नई दिल्ली: बिहार में इस साल विधानसभा चुनाव होने वाले हैं और राज्य के कई आईएएस और आईपीएस अधिकारी राजनीति में उतरने की तैयारी में हैं. इनमें से कई अफसर बिहार से ताल्लुक रखते हैं और इस चुनाव को अपना बड़ा मौका मान रहे हैं. जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) प्रमुख नीतीश कुमार के इस चुनाव को संभवतः अपना आखिरी चुनाव बताने की चर्चाओं के बीच, मौजूदा राजनीतिक अस्थिरता को कई रिटायर्ड अफसर एक अवसर के रूप में देख रहे हैं.
इन अफसरों की पहली पसंद बन रही है चुनावी रणनीतिकार से नेता बने प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी, जहां पुराने दलों की तुलना में टिकट मिलने की संभावना ज़्यादा है क्योंकि बड़ी पार्टियां बाहरी लोगों को लेकर अब भी सतर्क हैं.
सबसे हालिया नाम जय प्रकाश सिंह का है, जो 2000 बैच के आईपीएस अधिकारी हैं. उन्होंने हिमाचल प्रदेश में एडीजी पद से वीआरएस लिया और पिछले हफ्ते जन सुराज पार्टी में शामिल हो गए. सिंह चंबा और सिरमौर के एसपी रहे हैं और हिमाचल के राज्यपाल के एडीसी भी रह चुके हैं. अब वे बिहार की छपरा सीट से टिकट की उम्मीद कर रहे हैं.
सिंह के पार्टी में शामिल होने के दो दिन बाद पटना में ये अफवाह फैल गई कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के भरोसेमंद अफसरों में से एक, शिक्षा विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव एस. सिद्धार्थ ने भी वीआरएस के लिए आवेदन कर दिया है. हालांकि, 1991 बैच के यह आईएएस अधिकारी, जो आईआईटी दिल्ली और आईआईएम अहमदाबाद से पढ़े हैं, उन्होंने वीआरएस लेने से इनकार किया, लेकिन अटकलें अब भी जारी हैं.
पिछले महीने राजस्व सचिव के पद पर कार्यरत वरिष्ठ आईएएस अधिकारी दिनेश कुमार राय ने भी वीआरएस के लिए आवेदन दिया, जिससे यह संकेत मिला कि वह भी चुनाव लड़ना चाहते हैं.
राय ने नीतीश कुमार के राजनीतिक सचिव के रूप में नौ साल तक काम किया है. वह कुर्मी समुदाय से आते हैं और बिहार की करगहर विधानसभा सीट पर नज़र गड़ाए हुए हैं, जो फिलहाल कांग्रेस विधायक संतोष कुमार मिश्रा के पास है.
2020 के चुनाव में मिश्रा ने जेडीयू के उदय प्रताप सिंह को 3,400 वोटों से हराया था.
जेडीयू नेता के मुताबिक, राय इस सीट से चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं. “अगर जेडीयू से टिकट नहीं मिला, तो वह राजद और जन सुराज से भी संपर्क कर रहे हैं.”
राय पश्चिम चंपारण के डीएम रह चुके हैं और वहां बाढ़ प्रभावित इलाकों का मोटरसाइकिल से दौरा करने और भ्रष्टाचार पर कार्रवाई करने के कारण लोकप्रिय हुए थे.
राजस्व सचिव बनने के बाद उन्होंने अपने गांव जाकर 10,000 लोगों की सभा को संबोधित किया, जो यह संकेत देता है कि वह अब राजनीति में उतरने का मन बना चुके हैं.
पूर्व आईएएस अधिकारी और नीतीश कुमार के पूर्व सहयोगी व पूर्व केंद्रीय मंत्री आर.सी.पी. सिंह ने दिप्रिंट से कहा, “राजनीति में आने के लिए ब्यूरोक्रेसी एक रास्ता है, जैसे और भी रास्ते हैं. चूंकि, अफसर जनता से सीधे जुड़े होते हैं, अगर वे वाकई जनता की सेवा करना चाहते हैं तो उनके सफल होने की संभावना ज़्यादा होती है.”
आर.सी.पी. सिंह ने अपनी पार्टी आप सबकी आवाज़ को मई में जन सुराज पार्टी में मिला दिया था.
यह भी पढ़ें: गुरु तेग बहादुर शहीदी कार्यक्रम में ‘गाने-बजाने’ पर बवाल, पंजाब सरकार और SGPC में टकराव
ब्यूरोक्रेसी से बैलेट बॉक्स तक का सफर
पिछले एक साल में कई पूर्व अफसर बिहार की राजनीति में कदम रख चुके हैं — कुछ विधानसभा चुनावों के ज़रिए, तो कुछ संसद के ज़रिए.
इस साल अप्रैल में 2006 बैच के आईपीएस अधिकारी शिवदीप लांडे ने वीआरएस लिया और अपनी राजनीतिक पार्टी हिंदू सेना पार्टी की शुरुआत की. बिहार में अपने दबंग और रंगीले अंदाज़ की वजह से ‘सिंघम’ कहे जाने वाले लांडे महाराष्ट्र के रहने वाले हैं. उन्होंने ऐलान किया है कि उनकी पार्टी राज्य की सभी विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ेगी.
एक और चर्चित नाम आईपीएस आनंद मिश्रा का है, जो असम-मेघालय कैडर के अफसर थे. उन्होंने भी वीआरएस लिया ताकि लोकसभा चुनाव में बीजेपी के टिकट पर बक्सर से चुनाव लड़ सकें. हालांकि, असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा के आश्वासन के बावजूद उन्हें टिकट नहीं मिला. उनकी जगह पार्टी ने मिथिलेश तिवारी को मैदान में उतार दिया. इसके बाद मिश्रा ने निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ा, लेकिन हार गए. बीजेपी भी यह सीट आरजेडी के सुधाकर सिंह से हार गई.
इसके बाद मिश्रा जन सुराज पार्टी में शामिल हुए, लेकिन मई में पार्टी छोड़ दी और अब फिर से बीजेपी में अपनी संभावनाएं तलाश रहे हैं.
प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी कई पूर्व अफसरों के लिए एक पसंदीदा विकल्प बन गई है, जो राजनीति में नई शुरुआत करना चाहते हैं.
पूर्णिया के पूर्व डीएम अरविंद कुमार सिंह, पूर्व संयुक्त सचिव गोपाल नारायण सिंह, राकेश कुमार मिश्रा और पूर्व नवादा डीएम लल्लन यादव जैसे कई अफसर जन सुराज पार्टी में शामिल हो चुके हैं और अपने-अपने क्षेत्रों से टिकट की उम्मीद लगाए बैठे हैं.
एक और हाई-प्रोफाइल अफसर जो राजनीति में कूदे हैं, वे हैं ओडिशा कैडर के 2000 बैच के आईएएस अधिकारी मनीष वर्मा, जिन्होंने 2024 में जेडीयू जॉइन किया और तुरंत पार्टी के महासचिव बना दिए गए.
नालंदा जिले के बिहार शरीफ के रहने वाले और जाति से कुर्मी मनीष वर्मा 2012 से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के करीबी सलाहकार रहे हैं. माना जा रहा है कि वे इस बार के विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री के गृह जिले नालंदा से चुनाव लड़ सकते हैं.
नालंदा के एक जेडीयू नेता ने दिप्रिंट को बताया कि वर्मा अष्टावन या इस्लामपुर सीट से चुनाव लड़ना चाहते हैं. उन्होंने कहा, “यहां की सात में से पांच सीटें जेडीयू के पास हैं, इस्लामपुर आरजेडी और बिहार शरीफ बीजेपी के पास है. डॉ. जितेंद्र कुमार कई सालों से अष्टावन से जीतते आ रहे हैं, इसलिए यह एक सुरक्षित सीट मानी जाती है, लेकिन वर्मा की जीत की संभावना पर सब कुछ निर्भर करता है. यह मुख्यमंत्री का गृह जिला भी है और वर्मा कुर्मी जाति से आते हैं, इसलिए उनकी जीत की संभावना मजबूत मानी जा रही है.”
बिहार ने कई ऐसे हाई-प्रोफाइल नौकरशाह दिए हैं जिन्होंने राजनीति में आकर राष्ट्रीय स्तर पर बड़ी भूमिका निभाई.
यशवंत सिन्हा, जो जयप्रकाश नारायण के आंदोलन से प्रभावित होकर राजनीति में आए थे, पहले आईएएस थे. उन्होंने पहले चंद्रशेखर सरकार में और फिर अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में केंद्रीय वित्त मंत्री का पद संभाला.
आर.के. सिंह, जिनका नाम 1990 में राम रथ यात्रा के दौरान लालकृष्ण आडवाणी की गिरफ्तारी को लेकर सुर्खियों में आया, बाद में बीजेपी से जुड़े और पहली मोदी सरकार में ऊर्जा मंत्री बने. दूसरी मोदी सरकार में उन्हें कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय का राज्य मंत्री (MoS) भी बनाया गया.
एन.के. सिंह, एक सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी, भी सफलतापूर्वक राजनीति में आए. वे 2008 से 2014 तक जेडीयू की ओर से राज्यसभा सांसद रहे. बाद में 2014 में बीजेपी में शामिल हुए. वे वित्त आयोग के अध्यक्ष और योजना आयोग के सदस्य भी रहे.
आर.सी.पी. सिंह, जो कभी जेडीयू में नंबर दो की हैसियत रखते थे और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी रहे, उन्होंने राजनीति में एक लंबा और सफल सफर तय किया. वे मोदी सरकार में इस्पात मंत्री भी बने, लेकिन जब नीतीश कुमार को यह महसूस हुआ कि आरसीपी बीजेपी नेतृत्व के बहुत करीब हो गए हैं, तो दोनों के रिश्ते बिगड़ गए. नतीजतन, उन्हें राज्यसभा में दोबारा नहीं भेजा गया और उनकी मंत्री की पारी भी वहीं थम गई.
हालांकि, बिहार के सभी पूर्व नौकरशाह यशवंत सिन्हा या एन.के. सिंह जैसे सफल नहीं हो पाए.
उदाहरण के तौर पर, गुप्तेश्वर पांडे, जो बिहार के डीजीपी रहे, उन्होंने 2020 के विधानसभा चुनाव से चार महीने पहले वीआरएस लिया और नीतीश कुमार की मौजूदगी में जेडीयू में शामिल हुए. उन्हें बक्सर से टिकट मिलने की उम्मीद थी, लेकिन वह सीट एनडीए के सीट बंटवारे में बीजेपी को चली गई. टिकट न मिलने के बाद पांडे ने आध्यात्म की राह पकड़ ली.
वहीं, गृह रक्षक बल (होम गार्ड्स) के रिटायर्ड डीजीपी सुनील कुमार को जेडीयू ने टिकट दिया और वे 2020 में मंत्री बने.
आरसीपी सिंह ने दिप्रिंट से कहा, “मैंने नीतीश कुमार के साथ 25 साल काम किया है. मैंने अपना करियर अमेठी से शुरू किया था, जो राजीव गांधी का संसदीय क्षेत्र था. मैंने देखा कि कैसे राजीव गांधी लोगों से जुड़े रहते थे. कई महिलाएं उनका हाथ पकड़कर अपनी समस्याएं बताती थीं। आज ऐसा होना मुश्किल है.”
उन्होंने आगे कहा, “मैंने नारायण दत्त तिवारी, वीर बहादुर सिंह, मुलायम सिंह यादव, कल्याण सिंह और नीतीश कुमार जैसे कई मुख्यमंत्रियों के साथ काम किया है. सभी से कुछ न कुछ सीखा. नीतीश कुमार सबकी बात धैर्य से सुनते थे, लेकिन फैसला बिना किसी के प्रभाव में आए लेते थे. आज नेताओं की साख गिर चुकी है और अगर जनता को कहीं और उम्मीद नज़र आती है, तो वे दूसरी पार्टी के उम्मीदवारों को भी चुनने में संकोच नहीं करते.”
यह भी पढ़ें: अगला चैप्टर भारत की सैन्य ताकत—कक्षा 3 से 12 के लिए ऑपरेशन सिंदूर पर मॉड्यूल तैयार कर रहा है NCERT
अफसरों पर निर्भरता
नीतीश कुमार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी में एक चीज़ समान है—दोनों भरोसेमंद नौकरशाहों पर काफी निर्भर रहते हैं.
मोदी ने पूर्व राजनयिक एस. जयशंकर, पूर्व आईएएस अधिकारी अश्विनी वैष्णव और आर.के. सिंह से लेकर के.जे. अल्फोंस और पूर्व राजनयिक हरदीप पुरी तक, कई पूर्व नौकरशाहों को दिल्ली की राजनीति में बड़ी भूमिकाएं दी हैं.
दिल्ली के बाहर भी उन्होंने नौकरशाहों को अहम पद सौंपे हैं—जैसे पूर्व आईएएस अधिकारी ए.के. शर्मा को यूपी की कैबिनेट में जगह मिली और गुजरात के के. कैलाशनाथन को हाल ही में पुदुचेरी का उपराज्यपाल बनाया गया है.
नीतीश कुमार भी अपने अफसरों का लगातार समर्थन करने के लिए जाने जाते हैं, कई बार यह समर्थन उन्होंने अपने ही मंत्रियों की कीमत पर दिया है.
वे अब भी 1984 बैच के सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी दीपक कुमार को अपने प्रधान सचिव के तौर पर बनाए हुए हैं.
नीतीश कई बार मंत्रियों के मुकाबले अफसरों का साथ देने के लिए चर्चा में रहे हैं. 2022 में तत्कालीन सामाजिक कल्याण मंत्री मदन साहनी ने इस्तीफा दे दिया था. उन्होंने आरोप लगाया था कि उनके विभागीय सचिव अतुल प्रसाद उनकी बातों को नज़रअंदाज़ कर रहे हैं और मुख्यमंत्री के प्रमुख सहयोगी चंचल कुमार तो उनका फोन तक नहीं उठाते.
नीतीश ने तब भी अफसरों का पक्ष लिया.
सर्वेश कुमार, जो बिहार से एक स्वतंत्र एमएलसी हैं और पहले केंद्रीय सचिवालय सेवा (CSS) के अफसर रह चुके हैं, ने कहा, “अक्सर नौकरशाह सेवा के बाद पेंशन सुरक्षित कर राजनीति को पोस्ट-रिटायरमेंट विकल्प की तरह अपनाते हैं, लेकिन अगर वे राजनीति में आकर भी बाबूगिरी नहीं छोड़ते, तो वे नाकाम हो जाते हैं. हालांकि, कुछ सफल भी होते हैं क्योंकि उनके पास प्रशासनिक अनुभव होता है, जिसकी राजनीतिक दलों में भारी कमी है.”
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
यह भी पढ़ें: ASI ने बीते 5 साल में खुदाई बजट का 25% गुजरात में लगाया, केवल मोदी के होमटाउन वडनगर में 94% खर्च