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Thursday, 21 November, 2024
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UP चुनाव में अहम निषाद वोटबैंक को कहीं बांट न दें भाजपा के सहयोगी, पार्टी की वापसी में हो सकती है मुश्किल

पड़ोसी राज्य बिहार की विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) यूपी चुनाव की दौड़ में शामिल हो गई है, और उसने यूपी की निषाद पार्टी से साथ आने की पेशकश भी की है. हालांकि, निषाद पार्टी एक बड़ी भूमिका चाहती है.

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नई दिल्ली: भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के दो सहयोगी दल स्वतंत्र रूप से निषाद समुदाय के वोटों पर दावा जताने की होड़ में लगे हैं, जो कि उत्तर प्रदेश में पूर्वांचल और पश्चिमी बिहार में गंगा के किनारे वाले सीमावर्ती इलाकों में बसी एक प्रमुख उपजाति है.

यह समुदाय 2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में राष्ट्रीय पार्टी के फिर से सत्ता में लौटने के लिहाज से खासी अहमियत रखता है.

बिहार की विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) और उत्तर प्रदेश की निषाद पार्टी, दोनों ही उस समुदाय पर अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश में जुटी हैं जिसकी यूपी की आबादी में करीब 14 फीसदी हिस्सेदारी है. सारा जोर यूपी की उन लगभग 70 सीटों पर है जहां इस समूह—खासकर मछुआरा जाति—की अच्छी-खासी मौजूदगी है.

वीआईपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और नीतीश कुमार कैबिनेट में इस पार्टी के एकमात्र मंत्री मुकेश सहनी ने ऐलान किया है कि वह उत्तर प्रदेश के अगले चुनावों में 150 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारेंगे.

निषाद पार्टी के प्रमुख संजय निषाद भी भाजपा के साथ गठबंधन के तहत चुनाव मैदान में उतरेंगे, लेकिन एक शर्त के साथ—वह राज्य में उपमुख्यमंत्री का पद चाहते हैं, साथ ही साथ यूपी कैबिनेट में कई मंत्रालय की भी इच्छा रखते हैं.

हालांकि, दोनों पार्टियां गठबंधन के मामले में अभी तक एक मंच पर नहीं हैं, लेकिन राज्य विधानसभा में अपने समुदाय का अधिक से अधिक प्रतिनिधित्व चाहती हैं.


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दो निषाद पार्टियां

मल्लाह पुत्र के तौर पर पहचान बनाने वाले मुकेश सहनी ने पिछले हफ्ते लखनऊ में अपनी पार्टी के दफ्तर का उद्घाटन किया और घोषणा की कि उन्होंने उत्तर प्रदेश में चुनाव लड़ने के लिए 150 सीटों की पहचान कर ली है. उन्होंने कहा कि 25 जुलाई को निषाद समुदाय की दिग्गज नेता और दस्यु सुंदरी रही फूलन देवी की पुण्यतिथि पर राज्य के 18 संभागों में पार्टी कार्यालय तैयार हो जाएंगे. उन्होंने बताया कि इस दिन सभी जिला मुख्यालयों पर कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे.

इसमें सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि सहनी ने निषाद पार्टी के प्रमुख संजय निषाद को भी साथ चुनाव लड़ने के लिए आमंत्रित किया है.

लेकिन गठबंधन के बारे में सीधे तौर पर पूछे जाने पर सहनी ने कोई स्पष्ट जवाब नहीं दिया. उन्होंने दिप्रिंट से कहा, ‘किसी भी पार्टी के लिए मेरे दरवाजे खुले हैं, लेकिन मेरी पहली प्राथमिकता भाजपा होगी.’

वीआईपी मुख्य रूप से बिहार में मछुआरों का प्रतिनिधित्व करती है. पिछले चुनाव में राजद नीत महागठबंधन छोड़कर नीतीश कुमार के खेमे में जाने पर सहनी को 11 सीटें दी गई थीं. हालांकि, सहनी खुद तो हार गए लेकिन उनकी पार्टी के चार सदस्य बिहार विधानसभा में पहुंच गए हैं.

केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के निर्देश पर सहनी को नीतीश कुमार की कैबिनेट में जगह मिली. उन्हें पशुपालन और मत्स्य संसाधन मंत्री बनाया गया था.

बढ़ते दबाव के बीच सहनी ने हाल ही में एक प्रमुख चेहरे और एनडीए के एक अन्य सहयोगी जीतनराम मांझी से मुलाकात करके नीतीश कुमार की कोटरी में खलबली मचा दी थी. नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार की स्थिरता काफी हद तक सहनी और मांझी के समर्थन पर टिकी है.

निषाद पार्टी प्रमुख संजय निषाद उस समय काफी प्रमुखता से उभरे थे जब उनके बेटे प्रवीण ने योगी आदित्यनाथ के गढ़ गोरखपुर में 2018 का उपचुनाव समाजवादी पार्टी की मदद से जीता.

पार्टी का गठन 2016 में हुआ था और उसने जिन 62 सीटों पर चुनाव लड़ा, उनमें से केवल भदोही जीतने में सफल रही थी.

2019 में अमित शाह ने निषाद पार्टी के साथ गठबंधन किया और प्रवीण ने संत कबीर नगर निर्वाचन क्षेत्र से जीत हासिल की थी. तबसे ही पार्टी राज्य मंत्रिमंडल में अहम भूमिका निभाने के लिए बेचैन है. माना जाता है कि संजय निषाद उत्तर प्रदेश में अगले उपमुख्यमंत्री बनना चाहते हैं. वह 2022 में 50 सीटों पर चुनाव भी लड़ना चाहते हैं.

हालांकि, निषाद ने वीआईपी के साथ गठबंधन की किसी भी संभावना को खारिज कर दिया. निषाद ने कहा कि पार्टी का बिहार में कोई जनाधार नहीं है और साथ ही जोड़ा, ‘फिर भी वह मुझे अपने साथ शामिल होने के लिए आमंत्रित कर रहे हैं!’ निषाद को यूपी में वीआईपी की संभावनाओं को लेकर भी संशय है क्योंकि ‘इसका कोई सांगठनिक ढांचा नहीं है.’ उन्होंने दिप्रिंट से कहा, ‘अगर वीआईपी वास्तव में मल्लाह या मछुआरा समुदाय का हित चाहती है, तो उसे सबसे पहले बिहार में उनके लिए आरक्षण सुनिश्चित करना चाहिए.’

निषाद ने कहा कि साफ तौर पर देखा जा सकता है कि किसने ‘उत्तर प्रदेश में समुदाय के लिए काम किया’ है. यह भाजपा पर निर्भर है कि वह गठबंधन के लिए सही साथी का चयन करे.

निषाद पार्टी के एक शीर्ष नेता ने कहा, ‘उत्तर प्रदेश में चुनाव लड़ने के लिए वीआईपी को प्रोत्साहित करना भाजपा की ही एक चाल है. वे हमारी मांगों को दरकिनार करना चाहते हैं, लेकिन इस रणनीति से भाजपा को ही नुकसान होगा क्योंकि पार्टी के तौर पर उत्तर प्रदेश में वीआईपी की कोई मौजूदगी नहीं है.’

हालांकि, मुकेश सहनी ने इन आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया कि वे भाजपा की ओर से मैदान में उतर रहे हैं. उन्होंने कहा, ‘हम एक स्वतंत्र पार्टी हैं. दोनों राज्य गंगा और निषाद समुदाय के हितों को लेकर एक रिश्ता साझा करते हैं. इसीलिए हम यूपी में संभावनाएं तलाश रहे हैं. मैंने निषादों की आवाज बुलंद करने के लिए संजय निषाद को साथ आने का न्यौता दिया है.’


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निषाद फैक्टर

निषाद समुदाय में सहनी, बिंद, कौल और तियार जैसी 22 उपजातियां शामिल हैं, जो सामूहिक रूप से गंगा, यमुना और गंडक के किनारे वाले इलाकों में खासी राजनीतिक ताकत रखती हैं.

ये मुख्य तौर पर पूर्वांचल, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बिहार के सीमावर्ती जिलों में बसे हुए हैं.

बिहार में इस समुदाय के सबसे बड़े नेता पूर्व सांसद जय नारायण प्रसाद निषाद थे. उत्तर प्रदेश में बड़े नाम फूलन देवी और समाजवादी पार्टी के नेता विशंभर प्रसाद निषाद रहे हैं.

उत्तर प्रदेश में जनसांख्यिकी के लिहाज से निषादों की भागीदारी 14 प्रतिशत है और भदोही, जौनपुर, गोरखपुर, वाराणसी, बलिया, देवरिया से बस्ती तक 70 निर्वाचन क्षेत्रों में इनका काफी ज्यादा प्रभाव है.

निषादों का दावा है कि वे एक नाविक राजा निषादराज के वंशज हैं, जिन्होंने वनवास के दौरान भगवान राम को सीता और भाई लक्ष्मण के साथ गंगा पार कराने में मदद की थी. निषादों का कहना है कि यही वंशावली उनकी ‘स्थिति को हिंदू राजनीति में स्वाभाविक सहयोगी दल’ के तौर पर विशिष्ट बनाती है.

भाजपा ने लगाया बड़ा दांव

भाजपा के शीर्ष नेताओं का मानना है कि निषाद वोट बंटने से पूर्वांचल में पार्टी की संभावनाओं को नुकसान होगा. एक नेता ने कहा, ‘निषाद 2022 में भाजपा के लिए एक अहम वोटबैंक है. पार्टी पहले ही प्रयागराज में उनके राजा निषादराज की मूर्ति लगाने की समुदाय की मांग को मान चुकी है. अमित शाह ने संजय निषाद को यह आश्वासन भी दिया है कि अन्य तमाम चिंताओं पर भी चर्चा की जाएगी.’

कभी निषादराज साम्राज्य की राजधानी रही श्रृंगवेरपुर में स्थापित की जाने वाली 180 फुट ऊंची प्रतिमा की आधारशिला तीन महीने पहले ही रखी जा चुकी है. इस पर 34 करोड़ रुपये खर्च होंगे.

यूपी भाजपा के उपाध्यक्ष विजय बहादुर पाठक ने कहा, ‘सिर्फ भाजपा ने निषादों से किए अपने वादे पूरे किए हैं. प्रतिमा के अलावा पार्टी ने जयप्रकाश निषाद को राज्यसभा भी भेजा.’

एक अन्य भाजपा नेता ने दिप्रिंट को बताया, ‘सीट बंटवारे पर अभी बातचीत शुरू नहीं हुई है. निषाद पार्टी बेवजह अपना शक्ति प्रदर्शन करने में जुटी है. भाजपा आलाकमान सत्ता में भागीदार के खिलाफ नहीं है, बशर्ते यह तर्कसंगत हो. इसके साथ ही भाजपा यह कोशिश भी करेगी कि पूर्वांचल में निषाद वोट बंटे नहीं.’

निषाद पार्टी का पूर्व में समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन होने को देखते हुए भाजपा पिता-पुत्र की इस जोड़ी की नाराजगी मोल न लेने के लिए संयत रवैया अपनाए हुए हैं.

ऐसी जानकारी भी मिली है सपा भी पार्टी को फिर से अपने पाले में लाने की कोशिशों में जुटी है.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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