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Sunday, 22 December, 2024
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बिहार के मंत्री ने रामचरितमानस की तुलना साइनाइड से की, लेकिन नीतीश की चुप्पी के क्या हैं कारण

इससे पहले जनवरी में राजद के चंद्रशेखर ने कहा था कि रामचरितमानस जैसी किताबें नफरत फैलाती हैं. ये दोनों घटनाएं सीएम नीतीश की बेबसी को रेखांकित करती हैं, जिनका अस्तित्व गठबंधन सहयोगियों पर निर्भर है.

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पटना: देश में सनातन धर्म को लेकर बहस तेज़ होने के बीच बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली सरकार को अपने एक मंत्री से शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा है. राज्य के शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर ने शुक्रवार को हिंदू धर्मग्रंथ रामचरितमानस की तुलना पोटेशियम साइनाइड से की, जिससे हंगामा मच गया.

इस टिप्पणी की राज्य में विपक्ष ने आलोचना की है और इसे सनातन धर्म का अपमान बताया.

नौ महीने में यह दूसरी बार है कि राष्ट्रीय जनता दल (राजद) से जुड़े चंद्रशेखर ने हिंदू धर्मग्रंथों के बारे में ऐसी विवादास्पद टिप्पणी की है — जो एक मुख्यमंत्री की असहायता को दिखाती है, जिसका अस्तित्व गठबंधन सहयोगियों पर निर्भर करता है.

शुक्रवार को चंद्रशेखर हिंदी ग्रंथ अकादमी द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में बोल रहे थे, जब उन्होंने कहा कि रामचरितमानस में “पोटेशियम साइनाइड” जैसे तत्व हैं.

उन्होंने कहा, “यह एक स्वादिष्ट व्यंजन को 55 बार परोसने और उसमें पोटेशियम साइनाइड मिलाने जैसा है.”

विपक्षी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने कथित तौर पर मंत्री के इस्तीफे की मांग करते हुए सरकार पर हमला किया और उन पर सनातन धर्म का अपमान करने का आरोप लगाया.

राज्य भाजपा प्रमुख सम्राट चौधरी ने शुक्रवार को कथित तौर पर कहा, “बिहार की राजनीति में सनातन धर्म के खिलाफ नफरत फैलाने वाले शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर खुद पोटेशियम साइनाइड हैं. वो इंडिया गठबंधन का हिस्सा हैं जो सनातन धर्म को खत्म करने पर तुला है और उन्हें उनकी नफरत भरी टिप्पणियों के लिए तुरंत पद से हटाया जाना चाहिए.”

सत्तारूढ़ राजद-जद(यू) गठबंधन के नेताओं ने बयान के बारे में सक्रिय रूप से कुछ नहीं कहा है. जबकि सीएम नीतीश कुमार केवल मंत्री को ऐसे बयान देने से परहेज़ करने की सलाह दे सकते थे, राजद प्रमुख लालू यादव ने चंद्रशेखर को हटाने के कोई संकेत नहीं दिखाए. डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव ने कथित तौर पर राजद विधायकों से कहा कि वो अपने काम पर ध्यान दें और ऐसे बयान न दें.

हालांकि, इस मुद्दे के बाद गठबंधन के भीतर बेचैनी के संकेत सामने आए. राजद नेताओं का कहना है कि चंद्रशेखर अपने विभाग में अधिकार की कमी से निराश हैं और इसलिए अपने क्षेत्र से बाहर विवाद पैदा करने की कोशिश करते हैं. दूसरी ओर, जद (यू) नेताओं को संदेह है कि राजद जब चाहे तब नीतीश कुमार को सार्वजनिक रूप से अपमानित करने के लिए चंद्रशेखर का इस्तेमाल कर रहा है.

यह पहली बार नहीं है कि शिक्षा मंत्री ने हिंदुओं की भावनाओं को ठेस पहुंचाई है. 13 जनवरी को नालंदा ओपन यूनिवर्सिटी के दीक्षांत समारोह में हिस्सा लेते हुए उन्होंने कहा था कि मनुस्मृति, रामचरितमानस और आरएसएस नेता एम.एस. गोलवलकर की किताबें समाज में नफरत फैलाती हैं.

उन्होंने कहा था, “ये किताबें देश को नफरत से बांटती हैं.” तब भी सीएम और डिप्टी सीएम ने ऐसी ही प्रतिक्रिया दी थी.

कुछ विश्लेषकों का मानना है कि चंद्रशेखर के बयान बिहार में जाति की राजनीति का प्रतिबिंब हैं, जहां पिछड़ी जातियों ने ऊंची जातियों के प्रभुत्व को चुनौती दी है.

ए.एन. सिन्हा सामाजिक अध्ययन संस्थान के पूर्व निदेशक डी.एम. दिवाकर कहते हैं, “बिहार में जाति बहुत मजबूत है और यह तब और मजबूत हो जाती है जब इसे तोड़ने की कोशिशें की जाती हैं जैसे कि जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व वाले आंदोलन में जहां पवित्र धागे को जलाया गया था, लेकिन जाति एक धमाके के साथ वापस आ गई.”

उन्होंने दिप्रिंट से कहा, अब मजाक यह है कि चंद्रशेखर को धर्म मंत्री बनाया जाना चाहिए क्योंकि शिक्षा विभाग में उनका कोई लेना-देना नहीं है.

दिवाकर ने आगे कहा, “मैं यह समझने में असफल हूं कि राजद ने चंद्रशेखर को वह एजेंडा तय करने की अनुमति क्यों दी, जिसमें भाजपा माहिर है?”

दिप्रिंट से बात करते हुए राजद उपाध्यक्ष शिवानंद तिवारी ने इस बात से इनकार किया कि चंद्रशेखर के बयानों का पिछड़ी जातियों के दावे या हिंदू धर्मग्रंथों की आलोचना से कोई लेना-देना है.


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गठबंधन में बेचैनी

चंद्रशेखर मधेपुरा विधानसभा सीट का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो बिहार में यादव राजनीति का गढ़ है. पिछले साल महागठबंधन के सत्ता में आने के बाद वो शिक्षा मंत्री बने और विभाग जदयू से राजद के पास चला गया.

राजद के एक नेता ने बताया कि हालांकि, आईएएस अधिकारी के.के. पाठक जिन्होंने इस साल जून में विभाग का कार्यभार संभाला है, ने उन्हें किनारे कर दिया है.

जदयू के एक विधायक ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, “इससे पहले पूर्व कृषि मंत्री सुधाकर सिंह लगातार सरकार के खिलाफ बयान देते रहते थे. बाद में नीतीश जी द्वारा उन्हें बर्खास्त करने पर जोर देने के बाद उन्हें यह छोड़ना पड़ा. अब, चंद्रशेखर और सुधाकर के पिता जगदानंद सिंह ने उनकी जगह ले ली है और वो नीतीशजी पर दबाव बनाने के लिए ये बयान जारी करते हैं.”

उन्होंने आगे कहा, “इसके अलावा चंद्रशेखर का विभाग में और कोई रोल नहीं है.”

यह पूछे जाने पर कि क्या पार्टी सनातन धर्म के खिलाफ है, राजद के उपाध्यक्ष तिवारी ने दिप्रिंट को बताया, “बिल्कुल नहीं, तो फिर पिछड़ी राजनीति के सबसे बड़े नेता लालू प्रसाद एक के बाद एक मंदिरों का दौरा क्यों कर रहे हैं? लालूजी ने सामाजिक परिवर्तन लाया है, लेकिन वो एक दृढ़ आस्तिक हैं.”

इस बीच, पूर्व एमएलसी प्रेम कुमार मणि, जो 2005 में नीतीश के बिहार के सीएम बनने पर उनके प्रमुख सलाहकारों में से एक थे, ने भी सलाह दी कि गठबंधन को “वोट हासिल करने के लिए सनातन धर्म को एक मुद्दे के रूप में इस्तेमाल नहीं करना चाहिए”.

उन्होंने दिप्रिंट से कहा, “धर्म व्यक्तिगत पसंद का मामला है. कुछ पिछड़ी जातियों को लग सकता है कि उनके धर्म में कुछ खामियां हैं, लेकिन जब उनके धर्म का अपमान होता है तो उन्हें अच्छा नहीं लगता. उन्हें लगता है कि ये उनके पूर्वजों का अपमान है. गठबंधन को वोट हासिल करने के लिए सनातन धर्म को एक मुद्दे के रूप में इस्तेमाल नहीं करना चाहिए.”

2020 के विधानसभा चुनावों पर प्रकाश डालते हुए मणि ने कहा, बिहार में ग्रैंड अलायंस ने बहुत अच्छा प्रदर्शन किया जब उन्होंने बेरोज़गारी जैसे मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया और जाति और धर्म को तस्वीर में नहीं लाया.

उन्होंने कहा, “बिहार में पिछड़ी जातियों की आबादी 54 फीसदी है, जिसमें 8 फीसदी पिछड़ी जाति के मुस्लिम शामिल हैं. वास्तविक हिंदू पिछड़ी जातियां 46 प्रतिशत हैं. ऐसा बहुत कम कहा जा सकता है कि वो कम धार्मिक हैं.”

(संपादन: फाल्गुनी शर्मा)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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