़े पर, हिरासत में रखे गए उमर ख़ालिद, शरजील इमाम, सुधा भारद्वाज, और गौतम नवलखा जैसे कार्यकर्ताओं के पोस्टर उठाए थे.
अपने एक संबोधन में, यूनियन के प्रदेश अध्यक्ष जोगिंदर सिंह उग्रहण ने ये मांग भी की थी, कि जेल में बंद तमाम सिविल सोसाइटी कार्यकर्ताओं और बुद्धिजीवियों को रिहा किया जाना चाहिए.
उसके एक दिन बाद, कई यूनियनों ने इस बात को दोहराया, कि उनके आंदोलन का फोकस सिर्फ किसानों की मांगें हैं. उन्होंने मंच के ‘दुरुपयोग’ की भी आलोचना की.
अब, कुछ बीजेपी नेता चाहते हैं कि पार्टी इस रणनीति को त्याग दे. बीजेपी किसान मोर्चा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष नरेश सिरोही ने कहा, कि अगर प्रदर्शनकारियों में एकजुटता बनी रही, तो ये रणनीति उल्टी पड़ सकती है.
सिरोही ने कहा, ‘इससे देश के दूसरे हिस्सों में, उनके लिए हमदर्दी पैदा हो जाएगी. वो सर्दियों की ठंडी रातों में बैठे हुए हैं, और ऐसे में हमेशा ख़तरा रहता है, कि आंदोलन देश के दूसरे हिस्सों में फैल सकता है’. उन्होंने आगे कहा, ‘इसलिए उनसे निपटने में ज़्यादा संवेदनशीलता बरतनी चाहिए. मैंने किसान आंदोलनों में बरसों बिताए हैं. अगर कोई वाम-पंथी विचारधारा का है, तो इसका मतलब ये नहीं है कि वो ख़ालिस्तानी हैं. हमें मुख्य मुद्दे पर ध्यान देना चाहिए, साइड के मुद्दों पर नहीं’.
मध्यप्रदेश के एक बीजेपी किसान नेता बंशीधर गुर्जर ने भी इसी तरह के विचार व्यक्त किए. ‘किसान तो किसान है. अगर वो कोई चिंताएं उठा रहे हैं, तो सरकार को उनके नज़रिए को समझना चाहिए’.
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