नई दिल्ली: जद-यू प्रमुख नीतीश कुमार के बिहार में भाजपा के साथ अपना गठबंधन तोड़ने के हफ्तों बाद, मणिपुर के छह जनता दल (यूनाइटेड) के विधायकों में से पांच शुक्रवार को राज्य की सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए. इसके साथ ही 2014 से भाजपा में शामिल होने के लिए अपनी पार्टियों को छोड़ने वाले विधानसभा सदस्यों और सांसदों की संख्या 211 तक पहुंच गई है.
भाजपा में शामिल होने वाले पांच विधायक खुमुक्कम जॉयकिशन (थांगमेईबंद निर्वाचन क्षेत्र), न्गुरसंगलुर सनाटे (टिपईमुख), मोहम्मद अचब उद्दीन (जिरीबाम), पूर्व पुलिस महानिदेशक से राजनेता बने एलएम खौटे और थंगजाम अरुणकुमार (वांगखेई) हैं. जद (यू) के एकमात्र विधायक जिन्होंने भाजपा में शामिल नहीं होने का फैसला किया, वह लिलोंग से विधायक रहे मोहम्मद नासिर हैं.
मणिपुर में जद-यू के पांच विधायकों (साथ ही अगस्त में अरुणाचल में एक और) का भाजपा में शामिल होने का सीधा संबंध, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का पिछले महीने बिहार में डंपिंग से है. भाजपा ने इस साल की शुरुआत में हुए चुनावों में मणिपुर की 60 सदस्यीय विधानसभा में 32 सीटें जीती थीं और उसे विधानसभा में नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) का भी समर्थन प्राप्त है.
दलबदल ने मणिपुर विधानसभा में जद (यू) के प्रतिनिधित्व को कम कर दिया है. भाजपा दलबदलुओं के लिए सबसे अधिक डिमांड में रहने वाली पार्टी बन चुकी है और यह घटनाक्रम उसका एक और प्रमाण है.
नई दिल्ली स्थित राजनीतिक और चुनावी सुधार गैर-लाभकारी एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स की रिपोर्टों के विश्लेषण से पता चलता है कि 2014 से लेकर- जब भाजपा पहली बार केंद्र में सत्ता में आई थी- 2022 तक 211 विधायक और सांसद भाजपा में शामिल हो चुके हैं.
वहीं दूसरी ओर, इस दौरान सिर्फ 60 राजनेताओं – विधायक और सांसद दोनों- ने भाजपा छोड़ी.
विपक्षी दल भाजपा पर अपने ‘संसाधनों’- प्रलोभनों – के साथ-साथ सरकारी एजेंसियों का इस्तेमाल करने का आरोप लगा रहे हैं.
हाल ही में पार्टी में हुए दलबदल को लेकर जद-यू के प्रवक्ता परिमल कुमार ने दिप्रिंट से दावा करते हुए कहा कि भाजपा ने इन सदस्यों को जद-यू से दूर करने के लिए ‘अपने संसाधनों का इस्तेमाल’ किया है.
कुमार ने कहा, ‘यह (देश के) लोकतंत्र के लिए खतरा है,’ वह आगे बताते हैं, ‘(जो) भाजपा और राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का हिस्सा रहे दल, संवैधानिक सिद्धांतों के उल्लंघन, मानवाधिकारों के उल्लंघन और अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरा न करने के आधार पर धीरे-धीरे उन्हें छोड़ रहे हैं.’
कुमार ने कहा, और इसी वजह से जद (यू) ने भाजपा से नाता तोड़ा है.
उधर भाजपा जद (यू) सहित विपक्षी दलों पर अपने नेताओं के साथ अच्छा व्यवहार नहीं करने का आरोप लगाती रही है.
भाजपा प्रवक्ता गुरुप्रकाश पासवान ने दिप्रिंट को बताया, ‘कोई भी स्वाभिमानी व्यक्ति ऐसी पार्टी में नहीं रहना चाहेगा जो एक परिवार या एक व्यक्ति पर केंद्रित हो. हिमंत बिस्वा सरमा और ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे नेता भाजपा में आए क्योंकि वे फंसे हुए थे. वे उन पार्टियों में क्लास्ट्रोफोबिक महसूस करते थे.
उन्होंने कहा, ‘जद (यू) अपनी स्थापना के बाद से एक व्यक्ति की पार्टी रही है. कोई भी व्यक्ति जो अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा को पूरा करना चाहता है, वह सिर्फ उसी पार्टी का हिस्सा बनना चाहेगा जहां उनका सम्मान किया जाता हो.’ साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि अगर जद (यू) के पास अनैच्छिक दलबदल का कोई सबूत है, तो उन्हें अदालत में चुनौती देनी चाहिए.
वह कहते हैं, ‘जद-यू ने हालिया दलबदल को असंवैधानिक बताया है. हमें अच्छे से याद है कि ऐसा कब हुआ करता था. झारखंड मुक्ति मोर्चा पर वोट के बदले पैसे देने का आरोप लगा है.’
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पार्टियां कहां खड़ी हैं
एडीआर रिपोर्टों के आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि कांग्रेस से सबसे ज्यादा विधायक और सांसद पार्टी छोड़ कर गए हैं- 2014 से 2021 तक 177 और इस साल के पांच राज्यों गोवा, मणिपुर, उत्तर प्रदेश, पंजाब और उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव से पहले 20 विधायकों को खोया है.
इनमें से 84 नेताओं ने भाजपा का हाथ थामा है- 2021 तक 76 और इस साल विधानसभा चुनावों के आसपास आठ नेता कांग्रेस को छोड़ भाजपा के साथ हो लिए. अन्य दलों में, बहुजन समाज पार्टी (बसपा) से भाजपा में जाने वाले विधायकों की संख्या 21 है. तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) से 17 और समाजवादी पार्टी (सपा) से नौ विधायक भाजपा के खेमे में चले गए.
रिपोर्ट से पता चलता है कि 2014 और 2021 के बीच, जद-यू से भाजपा में दलबदल करने वालों की संख्या कम थी. इस दौरान पूर्व के सिर्फ दो विधायकों ने ही अपना पाला बदला था.
तेलुगू देशम पार्टी- जो 2018 में अलग होने तक भाजपा की सहयोगी थी- ने दलबदल में अपने कुल 26 विधायकों को खोया है.
ये सभी दलबदल चुनाव पूर्व और चुनाव दोनों के बाद के थे.
आंकड़ों से पता चलता है कि 2017 और 2022 के बीच दलबदल करने वाले कुल 85 विधायकों ने इस साल के विधानसभा चुनाव में दूसरी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा था.
आंकड़े यह भी बताते हैं कि दलबदल सिर्फ चुनावों के आसपास ही नहीं हुआ है.
उदाहरण के लिए, मध्य प्रदेश में कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा देने वाले 22 विधायकों ने 2020 में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कमलनाथ के नेतृत्व में राज्य सरकार को गिराकर सामूहिक रूप से इस्तीफा दिया था.
विद्रोह का नेतृत्व तत्कालीन कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया ने किया, जो राज्यसभा सदस्य और फिर नरेंद्र मोदी सरकार में मंत्री बने.
कर्नाटक में 2019 में, कांग्रेस और जनता दल (सेक्युलर) के तत्कालीन सत्तारूढ़ गठबंधन के 16 विधायक एच.डी. कुमारस्वामी के साथ मिलकर राज्य सरकार को गिराने के लिए भाजपा में शामिल हो गए थे. 16 में से 13 बागी नेता 2020 के उपचुनाव में बीजेपी के उम्मीदवार के तौर पर मैदान में उतरे थे.
द हिंदू की एक रिपोर्ट के अनुसार, ‘भाजपा ने पिछले एक दशक में विधानसभा चुनावों में सबसे अधिक संख्या में पाला बदलने वाले उम्मीदवारों (830) को मैदान में उतारा है. रिपोर्ट में अशोका यूनिवर्सिटी से संबद्ध एक राजनीतिक डेटा केंद्र -त्रिवेदी सेंटर फॉर पॉलिटिकल डेटा –– के हवाले से बताया गया कि ऐसे उम्मीदवारों में से 44 प्रतिशत से ज्यादा ने जीत हासिल की है.’
दूसरी ओर, रिपोर्ट से यह भी पता चलता है कि पिछले 10 सालों में कांग्रेस को छोड़कर जानेवाले उम्मीदवारों की संख्या 806 रही और इसमें से 33 प्रतिशत दलबदलुओं ने चुनाव जीता. इनमें से अधिकांश दलबदलुओं को भाजपा ने मैदान में उतारा था. इसमें उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक संख्या (130) थी, उसके बाद कर्नाटक (81) का स्थान था.
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आरोप और खंडन
विपक्षी दलों का दावा है कि भाजपा दलबदल को अंजाम देने के लिए प्रलोभन और धमकियों का इस्तेमाल कर रही है.
जद (यू) के प्रवक्ता परिमल कुमार ने दिप्रिंट को बताया, ‘भाजपा राष्ट्रीय रजिस्ट्री और नागरिकता संशोधन अधिनियम के नाम पर नागरिकों के मानवाधिकारों का उल्लंघन कर रही है. वह प्रवर्तन निदेशालय और केंद्रीय जांच ब्यूरो का इस्तेमाल कर रही है. पिछले छह सालों में शायद ही भाजपा शासित राज्यों में ईडी या सीबीआई की रेड का कोई उदाहरण हो. इसका मतलब साफ है अगर कोई बीजेपी का हिस्सा है तो उस पर इस तरह की छापेमारी नहीं होगी.’
कांग्रेस का दावा है कि भाजपा विधायकों को धमकाने के लिए सरकारी एजेंसियों का दुरुपयोग किया जा रहा है.
राज्यसभा के पूर्व सांसद और अब कांग्रेस प्रवक्ता एम.वी. राजीव गौड़ा ने दिप्रिंट को बताया, ‘भाजपा एजेंसियों का दुरुपयोग करके, अलग-अलग तरह के प्रलोभन देकर या फिर विधायकों को धमकियां देकर अन्य दलों की सरकारों को अस्थिर करने के मिशन पर है.’ वह आगे कहते हैं, ‘नतीजन, वे न सिर्फ सरकार के स्तर पर बल्कि निर्वाचित प्रतिनिधियों के स्तर पर भी जनादेश को नष्ट करने में सक्षम हैं. भाजपा चुनावी प्रक्रिया को भ्रष्ट करने के लिए एक बड़ी राशि खर्च करती है, ऑपरेशन लोटस के साथ बार-बार ऐसा होते हुए देखा गया है.’
उन्होंने कहा, सवाल यह नहीं है कि विधायक और सांसद कांग्रेस या किसी अन्य विपक्षी दल को क्यों छोड़ रहे हैं, बल्कि सवाल ये है कि ऐसा करने के लिए वे किस तरह के दबाव का सामना करते हैं.
वह कहते हैं, ‘और उन्हें पार्टी छोड़ने के लिए कैसे बरगलाया गया या क्या धमकी दी गई. ये भाजपा के शासन काल में लोकतंत्र की दयनीय स्थिति को दर्शाता हैं.’
सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ़ डेवलपिंग सोसाइटीज़ के एक रिसर्च प्रोग्राम ‘लोकनिति’ के सह-निदेशक और प्रोफेसर व राजनीतिक विश्लेषक संजय सिंह ने कहा कि एक उज्ज्वल राजनीतिक करियर के लिए विधायकों का सत्तारूढ़ दल में शामिल होना असामान्य नहीं है.
उन्होंने कहा, ‘पिछले दशक में भाजपा सबसे प्रभावशाली राजनीतिक दल के रूप में उभरी है, उन्होंने बहुमत के साथ दो राष्ट्रीय चुनाव और कई राज्यों में भी जीत हासिल की है.’
उन्होंने कहा कि जो विधायक अपनी पार्टी छोड़ते हैं, वे जीत के पक्ष में रहना चाहते हैं.
उन्होंने बताया, ‘हालांकि यह इस समय थोड़ा एकतरफा लग सकता है. कुल मिलाकर इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि भाजपा एक बहुत ही प्रभावशाली पार्टी है. यह प्रमुख कारकों में से एक है कि हम विभिन्न दलों के नेताओं को इसमें शामिल होते हुए देख रहे हैं.’
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